एक भीगा सा धन्यवाद

SHARE:

मैंने विशाल का हाथ संजना के हाथों में दे दिया। संजना कि आँखों से झर-झर आँसू बह रहे थे। उसकी आँखों में विशाल के लिए प्रेम था और मेरे लिए एक भीगा सा धन्यवाद।

        एक भीगा सा धन्यवाद 

                           
प्रशांत के अचानक ट्रांसफर की खबर से मैं हतप्रभ रह गयी। सोचा था नौकरी के कुछ साल तो अब दिल्ली में बीतेंगे आराम से। पचास की उम्र के बाद पति-पत्नी को कितनी ज़रूरत होती है एक दूसरे के साथ की। बीमारियाँ बिन बुलाये मेहमान की तरह आकर परेशान करती हैं। करण को भी लंदन इतना पसंद आया कि वहीं बस गया, साल में एक बार ही मिलना होते है बेटे से। लेकिन सारा सामान लेकर दो साल के लिए साथ भी तो नहीं जा सकती थी प्रशांत के। 

मेरे अकेलेपन को देखते हुए प्रशांत ने घर का छोटा सा हिस्सा किराए पर देने की सलाह दी। जिससे मेरा  अकेलापन भी दूर हो जाएगा और मुझे लेकर प्रशांत को भी कोई चिंता नहीं रहेगी। सुझाव मुझे पसंद आ गया। 

शाम को मैंने अपने कुछ साथियों से इस विषय में बात की। मिसेज़ तनेजा के पास कुछ दिन पूर्व एक जोड़ा आया
था। लेकिन उन्होनें पहले ही किराएदार रख लिए थे, इसलिए विशाल और संजना के फोन नंबर उन्होने मुझे दे दिये। उन लोगों से बात बन गयी और प्रशांत के जाने के ठीक एक दिन बाद वे लोग अपना सामान लेकर आ गए।

दोनों प्राइवेट कंपनी में काम करते थे। संजना को ज़्यादा दूर नहीं जाना पड़ता था। उसकी सुविधा को ध्यान में रखते हुए ही विशाल ने मेरा घर किराए पर लेने के लिए चुना था। सुबह से ही उन लोगों की भाग-दौड़ लगी रहती थी। फिर भी घर में किसी के रहने से घर भरा-भरा लगता था। संजना अक्सर  मेरे पास आकर थोड़ी देर के लिए बैठ भी जाया करती थी,पर विशाल से मेरी ज़्यादा बात नहीं हुई थी कभी। बातों-बातों में मुझे पता लगा कि वे दोनों लिव-इन रिलेशनशिप में हैं। अपने घर से दूर नौकरी करते हुए आजकल ऐसे रिश्ते बन ही जाते हैं। दोनों का मेल-जोल देखकर मैं तो पति-पत्नी समझ बैठी थी। 

उस दिन रात को बैठी हुई मैं वट्सऐप पर दोस्तों के साथ चैटिंग कर रही थी तभी डोरबैल बज उठी। “इस समय कौन आया होगा ?” सोचकर मैंने दरवाजा खोल दिया। विशाल सिर-दर्द की दवाई मांगने आया था। उसके चेहरे को देखते ही मैं समझ गयी कि उसे तेज़ बुखार है। मैंने अंदर बुलाकर उसे बैड पर लिटा दिया। पानी लाकर दवाई दी और उसे आराम करने को कहकर उसके लिए खिचड़ी बनाने चली गयी। 

“रहने दीजिये आँटी आप क्यों परेशान होती हैं? मैं घर जाकर बिस्किट खाकर सो जाऊँगा। संजना आज ऑफिस में ही रहेगी,उसे कुछ ज़रूरी काम है।“ रसोई में आकर बुखार से बोझिल अपनी आँखों को ज़बरदस्ती खोलते हुए विशाल बोला।
 “पगले आँटी भी कहते हो और इतना परायापन दिखाते हो? जाओ जाकर चुपचाप बैड पर लेट जाओ। मैं बस अभी खिचड़ी लेकर आई।“ मैंने मीठी झिड़की देते हुए विशाल को चुप करा दिया। 

