इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं

SHARE:

इक्कीसवीं सदी के बीते डेढ़ दशक में अपनी अलग पहचान बनाने वाले युवा कवियों में सुशांत सुप्रिय का नाम प्रमुख है । इस डेढ़ दशक में आए सामाजिक बदलाव की बानगी इनकी कविताओं मे स्पष्ट दिखाई देती है । समाज के हाशिए पर खड़े आम आदमी के जीवन-संघर्षों एवं लगातार समाप्त होते जा रहे विकल्पों का जीवंत दस्तावेज़ हैं इनकी कविताएँ ।

आधुनिक हिंदी कविता को समृद्ध करती कविताएँ

समीक्ष्य कृति : इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं ( काव्य-संग्रह )
--------------------------------------------------
कवि : सुशांत सुप्रिय
------------------
प्रकाशक : अंतिका प्रकाशन , ग़ाज़ियाबाद , 2016
-----------------------------------------
समीक्षक : राम पांडे
 इक्कीसवीं सदी के बीते डेढ़ दशक में अपनी अलग पहचान बनाने वाले युवा कवियों में सुशांत सुप्रिय का नाम प्रमुख है । इस डेढ़ दशक में आए सामाजिक बदलाव की बानगी इनकी कविताओं मे स्पष्ट दिखाई देती है । समाज के हाशिए पर खड़े आम आदमी के जीवन-संघर्षों एवं लगातार समाप्त होते जा रहे विकल्पों का जीवंत दस्तावेज़ हैं इनकी कविताएँ । सुशांत मज़दूरों , दलितों , स्त्रियों , शोषितों , वंचितों एवं आम जन की पीड़ा के पक्ष में मज़बूती से खड़े हैं । इनकी कविताएँ इंसानियत की बेहतरी के लिए संघर्ष करते रहने की ज़िद लिए हैं । समकालीन ज्वलंत प्रश्नों से सीधे संवाद करती इनकी कविताएँ सच बोलने का साहस रखती हैं । सुशांत के काव्य-संग्रह " इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं " में कुल सौ कविताएँ संकलित
हैं । इन कविताओं से गुज़रते हुए यह सुखद अहसास होता है कि समझ और संवेदना की गहराई लिए इस कवि की कविताएँ न सिर्फ़ मनुष्य होने का अहसास दिलाती हैं बल्कि मनुष्यता को बचाने के लिए प्रतिबद्ध भी हैं ।
            संग्रह की दूसरी कविता " जो नहीं दिखता दिल्ली से " आज के राजनीतिक परिदृश्य को बहुत बेबाक़ी से व्यक्त करती है । लुटियन की दिल्ली में बैठे हुए जनता के रहनुमाओं को आम जन की पीड़ा नहीं दिखती । सुशांत का कवि किसानों और मज़दूरों की पीड़ा को देखकर उनके दर्द को समझता है । ग़रीबी और भूख से जूझ रहे आम जन की कराह दिल्ली तक नहीं पहुँचती । वह तो इनके अंदर ही तिल-तिल कर बुझ जाती है -- " मज़दूरों-किसानों के / भीतर भरा कोयला और / माचिस की तीली से / जीवन बुझाते उनके हाथ / नहीं दिखते हैं दिल्ली से ... / दिल्ली से दिखने के
लिए / या तो मुँह में जयजयकार होनी चाहिए / या फिर आत्मा में धार होनी
चाहिए " ।
              नयी सदी की मशीनी सभ्यता के विषैले डंक ने आम आदमी को भी नहीं बख़्शा है । जीवन के तमाम आत्मीय संबंध तार-तार हो गए हैं । रोज़ी-रोटी के जुगाड़ में दूरियाँ बढ़ती जा रही हैं । गाँवों से शहरों की तरफ़ तेज़ी से पलायन हो रहा है । इस आपा-धानी में किसी के पास इतनी फ़ुर्सत नहीं है कि अपनों को समय दे सके , उनका दुख-दर्द बाँट सके । तेज़ी से बदलते समय में बिखरते संबंधों को बयाँ करती सुशांत की बहुत सुंदर कविता है ' दिल्ली में पिता ' -- " किंतु यहाँ आकर / ऐसे मुरझाने लगे पिता / जैसे कोई बड़ा सूरजमुखी धीरे-धीरे / खोने लगता है अपनी थ
आभा " ।
           
इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं
इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं
 महानगरों की ओर तेज़ी से होते पलायन ने सामाजिक संबंधों की डोर को कमज़ोर कर दिया है । संबंधों की दीवार दरकने लगी है । रिश्तों की चारदीवारी छोटी होने लगी है , जिसका असर सामाजिक ढाँचे पर पड़ रहा है । सुशांत का कवि महानगरों की दूषित हवा में मौजूद सामाजिक बिखराव का द्रष्टा ही नहीं , भोक्ता भी है -- " कुछ दिनों बाद / जब ठीक हो गए पिता / तो पूछा उन्होंने -- / ' बेटा , पड़ोसियों से / बोलचाल नहीं है क्या तुम्हारी ? ' / मैंने उन्हें बताया कि बाबूजी / यह अपना गाँव नहीं है / महानगर है , महानगर / यहाँ सब लोग / अपने काम से काम रखते हैं , बस ! / यह सुनकर उनकी आँखें / पूरी तरह बुझ गईं " ।
                बदलते परिवेश में आज सबसे बड़ा संकट पठनीयता पर है । टेलीविज़न के रंग-बिरंगे कार्यक्रमों , रियलिटी शो और सीरियल देखने के आगे साहित्य पढ़ने की फ़ुर्सत किसको है । सुशांत सुप्रिय की चिंता हिंदी कविता की पठनीयता को ले कर
है । कविताएँ लिखी तो बहुत जा रही हैं किंतु उनके पाठक नहीं हैं । नयी सदी के हिंदी कवियों की पीड़ा को सुशांत ' इक्कीसवीं सदी में हिंदी कवि ' कविता में व्यक्त करते हैं -- " जैसे अपना सबसे प्यारा / खिलौना टूटने पर / बच्चा रोता है / ठीक वैसे ही रोते हैं / हिंदी-कवि के शब्द / अपने समय को देखकर ... /  इस रुलाई का / क्या मतलब है -- / लोग पूछते हैं / एक-दूसरे से / और बिना उत्तर की / प्रतीक्षा किए / टी.वी. पर / रियलिटी-शो / और सीरियल देखने में / व्यस्त हो जाते हैं ... / किसी को क्या पड़ी है आज / कि वह पढ़े हिंदी के कवि को ऐसे / जैसे पढ़ा जाना चाहिए / किसी भी कवि को " ।
                सुशांत की कविता ' कामगार औरतें ' महाकवि निराला की ' वह तोड़ती पत्थर ' की याद दिलाती है । क्या सुंदर बनावट है कविता की । शब्द-विधान इतना सुंदर कि पूछिए मत । ऐसा लगता है जैसे एक-एक शब्द भावों से सना हुआ है । कामगार औरतों की थकी चाल की विश्व-सुंदरियों की कैट-वाक् से तुलना करके सुशांत ने जो यथार्थ का जीवंत चित्र खींचा है वह अद्भुत है -- " कामलवगार औरतों के / स्तनों में / पर्याप्त दूध नहीं उतरता / मुरझाए फूल-से / मिट्टी में लोटते रहते हैं / उनके नंगे बच्चे / उनके पूनम का चाँद / झुलसी रोटी-सा होता है ... / हालाँकि टी. वी. चैनलों पर / सीधा प्रसारण होता है / केवल विश्व-सुंदरियों की / कैट-वाक् का / पर उससे भी / कहीं ज़्यादा सुंदर होती है / कामगार औरतों की थकी चाल " ।
                तेज़ी से सांप्रदायिक होती जा रही राजनीति को ' पागल ' कविता बयाँ करती है । चाहे सन् 1992 का बाबरी मस्जिद विध्वंस हो या 2002 के गुजरात दंगों का ज़ख़्म , यह सब सुशांत के कवि को गहरे स्तर तक प्रभावित करता है । इन दंगों को मानवता के नाम पर कलंक बताते हुए ' पागल ' पूछता है -- " बताओ तुम कौन हो / हिंदू हो या मुसलमान हो -- / वह सबसे पूछता है / उसका बाप / बाबरी मस्जिद के / विध्वंस के बाद / दिसम्बर , 1992 में हुए / दंगों में / मारा गया था ... / उसका बेटा / 2002 में गुजरात में हुए / दंगों में / मारा गया था ... / जिन्होंने उसके / बाप को मारा / वे हँसते हुए / उसे पागल कहते हैं / जिन्होंने उसके बेटे को / दंगाइयों से नहीं बचाया / वे हँसते हुए उसे / पागल कहते हैं " । ' कैसा समय है यह ' कविता में कवि क्षुब्ध है क्योंकि " अयोध्या से बामियान तक / ईराक़ से अफ़ग़ानिस्तान तक / बौने लोग डाल रहे हैं / लम्बी परछाइयाँ " ।
                सुशांत जनतंत्र में वी. आइ. पी. संस्कृति के खिलाफ हैं । किसी व्यक्ति के आम से ख़ास हो जाने पर सुरक्षा के नाम पर आम आदमी को जो कठिनाई उठानी पड़ती है , उस पर सवालिया निशान लगाती है ' वी. आइ. पी. मूवमेंट ' कविता -- " मुस्तैद खड़ा है / ट्रैफ़िक पुलिस विभाग / चौकस खड़े हैं / हथियारबंद सुरक्षाकर्मी / अदब से खड़ा है / समूचा तंत्र / सहमा और ठिठका हुआ है / केवल आम आदमी का जनतंत्र / यह कैसा षड्यंत्र ? " संविधान में गणतंत्र की जो परिभाषा दी गई है , उससे उलट आज समाज में कुछ ख़ास लोगों की सुरक्षा के नाम पर आम आदमी को परेशान किया जाता है । एक वी. आइ. पी. मूवमेंट के लिए घंटों सड़क बंद कर दी जाती है , आम आदमी को रोक दिया जाता है । गणतंत्र के इस स्वरूप पर सुशांत कहते हैं -- " मित्रो / आम आदमी की असुविधा के यज्ञ में / जहाँ मुट्ठी भर लोगों की सुविधा का / पढ़ा जाए मंत्र / वह कैसा गणतंत्र ? "
                संग्रह को पढ़ते हुए एक साधारण-सी कविता भी अपनी ओर ध्यान खींचती है । इक्कीसवीं सदी में एक कवि की पीड़ा बिल्कुल जायज़ लगती है जब वह एक बेटी के पिता की पीड़ा और चिंता को बयाँ करता है । घर से बाहर निकली बेटी जब तक घर वापस नहीं आ जाती , तब तक एक पिता की बेचैनी को व्यक्त करती है ' लड़की का पिता ' कविता -- " लेकिन / डर भी लगता है क्योंकि / बाथरूम के नल में से / झाँक रहा है / इलाक़े का गुंडा / बिल्डिंग की लिफ़्ट में / घात लगाए बैठा है / कोई रईसज़ादा / सामने से बाइक पर / चला आ रहा है / एसिड की बोतल लिए / कोई लफ़ंगा । "
                सुशांत सुप्रिय के प्रस्तुत कविता-संग्रह की कविताएँ भाव और भाषा की ताज़गी से युक्त हैं । अपने आस-पास के जीवन और परिवेश को नई दृष्टि से देखना तथा जीवन और जीवनेतर चीज़ों पर विचार-मंथन करके उन्हें नए रूप में प्रस्तुत करना इनकी विशेषता है । शिल्प और संवेदना -- दोनों के धरातल पर ये कविताएँ खरी उतरती हैं । संग्रह की सभी कविताएँ एक से बढ़कर एक हैं । राजनीति से लेकर धर्म तक , समाज से लेकर प्रकृति और पर्यावरण तक , प्रेम से लेकर देश-प्रेम तक ,
सभी भावभूमियों की कविताएँ इस संग्रह में हैं । पारदर्शी भाषा से युक्त ये कविताएँ आधुनिक हिंदी कविता को समृद्ध करती हैं ।

                        ------------०------------

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका