मैं माँ बनना चाहती हूँ

SHARE:

मैं माँ बनना चाहती हूँ मैं माँ बनना चाहती हूँ Mein Maa Nahin Banna Chahti -हाँ यह उसकी अपनी आप बीती है जिसकी कड़वाहटों की घुटन में उसका दम घुटने लगा. वह बालपन की अवस्था में ब्याही गई, तेरह साल की ही थी जब घर ग्रहस्ती की दुनिया बसाई।

मैं माँ बनना चाहती हूँ

                                                    
मैं माँ बनना चाहती हूँ Mein Maa Nahin Banna Chahti -हाँ यह उसकी अपनी आप बीती है जिसकी कड़वाहटों की घुटन में उसका दम घुटने लगा. वह बालपन की अवस्था में ब्याही गई, तेरह साल की ही थी जब घर ग्रहस्ती की दुनिया बसाई। घर के नाम पर टूटी फूटी ईंटों का बना एक बरामदा, जिसके बड़े सहन में ईंटों की एक दीवार से उसे दो कमरों में विभाजित कर दिया गया. बाक़ी रही खुले आँगन में एक चौड़ी हौदी, जहां नहाना, कपड़े धोना, बर्तन साफ करना वगैरह होता था। ग्रहस्ती बसते-बसाते पाँच बरस बीते, इस बीच वह बड़ी हुई, पर इतनी बड़ी भी नहीं कि वह अपने घर आँगन को फुलवारी बना सके।सूने आँगन में किलकारियों की कमी खलने लगीं!                                      
                               
“लगता है यह कभी माँ नहीं बन पाएगी।“ सास ऊंची आवाज़ में नीचा दिखाने की करती, जिसे सुनकर रेशमा शर्मनाक बेबसी की रिदा में और अधिक सिकुड़ जाती। वह बांझ न थी, बस अपनी कोख से बच्चे को जनम न दे पाई। वह औरत थी, और माँ न बनना उसके लिए एक श्राप बन गया। डॉक्टरों ने भी तपास करके उसके फिर से माँ बनने की हर संभावना को रद्द कर दिया। यही दर्द उसे सालता रहा, और सास की नुकीली नज़रों से वह घायल होने लगी. घर में एक खामुशी विराजमान सी हो गई. घर के दरो-दीवार उसकी उदासी के साथी बनकर अपनी जगह खड़े रहे और रेशमा अपनी जगह।

आखिर बीसवें साल में पाँव पड़ते ही रेशमा के मन में इस खाई को पाटने का विचार आया कि क्यों न वह अपनी
माँ
अनब्याही बड़ी बहन नगीना की शादी अपने पति राज़दान से करवा दे, ताकि घर आँगन में ख़ुशी के सुमन खिल उठें। आखिर जो सोचा उसे हक़ीक़त का जामा पहनाने के लिए हर विरोध को उलांघती हुई, ‘माँ’ कहलाने की चाह में, पसरे हुए समय की कोख से उम्मीद के दिये जलने की राह देखती रही। 

यह है मेरी काम वाली, बदनसीब रेशमा की आपबीती! उम्र में छोटी, पर तजुर्बों की भारी भरकम पोटली का भार सीने में लिए घूमती है। मैं जब भी विदेश से मुंबई अपने घर आती, वह सिर्फ़ एक फ़ोन करने पर, अपने निर्धारित समय पर आ जाती-. रेशमा मुझे भाभी कहकर बुलाती, कुछ ऐसे नर्म अहसास भरे लहजे में कि मेरा रवैया भी उसकी ओर नर्म धागे से बुने रिश्ते की तरह एक खिंचाव महसूस करता.  
मैं उसे तब से जानती हूँ जब से उसने अपने पति का व्याह अपनी छोटी बहन नगीना से करवाया था. उसके बाद उसे एक और काम की ज़रूरत पड़ गई, बस उसने मेरा काम पकड़ लिया जिसे वह आज तक निभाती आ रही है, चाहे मैं यहाँ रहूँ, या बाहर विदेश जाकर लौटूं. मेरी हर ज़रूरत का ख़याल रखती है, लेकिन अपनी ज़रुरतों का ख्याल न रख पाने के कारण आज इस चौराहे पर आ खड़ी है.  
आज रेशमा काम पर आई तो मैंने उसकी उदास आँखों में नमी देखी। पूछने पर कहा-‘भाभी दस दिन से दवा ले रही हूँ बच्चा होने की। आज डॉक्टर ने फिर बुलाया है। अब मैं अपना बच्चा चाहती हूँ।“ 
“पर तुमने बताया कि तुम्हारी बहन के तीनों बच्चे तुम्हारे ही है?” मेरी सवाली निगाहें उसके चेहरे पर अटक गई। 
“भाभी मैं स्वयं को धोखा दे रही थी” - कहकर वह बर्तन मोरी में छोड़कर हम दोनों के लिए चाय चढ़ाने लगी।
‘आपको आधा कप चाहिए या पूरा?’ मेरी ओर देखते हुए उसने पूछ लिया।
“पूरा...! बनाकर बाल्कनी में ले आ, मैं तब तक धूप में बैठती हूँ।“ मैं हॉल से होते हुए बाल्कनी में पड़ी आरामकुर्सी पर बैठ गई और भटकते मन के साथ विचारों के आकाश में सैर करती रही।
रेशमा के सीने में कील की तरह धंसा हुआ दर्द मेरे भीतर पिघलकर, खुश्क आँखों में नमी ले आया। उसकी थकित मुस्कान आँखों में अस्पष्ट साये छोड़ गई। 
खुद अपने ही रचे हुए इतिहास के चक्रव्यूह में फंसी थी वह, हाँ बुरी तरह। बातों से मन को बहलाया जा सकता है, बोझ कम किया जा सकता है, पर छल तो छल होता है। घर का मंगल चाहने वाली औरत अब खुद भीष्म पितामह की मानिंद काँटों की सेज पर लोट रही है। उसके दृढ संकल्पी मन की चाह जैसे चीखने लगी- ‘अब मैं अपना बच्चा चाहती हूँ।‘
मेरी सोच में खलल पड़ा जब वह चाय व बिसकुट ट्रे में लेकर मेरे सामने रखते हुए खुद ज़मीन पर बैठी. 
‘अब आराम से कुछ पल बैठ, और मुझे बता कि आज ऐसा क्या हुआ है जो तुम इतनी विचलित हुई हो?’ मैंने हाथ में चाय का प्याला लेते हुए पूछ लिया।
‘भाभी क्या बताऊँ, घर तो घर वालों से होता है, बच्चों से होता है। होता है कि नहीं?’ उसने पलटकर मेरी आँखों में झाँका।  
     नारी मन भी अजीब है। अपने सुख को भी सांझा कर लेता है और दुख को भी। जिस परिवार के लिए पति को सांझा कर लिया, आज वही परिवार उसे क्यों बेगाना लग रहा है?
‘पर आज ऐसा क्या हुआ है, जो तुझे अपने बच्चे की अभिलाषा इतनी तीव्रता से महसूस हुई है? बरसों से तो अपने बहन के बच्चों के सदके उतारती रही. अपनी समस्त कमाई उनके सुख दुख के लिए लुटाती रही.....!’
“भाभी, बच्चों के लिए ही तो मैंने यह कदम उठाया. उठाने के पहले पति को मनाया, माँ को राज़ी किया, बहन की खुशामद की, सास से रजामंदी ली। और आज घर वाला मुझसे किनारा कर जाता है, कभी हफ्ते में एकाध बार मेरे साथ धराशयी बिस्तर पर कमर सीधी करता है और मैं उसके बेडोल शरीर के बोझ तले जैसे मसली जाती हूँ, निचोड़ी जाती किसी पुराने कपड़े-लत्ते के तरह। मुझे यह अहसास होने लगा है कि अब रिश्ते से ज्यादा स्वार्थ निभाया जा रहा है।‘ कहकर वह अपनी चुनरी से अपने रिसते हुए नाक और बहती आँखों को सोखने लगी। 
