सपना

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मेहरा जी के जीवन का एक ही सपना था कि वह अपने इकलौते बेटे रोहन को इंजीनियर बना सकें. वह स्वयं इंजीनियर बनना चाहते थे किंतु परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण नही बन सके. अतः अपनी इच्छा अपने बेटे के द्वारा पूरी करना चाहते थे.

सपना

मेहरा जी के जीवन का एक ही सपना था कि वह अपने इकलौते बेटे रोहन को इंजीनियर बना सकें. वह स्वयं इंजीनियर बनना चाहते थे किंतु परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण नही बन सके. अतः अपनी इच्छा अपने बेटे के द्वारा पूरी करना चाहते थे. 
रोहन अपने पिता को बहुत चाहता था. उनकी हर बात मानता था. पढ़ने में होशियार था किंतु चित्रकारी करना उसे बहु़त पसंद था. इस कला में वह माहिर था. जो भी उसकी स्केचबुक देखता उसकी तारीफ अवश्य करता था. उसे चित्रकारी में अनेक पुरस्कार मिले थे. मेहरा जी उसे समझाते कि यह सब शौक के तौर पर ठीक है किंतु तुम इंजीनियर ही बनना. हंलाकि उसे चित्रकारी पसंद थी किंतु उस छोटी उम्र में वह कुछ समझ नही पाता था. अतः अपने पिता की बात का समर्थन करता था.
जैसै जैसे वह बड़ा होने लगा यह बात समझ में आने लगी कि उसकी रुचि चित्रकारी में अधिक है. किंतु मेहरा जी उसे बार बार याद दिलाते थे कि उसे उनके सपने को पूरा करना है. कभी दबी ज़ुबान उसने अपनी बात कहनी भी चाही तो उन्होंने उस पर ध्यान नही दिया.
दसवीं के बाद अनिच्छा होने पर भी उसे विज्ञान विषय लेना पड़ा. मेहरा जी सबसे कहते अब बस कुछ ही दिनों की बात है मेरा बेटा इंजीनियर बनेगा. अब रोहन दबाव महसूस करने लगा था. नतीजा यह हुआ कि बारहवीं में उसे केवल ७५ फीसदी नंबर ही मिले. उसने फिर अपनी बात कहनी चाही. लेकिन उसकी बात समझने की बजाय उन्होंने अपनी बात कही. उन्होंने बताया कि वह इससे घबराए नही. वह उसे उस शहर में भेजेंगे जो अपनी इंजीनियरिंग की कोचिंग के लिए विख्यात है. वहाँ पढ़ कर वह अवश्य ही सफल होगा.
मेहरा जी साथ जाकर उसका दाख़िला वहाँ के सबसे अच्छी कोचिंग संस्था में करा आए. 
वहाँ पहुँच कर रोहन का मन और भी बुझ गया. एक क्लास में सौ से भी अधिक विद्यार्थी पढ़ते थे. सभी बस किसी भी तरह आगे रहने की होड़ में रहते थे. कोई भी क्लास टेस्ट, ग्रेड्स, असाइनमेंट्स के अलावा कोई बात ही नहीं करता था. लेकिन रोहन का रुझान दूसरी तरफ था. वह बहुत बेमन से यहाँ आया था. अतः वह ऊब जाता था. पहले पढ़ने में जो उसकी दिलचस्पी थी वह भी समाप्त हो गई थी. 
रोज़ ही रोहन के माता पिता उसे फोन करते थे. मेहरा जी बस एक बात ही कहते कि तुम मन लगा कर पढ़ो. ताकि अच्छी जगह तुम्हारा दाखिला हो सके. वह चाह कर भी कुछ नही कह पाता था.
जैसे जैसे परिक्षाओं के दिन पास आते गए उसका दबाव बढ़ता गया. वह बहुत परेशान रहता था. कुछ भी समझ नही पा रहा था.
रात के ढाई बजे मेहरा जी का फोन बजा. उन्होंने देखा तो रोहन का फोन था. वह चिंतित हो गए. फोन रिसीव किया तो उस तरफ से एक महिला की आवाज़ आई. वह श्रीमती राय थीं जिनके घर रोहन पीजी के तौर पर रहता था. उन्होंने बताया कि रोहन ने अपनी कलाई की नस काट ली थी. उसे आई सी यू में भर्ती किया गया था. यह सुन कर मेहरा जी कुछ समय के लिए किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए. बड़ी मुश़्किल से स्वयं को संभाल कर उन्होंने पत्नी को सारी बात बताई,
पहली ही गाड़ी पकड़ कर वह पत्नी के साथ वहाँ पहुँचे. उनकी पत्नी का रो रो कर बुरा हाल था. डॉक्टरों ने बताया कि रोहन की हालत बहुत नाज़ुक है. कुछ भी हो सकता है. 
रोहन के कुछ मित्र उसे देखने आए थे. उनमें से एक जावेद जो रोहन के बहुत करीब था ने बताया कि वह कई दिनों से तनाव में था. वह कहता था कि उसे इंजीनियर नही बनना बल्कि पेंटर बनना है. लेकिन संकोचवश आपसे कुछ कह नही पाता था. 
रोहन के मित्र की बात सुन कर मेहरा जी स्तब्ध रह गए. उन्हें वह पल याद आए जब उनका बेटा दबी ज़ुबान उनसे अपने मन की बात कहना चाहता था किंतु वह अपनी इच्छा उस पर थोपने में इतने व्यस्त थे कि हमेशा उसकी बात अनसुनी कर दी. वह पछता रहे थे कि काश उसकी बात सुनी होती. कभी उससे भी पूंछा हेता कि वह क्या चाहता है. लेकिन पछतावे के अतरिक्त अब कुछ नही बचा था. 
डॉक्टर की इजाजत लेकर वह अपने बेटे के पास गए. वह अचेत था. उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया. उनकी आंखें भर आईं. अश्रु की एक बूंद उनके बेटे के हाथ पर गिरी. उनके मुंह से निकला "मुझे माफ कर दो बेटा." 
उनके स्पर्श और पछतावे ने जैसे जादू कर दिया. रोहन के हाथ में कंपन हुआ. डॉक्टरों ने इसे शुभ संकेत बताया.

यह कहानी आशीष कुमार त्रिवेदी जी द्वारा लिखी गयी है . आप लघु कथाएं लिखते हैं . इसके अतिरिक्त उन लोगों की सच्ची प्रेरणादाई कहानियां भी लिखतें हैं  जो चुनौतियों का सामना करते हुए भी कुछ उपयोगी करते हैं.
Email :- omanand.1994@gmail.com

COMMENTS

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  1. आशिष कुमारजी, बहुत बढ़िया कहानी, हर माता पिता का ये सपना होता हैं की अपनी जिंदगी में हम जो कुछ न बन पाये वो हमारे बच्चे बने ये कोई गलत आशा नहीं हैं लेकिन हर किसीकी अपन एक सपना होता हैं माता पिता ने अपनी आशा बच्चों को बतानी चाहिये पर उनपर थोपनी नहीं चाहिये.कई बार हम हमारे सपनों को बच्चों से पूरा करने के चक्कर में कही हम उन्हें ही न खो दे.

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