बुरी शिक्षा का परिणाम बच्चों की कहानियां

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बुरी शिक्षा का परिणाम बच्चों की कहानियां बुरी शिक्षा का परिणाम दानी ने देख लिया था .तब से उसने न ही मिलावट करने की शिक्षा दी .बल्कि मिलावट से होने वाली हानियाँ भी गिनाने लगा .इतना ही नहीं ,वह अब जो भी उसके दहलीज़ पर आता तो उन्हें अवश्य भोजन देता ,वह भी शुद्ध .

बुरी शिक्षा का परिणाम बच्चों की कहानियां 

किसी नगर में दानी नमक एक व्यापारी रहता था उसका काम नाम के एकदम विपरीत था ,अर्थात न तो वह स्वयं दान देता था और न ही अपने घरवालों को दान करने देता था . जब भी कोई साधू उसके दहलीज़ पर खड़ा हो भीख माँगता तो वह कह देता आगे बढ़ो और वह इतना सा वाक्य कह टाल था . 
मिलावट
मिलावट 
दानी या धर्मी तो  था ही नहीं .हाँ वह अधर्म अवश्य करता था .उसके किराने की दूकान थी .वह जो भी सामग्री बेचता उसमें मिलावट करके ही बेचता था . मिलावट का कार्य एक अकेला करे ,ऐसी बात नहीं थी अपितु वह अपने परिवार वालों को भी मिलावट करके सामग्री बेचने के लिए कहता . लोग अशुद्ध सामग्री खरीदकर ले जाते और अक्सर बीमार रहते थे . दानी के पुत्र का नाम धनेश था .वह अक्सर पूछ बैठता - पिता जी , आप मिलावट क्यों करते हैं ? इस पर दानी कह देता , "बेटा ,शुद्ध सामग्री हानिकारक होती है .इसीलिए मिलावट करके बेचता हूँ . मगर धनेश को भि मिलावट का कार्य सिखा दिया था . मगर धनेश अक्सर देखता कि दानी जो भि सामग्री घर के लिए निकालता है उसमें मिलावट नहीं होती है . धनेश सोचता कि इससे तो हम बीमार पड़ जायेंगे .वह मिलावट कर देता था .इसकी जानकारी दानी को नहीं हो पाती थी .क्योंकि धनेश मिलावट तो कर दिया करता था लेकिन किसी को बताता नहीं था . 
यदायापी घर के लिए दानी शुद्ध  सामग्री निकालता मगर मिलावट सामग्री खाता .उसे इसका अनुभव अवश्य होता कि खाद्य सामग्रियों में मिलावट हुई है .मगर पूछ नहीं पाता क्योंकि उसे विश्वास नहीं था कि उसके खाने की वस्तु में भी मिलावट की गयी है .इसी कारण एक दिन दानी इतना बीमार पड़ गया कि खाट से उठना तक मुस्किल हो गया .अब वह खाट में ही पड़े - पड़े भोजन करता ,दूध पीता .अक्सर दूध देने की जिम्मेदारी धनेश पर आ जाती .वह शुद्ध है अर्थात उसमें मिलावट नहीं की गयी है . वह सोचता कि यदि पिताजी को शुद्ध दूध दे दिया गया तो वह और अधिक बीमार पड़ जायेंगे .इस विचार के साथ वह आधा दूध स्वयं पी जाता और आधे दूध में पानी मिलाकर दानी को दे देता . 
दानी दूध पीता तो अनुभव अवश्य करता कि इसमें पाई अधिक मात्र में मिला है ,मगर तत्काल इससे असहमत भी हो जाता क्योंकि दूध घर का होता था .तब पानी मिलाने का प्रश्न ही नहीं उठता था .मगर उसे संदेह हो गया . एक दिन उसके दूध पीने का समय हो गया तो उसने खिड़की से पुत्र का काम देखा तो दंग रह गया .पुत्र आधा दूध तो पी गया और आधे में पानी मिलाकर पिता के पास ले आया . उसने दानी को थमा दिया .दानी ने कहा - " बेटा धनेश क्या घर में और दूध नहीं है ? क्यों नहीं ,पूरे पाँच लीटर दूध और रखा है .धनेश का उत्तर था .दानी बोला - फिर तुम उसमें से दूध पीने के बदले मेरा दूध पीकर उसमें पानी क्यों मिलाया ? पुत्र बोला - आप ही तो कहते हैं न ,शुद्ध सामग्री हानिकारक होती है .मगर माँ आपके दूध में पानी नहीं मिलाती थी .मैंने सोचा आपको शुद्ध दूध देने आपकी बीमारी और बढ़ेगी .बीमारी न बढे ,यही सोचकर तो मैंने मिलावट करके देना उचित समझा .
बुरी शिक्षा का परिणाम दानी ने देख लिया था .तब से उसने न ही मिलावट करने की शिक्षा दी .बल्कि मिलावट से होने वाली हानियाँ भी गिनाने लगा .इतना ही नहीं ,वह अब जो भी उसके दहलीज़ पर आता तो उन्हें अवश्य भोजन देता ,वह भी शुद्ध . 


कहानी से शिक्षा - 
१. बुरी शिक्षा का परिणाम बुरा होता है . 
२. हमें मिलावट नहीं करनी चाहिए ,बल्कि शुद्ध वस्तु बेचनी चाहिए . 

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