बादल को घिरते देखा है

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बादल को घिरते देखा है 
Badal Ko Ghirte Dekha Hai Poem By Nagarjun


अमल धवल गिरि के शिखरों पर,
बादल को घिरते देखा है।
छोटे-छोटे मोती जैसे
उसके शीतल तुहिन कणों को,
मानसरोवर के उन स्वर्णिम
कमलों पर गिरते देखा है,
बादल को घिरते देखा है।

व्याख्या - हिमालय पर्वत की ऊँची चोटियाँ बर्फ से ढकी रहती हैं उन बर्फ से ढकी एकदम सफ़ेद चोटियों पर घिरे हुए बादलों की सुन्दरता को कवि ने खूब देखा है . हिमालय की चोटियाँ बर्फ के कारण सफ़ेद हैं और धूप के करण उज्जवल हैं ,उन पवित्र चोटियाँ पर घिरे बादल बहुत सुन्दर प्रतीत होते हैं .छोटे छोटे ओस की बूँदे मोतियाँ के समान दिखाई देती हैं , मानसरोवर के सुनहरे रंग के कमलों पर गिरती हैं तो वह बहुत ही प्यारी लगती हैं . वे सुनहरे कमल और अधिक सुन्दर और मनोहर हो जाते हैं . कवि कहता हैं कि उसने उस सौन्दर्य का जी भरकर पान किया है .


२. तुंग हिमालय के कंधों पर
छोटी बड़ी कई झीलें हैं,
उनके श्यामल नील सलिल में
समतल देशों से आ-आकर
पावस की उमस से आकुल
तिक्त-मधुर विषतंतु खोजते
हंसों को तिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।

व्याख्या - पर्वतीय प्रदेश में बादलों के घिरने पर वहाँ की झीलों में तैरते हुए हंसों के सौन्दर्य का वर्णन इन पंकितियाँ में किया गया हैं .हिमालय की ऊँची ऊँची चोटियाँ के मध्य अनेक छोटे - बड़ी कई स्वच्छ झीलें हैं . उन झीलों पर बहने वाला जल एकदम पवित्र और नीला हैं . उस नीले निर्मल जल में पावस ऋतु की गर्मी और घुटन से दुखी हंस तैरते दिखाई देते हैं . ये हंस समतल देशों की गर्मी से व्याकुल होकर हिमालय की ठंडी झीलों में उगे कमलों के खट्टे - मीठे तन्तुवों का स्वाद लेने की इच्छा से इन झीलों में चले आते हैं . 

३. ऋतु वसंत का सुप्रभात था
मंद-मंद था अनिल बह रहा
बालारुण की मृदु किरणें थीं
अगल-बगल स्वर्णाभ शिखर थे
एक-दूसरे से विरहित हो
अलग-अलग रहकर ही जिनको
सारी रात बितानी होती,
निशा-काल से चिर-अभिशापित
बेबस उस चकवा-चकई का
बंद हुआ क्रंदन, फिर उनमें
उस महान् सरवर के तीरे
शैवालों की हरी दरी पर
प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।

व्याख्या - वसंत की ऋतु थी . प्रभात की सुंदर बेला थी .वायु धीमी धीमी गति से चल रही थी .उगते सूरज की मीठी - मीठी किरने धरती पर पड़ रही थी.सूर्य की कोमल किरने अगल - बगल की चोटियाँ पर पड़ रही थी .कवि कहते हैं कि ऐसे सुन्दर सुनहले वातावरण में उन्होंने एक चकवा - चकवी के जोड़े को प्रेम की किल्लोरे करते हुए देखा हैं . उन्हें रात में परस्पर न मिलने का शाप मिला हुआ हैं इसीलिए उन्हें मजबूरन अलग - अगल रहकर अपनी रातें बितानी पड़ती हैं .सुबह होते ही उनकी वियोग भरी पुकार समाप्त हो जाति हैं .तब उनमें मिलन होता हैं .ऐसा लगता हैं कि मानों वे जोर - जोर से बोलकर एक दूसरे को रात भर न मिलने का उलाहना दे रहे हों .