‘तुझे क्यों लगता है कि वे बच्चे तेरे नहीं हैं, और उनका बाप तेरा नहीं रहा है? पगली 16 साल व 14 साल की दो बेटियों की तू बड़ी माँ है, इतने विश्वास से तूने इस धर्म युद्ध को अंजाम दिया है, और आज.....!”
मेरी बात को बीच में ही काटते रेशमा उफ़ान के तरह उबल पड़ी-“हाँ यह सच है, यह मेरी ही ज़िद्द थी, और मैंने वही किया जिसमें परिवार का भला था, सुख था। राज़दान ने कई बार समझाया, पर मुझपर नासमझी हावी थी! उसने तो ज़ोर देकर नगमा के सामने यहाँ तक कहा था-“तुम अपनी मर्ज़ी से हमारा व्याह करा रही हो, क्या बर्दाश्त कर पाओगी? और यह भी पूछा था –“तुम हमारे साथ रहोगी या अलग रहना चाहती हो?”
यह सुनकर मैं ऐसे चौंकी, जैसे किसी ने जलता हुआ अंगार मेरी झोली में डाल दिया हो। फिर भी ढलते हुए स्वर में मैंने कहा था-“सभी के साथ।“                 
मुझे बताते हुए वह जैसे खुद से बतिया रही थी-‘मुझे भी बच्चों की लालसा थी, इसीलिए मैं साथ रहकर उस सुख को भोगना चाहती थी, देखकर जीना चाहती थी बीज से लेकर पेड़ होने तक की उपज को।‘ कहकर रेशमा ने चाय की घूँट के साथ अपने अन्दर का दर्द भी निगल लिया.  
और हुआ भी यही, ब्याह को 12 महीने भी न हुए कि घर में खुशी का ऐलान हुआ-लक्ष्मी आई है. घर में लक्ष्मी आई, जिसका नामकरण रुखसाना के नाम से कर दिया. खुशनुमा ढोल बजे, बधाइयाँ अदला-बदली हुईं, और रेशमा का आँचल भी सास और पति की शाबासी से भर गया। 
रुखसाना अब दो माओं के प्यार की छाँव में पनपने लगी, और वही प्यार गरीबी की रेखाओं को मिटाने में कामयाब हुआ। राज़दान को पगार में इज़ाफा मिला, रेशमा जो दो घरों में काम करती थी, अब चार घरों का करने लगी। धन की कमी न रही। एक साल और बीता कि घर में दूसरी लक्ष्मी आई. जिसका नाम ‘आयशा’ रखा, फिर बेटे के चाह एक तीव्र इच्छा बनकर सबके मन में धड़कने लगी.  
बरकत जब आती है तो आ ही जाती है। राज़दान अब तीसरी संतान को बेटे के रूप में पाने की लालसा मन में धर बैठा। नगीना हर बात से बिलकुल निश्चिंत-बड़ी बहन ने छोटी बहन को बड़ी मालकिन का दर्जा जो दे दिया। नगीना दो बेटियों की माँ, अपने पति की चहेती, नाज़ नखरे भी उसके कम न थे। हार-शृंगार, लत्ते कपड़े, सब रेशमा ले आती। रेशम को लगा कि वह राज़दान की पहली पत्नी होने के एवज़ ओहदे में बड़ी थी, इसी कारण हर जवाबदारी का बोझ अपने काँधों पर ले लिया...खुशी खुशी...! और खुशी में इज़ाफा करने एक बार फिर आ गई घर में लक्ष्मी। अब उसे लगने लगा कि वह बड़ी माँ तो न बन पाई है, हाँ बड़ी जवाबदारी का बोझ उसे एक और काम पकड़ने की कोशिश में मेरे घर तक ले आया...! पांच घरों का काम, सोचकर वह दोहरी हो जाती. सबका पेट भरने की खातिर वह नितांत अकेली एकल जीवन की ओर धकेली जा रही थी।
अतीत की परछाइयों से बाहर आते ही रेशमा ने ट्रे उठाई और रसोईघर के ओर जाते हुए कहने लगी..”भाभी अब मेरा होश ठिकाने आ गया है, मैं अब फिर से अपना बच्चा चाहती हूँ, अपना घर, अपना पति चाहती हूँ। इस काम की दलदल से भी छुटकारा चाहती हूँ। माँ कहलाने की ललक ने मुझे फ़क़त नौकरानी बना दिया है...अब मैं माँ बनना चाहती हूँ।“ 
“इस बात की प्रतिक्रिया क्या होगी जब सब जान जायेंगे?” मैंने गौर से उसकी ओर देखते हुए पूछा.  
“घर में हलचल मची है, परिवार के सदस्य तो परेशान हैं ही, पति भी विचलित है इस स्थिति से, और मैं उनसे अधिक परेशान हूँ। स्वयं नहीं समझ पा रही हूँ, या शायद स्वीकार कर पाने की स्थिति में अधिक बेचैन हो उठी हूँ कि बहन के बच्चे मेरे नहीं, मेरा पति भी मेरा नहीं. अब मुझे बच्चा चाहिए, अपना बच्चा और उसके लिए उसका साथ, जिसके लिए वह आना-कानी कर जाता है, मुझे बहलाता है, फुसलाता है यह कहकर- ‘रेशमा ये दोनों तेरी
देवी नागरानी
देवी नागरानी
ही बेटियाँ हैं, तुझे माँ कहकर नहीं पुकारती, बस ‘मौसी’ पुकारती है, इसमें इतना बुरा मानने वाली क्या बात है? क्या फ़र्क पड़ता है इससे, हैं तो हम सभी एक छत के नीचे, एक चूल्हा, एक परिवार, तू मन से यह गैरत वाली बात निकाल दे, माँ और मौसी क्या एक नहीं होती?’
‘नहीं होती...!” रेशमा की ज़िद अब नफरत में बदलने लगी थी ऐसा आभास मुझे उसके बात करने के रवैये से लगा। कारण ठोस था,  यक़ीनन ठेस भी करारी लगी थी. 
“आयशा अब दसवीं में है, कई बार रात देर गए घर लौटती है. एक दिन मैंने उसे किसी जवान लफंगे के साथ बाज़ार में हंस हंस कर बतियाते हुए देखा, एक बार फिर उसी के साथ कुल्फी खाते देखा, बस बदन में आग लग गई. उस दिन जब वह देर से घर आई तो मैंने सब के सामने उसे फटकारा. बात सब पर ज़ाहिर हुई और आयशा भड़क कर कह बैठी- ‘मौसी, आप माँ से जलती हैं, इसलिए उनके मन में इस तरह ज़हर को घोल रही हो.”    
“मैं ज़हर घोल रही हूँ या तुम अपनी ज़िन्दगी नरक बनाने पर तुली हुई हो. मैंने दो बार तुझे उस लफंगे के साथ देखा है. तेरे भले के लिए कह रही हूँ.” रेशमा ने राज़दान की ओर देखते हुए कहा.
“मौसी...आप...” आयशा इतना ही कह पाई कि राजदान ने बिगड़ती बात को बनाने के लिए रेशमा को शांत करने के लिहाज़ से कहा –“मैं इस नादान लड़की को समझाऊंगा.” और फिर नगीना की ओर देखते हुए कहने लगा-“तुम भी तो बड़ी लड़कियों की माँ हो, उनकी खोज खबर रखा करो. रेशमा अकेली कितना बोझ उठाएगी. वह बाहर के काम संभाल लेती है, कम से कम तुम तो बच्चियों का और चारदीवारी के भीतर का ध्यान रखा करो.’ यूं कहकर रेशमा के कंधे पर हाथ रखते हुए उसे भीतर कमरे की ओर ले गया. 
बिफरी हुई शेरनी की तरह रेशमा अपनी आप बीती की दीवार पर चिपके हुए याद के खुरदरे निशानों को कुरेदती रही. उसका मन शायद मुझे बातें बताते हुए अधिक घायल हुआ जा रहा था. ऐन समय पर नाज़ुक परिस्थितियों से घिरी रेशमा के मन की अवस्था को ध्यान में रखते हुए मैंने कहा: 
‘रेशमा यह उपवन तुम्हारे बोये हुए बीजों की फ़सल है. अब लडकियां बड़ी हुई है, पढ़-लिख कर अपने जीवन की डोर संभालना चाहती हैं. वे अपने माँ बाप की जवाबदारी है, तुम्हारा दखल शायद ही उन्हें बर्दाश्त हो. तुम यह क्यों नहीं समझ रही.’   
‘नहीं भाभी, अब मैं बिलकुल साफ साफ देख रही हूँ और समझ भी रही हूँ, कि उस स्वार्थ की चक्की में मैं पिसती जा रही हूँ। पहले तीन घर का काम करती रही, फिर पाँच का। सुबह नौ बजे की निकली थकी हारी तीन बजे घर पहुँचती हूँ, तो अक्सर खाना नसीब नहीं होता...! घर में बहन के सिवा कोई नहीं होता. पति काम पर, लड़कियां स्कूल में और बहन अपनी नासाज़ तबीयत का बहाना कर के बिस्तर पर लेटी हुई मिलती है. कुंठित मन से नहा धोकर अपने और उसके लिए चाय बनाती हूँ और हर घूंट के साथ इन कड़वाहटों के ज़हर को भी पी जाती हूँ। अब लगता है मैंने अपने ही पाँव पर खुद कुल्हाड़ी मार ली है।“
मेरा मन सोच के रेगिस्तान में विचरता रहा। पति सांझा हो गया, बच्चे मौसी के न होकर माँ के हो गए, पति बंटा हुआ, और वह किसकी हुई? घर, काम और घर की तमाम  जवाबदारी के बीच बंटी हुई रेशमा, भीतर ही भीतर यकीनन टूट रही है। हाथ काम में, पर मन अपने आने वाले कल के तानों बानों में भटकता होगा. घर की डहती हुई दीवारें अब पर्दे का काम करने में असमर्थ होती जा रही थीं. मैंने देखा वह लड़खड़ाते क़दमों से अपने शरीर के बोझ को ढोते हुए किसी तरह रसोईघर तक और नल को खोलते हुए फफक-फफक कर रोने लगी. चिंताओं की अनेक गठरियों की जैसे गांठें खुलने लगीं थीं.  
0
‘’अरी रेशम तू जो ये दवा दरमल के रूप में जड़ी-बूटियों का सेवन कर रही है, क्या तुम्हारा पति जानता है. नगमा जानती है कि तू क्या सोच रही है, क्या चाहती है?”
‘भाभी, मुझे पता है मैं क्या सोच रही हूँ, क्या चाहती हूँ? मुझे अपना बच्चा चाहिए, और मेरा पति वापस चाहिये. नगीना क्या सोचती है उससे मुझे कुछ लेना देना नहीं. अब मुझे नगीना अपनी सौत लगती है, जो मेरे सामने मेरी छाती पर मूंग दल रही है. और ये ‘मौसी’ कहने वाली लडकियां मेरी नहीं, उसकी औलाद है. मुझे अब अपनी औलाद चाहिए.”
शिद्दत से की हुई पुकार मौला के दरवाज़े पर दस्तक देते हुए उसे खुलने पर मजबूर करती है. रेशमा की चाह भी एक दुआ बनकर उसकी खाली झोली भर पाने में सक्षम हुई. रेशमा को अब दो महीने का गर्भ है. थकान के बावजूद वह चेहरे पर मुस्कान व् ममता का एक नूर है, जिसे लिए वह एक घर से दूसरे, दूसरे से तीसरे, चौथे और आखिर मेरे घर आकर थाह पाती है.  
‘पगली कब तक यूं हांफ-हांफ कर काम करती रहेगी, तीसरा महीना है, कुछ अपना न सही इस नन्हें अंकुर का तो ख्याल कर.”
“ भाभी परसों पहली तारिख से तीन घर का काम छोड़ रही हूँ...!”
“.....मेरा भी ...!” 
“नहीं आपका तो कभी नहीं छोडूंगी. लगता है यही मेरा पीहर है और आप मेरी माई-बाप. पैसे से ज़्यादा आपका प्यार मेरा हौसला बढाकर बल प्रदान करता है. सब काम भी अगर छोड़ दूँगी, तो भी आपके घर की चौखट नहीं छोडूंगी. मैंने राजदान को भी कह दिया है.”
‘क्या कह दिया है पगली...?”
“यही कि आपके स्नेह और आशीर्वाद से यह सब कुछ संपन्न हुआ है, मेरा घर बस रहा है, संसार सुहाना हो रहा है, और मैं माँ बनने जा रही हूँ...”
“पगली तेरी आस व् सच्ची निष्ठां तेरी उपासना बनी है. यह ईश्वर का दिया हुआ वह वरदान है जो तेरे घर आंगन को किलकारियों से भर देगा.”
“भाभी, बस मुझे और कुछ नहीं आपका आशीर्वाद चाहिए....!’ कहकर रेशमा ने निर्मला देवी के पाँव छू लिए!
‘भाभी आशीर्वाद दीजिये..!”
“पगली सबको मना ही लेती हो, भगवान को भी नहीं छोडती. सदा सौभाग्यवती भव्, आयुषमान भव.” और खुद ब खुद निर्मला देवी के लरज़ते हाथ उसके सर पर स्नेह की छात्रछाया बन कर फ़ैल गए. 
ममता का प्रवाहमान स्त्रोत्र न कभी रुका है न रुकेगा. 




