ईश्वर की खोज

SHARE:

ईश्वर पृथ्वी पर भ्रमण कर रहे थे कि उन्हें दूर से शैतान आता हुआ दिखा। शैतान ने दूर से ही ईश्वर को पहचान लिया और तुरंत सड़क किनारे की झाड़ियों में जा छिपा

ईश्वर की खोज
ईश्वर पृथ्वी पर भ्रमण कर रहे थे कि उन्हें दूर से शैतान आता हुआ दिखा। शैतान ने दूर से ही ईश्वर को पहचान लिया और तुरंत सड़क किनारे की झाड़ियों में जा छिपा। ईश्वर मुस्कुराते हुए आगे बढ़े और सोचने लगे कि जब पृथ्वी पर शैतान मुझे पहचान लेता है तो यहाँ दूसरे सभी लोग भी मुझे पहचान लेते होंगे।
ईश्वर आगे बढ़े तो उन्हें एक भक्त मिला। पर वह ईश्वर को पहचान  नहीं पाया। तब ईश्वर ने उससे पूछा, ‘कहो भाई, कहाँ जा रहे हो?’
भक्त बोला, ‘मैं ईश्वर की खोज में जा रहा हूँ।’ यह सुन ईश्वर ने पूछा, ‘यदि तुम्हें राह में ईश्वर दिख जावेंगे तो क्या तुम उन्हें पहचान लोगे?’ भक्त ने कहा, ‘मैं उनको पहचानता तो नहीं हूँ, पर उनके कीमती वस्त्र व आभूषणों से उन्हें अवश्य पहचान लूँगा।’
‘ठीक है, तुम अपनी तलाश जारी रखो’ यह कहकर ईश्वर आगे चल पड़े।
कुछ समय बाद उन्हें एक आस्तिक आता नजर आया। वह ईश्वर को न पहचान सका, तो ईश्वर ने उससे भी पूछा कि वह कहाँ जा रहा था। आस्तिक ने कहा कि वह अपनी आत्मा की खोज में है। ईश्वर ने उससे प्रष्न किया, ‘तुम्हारी आत्मा तो तुम्हारे ही अंतः में है, वह बाहर कैसे मिल पावेगी?’ आस्तिक बोला, ‘वह तो मुझे पहले भी बताया गया था, पर बाद में मुझे पता चला कि वह भटक गई है। अतः मैं उसे खोजने चला हूँ।’ तब ईश्वर ने पूछा, ‘‘यदि तुम्हें राह में तुम्हारी आत्मा दिख जावेंगी तो क्या तुम उसे पहचान लोगे?’ वह बोला, ‘मुमकिन है कि मैं उसे पहचान लूँगा क्योंकि सुना है कि उसमें ईश्वर का सा तेज होता है।’
तब ईश्वर ने पूछा, ‘क्या तुम जानते हो कि ईश्वर का तेज कैसा होता है?  
वह बोला, ‘ ईश्वर का तेज शुद्ध सोने की तरह होता है?
‘ठीक है, तुम अपनी तलाश जारी रखो’ यह कहकर ईश्वर आगे चल पड़े।
भूपेन्द्र कुमार दवे
आगे चलकर ईश्वर को एक नास्तिक मिला और वह भी ईश्वर को नहीं पहचान सका। ईश्वर के पूछने पर उसने बताया कि वह स्वयं की खोज में निकला था। यह सुन ईश्वर ने उससे पूछा, ‘ यदि राह में कोई तुम्हें मिला तो तुम कैसे पहचान लोगे कि वह तुम्हीं हो या फिर और कोई?’ वह बोला, ‘यह बिल्कुल सरल है। जो भी ईश्वर की तरह तेजस्वी दिखेगा, वही मैं हूँगा।’
‘ठीक है, तुम अपनी तलाश जारी रखो’ यह कहकर ईश्वर आगे चल पड़े।
और आगे चलकर ईश्वर को एक नन्हा बालक दिखा। ईश्वर ने उससे पूछा, ‘बेटा! तुम अकेले कहाँ जा रहे हो?’ बालक बोला, ‘मैं अपनी माँ को ढूँढ़ रहा हूँ।’ यह सुन ईश्वर  ने प्रश्न किया, ‘राह में तुम्हारी माँ अगर तुम्हें दिख गई तो क्या तुम उसे पहचान लोगे?’ बच्चा बोला, ‘मेरी माँ तो बचपन में ही ईश्वर के पास चली गईं थी फिर भला मैं उसे कैसे पहचान पाऊँगा? पर मेरी माँ तो मुझे पहचानती है, वह दौड़कर मुझे अपने गले लगा लेगी।’ 
यह सुन ईश्वर ने कहा, ‘यदि माँ ईश्वर के पास चली गई है तो तुम ईश्वर से ही क्यों नहीं पूछ लेते कि तुम्हारी माँ कहाँ है।’ 
बालक बोला, ‘ईश्वर क्या बतावेगा? उसे मेरी फिकर होती तो वह खुद ही मेरी माँ को मेरे पास भेज देता। मैं ईश्वर को ढूँढने में अपना समय क्यूँ खराब करूँ?’
यह सुन ईश्वर ने कहा, ‘बेटा, क्या तुम मुझे नहीं पहचानते? मैं  ईश्वर हूँ।’
तब बच्चा बोला, ‘तुम ईश्वर नहीं हो। यदि तुम ईश्वर होते तो मेरा समय इस तरह बरबाद नहीं करते। ईश्वर दयालू होता है वह तुम्हारे समान निष्ठुर नहीं होता। वह मेरी मॉं को अपने साथ लेकर ही मेरे सामने आता।’
यह सुन ईश्वर को निरुत्तर होना पड़ा। 
                                                     
यह कहानी भूपेंद्र कुमार दवे जी द्वारा लिखी गयी है आप मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल से सम्बद्ध रहे हैं आपकी कुछ कहानियाँ व कवितायें आकाशवाणी से भी प्रसारित हो चुकी है 'बंद दरवाजे और अन्य कहानियाँ''बूंद- बूंद आँसू' आदि आपकी प्रकाशित कृतियाँ हैसंपर्क सूत्र - भूपेन्द्र कुमार दवे,  43, सहकार नगररामपुर,जबलपुरम.प्र। मोबाइल न.  09893060419.
            

COMMENTS

Leave a Reply: 2
  1. आश्चर्यजनक रूप से यह कहानी मनुष्य एवं ईश्वर के बीच की दूरी का वर्णन करती है ।अंत में तो सभी ईश्वर को पाना चाहते हैं परंतु क्या मैं को साथ लेकर ईश्वर को पाया जा सकता है । हम सभी ईश्वर को अपनी-अपनी सुविधानुसार अलग अलग रूप में समझते हैं पर भूल जाते हैं कि जो किसी भी प्रकार से समझ में आ जाये वो ईश्वर नहीं हो सकता । जिस किसी ने भी ईश्वर को देखा उसका अपना ईश्वर के विषय में अनुमान बिल्कुल गलत था । कोई भी ईश्वर को नहीं पहचान पाया क्योंकि जैसा कि वे समझते थे ईश्वर वैसे नहीं हैं । उनके अपने विचारों पर आधारित उनकी कल्पनाओं को ईश्वर ने भी नहीं ध्वस्त किया । इस प्रकार वे लोग ईश्वर से मिलकर भी ईश्वर से वंचित रह गए ।
    महत्वपूर्ण यह है कि शैतान �� ईश्वर को पहचानता है और मनुष्य नहीं । इस तथ्य का प्रयोग शैतान �� मानव को ईश्वर से दूर करने के लिए करता है ।
    छोटा बच्चा अलग है । उसे ईश्वर नहीं चाहिए । उसे तो सिर्फ अपनी माँ चाहिये जिसे ईश्वर ने उससे छीन ली है । वो यह चिंता नहीं करता कि वह अपनी माँ को कैसे पहचानेगा क्योंकि वह जानता है कि उसकी माँ उसे निश्चित ही पहचान लेगी । छोटा बालक �� अभी संसार के मिथ्या आवरण से मुक्त है । उसे ईश्वर नहीं अपनी माँ चाहिए । ईश्वर के बताने पर भी वह उनसे प्रभावित नहीं होता जब तक कि ईश्वर उसे उसकी माँ को नहीं लौटा देता । उसे अपनी माँ चाहिये जो कि ईश्वर भी अपने ही घोषित नियमों में बद्ध होने के कारण अब उसे नहीं दे सकते । इसलिए उसे ईश्वर भी नहीं चाहिए । ऐसे मनुष्य को मिलना स्वयं ईश्वर की भी मजबूरी है ।

    जवाब देंहटाएं
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका