जीवन के विविध पक्षों में आधुनिकीकरण की विभिन्न माँगें होती हैं।अर्थशास्त्री आधुनिकीकरण के अन्तर्गत प्रकृति के साधनों को नियंत्रित करने के लिए ऐसी तकनी
परम्परावादी
जब हमारे देश में पाश्चात्य विचारों से प्रभावित विचारक आधुनिकीकरण की बात सोचते हैं तो उनके सामने आधुनिकीकरण का यही पाश्चात्य स्वरूप होता है। प्राचीन मूल्य उन्हें परम्परावादी लगते हैं और जब वे भारतीय संस्कृति की बात करते हैं तो उसमें उन्हें जो मूल्य दिखायी देते हैं वे हैं- धर्मपरायणता, अन्धविश्वास, ऊँच-नीच, छुआछूत, पवित्रता, नातेदारी, सामाजिक भेदभाव, तर्करहित व्यवहार, भाग्य तथा भविष्यवाणी पर भरोसा, पूर्व जन्म में विश्वास, स्त्रियों का नीचा दर्जा तथा सामन्तवादी भावना आदि।आधुनिक बनने का प्रयास करने वाले एक व्यक्ति को बुद्धिमत्तापूर्वक अन्धविश्वासों, मान्यताओं, परम्पराओं तथा यांत्रिक सभ्यता के अनेक दोषों तथा सीमाओं से स्वयं को परे रखने का निरन्तर प्रयास करना चाहिए। उसे मूल्यों के संघर्ष में एक सन्तुलित व सही चिन्तन रखने व व्यवहार करने का अभ्यस्त होना चाहिए अन्यथा वह विभिन्न प्रकार की सामाजिक, सांस्कृतिक,विडम्बनाओं या खाइयों में उलझ जायेगा। उसे अपना दृष्टिकोण साफ तथा व्यक्तित्व गतिमान बनाना चाहिए। उसे जनसंचार के साधनों का बराबर उपयोग करना चाहिए।
आधुनिकीकरण के विविध पक्ष
जीवन के विविध पक्षों में आधुनिकीकरण की विभिन्न माँगें होती हैं।अर्थशास्त्री आधुनिकीकरण के अन्तर्गत प्रकृति के साधनों को नियंत्रित करने के लिए ऐसी तकनीकों का पयोग करने पर बल देते हैं जिससे आर्थिक उत्पादन में वृद्धि हो। एक समाजशास्त्री सामाजिक संरचनाओं में आने वाले उन अन्तरों, भिन्नताओं, स्तरणों आदि में रुचि लेते हैं जो नये व्यवसायों ,नयी परिस्थितियों तथा नयी जटिलताओं को विकसित होने के फलस्वरूप पनप मन राजनीतिज्ञ आधुनिकीकरण की कुछ विनाशकारी विशेषताओं तथा विशेषकर राष्टों व सरकारों के निर्माण से सम्बद्ध समस्याओं में रुचि लेते हैं। निष्कर्ष यह है कि आधुनिकीकरण कई रूप हैं। आइजनस्टीड ने लिखा है कि मोटे रूप से हम दो प्रकार के आधनिकीकरण के पारूप देखते हैं- प्रथम, वे जिनका मूल औद्योगीकरण से पूर्व के नये मूल्यों से परिपूर्ण व्यवस्था में रहा था; द्वितीय, वे जिनका मूल परम्परागत सामाजिक व सांस्कृतिक व्यवस्थाओं में रहा है। देश, काल व परिस्थितियों के अनुसार इच्छित प्रकार के आधुनिकीकरण की विशेषताओं में अन्तर होना स्वाभाविक है।
मृणाल चटर्जी ओडिशा के जानेमाने लेखक और प्रसिद्ध व्यंग्यकार हैं ।मृणाल ने अपने स्तम्भ 'जगते थिबा जेते दिन' ( संसार में रहने तक) से ओड़िया व्यंग्य लेखन क्षेत्र को एक मोड़ दिया । इनका उपन्यास 'यमराज नम्बर 5003' का अंग्रेजी अनुवाद हाल ही में प्रकाशित हुआ है । इसका प्रकाशन पहले ओडिया फिर असमिया में हुआ । उपन्यास की लोकप्रियता को देखते हुए अंग्रेजी में इसका अनुवाद हुआ है।
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