देवी नागरानी जन्म: 1941 कराची, सिंध (तब भारत) , हिन्दी, सिंधी तथा अंग्रेज़ी में समान अधिकार लेखन, हिन्दी- सिंधी में परस्पर अनुवाद। 8 ग़ज़ल-व काव्य-संग्रह, एक अंग्रेज़ी काव्य-The Journey, 2 भजन-संग्रह, ४ कहानी संग्रह, २ हिंदी से सिंधी अनुदित कहानी संग्रह, 8 सिंधी से हिंदी अनुदित कहानी-संग्रह प्रकाशित। अत्तिया दाऊद, व् रूमी का सिंधी अनुवाद.(२०१६), श्री नरेन्द्र मोदी के काव्य संग्रह ‘आंख ये धन्य है का सिन्धी अनुवाद(२०१७) चौथी कूट (साहित्य अकादमी प्रकाशन), NJ, NY, OSLO, तमिलनाडू, कर्नाटक-धारवाड़, रायपुर, जोधपुर, महाराष्ट्र अकादमी, केरल, सागर व अन्य संस्थाओं से सम्मानित। साहित्य अकादमी / राष्ट्रीय सिंधी विकास परिषद से पुरुसकृत। 

Devi Nangrani 
323 Harmon cove towers ,
Secaucus, NJ 07094
dnangrani@gmail.com  
  

COMMENTS

Leave a Reply
नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,37,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,4,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,8,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,5,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,7,कविता,1476,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,39,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,3,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,139,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,6,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,35,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,76,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,6,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,12,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,4,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,202,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,139,प्रयोजनमूलक हिंदी,38,प्रेमचंद,49,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,88,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,9,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,18,भीष्म साहनी,8,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,10,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,3,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,8,मोहन राकेश,16,यशपाल,19,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,125,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,8,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,3,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,8,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,57,शैलेश मटियानी,3,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,4,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,34,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,44,समसामयिक हिंदी लेख,270,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,20,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,86,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,433,हिंदी लेख,535,हिंदी व्यंग्य लेख,14,हिंदी समाचार,183,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aapka-banti-mannu-bhandari,6,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,divya-upanyas-yashpal,5,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,11,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,20,hindi essay,425,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,681,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,74,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,23,kavyagat-visheshta,25,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,12,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,raag-darbari-shrilal-shukla,8,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,6,sponsored news,10,suraj-ka-satvan-ghoda-dharmveer-bharti,5,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,57,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: मैं माँ बनना चाहती हूँ
मैं माँ बनना चाहती हूँ
मैं माँ बनना चाहती हूँ मैं माँ बनना चाहती हूँ Mein Maa Nahin Banna Chahti -हाँ यह उसकी अपनी आप बीती है जिसकी कड़वाहटों की घुटन में उसका दम घुटने लगा. वह बालपन की अवस्था में ब्याही गई, तेरह साल की ही थी जब घर ग्रहस्ती की दुनिया बसाई।
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhMyqV-d8ASdwUt_Qi1LYyoscsdsBNuaimWCmZyjveSZwcEgql00jY0czqROIih8rfvEXH-jhxU3sTlelAT0SnYX_BIaxMkJFLTW4lqghCJvulbCcPZbOpvrldnx0h4FJT_-M-3aP0LtpAV/s320/maa.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhMyqV-d8ASdwUt_Qi1LYyoscsdsBNuaimWCmZyjveSZwcEgql00jY0czqROIih8rfvEXH-jhxU3sTlelAT0SnYX_BIaxMkJFLTW4lqghCJvulbCcPZbOpvrldnx0h4FJT_-M-3aP0LtpAV/s72-c/maa.jpg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2018/09/mai-maa-banna.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2018/09/mai-maa-banna.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका