अटल बिहारी वाजपेयी

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अटल जी के बाद भारतीय जनता पार्टी की अध्यक्षता वैंकटैया नायडू, लाल कृष्ण अडवानी तथा राजनाथ सिंह ने किया. 2010 संे 2013 तक श्री नितिन गडकरी और उसके बाद पुनःराजनाथ सिंह अध्यक्ष कार्यभार संभालते रहे. सत्ता कांग्रेस के हाथों में आ गई थी.

 जन्मदिवस 25 दिसम्बर के अवसर पर 
अटलजी व भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रवादी यात्रा

1925 ई. में कुछ राष्ट्रवादी महापुरूषों ने माननीय श्री केशव हेडगेवार के नेतृत्व में एक गैर राजनीतिक एवं सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संध की स्थापना नागपुर में किया था. गुलामी की जिन्दगी से निजात दिलाने
अटल विहारी वाजपेयी
अटल विहारी वाजपेयी 
के लिए एक राजनीतिक संगठन की आवश्यकता प्रतीत हुई तो श्री श्यामाप्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में भारतीय जनसंघ का स्थापना किया गया था. माननीय अटल विहारी वाजपेयी (जन्म 25 दिसम्बर 1924, ग्वालियर) इसके संस्थापक सदस्य थे।बाद में यह जनता पार्टी का हिस्सा बना और उससे अलग भी हुआ. फिर 06 अप्रैल 1980को श्री अटल विहारी वाजपेयी के अध्यक्षता में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ.  अपनी विश्वसनीयता और कुशलता से अटलजी और भाजपा एक दूसरे के पर्याय बन गये.

लोकप्रिय जननायकः-

 अटल जी एक सच्चे इंसान और लोकप्रिय जननायक रहे हैं. ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना से परिपूर्ण, ‘सत्यम-शिवम-सुन्दरम’  के पक्षधर अटल जी का सक्रिय राजनीति में पदार्पण 1955 में हुआ था. जबकि वे देशप्रेम की अलख को जागृत करते हुए 1942 में ही जेल गए थे. ’सादा जीवन उच्च विचार’ वाले अटल जी अपनी सत्यनिष्ठा एवं नैतिकता की वजह से अपने विरोधियों में भी अत्यन्त लोकप्रिय रहे हैं. 1994 में उन्हे ‘सर्वश्रेष्ठ सांसद’ एवं 1998 में ‘सबसे ईमानदार व्यक्ति’के रूप में सम्मानित किया गया है. 1992 में “पद्मविभूषण”जैसी बङी उपाधी से अलंकृत अटल जी को 1992 में ही ‘हिन्दी गौरव के सम्मान से सम्मानित किया गया है. अटल जी ही पहले विदेश मंत्री थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ मे हिन्दी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था और राष्ट्रीय भाषा हिन्दी का मान बढाया. अपनी कविता के माध्यम से कहते हैं-
गूँजी हिन्दी विश्व में, स्वपन हुआ साकार। राष्ट्र संघ के मंच से, हिन्दी का जयकार।।
हिन्दी का जयकार, हिन्द हिन्दी में बोला। देख स्वभाषा प्रेम, विश्व अचरज से डोला।।

जीवनयात्रा:-

वे 1968 से 1973 तक जनसंघ के अध्यक्ष रहे. उन्होंने अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारम्भ किया था और उस संकल्प को पूरी निष्ठा से आज तक निभाया. सन् 1955 में उन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, परन्तु सफलता नहीं मिली. उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सन् 1957 में बलरामपुर ( उत्तर प्रदेश) से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा में पहुँचे. सन् 1957 से 1977 तक जनता पार्टी की स्थापना तक वे बीस वर्ष तक लगातार जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे. मोरारजी देसाई की सरकार में सन् 1977 से 1979 तक विदेश मन्त्री रहे और विदेशों में भारत की छवि को निखारा. लोकतन्त्र के सजग प्रहरी अटल बिहारी वाजपेयी ने सन् 1997 में प्रधानमन्त्री के रूप में देश की बागडोर संभाली. 19 अप्रैल, 1998 को पुनः प्रधानमन्त्री पद की शपथ ली और उनके नेतृत्व में 13 दलों की गठबन्धन सरकार ने पाँच वर्षों में देश के अन्दर प्रगति के अनेक आयाम छुए. वाजपेयी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के पहले प्रधानमन्त्री थे जिन्होने गैर काँग्रेसी प्रधानमन्त्री पद के 5 साल बिना किसी समस्या के पूरे किए. उन्होंने 24 दलों के गठबंधन से सरकार बनाई थी जिसमें 81 मन्त्री थे. कभी किसी दल ने आनाकानी नहीं की. इससे उनकी नेतृत्व क्षमता का पता चलता है. वर्तमान युग में भगवद्गीता की पंक्तियों का अनुसरण करके चल रहे हैं-‘कर्मण्यवाधिकारस्ते माँ फलैषु कदाचनः’
परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों की संभावित नाराजगी से विचलित हुए बिना उन्होंने अग्नि-दो और परमाणु परीक्षण कर देश की सुरक्षा के लिये साहसी कदम भी उठाये. सन 1998 में राजस्थान के पोखरण में भारत का द्वितीय परमाणु परीक्षण किया जिसे अमेरिका की सी०आई०ए० को भनक तक नहीं लगने दी. अटल जी नेहरु युगीन संसदीय गरिमा के स्तंभ हैं. आज अटल जी करोङों लोगों के लिए विश्वसनियता तथा सहिष्णुता के प्रतीक हैं. जननायक अटल जी का उदार मन, आज की गला काट संस्कृति से परे सदैव यही कामना करता है कि -मेरे प्रभु, मुझे कभी इतनी ऊँचाई मत देना, गैरों को गले न लगा सकुँ, इतनी रुखाई कभी मत देना.
जनसंघ से भाजपा तक की यात्रा:-
1965 में फरह, मथुरा के पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने भारतीय जनसंघ को अभिंसंचित करते हुए उसमें एकात्म मानववाद के सिद्धान्तों को और जोड़ा था. उन दिनों सत्ता नेहरू परिवार की उत्तराधिकारिणी श्रीमती इन्दिरा गांधी के हाथों में थी. इसी समय इलाहाबाद उच्च न्यायालय में समाजवादी नेता राजनरायण ने एक याचिका  श्रीमती इन्दिरा गांधी के विरूद्ध दायर कर रखी थीं . जिसमें श्रीमती गांधी 18 मार्च 1975 को पराजित हो गई थीं. अति उत्साह एवं बदले की भावना से 1975 में श्रीमती गांधी ने देश में आपातकाल लागू करवा दिया तथा सारे विपक्ष के नेताओं को रातोरात जेल में डलवा दिया था. बाद में जे.पी. आन्दोलन ने देश में नयी चेतना डाली थी. 1977 में गांधीवादी नेता श्री मोरारजी देसाई के नेतृत्व में सम्पूर्ण विपक्ष एक पार्टी एक निशान तथा एक कार्यक्रम के तहत ‘जनता पार्टी’के बैनर के नीचे देश के चुनाव में भाग लिया और भारी मतों से सत्तासीन हुआ था. भारतीय जनसंध भी इसी में विलीन हो गया था. उस समय श्री अटल विहारी वाजपेयी विदेश मंत्री बने थे. उन्होने संयुक्त राष्ट्र संध में हिन्दी में पहला भाषण भी दिया था. चूंकि यह सत्ता एक सिद्धान्त पर आधारित नहीं था इसलिए 1980 में इसमें विखराव आ गया. 06 अप्रैल 1980 को श्री अटल विहारी वाजपेयी के अध्यक्षता में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ. श्री लालकृष्ण अडवानी ने राम मन्दिर के लिए रथ यात्रा करके पार्टी मे मजबूती प्रदान की थी. अटल और अडवानी ने इस पार्टी को बहुत आगे तक पहुंचाया था. वे संघर्ष के साथ एक लम्बी संसदीय परम्परा में सारी चुनौतियों का सामना करते हुए आगे चलकर देश को एक कुशल नेतृत्व प्रदान किया था. इस समय कांगे्रस के बाद भाजपा दूसरी विशाल पार्टी के रूपमें स्थापित हुई थी. प्रारम्भ में इसके केवल 2 सदस्य थे. 1991 में 120 तथा 1996 में 161 सदस्यो की संख्या हो गई थी. माननीय अटल जी को सरकार चलाने का अवसर भी प्राप्त हुआ था. भारतीय जनता पार्टी के नेता श्री अटल विहारी वाजपेयी ( 16.05.1996 से 01.06.1996. तक ) पहले 13 दिन के लिए सरकार बनाये. उनके पास आवश्यक बहुमत नहीं था और उन्होने जोड़ तोड़ नहीं किया और एक आदर्श परम्परा शुरू करते हुए अपनी सरकार का त्यागपत्र सौंप दिया. अब काग्रेस ने बाहर से समर्थन देते हुए कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री जनता दल के नेता श्री देवगौड़ा तथा श्री इन्द्रकुमार गुजराल को अपनी बैसाखियों के सहारे थोडे-थोड़े समय तक सत्तासीन किया और पुनः समर्थन वापस लेकर उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया था. इस बीच अटल व अडवानी की युगल जोडी को पुनःस्थापित होने में आठ साल का लम्बा समय लग गया. नया चुनाव होने पर 182 सीटें पाकर भाजपा के श्री अटल विहारी बाजपेयी ने 19.03.1998 से एक बार फिर 13 माह के लिए प्रधानमंत्री बने परन्मु एडीएमके के जय ललिता द्वारा समर्थन वापस ले लेन तथा उड़ीसा के तत्कालीन नव नियुक्त कांगेंसी मुख्यमंत्री श्री गिरधर गोमांग जो सांसद भी थे ,के मतदान में विपक्ष को मत देने के कारण उनकी सरकार चली गई. पुनः देश को 1999 में मध्यावधि चुनाव का सामना करना पडा था. इस बार 182 साटें पाने के साथ उनका गठबंधन 306 सीटें अर्जित कर स्पष्ट बहुमत जुटा लिया था. उन्होंने 22 छोटे बडे़ दलों को साथ लेकर 22.05. 2004 तक 5 साल के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के अधीन कुशल शासन का संचालन किया. कांग्रेस के लिए यह अवधि बहुत कष्टकारी रही परन्तु अटलजी के व्यक्तित्व के आगे किसी की एक ना चली. स्वच्छ छवि लम्बा संसदीय अनुभव तथा सभी पक्ष विपक्ष को संतुष्ट करने की क्षमता ने उन्हें एक युगपुरूष के रूप में स्थापित करने का पूर्ण अवसर प्रदान किया था. उन्हें भारत रत्न के अलावा पद्म विभूषण पुरस्कार भी मिल चुका है. उनकी अपनी पार्टी से ज्यादा विपक्षी उनके विचारों तथा आचरणा के मुरीद थे. पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक सभी प्रधान मंत्री उन्हें पूर्ण आदर व सम्मान देते .2004 में स्वयं तो वह जीत गये थे परन्तु जनता का विश्वास पार्टी पर से उठ गया था. उन्हें पुनः सेवा का अवसर नही प्राप्त हुआ.उनका स्वास्थ्य निरन्तर खराब रहने लगा था. दिसम्बर 2005 में उन्होने राजनीति से सन्यास ले लिया था.राष्ट्रिय क्षितिज पर स्वच्छ छवि के साथ अजातशत्रु कहे जाने वाले कवि एवं पत्रकार, सरस्वति पुत्र अटल बिहारी वाजपेयी, एक व्यक्ति का नाम नही है वरन् राष्टीय विचारधारा का नाम है। राष्ट्रहित एवं राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रबल पक्षधर अटल जी राजनेताओं में नैतिकता के प्रतीक हैं.
अटलजी की अलग पहचान:-अटल जी ने लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया. ये निर्विवाद सत्य है, कि अटल जी नैतिकता का पर्याय हैं.पहले कवि और साहित्कार तद्पश्चात राजनीतिज्ञ हैं. उनकी इंसानियत कवि मन की कायल है. नैतिकता को सर्वोपरि मानने वाले अटल जी कहते हैं कि-
छोटे मन से कोई बङा नही होता, टूटे मन से कोई खङा नही होता।
मन हार कर मैदान नही जीते जाते, ना मैदान जीतने से मन ही जीता जाता है।।

अटलजी के बाद भाजपाः-

अटल जी के बाद भारतीय जनता पार्टी की अध्यक्षता वैंकटैया नायडू, लाल कृष्ण अडवानी तथा राजनाथ सिंह ने किया. 2010 संे 2013 तक श्री नितिन गडकरी और उसके बाद पुनःराजनाथ सिंह अध्यक्ष कार्यभार संभालते रहे. सत्ता कांग्रेस के हाथों में आ गई थी. 2004 से 2014 तक मनमोहन सिंह को सेवा करने का अवसर प्राप्त हो गया था. यद्यपि वे केवल संवौधानिक प्रधानमंत्री थे और यूपीए अध्यक्षा के मार्ग निर्देशन में सरकार चला रहे थे. गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान तथा छत्तीसगढ आदि राज्यों में भाजपा स्वतंत्र तथा विहार उड़ीसा तथा पंजाब में सहयोगी के रूप में सत्ता में थी. वरिष्ठ नेताओं का प्रभाव कम पड़ता देख, गुजरात के तीन बार से लगातार जीतने वाले मुख्यमंत्री माननीय नरेन्द्रभाइ्र्र दामोदरदास मोदी को राष्ट्रीय राजनीति में आने का अवसर मिल गया. पूरे देश में उन्होंने प्रचार सभायें करके कांग्रेस के शासन से निजात दिलाई. उनके प्रमुख सहयोगियों में राजनाथ सिंह, अमितशाह तथा अरूण जेटली आदि प्रमुख रहे . वर्तमान समय में 545 की संख्या वाले सदन में 280 भाजपा सदस्य हैं. 245 की संख्यावाले राज्यसभा में 47 भाजपाई सदस्य हैं. लोकसभा में कांगे्रस 44 ,एआईडीएमके 37, तृणमूल कांग्रेस 34, बीजू जनता 20, शिवसेना 18, तेलगूदेशम 16, तेलंगाना राष्ट्र समिति 11, सीपीआई एम 9, एनसीपी तथा लोक जनशक्ति 6-6 सीटें प्राप्त किये हुए हंै. विपक्ष के लिए कुल सदस्य संख्या 545 का दस प्रतिशत अर्थात 55 सदस्य अनिवार्य है जिसे कांग्रेस नही पा सकी है.
इतनी बड़ी जीत के बावजूद भारतीय जनता पार्टी वह सब कुछ नही कर पा रही है जिसकी उम्मीद थी अथवा जो वादा करके वह सत्ता की सीढ़ी तक पहुंच पायी है. एक तरफ कांगेस तो इसे देखना पसन्द नहीं करती है क्योकि यह पार्टी उनकी सारी कलई खुलती जा रही है. कुछ क्षेत्रीय क्षत्रप भी अपनी साख तथा अस्मिता बचाने के लिए कांग्रेस का आंख मुदकर समर्थन तथा भाजपा का निरन्तर विरोध करते देखे जा रहे हैं. दिल्ली में सख्त कानून तथा विहार में कुछ क्षेत्रीयता व जातिवादी व्यवस्था के होते हुए भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ा है.  यह पार्टी निरन्तर अपनी छवि सुधारने में लगीे हैं. प्रधानमंत्री विदेशों में जा जाकर भारत की गिरी हुई साख को ठीक करने में तथा विकास के नये आयाम खोजने में जुटे हुए हैं. विरोधी ऊल जलूल बयान देकर भाजपा को काम करने से रोकना ही चाह रहे हैंे. वे तो सब कुछ खेा ही चुके हैं उन्हें कुछ खास खोना नहीं हैं. जनता ने तो एनडीए या भाजपा को इतना वड़ा बहुमत दिया है. वह तो भाजपा से अवश्य हिसाब मांगेगी।.

मोदीजी की नोटबन्दी:-

 हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 को जब यह घोषणा की कि केवल चार घंटे बाद में 500 और 1000 के नोट बड़े नोट चलना बंद हो जाएंगे तो पूरा देश सन्न रह गया. यह सरकार का ऐतिहासिक निर्णय है जिससे पूरा देश प्रभावित है. संसद में विपक्षियों ने सारा कामकाज ठप्प कर दिया है और आम लोगों का जीवन भी प्रभावित हुआ है. सरकार के इस निर्णय से देश के का 86 प्रतिशत कैश बेकार हो गया, इस स्थिति ने देश की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाला है. बीजेपी का समर्थक व्यापारी वर्ग इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है फिरभी सरकार का साथ दिया है दृ देश के हर भाग के छोटे तबके में इस बात को लेकर खुशी है कि अमीर और काले धन वालों का धन सरकार की जेब में जा रहा है जो घूम फिर कर जनता के कल्याणकारी कार्यों में लगेगा. 50 दिन के इस प्रारम्भिक अभियान को आम जनता वड़े धौर्य और संयम से कष्ट झेलते हुए सरकार के कदमों का समर्थन किया है, दो-दो हजार रुपये के लिए कई बार लाइनों में लगा, कम पैसे से अपना जरुरी से जरुरी काम चलाया है. कुछ राजनीतिक प्रभावशाली व्यक्ति व बैंक के बड़े अधिकारी अपने निजी स्वार्थवस काले धन को सफेद करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रखे हैं. देश के हर क्षेत्रों से एसे छापे तथा गिरफ्तारियों की खबरे दिन प्रतिदिन अखबारों में आ रही हैं. एसे लोगो के प्रति कठोर से कठोर कार्यवाही करते हुए राष्ट्रदोह में निरुद्ध करते हुए मुकदमा चलाया जाना चाहिए तथा उन्हें नातो राजकीय सेवा में रहने दिया जाना चाहिए ओर नाही संसद विधान सभाओं को चुनाव लड़ने दिया जाना चाहिए.

दीर्घायु की कामना:- 

आत्मीयता की भावना से ओत-प्रोत, विज्ञान की भी जय जयकार करने वाले, लोकतंत्र के सजग प्रहरी, राजनीति के मसीहा अटल जी को ईश्वर स्वस्थ दीर्घायु प्रदान करे. माननीय अटल जी के जन्म दिन के अवसर पर उनके व्यक्त्वि व कृतित्व को प्रणाम करते हुए आपेक्षा करता हू कि इस बुद्धिजीवी पार्टी जिसमें हर कोई अति समझदार व कुशल है ,भाजपा के विकास रथ को आगे बढ़ाने तथा देश को विश्व की एक विशाल शक्ति बनाने में सहयोग करें.

डा. राधेश्याम द्विवेदी , पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी, 
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा 282001 मो. 9412300183


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हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: अटल बिहारी वाजपेयी
अटल बिहारी वाजपेयी
अटल जी के बाद भारतीय जनता पार्टी की अध्यक्षता वैंकटैया नायडू, लाल कृष्ण अडवानी तथा राजनाथ सिंह ने किया. 2010 संे 2013 तक श्री नितिन गडकरी और उसके बाद पुनःराजनाथ सिंह अध्यक्ष कार्यभार संभालते रहे. सत्ता कांग्रेस के हाथों में आ गई थी.
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