४. शत-सहस्र फुट ऊँचाई पर
दुर्गम बर्फानी घाटी में
अलख नाभि से उठने वाले
निज के ही उन्मादक परिमल-
के पीछे धावित हो-होकर
तरल-तरुण कस्तूरी मृग को
अपने पर चिढ़ते देखा है,
बादल को घिरते देखा है।

व्याख्या - बर्फ से ढकी घाटियों में सैकड़ों हजारों फुट की ऊँचाई पर कवि ने एक युवा कस्तूरी मृग को देखा हैं . वह मृग अपनी नाभी में से आती हुई नशीली सुगंध के पीछे - पीछे पागल होकर दौड़ रहा था .उसे भ्रम था कि वह सुगंध कहीं बाहर से आ रही हैं .अतः भागने और सुगंध न मिलने के कारण वह अपने आप पर ही चिढ रहा हैं . उसका वह अपने आप पर चिढना कितना मनोरम था .कवि कहता हैं कि हिमालय की बर्फीली चोटियों पर घिरते बादलों के नीचे यह दृश्य अत्यंत आकर्षक लगता हैं .

५. कहाँ गय धनपति कुबेर वह
कहाँ गई उसकी वह अलका
नहीं ठिकाना कालिदास के
व्योम-प्रवाही गंगाजल का,
ढूँढ़ा बहुत किन्तु लगा क्या
मेघदूत का पता कहीं पर,
कौन बताए वह छायामय
बरस पड़ा होगा न यहीं पर,
जाने दो वह कवि-कल्पित था,
मैंने तो भीषण जाड़ों में
नभ-चुंबी कैलाश शीर्ष पर,
महामेघ को झंझानिल से
गरज-गरज भिड़ते देखा है,
बादल को घिरते देखा है।

व्याख्या - हिमालय का बर्फीला आंगन अतीव सुन्दर हैं .इसे देखकर कवि ने बहुत सोचा कि धन का स्वामी कुबेर यही कही रहता होगा . उसकी वह अलकानगरी कहाँ है ? परन्तु पता नहीं चल सका .कवि कालिदास ने अपने मेघदूत में जिस आकाश नदी गंगा के जल का वर्णन किया उसका भी यहाँ कोई पता नहीं चलता हैं . न ही उसके उस मेघदूत का पता चलता हैं कि वहाँ कहाँ बरसा होगा ? . कवि कहता हैं कि वह तो यहाँ के प्रत्यक्ष देखे गए सौन्दर्य की बात करता हैं . उसने यहाँ घोर सर्दी के दिनों में , आकाश को छूते हुए कैलाश पर्वत की सबसे ऊँची पर एक बड़े बादल को वायु के अन्दर से गरज - गरज कर टकराते हुए देखा हैं .

६. शत-शत निर्झर-निर्झरणी कल
मुखरित देवदारु कनन में,
शोणित धवल भोज पत्रों से
छाई हुई कुटी के भीतर,
रंग-बिरंगे और सुगंधित
फूलों की कुंतल को साजे,
इंद्रनील की माला डाले
शंख-सरीखे सुघड़ गलों में,
कानों में कुवलय लटकाए,
शतदल लाल कमल वेणी में,
रजत-रचित मणि खचित कलामय
पान पात्र द्राक्षासव पूरित
रखे सामने अपने-अपने
लोहित चंदन की त्रिपटी पर,
नरम निदाग बाल कस्तूरी
मृगछालों पर पलथी मारे
मदिरारुण आखों वाले उन
उन्मद किन्नर-किन्नरियों की
मृदुल मनोरम अँगुलियों को
वंशी पर फिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।

व्याख्या - कवि कहता हैं कि हिमालय पर्वत पर देवदारु के घने जंगल हैं उनमें सैकड़ों छोटे छोटे बड़े झरनों का कल - कल स्वर गूंजता रहता है . वहीँ लाल और सफ़ेद भोज पत्रों से सजी हुई कुटियाँ हैं ,जिनमे अन्दर हिमालय निवासी रहते हैं . वे निवासी कलाओं में रूचि रखते हैं . वे अपने केशों को रंग बिरंगे और खुशबूदार फूलों से सजाये रहते हैं . वे नीलम पत्थर की माला पहने रहते हैं . यहाँ की कन्याएँ अपने कानों में नीले कमल लटकाए घूमती है तथा खिले हुए लाल कमलों को अपनी चोटी में लगाये रहती हैं . यहाँ के किन्नर नर और नारियाँ नशे में लीन रहते हैं . ऊनि आँखों में नशे की लाली है , वे मृग की खाल से बनी मृगछाला के आसन पर पालथी मारे बैठे हैं .उनके सामने लाल चन्दन से बनी तिपाई रखी है .उनके सामने कलात्मक सुराहियाँ हैं . किन्नर और किन्नरियाँ अपनी कोमल आकर्षक अंगुलियाँ से वंशी की मधुर तान छेड़ रहे हैं . कवि ने ऐसे कलात्मक जीवन को देखा हैं . वह जीवन कितना अच्छा हैं .ऐसे वातावरण में हिमालय की श्वेत चोटियों पर घिरते हुए बादलों की सुन्दरता इस वातावरण को और भी मादक बना देती हैं .



बादल को घिरते देखा है कविता का सारांश summary badal ko ghirte dekha hai nagarjun summary


बादल को घिरते देखा है , कविता में कवि नागार्जुन जी ने प्रकृति के अनुपम सौन्दर्य का मनमोहक चित्र प्रस्तुत किया है . कवि का कहना है कि हिमालय की चोटियों पर बादल बहुत ही स्वच्छ है . ये चोटियों वर्फ से ढकी होने के कारण सफ़ेद दिखाई पड़ रही है . मानसरोवर में सोने जैसे सुनहरे कमल खिले हुए है . उन कमल की पंखुडियों पर कवि ओस की बूंदें झर - झर कर देखते हैं . ऊँचे हिमालय पर्वतों पर मैदानी भागों से जहाँ वर्षा के कारण भीषण गर्मी पड़ती है . हंस अपने भोजन की तलास में यहाँ सरोवरों में तैरते दिखाई पड़ते हैं . कवि देखता है कि बादलों के घिरते समय मैंने इनको तैरते हुए देखा है . कवि ने वसंत ऋतु के सुन्दर प्रभात का वर्णन किया है .उस समय मंद मंद हवा चल रही है . उस समय उगता सूरज अपनी कोमल किरणों से पर्वत की चोटियों को सुनहरा बना रहा है . कवि ने यहाँ पर पुराने श्राप से श्रापित चकवा - चकवी को देखा है  जो रात के समय आपस में मिलन नहीं कर पाते हैं . सुबह होने पर उनका मधुर मिलन सरोवर के किनारे पाई में उगने वाली घास पर होता है .इस प्रकार चकवा - चकवी के प्रेमा लाप और कलह एक अनोखे दृश्य को उत्पन्न कर रहा है . 

कवि ने दुर्गम बर्फानी घाटी पर विचरण करने वाले कस्तूरी हिरणों का वर्णन किया है .हिरण की नाभी पर कस्तूरी की सुगंध आने पर वह दौड़ - दौड़ कर इधर उधर ढूंढ रहा है .कवि कहता है कि हिमालय पर्वत की इतनी ऊँचाई पर होने के कारण धन के स्वामी कुबेर की नगरी अलकापुरी नहीं मिली . कालिदास के मेघदूत का मेघ भी बहुत खोजने पर नहीं मिला . भीषण जाड़ों में भी आकाश को छूने वाली चोटियों पर बड़े - बड़े बादलों को आपस में टकराते हुए देखा है . 

कवि को सैकड़ो झरने और नदियों का कलनाद अभिभूत कर रहा है .देवदार बन में लाल और सफ़ेद भोजपत्रों से सजी झोपड़ी का सुन्दर वर्णन किया है .यहाँ पर किन्नर और किन्नरियाँ निवास करते हैं .वे फूलों का गहना ,गले में नीलम की माला धारण किये हुए है .वे सभी मदिरा का पान कर रहे हैं .मदमस्त होकर बाँसुरी बजा रहे हैं . उस समय चारों ओर बादल छाये हुए हैं . 

नागार्जुन का जीवन परिचय

प्रस्तुत पाठ के लेखक या कवि नागार्जुन हैं | नागार्जुन जी का जन्म सन् 1911 में अपने ननिहाल सतलखा, जिला-दरभंगा, बिहार में हुआ था। इनका मूल नाम 'वैद्यनाथ मिश्र' था | ये तरौनी गाँव, जिला मधुबनी, बिहार के मूल निवासी थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्थानीय संस्कृत पाठशाला में हुई थी। उच्च शिक्षा इन्होंने वाराणसी और कोलकाता में प्राप्त की थी। नागार्जुन जी सन् 1936 में श्रीलंका गए और वहीं से बौद्ध धर्म में दीक्षित हुए। सन् 1938 में वे बिहार वापस आये। उनको घुमने-फिरने का बड़ा शौक था | वे कई बार भारत भ्रमण कर चुके थे। नागार्जुन जी अपनी मातृभाषा मैथली में यात्री नाम से रचना कर रहे थे। लेकिन मैथली में उनके रचनाओं का प्रारंभ उनके कविता-संग्रह 'चित्रा' से माना जाता है। वे संस्कृत तथा बंगला में भी काव्य-रचना करते थे। लोकजीवन, प्रकृति, समकालीन राजनीति नागार्जुन जी के रचनाओं के प्रमुख विषय हुआ करते थे। वे छायावादोत्तर काल के जाने-माने कवि थे। इनकी कविताओं में धारदार व्यंग्य मिलता है। जटिल विषयों पर लिखी गई रचनाएँ भी सहज, सम्प्रेषणीय और प्रभावशाली होती है | इन्होंने छंदबद्ध और छंदमुक्त दोनों ही कविताएँ लिखी हैं | इनकी काव्य भाषा संस्कृत और बोलचाल की भाषा है। नागार्जुन जी को कई साहित्य सम्मान से नवाजा गया है --- 
साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारत-भारती पुरस्कार, मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार, राजेंद्र प्रसाद पुरस्कार, दिल्ली की हिंदी अकादमी का शिखर सम्मान आदि पुरस्कार से सम्मानित किया गया है | 

इनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ --- युगधारा, प्यासी पथराई आँखें, सतरंगे पंखों वाली, तालाब की मछलियाँ, हज़ार-हज़ार बाहों वाली, तुमने कहा था, रत्नगर्भा, पुरानी जूतियों का कोरस, आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने, ऐसे भी हम क्या-ऐसे भी तुम क्या, पका है कटहल, भस्मांकुर आदि | कुछ प्रमुख उपन्यासों का नाम है --- बलचनमा, रतिनाथ की चाची, जमनिया का बाबा, कुंभी पाक, उग्रतारा, , वरुण के बेटे आदि...|| 

बादल को घिरते देखा है कविता के प्रकृति चित्रण

प्रस्तुत पाठ बादल को घिरते देखा है कवि नागार्जुन जी के द्वारा रचित है। इस कविता में कवि ने बादल के सौंदर्य रूप का वर्णन किया है | साथ ही साथ कवि ने बादलों के कोमल और कठोर दोनों स्वभाव का सजीव चित्रण किया है। इस कविता में कवि ने हिमालय के बर्फ़ीली चोटी, घाटियों, झीलों, झरनों, नदियों, नदियों की कल-कल ध्वनी जो देवदारू के वनों में जाकर सुनाई देती है। बसंत ऋतू में सुनहरे सुबह की हल्की-हल्की बहती हवा, सूर्य की किरणें जो शिखरों को स्वर्णिम रूप देती है, कवि ने उसका वर्णन करते हुए चकवा-चकवी के प्रेम में बिता रहे वक्त का आनंद लिया है। पावस ऋतु में हंसों का झरनों के शांत, ठंडे वातावरण में विचरण करने का चित्रण है, कवि ने किन्नरों के जन-जीवन का भी उल्लेख किया है जिसमें वे सज-धज कर जीवन का आनंद ले रहे हैं | प्रस्तुत कविता कल्पना, भाव और भाषा की दृष्टि से कालिदास एवं निराला जी की काव्य परंपरा की सारथी है | 


बादल को घिरते देखा है पाठ के प्रश्न उत्तर


निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ---
प्रश्न-1 बादलों के सौन्दर्य-चित्रण से हटकर नागार्जुन ने इस कविता में और किन दृश्यों का सजीव चित्रण किया है ? 

उत्तर- इस कविता में नागार्जुन जी ने बादलों के सौंदर्य- चित्रण से हटकर और भी खूबसूरत दृश्यों का वर्णन किया है जैसे -- हिमालय की ऊँची चोटी पर सफेद निर्मल बर्फ की चादर ढकने से वह बहुत ही ख़ूबसूरत दिखाई देता बादलों से गिरते छोटे-छोटे ओस के बूंद जब कमल के पत्तों पर गिरते हैं तो कमल की सुंदरता और भी बढ़ जाती है | वहाँ पर मैदानी इलाके से आए हंसों का वर्णन मलता है, जो झरने के शांत, ठंडे, नीले पानी के किनारे रहते हैं | 

इसमें बसंत ऋतु के सुप्रभात का मनोरम चित्रण मिलता है | जब सुबह होती है हल्की-हल्की हवा बहती है, सूर्य अपने प्रकाश से चारों ओर को उज्जवलित करता है | अपना प्रकाश बिखेरता है। जिससे आस-पास का शिखर स्वर्णिम से प्रतीत होता है | इस दृश्य का भी वर्णन बड़ी सुंदरता से किया गया है। दूसरी ओर, कवि ने चकवा एवं चकोर पक्षी का वर्णन किया है, जो अपने अभिशाप के कारण रात में एक-दूसरे के साथ नहीं रहते हैं और रात ख़त्म होने के बाद ही सुबह मिलते हैं और झरना के किनारे शैवाल के चादर में बैठ कर प्यार भरे पल एक साथ बिताते हैं |

कवि ने भीषण जाड़े में गगन को चूमने वाली कैलाश पर्वत पर बादलों को गरज-गरज के टकराते हुए दृश्य का वर्णन है। झरनों का देवदारू वन में कल-कल ध्वनि का वर्णन है। प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन करने के साथ-साथ वे हिमालय पर्वत में रहने वाले किन्नरों का भी वर्णन करते हैं कि वे किस तरीके से अपने जीवन में मस्त रहते हैं  और सज-संवर के इंद्र लोक के अपसराओं की तरह रहते है एवं खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत करते हैं | 
              
कवि ने कविता में कस्तुरी मृग का भी वर्णन किया है, जो बहुत ही सुगंधित होता है।  लेकिन अपनी सुगंध से अनजान होने के कारण वह संपूर्ण हिमालय पर्वत पर इधर-उधर  बेचैन होकर भटकता है। जब उसे वह सुगंध नहीं मिलती तो वह चिढ़ जाता है।  इस तरह से कवि ने प्रकृति सौंदर्य का सजीव और मनमोहक चित्रण किया है | 

प्रश्न-2 आपकी दृष्टि से इस कविता में 'बादल को घिरते देखा है' पंक्ति --- को बार-बार दोहराए जाने से कविता में क्या सौंदर्य आया है ? 

उत्तर- कवि ने बादल के माध्यम से प्रकृति के अनुपम सौंदर्य को शब्दचित्र के माध्यम से प्रस्तुत किया है। जिससे कविता पढ़ने में आकर्षक लगती है तथा पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। बादल को घिरते देखा है, इस पँक्ति के बार-बार प्रयोग से कविता में इस काव्य की सुंदरता निखर जाती है,  जिससे कविता और भी मनमोहक लगता है | 

प्रश्न-3 प्रणय-कलह से क्या तात्पर्य है ? 