कुछ दवा का असर था और कुछ घर की खिचड़ी का, विशाल कुछ ही देर में बेहतर महसूस करने लगा। मैं भी उसके पास जाकर बैठ गयी। कुछ देर तक दोनों चुप रहे, फिर चुप्पी तोड़ने के अंदाज़ में मुसकुराते हुए मैंने पूछा, ”तुम शादी क्यों नहीं कर लेते। अच्छी नौकरी है और एक अच्छे घर के पढ़े-लिखे खूबसूरत से लड़के हो।“ जानती थी विशाल इस सवाल को टाल जाएगा।
किन्तु मेरी आशा के विपरीत वह उठकर बैठ गया और एक बेबस बच्चे की तरह मेरी ओर देखकर बोला,”आँटी मुझे संजना पसंद है, मैं उससे ही शादी करना चाहता हूँ।“
“तो समस्या क्या है?” आश्चर्य से मुसकुराते हुए मैंने पूछा। 
मधु शर्मा कटिहा
मधु शर्मा कटिहा
विशाल के चेहरे पर एक बार फिर निराशा की रेखा खिंच गयी। ठंडी आह भरकर वह बोला,”संजना इसके लिए तैयार नहीं है। वह एक मॉडर्न लड़की है। उसको लगता है कि जिम्मेदारियों के बोझ से दबकर हम अपने करियर को भूल जाएंगे। इसके अलावा उसे यह भी लगता है कि प्यार जैसी कोई चीज़ होती ही नहीं।“
“और इतने दिन से तुम जो साथ-साथ रह रहे हो ये क्या है ? प्यार कैसा होता है फिर ? ” मैंने स्नेह से विशाल की ओर देखते हुए पूछा। 
“संजना को लगे तब न! उसका कहना है कि ये एक अण्डरस्टैंडिंग है। हम में से जो भी चाहे कभी भी एक दूसरे को छोड़कर जा सकता है।“ शिकायत के लहजे में विशाल ने कहा। 
“यानि वह कहना चाहती है कि तुम लोग भावनात्मक रूप से एक दूसरे पर निर्भर नहीं हो और न इसकी कोई ज़रूरत ही है। लेकिन ऐसा नहीं है विशाल। तुम दोनों एक दूसरे को दिल से पसंद नहीं करते तो इतने दिन साथ-साथ नहीं रह पाते। ईमोशनली भी तुम एक दूसरे से जुड़े हो। दिल के खेल निराले हैं। कोई दिल तक कब पहुँच जाता है इसका पता खुद को भी नहीं लगता। इसका अहसास ही तब होता है जब उसके बिना जीना पड़ता है।“ मुझे विशाल पर तरस आ रहा था। 
“मैंने कहा न आँटी वो कोई रिस्पोन्सिबिलिटी लेना नहीं चाहती। शी वांट्स टु लिव अ स्ट्रैस-फ्री लाइफ।“ बुझे मन से विशाल बोला। 
“विशाल, समय के साथ सब जिम्मेदारियाँ संभालना सीख जाते हैं। अब मुझे ही देख लो। जब शादी हुई थी तब आठ बजे से पहले सोकर नहीं उठती थी। अब पाँच बजते ही उठ जाती हूँ। और फिर यहाँ तुम्हारे घर के लोग नहीं हैं तो क्या हुआ, मैं तो हूँ न अब तुम लोगों के साथ....मेरे दिमाग में एक विचार आया है।“ मैंने शरारती मुस्कान बिखेरते हुए विशाल की ओर देखा। 
“वो क्या आँटी?” विशाल की उत्सुकता जागी। 
“ऐसा करते हैं तुम कुछ दिन मेरे साथ रहो, लेकिन संजना को हम इसकी कानों-कान खबर नहीं लगने देंगे। अगर आसक्ति जिसे हम लगाव कहते हैं, संजना को छू कर भी निकला है तो उसे तुम्हारी कमी ज़रूर खलेगी।“ मैंने औरत के मन को समझते हुए कहा। 

विशाल को यह सुझाव पसंद आ गया। वह कमरे से जाकर अपना सामान ले आया। संजना को उसने मैसेज कर दिया कि वह जा रहा है। हम दोनों काफी देर तक बातें करते रहे। अपने ऑफिस में उसने बीमार होने का हवाला देते हुए छुट्टी के लिए मेल कर दिया। 

अगले दिन विशाल थोड़ी कमज़ोरी महसूस कर रहा था, बुखार अब नहीं था। मैं दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर उसके पास जाकर बैठ गयी। हम दोनों एक बार फिर विवाह संस्था,आसक्ति,समाज व पारिवारिक उत्तरदायित्व जैसे विषयों पर चर्चा करने लगे। इस बीच संजना ने विशाल को दो बार फोन किया। पर मैंने ‘न’ में सिर हिला दिया। इसलिए विशाल ने फोन नहीं उठाया। 

