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Chalna Hamara Kaam Hai | Shivmangal Singh Suman
शिवमंगल सिंह 'सुमन' की कविता "चलना हमारा काम है" जीवन की गतिशीलता और निरंतर प्रयास के महत्व को सरल, पर गहन शब्दों में व्यक्त करती है। यह कविता मनुष्य को एक सतत यात्रा के रूप में देखती है, जहाँ रुकना नहीं, बल्कि चलते रहना ही धर्म है। कवि प्रकृति के उदाहरणों—नदी, सूरज, हवा—के माध्यम से यह संदेश देता है कि जिस तरह प्रकृति अनवरत गतिमान रहती है, उसी तरह मनुष्य को भी संघर्षों और अंधेरों के बीच डटे रहना चाहिए।
कविता में जीवन के कर्म-प्रधान दर्शन को उजागर किया गया है। यहाँ मंज़िल से अधिक महत्वपूर्ण यात्रा का निरंतर जारी रहना है। कवि कहता है कि चाहे पथ कितना भी कठिन हो, हमें बिना थके आगे बढ़ते रहना चाहिए, क्योंकि यही जीवन का सत्य है। यह विचार गीता के 'निष्काम कर्म' से भी मिलता-जुलता है, जहाँ फल की इच्छा किए बिना कर्तव्यपथ पर चलना ही मुख्य है।
चलना हमारा काम है कविता का भावार्थ व्याख्या
गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूँ दर दर खड़ा
जब आज मेरे सामने
है रास्ता इतना पड़ा
जब तक न मंज़िल पा सकूँ,
तब तक मुझे न विराम है, चलना हमारा काम है।
कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया
कुछ बोझ अपना बँट गया
अच्छा हुआ, तुम मिल गईं
कुछ रास्ता ही कट गया
क्या राह में परिचय कहूँ, राही हमारा नाम है,
चलना हमारा काम है।
व्याख्या - कवि कहते हैं कि मनुष्य चुनौतियों का सामना करने के लिए पैदा हुआ है . जीवन में जब तक कर्म करने के लिए मार्ग खुला हुआ है तब तक हार मान कर रुकना नहीं चाहिए .कवि कहता है कि जब तक हमें जीवन में सफलता न मिल जाए , तब तक कर्म करना छोड़ना नहीं चाहिए .जब तक हम अपने गंतव्य तक नहीं पहुँचते है तब तक आराम करने की जरुरत नहीं है . अतः चलना हमारा काम है इसीलिए हमें सदा कर्म में लगा रहना चाहिए .कवि कहते हैं कर्म करते हुए कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ता है तो हमें घबराना नहीं चाहिए . जीवन में कर्मपथ पर चलते रहना चाहिए . हमें अपने दुःख - सुख को भूलकर मन को हल्का कर लेना चाहिए . हम सब जीवन पथ के पथिक है . कवि कहते हैं कि मनुष्य को अपने लक्ष्य प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहना चाहिए .इसी तरह हमें रास्ते में अनेक साथी मिलते हैं परन्तु सभी का साथ लेकर अपने लक्ष्य को हासिल करना चाहिए .
जीवन अपूर्ण लिए हुए
पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा,
हँसता कभी रोता कभी
गति-मति न हो अवरुद्ध, इसका ध्यान आठो याम है,
चलना हमारा काम है।
इस विशद विश्व-प्रहार में
किसको नहीं बहना पड़ा
सुख-दुख हमारी ही तरह,
किसको नहीं सहना पड़ा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ, मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है।
व्याख्या - कवि का मानना है कि मनुष्य जीवन में कुछ भी पूर्ण नहीं है . मनुष्य कभी पाता है तो कभी कुछ खोता है . अतः कभी वह तो प्रसन्नता से झूम उठता है और असफलता मिलने पर निराश होकर आँसू बहाने लगता है . जीवन में सब दिन एक सामान नहीं रहते हैं . कभी सुख मिलता तो कभी दुःख .अतः कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि न कभी उसकी गति रुके न कभी उसके विचारों में कोई बाधा हो . कवि का कहना है कि सभी के जीवन में सुख दुःख सामान गति से आते रहते है . सुख और दुःख सभी के जीवन के अनिवार्य अंग है .एक हम ही नहीं है जो अकेले हमारे जीवन में सिर्फ दुःख नहीं है . कवि जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है . जीवन पथ की कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करते हुए हमें आगे बढ़ने रहना चाहिए . अतः कवि के अनुसार जीवन में कर्म पथ आगे बढ़ते हुए अगर कठिनाइयों का सामना करना पड़े तो डट कर मुकाबला करना चाहिए .
मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ
रोड़ा अटकता ही रहा
निराशा क्यों मुझे? जीवन इसी का नाम है,
चलना हमारा काम है।
साथ में चलते रहे
कुछ बीच ही से फिर गए
गति न जीवन की रुकी
जो गिर गए सो गिर गए
रहे हर दम, उसीकी सफलता अभिराम है,
चलना हमारा काम है।
व्याख्या - कवि कहता है कि मनुष्य जीवन में कुछ पूर्ण नहीं होता है . हर आदमी में गुण और अवगुण दोनों का समावेश होता है .हर व्यक्ति में कुछ न कुछ दोष जरुर होते हैं . कवि कहते है कि वह सम्पूर्ण मानव बनना चाहते हैं .इस पूर्णता को पाने के लिए आदमी में कई कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है . कवि के अनुसार , हमें समस्याओं से घबराना नहीं चाहिए . सुख के साथ दुःख ही जीवन का नाम है . हमें अपने लक्ष्य या मंजिल को पाने के लिए निरंतर चलना चाह्हिये .मार्ग में कुछ ऐसे साथी मिले जिन्होंने सदा साथ दिया . कुछ निराश होकर लौट कर गए . जीवन में बहुत से साथी मिलते रहे हैं . अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए उन्ही पर निर्भर नहीं रहा जा सकता है . जीवन की सफलता का सुख उसे ही प्राप्त होता है जो जीवन पथ पर सदा चलता रहे ,अपने कर्म पर लगा रहे .
चलना हमारा काम है केंद्रीय भाव / मूल भाव
चलना हमारा काम है , नामक कविता शिवमंगल सिंह सुमन जी द्वारा लिखित प्रसिद्ध कविता है . कवि का मानना है कि मनुष्य को सदा कर्म पथ पर चलते रहना चाहिए . उसे कभी रुकना नहीं चाहिए . लक्ष्य को प्राप्त करना ही जीवन में एकमात्र अवलम्ब होना चाहिए . सुख दुःख ,सफलता -असफलता ,आशा - निराशा उसके कर्म को न रोक पाए . मार्ग में अनेक राही या साथी मिलते है .कुछ साथ देते है कुछ बीच में ही छोड़कर चले जाते हैं .मान -अपमान ,सुख दुःख जीवन के दो पहलु है .हमें सभी को सहते हुए आगे बढ़ना चाहिए . जीवन में हो सकता है कि कभी पूर्ण रूप से सुख - शान्ति न मिले लेकिन हमें फिर भी साहस औए लगन के साथ सफलता पाने के लिए कर्म करते रहना चाहिए . यही हमारा जीवन है .
चलना हमारा काम है कविता का सारांश
चलना हमारा काम है शीर्षक कविता में कवि शिव मंगल सिंह से जीवनपथ पर लगातार चलते रहने के महत्व को दर्शाते हुए कहा है कि मेरे पैरो में तेज चलने की शक्ति होने पर भी भला मैं क्यों जगह-जगह खड़ा रहूँ?आज मेरे सामने इतना बड़ा रास्ता है तो जब तक मंजिल पर नहीं पहुँच जाऊँगा तब तक विश्राम करने के लिए रुकूंगा नहीं अर्थात् लक्ष्य प्राप्ति तक लगातार बिना हार माने प्रयास करते रहना आवश्यक है। चलते हुए आगे बढ़ना ही हमारा काम है। जीवन रूपी राह में चलते समय हमें कुछ अपनी बात कहनी चाहिए और कुछ दूसरों की सुननी चाहिए इस तरह मन की बात कहने, सुनने से मन का बोझ कम हो जाता है और आगे बढ़ने की शक्ति मिलती है। किसी साथी के मिल जाने पर प्रसन्नता होती है और साथ चलने से लम्बा रास्ता भी आसानी से पार हो जाता है जबकि एकाकी मनुष्य को रास्ता अधिक लम्बा और कठिन महसूस होता है। राह में चलने वाले का एक ही परिचय होता है-राही और चलने रहना ही उसका कर्त्तव्य होता है इसके अतिरिक्त उसका कोई और परिचय नहीं होता ।
कवि कहता है कि मनुष्य का जीवन अपूर्ण है क्योंकि कभी हमें सब कुछ प्राप्त नहीं होता। कभी कुछ प्राप्त होता है तो कभी कुछ खो जाता है, कभी हमारा जीवन आशाओं से तो कभी निराशा से घिर जाता है, कभी हँसता है तो कभी रोता है। जीवन में उतार-चढ़ाव चलते ही रहते हैं। लेकिन हमें कभी भी निराशाओं से ग्रसित होकर अपनी गति को अवरुद्ध व बुद्धि और विवेक को क्षीण नहीं होने देना चाहिए। इस बात का सदैव ध्यान रखते हुए जीवनपथ पर चलते रहना चाहिए। इस विशाल संसार के प्रवाह में ऐसा कोई नहीं जिसे बहना न पड़ा हो। सभी के जीवन में सुख-दुख आते जाते रहते हैं। फिर स्वयं पर आये दुखों से घबराकर ईश्वर को इसके लिए दोषी मानना बेकार है। अतः हमें चलते रहने के कर्म से पीछे नहीं हटना चाहिए।
कवि कहता है कि अपने अपूर्ण जीवन को पूर्ण करने के लिए मैं सदैव यहाँ से वहाँ भटकता रहा। मेरी राह में अनेक कठिनाइयाँ भी आती रहीं लेकिन इन कठिनाइयों से निराश होकर रुक जाना उचित नहीं क्योंकि जीवन का अर्थ ही यही है कि जीवन में आने वाले सुख और दुख दोनों को समान भाव से स्वीकार करते हुए आगे बढ़ते रहा जाये। अतः कठिनाइयों का कुशलता से सामना करते हुए चलते रहना चाहिए। जीवनपथ की कठिन डगर पर चलते हुए कुछ साथ चलते रहे और कुछ साथी बीच में से न लौट गए किन्तु क्या उनकी इस प्रवृत्ति से मेरे जीवन की गति रुक गयी? साथियों के छूटने का मुझे गम नहीं। जो लोग निराशा से हार मानकर गिर जाते हैं वे गिर गये लेकिन जो दृढ़ता के साथ कठिनाइयों का सामना करते हुए हर वक्त चलते रहे उन्हें ही जीवन में सफलता की प्राप्ति होती है।
शिवमंगल सिंह 'सुमन' का जीवन परिचय
शिवमंगल सिंह 'सुमन' (1915-2002) हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि, गद्यकार और विचारक थे, जिन्होंने छायावादोत्तर युग में अपनी मौलिक रचनाशीलता से विशेष पहचान बनाई। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ था। 'सुमन' ने कविता, ग़ज़ल, निबंध और आलोचना सहित विविध विधाओं में सृजन किया। उनकी काव्य-भाषा सरल, सहज और संगीतात्मक है, जिसमें गहन दार्शनिकता और मानवीय संवेदना का समन्वय है।उनके प्रमुख काव्य संग्रहों में 'हिल्लोल', 'प्रलय-सृजन', 'विश्वास-बढ़ता ही गया और 'जीवन के गान' शामिल हैं। 'सुमन' ने प्रकृति, मानवीय संघर्ष, प्रेम और राष्ट्रीय चेतना को अपनी कविताओं का विषय बनाया। उनकी रचनाओं में आशावाद, कर्मठता और जीवन के प्रति गहरी आस्था झलकती है।
साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित 'सुमन' ने शिक्षा के क्षेत्र में भी योगदान दिया और कई वर्षों तक 'कलकत्ता विश्वविद्यालय' में हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे। उनका साहित्य आज भी पाठकों को आत्मविश्वास और जीवन-मूल्यों की प्रेरणा देता है।
Chalna Hamara Kaam Hai Chapter Question Answer
प्र. कवि ने जीवन पथ पर चलते रहने के लिए क्या सलाह दी है ?
उ . कवि का कहना है कि हमें सभी का साथ लेकर चलना चाहिए . हमें दुःख -सुख का वहां करते हुए कामयाबी प्राप्त करनी चाहिए .
प्र. कवि कब तक रुकना नहीं चाहता है ?
उ . कवि तब तक रुकना नहीं चाहता है जब तक लक्ष्य प्राप्ति न हो जाए . कवि अपने आप को आराम नहीं देना चाहता है ,जब तक उसे मंजिल न प्राप्त हो जाए .
प्र. कवि के अनुसार जीवन क्या है ?
उ. कवि का कहना है कि जीवन में सफलता के साथ असफलता ,सुख के साथ दुःख और सहजता के साथ बाधाएँ आती रहती है . यही जीवन है .
प्र. चलना हमारा काम है कविता के माध्यम से कवि ने क्या सन्देश दिया है ?
उ . चलना हमारा काम है , नामक कविता शिवमंगल सिंह सुमन जी द्वारा लिखित प्रसिद्ध कविता है . कवि का मानना है कि मनुष्य को सदा कर्म पथ पर चलते रहना चाहिए . उसे कभी रुकना नहीं चाहिए .जीवन में हो सकता है कि कभी पूर्ण रूप से सुख - शान्ति न मिले लेकिन हमें फिर भी साहस औए लगन के साथ सफलता पाने के लिए कर्म करते रहना चाहिए . यही हमारा जीवन है . हमें मार्ग में आने वाली बाधाओं का डटकर सामना करना चाहिए . कर्मशील मनुष्य ही जीवन में आगे बढ़ते है . यही सन्देश कवि ने दिया है .
प्र. घोर निराशा के क्षणों में भी हमें यह क्यों नहीं कहना चाहिए ,कि विधाता वाम है ?
उ. घोर निराशा के क्षणों में भी हमें भगवान् से शिकायत नहीं करनी चाहिए .जीवन में आदमी में कई कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है . कवि के अनुसार , हमें समस्याओं से घबराना नहीं चाहिए . सुख के साथ दुःख ही जीवन का नाम है . हमें अपने लक्ष्य या मंजिल को पाने के लिए निरंतर चलना चाह्हिये .
प्र. राह में चलने वालों का क्या परिचय है ?
उ. राह में चलने वालों का परिचय राही के रूप में होता है .राही का जीवन में निरंतर उन्नति के पथ में चलना काम होता है .
प्र. कवि दर दर भटकने का क्या कारण बताया है ?
उ. कवि जीवन में पूर्णता की खोज में दर दर भटकता रहता है .यह पूर्णता कभी न खत्म होने वाली खोज है .मनुष्य की इच्छाएँ अनंत है ,इसीलिए उसकी खोज कभी न ख़त्म होगी .अतः वह दर दर भटकता रहता है .
प्र. कवि कब तक विराम नहीं लेना चाहता है ?
उ. कवि को जब तक मंजिल नहीं मिल जायेगी ,तब तक वह विराम नहीं लेगा .मंजिल प्राप्त होने पर ही वह विश्राम लेगा .
प्र. कवि ने किस बात का ध्यान रखने को कहा है ?
उ. कवि में जीवन रूपी राह में चलने वाले राहियों को सलाह दी है कि जीवन में हो सकता है कि कभी पूर्ण रूप से सुख - शान्ति न मिले लेकिन हमें फिर भी साहस औए लगन के साथ सफलता पाने के लिए कर्म करते रहना चाहिए . यही हमारा जीवन है .
प्र. कवि ने बोझ बाँटने की सलाह क्यों दी है ?
उ. राह चलने वाले राहियों को आपस में मन की बात कर लेनी चाहिए ,जिससे उनका मन का बोझ हल्का हो जाए ,इससे आपस में स्नेह व प्रेम की वृद्धि होती है .जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है .
प्र. घोर निराशा के क्षणों में भी हमें यह क्यों नहीं कहना चाहिए ,कि विधाता वाम है ?
उ. घोर निराशा के क्षणों में भी हमें भगवान् से शिकायत नहीं करनी चाहिए .जीवन में आदमी में कई कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है . कवि के अनुसार , हमें समस्याओं से घबराना नहीं चाहिए . सुख के साथ दुःख ही जीवन का नाम है . हमें अपने लक्ष्य या मंजिल को पाने के लिए निरंतर चलना चाह्हिये .
प्र. राह में चलने वालों का क्या परिचय है ?
उ. राह में चलने वालों का परिचय राही के रूप में होता है .राही का जीवन में निरंतर उन्नति के पथ में चलना काम होता है .
प्र. कवि दर दर भटकने का क्या कारण बताया है ?
उ. कवि जीवन में पूर्णता की खोज में दर दर भटकता रहता है .यह पूर्णता कभी न खत्म होने वाली खोज है .मनुष्य की इच्छाएँ अनंत है ,इसीलिए उसकी खोज कभी न ख़त्म होगी .अतः वह दर दर भटकता रहता है .
प्र. कवि कब तक विराम नहीं लेना चाहता है ?
उ. कवि को जब तक मंजिल नहीं मिल जायेगी ,तब तक वह विराम नहीं लेगा .मंजिल प्राप्त होने पर ही वह विश्राम लेगा .
प्र. कवि ने किस बात का ध्यान रखने को कहा है ?
उ. कवि में जीवन रूपी राह में चलने वाले राहियों को सलाह दी है कि जीवन में हो सकता है कि कभी पूर्ण रूप से सुख - शान्ति न मिले लेकिन हमें फिर भी साहस औए लगन के साथ सफलता पाने के लिए कर्म करते रहना चाहिए . यही हमारा जीवन है .
प्र. कवि ने बोझ बाँटने की सलाह क्यों दी है ?
उ. राह चलने वाले राहियों को आपस में मन की बात कर लेनी चाहिए ,जिससे उनका मन का बोझ हल्का हो जाए ,इससे आपस में स्नेह व प्रेम की वृद्धि होती है .जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है .
प्रश्न . कवि ने हमें क्या करने की प्रेरणा दी है और क्यों ?
उत्तर- कवि ने जीवन रूपी पथ पर चलते रहने की प्रेरणा दी है क्योंकि जीवन में कठिनाइयाँ और परेशानियाँ आती रहती है जो उनसे घबराकर हार मान लेता है उसे कभी लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती। अतः हिम्मत से उनका मुकाबला करते हुए लक्ष्य प्राप्ति तक चलने के लिए प्रेरित किया है।
प्रश्न. व्यक्ति को कब तक विश्राम नहीं करना चाहिए और क्यों?'
उत्तर- व्यक्ति को तब तक विश्राम नहीं करना चाहिए जब तक वह अपनी मंजिल पर न पहुँच जाये क्योंकि यदि रास्ते में विश्राम करने रुक गया तो मंजिल तक नहीं पहुँच पाएगा और राह भटकने की भी सम्भावना है।
प्रश्न. हमें हमेशा कौन-सी बातें याद रखनी चाहियें और क्यों?
उत्तर- जीवन पथ पर चाहे जितनी भी परेशानियाँ आएँ परन्तु हमें की हमेशा यह बात याद रखनी चाहिए कि हमारी गति कभी अवरूद्ध न हो और विचारों में कोई बाधा न आए। वह सदैव कर्म पथ पर चलता रहे क्योंकि चाल व बुद्धि में रुकावट आने पर हमारी गति रुक जाती है।
प्रश्न. घोर दुःख में भी हमें क्यों नहीं यह कहना चाहिए कि विधाता हमारे विपरीत है?
उत्तर- घोर दुःख में भी हमें यह नहीं कहना चाहिए कि विधाता हमारे विपरीत है क्योंकि संसार में सभी को कभी न कभी सुखों के साथ दुःख भी सहन करने पड़ते हैं। इसलिए जीवन में दुख, तकलीफों के आने पर ईश्वर को कोसना अथवा विधाता को रुष्ट कहना गलत है। सुख-दुख जीवन की वास्तविकता है।
हेंगी।
प्रश्न. कवि ने बोझ बँटने की बात क्यों कही है?
उत्तर- आपस में बात कहने-सुनने से मन हल्का हो जाता है और आपस प्रेम, स्नेह में वृद्धि होती है। जिससे मानसिक सुकून मिलता है। ताजगी का अनुभव होता है।
प्रश्न. 'अच्छा हुआ तुम मिल गई' से कवि का क्या आशय है?
उत्तर- कवि का आशय है कि अकेले चलने पर रास्ता बहुत लम्बा और कठिन प्रतीत होता है लेकिन किसी साथी के मिल जाने पर मन प्रसन्न हो जाता है। रास्ता उसके साथ आसानी से कट जाता है जिससे यात्रा की थकान कम अनुभव होती है।
प्रश्न. राह में चलने वालों का परिचय क्या है।
उत्तर- राह में चलने वालों का परिचय राही या राहगीर है। जीवन रूपी राह पर चलने वालों का केवल यही परिचय होता है। तथा सदैव चलना उसका काम होता है।
प्रश्न . कवि ने जीवन को अपूर्ण क्यों कहा है ?
उत्तर- कवि ने मानव जीवन को अपूर्ण इसलिए कहा है क्योंकि मनुष्य अपने पूरे जीवन कुछ खोता है तो कभी कुछ पाता है। इस तरह उसकी सारी इच्छाएँ कभी पूरी नहीं हो पातीं। मनुष्य की इच्छाओं का कोई अन्त नहीं है।
प्रश्न. किसका जीवन आशा व निराशा से घिरा है और क्यों ?
उत्तर- संसार में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में आशा और निराशा की जोड़ी साथ रहती हैं क्योंकि समय के अनुसार परिस्थितियाँ भी बदलती रहती हैं। अतः मनुष्य को निराशा को त्यागकर आशा को महत्व देना चाहिए वही उसे उन्नति के मार्ग पर ले जाने में सहायक है।
प्रश्न. सुख-दुख को किस प्रकार लेना चाहिए?
उत्तर- जीवन में आए सुख और दुख को हमें सहज भाव में लेना चाहिए। क्योंकि इनका क्रम चलता रहता है। सुख में हँसने के साथ दुख के क्षणों से सीख लेते हुए भविष्य की योजना बनानी चाहिए तथा दृढ़ता से उनसे बाहर निकलना चाहिए।
प्रश्न. कवि ने सदैव किस बात का ध्यान रखने को कहा है और क्यों ?
उत्तर- कवि कहता है कि जीवन रूपी राह पर चलते हुए चाहे कितनी भी कठिनाई आयें लेकिन हमें इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए कि हमारी गति अवरुद्ध न हो और न ही विचारों में कोई बाधा आये। वह लगातार अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता रहे।
प्रश्न. कवि दर-दर क्यों खड़ा नहीं होना चाहता ?
उत्तर- कवि कहता है कि जब उसके पैरों में इतनी रफ्तार, इतनी शक्ति है कि तेज गति से चल सके तो फिर दर-दर खड़ा क्यों रहूँ अर्थात् दर-दर खड़ा रहने की कोई आवश्यकता नहीं ।
प्रश्न. 'है रास्ता इतना पड़ा' से क्या आशय है?
उत्तर- इस पंक्ति से कवि का आशय यह है कि जब सामने रास्ता पड़ा हो तो हमें उस पर चलना चाहिए निष्क्रिय बनने से कोई लाभ नहीं होगा अतः साहस के साथ कर्मशील बनकर लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए।
प्रश्न. कवि कब तक विराम नहीं लेना चाहता ?
उत्तर- कवि तब तक विराम नहीं लेना चाहता जब तक उसे मंजिल की प्राप्ति नहीं होती अर्थात् लक्ष्य प्राप्त करने से पहले वह विश्राम नहीं करना चाहता।
प्रश्न. राही का काम क्या है?
उत्तर- राही का काम है कि जीवन रूपी पथ पर लक्ष्य की पूर्णता प्राप्त होने तक लगातार चलता रहे। मार्ग में आने वाली बाधाओं से हार मानकर या थककर रुके नहीं बस आगे का चलता रहे।
प्रश्न. कवि ने अपने दर-दर भटकने का क्या कारण बताया है?
उत्तर- कवि पूर्णता की खोज में दर-दर भटकता रहा है लेकिन कभी प्राप्त नहीं कर पाया। क्योंकि मनुष्य की इच्छाएँ अनन्त हैं वे कभी पूरी नहीं हो सकतीं।
प्रश्न. 'प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ रोड़ा अटकता ही रहा' से कवि का क्या आशय है?
उत्तर- इस पंक्ति से कवि का आशय है कि पूर्णता की खोज में मुझे अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। लेकिन फिर भी मैं पूर्णता को नहीं पा सका क्योंकि इस संसार में कोई पूर्ण नहीं हो सकता।
प्रश्न. 'पर हो निराशा क्यों मुझे ?' कवि ने अपने निराश होने का क्या कारण बताया है?
उत्तर- जीवन पथ पर आगे बढ़ते हुए कई मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है लेकिन कवि निराश नहीं होता क्योंकि जीवनपथ पर कठिनाइयों और बाधाओं का आना स्वाभाविक है। इसी का नाम जीवन है। अतः निराश न होकर सदैव कर्मपथ पर अग्रसर रहना चाहिए।
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जवाब देंहटाएंturu bolrhe ho Unknown insaan. ¯\_(ツ)_/¯
हटाएंहिन्दी है तो जबाब भी हिन्दी मे ही होने चाहिए
हटाएंAnother title for this poem
जवाब देंहटाएंAnother title for this poem
जवाब देंहटाएंKavi ne jivan ko apurna kyu kaha h
जवाब देंहटाएंKyuki jeevan mei kuch bhi sthayee nahi rehta. Jeevan mei kabhi manushya kabhi sukhi rehta hai toh kabhi dukhi. Atah; jeevan mei kuch paane ke liye kuch khona padhta hai. Elaborate this more
हटाएंKyunki yadi zindagi me sukh hai to dukh bhi hai. Jeevan me hum chah ke bhi sab kuch nahi pasakte. Ye jeevan ki apurti hai
हटाएंAnother title for this poem
जवाब देंहटाएंRukhna hamara kaam nahi hai🤣😂
हटाएंHo
जवाब देंहटाएंPlease provide the answers of workbook
जवाब देंहटाएंNoice
जवाब देंहटाएंVery nice..
जवाब देंहटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंvery goof
जवाब देंहटाएंHi
जवाब देंहटाएंIss kavita ka bhumika ke liye best site koi bata do ????
जवाब देंहटाएंKavi ne baar baar chalna humara kaam hai kyun kaha hai iska arth spasht kare .
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