उत्तर- प्रणय-कलह का अर्थ प्यार भरी छेड़छाड़ है। जब हिमालय में चकवा-चकवी अभिशाप के कारण रात में साथ नहीं रह पाते और विरह में दुःखी होते हैं। लेकिन जैसे ही सुबह होती है तो दोनों एक साथ फिर झरना के किनारे शैवाल के हरे चादर में प्यार भरा समय बिताते हैं | 

प्रश्न-4 इस कविता में कवि ने पावस और शरद काल में बादलों के जिन विशिष्ट रूपों का वर्णन किया है, उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर- प्रस्तुत कविता में कवि ने पावस ऋतु में हँसो का वर्णन किया है, जो गर्मी से व्याकुल होकर हिमालय के शांत, नीले झरने के किनारे रहने आते हैं और विचरण करते हुए पानी में तैरते हुए कमलनाल के कड़वे-मीठे तन्तुओं को खोजते हैं | कवि ने इस मौसम में बादलों को घिरते हुए देखा है तथा शरद काल के भीषण जाड़े में कवि ने गगन चुम्बी कैलाश पर्वत पर बादलों को टकराकर जोर-जोर से गरजते देखा है। कवि ने पावस और शरद ऋतु में बादलों का इस प्रकार से वर्णन किया है | 

प्रश्न-5 कस्तूरी मृग के अपने पर ही चिढ़ने का क्या कारण है ? 

उत्तर- कस्तूरी मृग अपने ही नाभि से निकली नशीली सुगन्ध से अनजान होता है और बेचैन होकर उसके पीछे पूरे जंगल में इधर-उधर घुमने लगता है | उस सुगन्ध के न मिलने से वह खुद के ऊपर चिढ़ जाता है | 

प्रश्न-6 बादलों का वर्णन करते हुए कवि को अनायास ही कालिदास की याद क्यों आ जाती है ? 

उत्तर- मेघदूत कविता कालिदास की सबसे बड़ी कविता है और यह कविता संपूर्ण विश्व में बहुत प्रचलित है। इसलिए कवि जब बादलों का वर्णन करते हैं, तो उनको कालिदास की याद आती है कि उन्होंने  अपनी कविता में आकाश गंगा का वर्णन किया था। कवि हिमालय पर्वत के चोटी पर इस आकाश गंगा नदी को ढूँढ़ने का प्रयास भी करते हैं। मगर उनको आकाश गंगा नदी के बारे में कुछ पता नहीं चलता है | 

प्रश्न-7 कविता में चित्रित प्रकृति चित्रण एवं जन-जीवन को अपने शब्दों में लिखिए | 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, कवि ने बादलों के साथ-साथ नदियों, झरनों, शैवाल, वन, ऋतु, सूर्य, प्रकाश, रात और पर्वत के सौंदर्य का मनोरम चित्रण किया है | वहीं दूसरी ओर हंसों का वर्णन, चिकवा-चिकवी, और किन्नरों के जन-जीवन को लेकर उनके रहन-सहन उनके जीवन के प्रमुख अंग के बारे में कवि ने बताने का प्रयास किया है | 

प्रश्न-8 निम्नलिखित पंक्तियाँ किन-किन ऋतुओं से सम्बंधित है--

(क)- तिक्त मधुर विसतन्तु……………हंसों को तिरते देखा है। 

उत्तर-पावस ऋतु (ग्रीष्म कालीन)

(ख)- निशा काल से चिर-अभिशापित……………..प्रणय-कलह छिङते देखा है।

उत्तर- बसंत ऋतु

(ग)- महामेघ को झंझानिल से…………...भिड़ते देखा है।

उतर- शरद ऋतु 

प्र-9 निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए --- 

(क)- एक-दूसरे से विरहित हो…………….प्रणय-कलह छिङते देखा है।

उत्तर-इस पँक्ति में कवि कहते हैं कि रात के चिर अन्धकार में अभिशापित, बेबस, चकवा-चकवी का दुःख अब शांत हो गया है, जिनको एक दूसरे से अलग होकर सारी रात बितानी होती है। उन्हें ऐसा श्राप मिला है | वे इस सुनहरी सुबह में फिर मिलते हैं, उनका विरह का समय ख़त्म हो जाता है और वे फिर मानसरोवर झील के किनारे शैवाल के हरि चादर पर एक दूसरे के साथ प्यार से छेड़छाड़ करते हुए समय  बिताते हैं। कवि कहते हैं कि यह सुन्दर दृश्य मैंने देखा है | 

(ख)- अलख नाभि से उठने वाले…………...अपने पर चिढ़ते देखा है।

उत्तर- इस पँक्ति में कवि कहते हैं कि कस्तूरी मृग अपने ही नाभि से निकलने वाली नशीली सुगन्ध को पहचान नहीं पाता है, उस सुगन्ध से अनजान है और उसके पीछे बेचैन होकर भागता है | कवि ने मृग को अपने ही सुगंध से चिढ़ कर उन पहाड़ों में इधर-उधर भगते हुए देखा है | 

प्रश्न-10 निम्नलिखित पंक्तियों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए --- 

(क)- ढूँढ़ा बहुत परंतु लगा क्या…………...जाने दो, वह कवि-कल्पित था,

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ 'बादल को घिरते देखा है' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'नागार्जुन' जी के द्वारा रचित है। इस पँक्ति में कवि कहते हैं कि मैंने मेघदूत को भी बहुत खोजा लेकिन उसका भी पता नहीं चला। कौन जाने वह छायामय यही पर बरस गया होगा। ये सब छोड़ो, यह सब तो बस कवि की कल्पना मात्र थी | 

(ख)- मैंने तो भीषण जाड़ों में…………..गरज-गरज भिड़ते देखा है | 

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ 'बादल को घिरते देखा है' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'नागार्जुन' जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि मैंने भीषण जाड़े में गगन को चूमने वाली कैलाश पर्वत पर बादलों को तूफानी हवाओं से गरज-गरज कर टकराते हुए देखा है | 

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बादल को घिरते देखा है पाठ से संबंधित शब्दार्थ


• अमल-धवल - निर्मल और सफेद
• तुहिन कण - ओस की बून्द
• तुंग - ऊँचा
• तिक्त मधुर - कड़वे और मीठे
• विसतंतु - कमलनाल के भीतर स्थित कोमल रेशे
• चिर-अभिशापित - सदा से ही शापग्रस्त,दुखी,अभागे
• शैवाल - काई की जाती की घास
• प्रणय-कहल - प्यार-भरी छेड़छाड़
• उन्मादक परिमल - नशीली सुगंध
• कुबेर - धन का स्वामी
• अलका - कुबेर की नगरी
• व्योम प्रवाही - आकाश में घूमने वाला
• मेघदूत - कालिदास का प्रसिद्ध खंड-काव्य
• इंद्र नील - नीलम,  नीले रंग का कीमती पत्थर
• कुवलय - नीलकमल
• शतदल- कमल
• रजत-रचित - चाँदी से बना हुआ
• मणि-खचिल - मणियों से बना हुआ
• पान-पात्र - मदिरा का पात्र (बर्तन), सुराही
• लोहित -लाल
• त्रिपदी - तिपाई 
• निदाघ - गरम
• उन्मद - मदमस्त
• मदिरा रूण आँखें - मदिरा पीने से लाल हुई आँखें
• किन्नर - देव-लोक की एक कलाप्रिय जाती  | 







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COMMENTS

Leave a Reply: 12
  1. बेनामीमई 14, 2019 7:44 pm

    Delhi university BA programme me useful he yeh

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  2. useful fur BA PROGRAMME Delhi University

    जवाब देंहटाएं
  3. सही और सटीक व्याख्या है, विषेश कर छात्रों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

    जवाब देंहटाएं
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हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: बादल को घिरते देखा है
बादल को घिरते देखा है
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