रात को काम से लौटकर संजना मेरे पास आई, उसका चेहरा उतरा हुआ था। मैंने प्यार से बैठकर उसका हाल-चाल पूछा। वह अपनी निराशा छुपाते हुए बोली,”आँटी विशाल को जाना ही था तो पहले बता देता। आपको पता है न कि कल वो अचानक चला गया। जाने से पहले मिला तक नहीं मुझसे। बस एक मैसेज करके भाग गया।“
“पर तुम लोगों की तो शर्त थी कि कभी भी एक दूसरे को बिना बताए जा सकते हैं। उसने कम से कम तुम्हें इन्फॉर्म तो किया ना ?” मैंने विशाल का पक्ष लेते हुए कहा। 
संजना कुछ देर चुप रही। उसके चेहरे पर विषाद की रेखाएँ साफ़ दिखाई दे रहीं थीं। फिर कुछ सोचकर बोली, ”आँटी ये शर्त तो हमने शुरू-शुरू में रखी थी ना ! अब तो साथ-साथ रहते हुए हमें एक-दूसरे की फीलिंग्स का ख़्याल रखना चाहिए ना ?”
“हाँ ये तो सच कह रही हो तुम। भावनाओं की भी जगह होनी चाहिए हमारे दिल में। आखिर तो हम सब इंसान हैं कोई मशीन थोड़े ही हैं।“ मैंने संजना के मन को थोड़ा और कुरेद दिया। 

संजना धीमी चाल से वापिस चली गयी। अगले दिन ऑफिस से सीधा मेरे घर आई। थोड़ी चिंतित लग रही थी। आते ही कहने लगी, “देखिये न आँटी कैसा है विशाल! आपको भी फोन नहीं किया न? ये भी नहीं सोचा कि आपको कितनी चिंता हो रही होगी।“
“अरे छोड़ो न संजना, आज़ाद ख्याल का लड़का है ये विशाल। रिश्तों में बंधना कहाँ अच्छा लगता होगा उसे? जहाँ होगा जिसके साथ होगा,खुश होगा। इसलिए मुझे तो बिलकुल चिंता नहीं हो रही उसकी। हाँ ! अगर तुम्हें चिंता हो रही है तो मैं फोन कर लेती हूँ उसे।“ मैंने सहानुभूति के स्वर में कहा। 
“नहीं आँटी, रहने दीजिये।“ कहते हुए संजना का गला रुँध गया। बुझे मन से वह वापिस चली गयी। 

आज सुबह से ही हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। मैं रसोई में चाय और पकौड़े बना रही थी। संजना के कमरे से इस समय खटर-पटर सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ। “इस वक़्त तो संजना को ऑफिस में होना चाहिए,” सोचती हुई मैं उसके कमरे में जा पहुंची। संजना अभी भी नाइट-सूट में थी और चाय के बर्तन धो रही थी। सूजी हुई लाल आँखें, बिखरे बाल और नाइट-सूट की तरह चेहरे पर भी सलवटें-संजना का हुलिया उसके दुख और निराशा की कहानी सुना रहा था।
“तुम आज ऑफिस नहीं गईं?” मैंने उसकी ओर प्यार से देखते हुए पूछा। 
“नहीं आँटी तबीयत कुछ ठीक नहीं है।“ डबडबायी आँखों से वह मेरी ओर देखते हुए बोली। 
“तो चलो कपड़े बदल लो, मैं तुम्हें डॉ॰ के पास ले चलती हूँ। ठीक है।“ मैं प्यार से उसके सिर पर हाथ रखकर बोली। 
संजना अब खुद को संभाल नहीं पायी और फूट-फूट कर रोने लगी। रोते-रोते वह बोली, ”आँटी कभी-कभी ऐसा लगता है कि जिंदगी में किसी अपने की बहुत ज़रूरत है। मुझे विशाल की बहुत याद आ रही है। वह मेरा बहुत ध्यान रखता था। आई एम मिसिंग हिम वैरि बैडली। मैं क्या करूँ आँटी?“ 
“मिस कर रही हो तो चलो उसके पास” मुसकुराते हुए मैंने कहा। 
“आपको पता है वो कहाँ है?” पूछते हुए उसका चेहरा मासूम बच्चे की तरह खिल गया। 
“हाँ अभी चलो।“ कहते हुए मैं उसे अपने कमरे में ले गयी। 
विशाल को देखते ही संजना ऊंचे स्वर में बोली,”कहाँ चले गए थे मुझे छोडकर? गंदे कहीं के।“
मैंने अब संजना को भी सब कुछ बताना ठीक समझा। वह खुश थी कि अपने मन की जिन गहराइयों को वह खुद भी नहीं समझ पाई, उन्हें मैंने समझ लिया। विशाल अगर सचमुच उसकी जिंदगी से चला गया होता तो हाथ मलने के सिवाय उसके पास कोई चारा न होता। 

मैंने विशाल का हाथ संजना के हाथों में दे दिया। संजना कि आँखों से झर-झर आँसू बह रहे थे। उसकी आँखों में विशाल के लिए प्रेम था और मेरे लिए एक भीगा सा धन्यवाद।           
    
यह रचना  मधु शर्मा कटिहा जी द्वारा लिखी गयी है . आपने दिल्ली विश्वविद्यालय से लाइब्रेरी साइंस में स्नातकोत्तर  किया है . आपकी कुछ कहानियाँ व लेख  प्रकाशित हो चुके हैं।
Email----madhukatiha@gmail.com 

COMMENTS

Leave a Reply: 3
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका