वैज्ञानिक युग में हिंदी का विकास

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आज का युग विज्ञान व तकनीकी का है। जीवन का कोई क्षेत्र इससे अछूता नहीं रह पाया है। जहाँ देखिए वहाँ विज्ञान व तकनीकी विद्या की होड़ लगी है, हाहाकार मचा है। इंसान अपने जीवन में सुविधा-परक हो गया है। इससे तकनीकी माध्यम और भी मुखरित हो गए हैं। इनकी वजह से लोग छोटी उम्र में बीमार पड़ने लगे हैं। चश्में तो बहुत छोटे बच्चों को भी लगने लगे हैं।

 वैज्ञानिक युग में हिंदी का विकास
(व्यक्ति व देश की प्रगति का प्रशस्त पथ)
आज का युग विज्ञान व तकनीकी का हैजीवन का कोई क्षेत्र इससे अछूता नहीं रह पाया हैजहाँ देखिए वहाँ विज्ञान व तकनीकी विद्या की होड़ लगी है, हाहाकार मचा हैइंसान अपने जीवन में सुविधा-परक हो गया है। इससे तकनीकी माध्यम और भी मुखरित हो गए हैंइनकी वजह से लोग छोटी उम्र में बीमार पड़ने लगे हैंचश्में तो बहुत छोटे बच्चों को भी लगने लगे हैं
अब आते हैं शिक्षा व दैनंदिन के क्षेत्र में - यहाँ भी तकनीकी माध्यम ने बहुत तरक्की के रास्ते खोल रखे हैंवो दिन बखूबी याद हैं जब किसी शादी ब्याह में स्कूल से छुट्टी लेने पर, बाकी सब तो अलग, किंतु लौटने के बाद होम-वर्क को लिखना एक महान कार्य होता था। इसके बिना पढ़ाई आगे बढ़ाने में मुश्किल होती थीसाथियों से दो -तीन दिन के लिए कापी माँगने के लिए कितनी विनतियाँ करनी पड़ती थींकैसे कैसे पापड़ बोलने पड़ते थेआज बच्चे कहाँ पहुँच गए हैंकापी

ली, स्कूटर या मोटरसायकिल स्टार्ट की, किसी फोटोकापी की दुकान पर गए, कापी कराई और लौट कर कापी "विथ थैंक्स" वापस कर दीसारे काम का समय कोई आधा घंटायदि कोई रईस का बेटा हुआ तो मोबाईल से स्केन किया या फोटो ले लिया और घर जाकर प्रिंट निकाल लियालिखने का झंझट कौन मोलेयदि टीचर ने अपने नोट बुक में लिखने के लिए कह दिया तो घर के नौकरों के बच्चों से लिखवा लिया नहीं तो नहींयह है जनाब तकनीकी जिंदगी का फायदायदि हमारे वक्त ऐसी तकनीक होती भी, तो हम कापी नहीं करा पाते क्योंकि उस समय पाकेट मनी देने के लिए अभिभावकों के पास भी पैसे नहीं होते थेन ही मोटर सायकिल होती थी न ही सायकिल ... पैदल ही चला करते थे
आगे चलें - स्कूल की परीक्षा के प्रश्न पत्र हाथ से लिखे जाते थेयदि कोई गलती हो गई तो टीचर को फिर से लिखनी पड़ती थीजितने बच्चे उतने प्रश्न पत्रसोचिए टीचरों के साथ क्या बीतती थी, आज कौन शिक्षक इतनी मेहनत करता हैबाद में आया टायपिगउसमें भी एक बार में ज्यादा से ज्यादा मूल के साथ तीन कापियाँ निकल पाती थी अक्सर तीसरी कापी पढ़ने योग्य नहीं होती थीसो मूल व दो प्रतिलिपियाँइस तरह बार बार टाईप करना पड़ता था, संख्या पूरी करने के लिएबड़े स्कूलों मे ज्यादा टायपिस्ट लगते थे या फिर बाहर दुकानों में जाना पड़ता थाफिर आया स्टेन्सिल - जिससे एक बार टाईप करने के बाद साईक्लोस्टाईल मशीन से कई कापियाँ निकल जाती थी किंतु सही स्टेंसिल काटना एक मुसीबत थीउसके बाद का जमाना था - इलेक्ट्रोनिक टाईपराईटर जिसमें टाईप करना भी आसान था और छोटी मात्रा में लिखी विषयों को मेमोरी (याददाश्त) में सँजोया भी जा सकता थायह मात्रा धीरे-धीरे बढ़ी और कुछ पृष्ठों तक आ गई। इसमें सबसे बड़ी सुविधा यह हुई कि टाईप किया गया संदेश - विषय, स्मरणपाठ बनाकर रखा जा सकता था और समय पड़ने पर फिर वापस लाया जा सकता थाइस तरह एक प्रिंट लेकर जँचवाकर बाद में जितनी मर्जी कापियाँ निकाल लेंलेकिन इसकी स्मरण क्षमता कम होने के कारण अगले काम के पहले इसे हटाना पड़ता थाधीरे-धीरे इसकी क्षमता भी बढ़ी और काम में आसानी हो गई।
उसके बाद आया कंप्यूटर युगइसने तो तहलका मचा दियास्मरण-क्षमता भी इतनी कि पूरे ब्रीफकेस भर कर भी केसेट में न समाए। अब मेमीरी-स्टोर के लिए भी नए - नए तरीके आ गए हैं पहले जो सूटकेस भर कर आते थे वो अब पेनड्राईव से आपकी जेब में समा जाते हैंयानी करीब एक छोटी लाईब्रेरी को आप पाकेट में डाल कर घूम सकते हैंदो-ढाई किलो के कंप्यूटर में तो सारी दुनियाँ समां जाती है। रख लीजिए, जो खबर चाहिए
इंटरनेट एक और कमाल की चीज आई है जिसमें सारी सूचनाएं उपलब्ध हैंहर सुविधा संपन्न विधा है यहरेल्वे, बस, जहाज का टिकट कटवा लीजिएबैंक का सारा काम इस पर अपनी जगह पर कर लीजिएकिसी को संदेश भेजिए, क्षमता की परवाह ही नहींअपने स्थान पर बैठे-बैठे दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाले व्यक्ति से ध्वनि - दृश्य - संवाद (ऑडियो - वाडियो - चेटिंग) भी कीजिए और सभी बहुत ही सस्ते दाम पर
अब आते हैं भाषा के क्षेत्र में - हर विधा में पहले अंग्रेजी आईक्योंकि यह विश्व में सबसे ज्यादा चलने वाली भाषा हैइसी भाषा में ज्यादातर वैश्विक काम होते हैंउत्तरोत्तर अन्य भाषाएं अपने स्थान के अनुसार आई, धीरे-धीरे हिंदी भी आई। आज हिंदी कम्प्यूटरों व मोबाईल में भी उपलब्ध हैसाथ ही अन्य भारतीय भाषाएं भी हैंजितने काम कम्प्यूटर पर अंग्रेजी में किए जा सकते हैं वे सारे काम कमोबेश हिंदी में भी संभव हैलिखना, सँजोना, पुरानी लिखी व सँजोए वक्तव्यों को पुनर्प्राप्त करनाउनमें संशोधन, प्रिंटिंग ई मेल द्वारा प्रेषण हर तरह के काम अब हिंदी में होने लगे हैंऔर तो और पूरी किताब के हिज्जों (स्पेल्लिंग) की जाँच भी कम्प्यूटर कर देता हैहालाँकि हिंदी में यह सुविधा कम हैबहुत से काम बार बार करने की जरूरत, इससे खत्म हो गई हैएक के लिए बनाई गई चिट्ठी या सर्टिफिकेट में नाम बदलकर किसी और के लिए भी प्रयोग में लिया जा सकता हैकई - कई पृष्ठों की किताबें व रिकार्ड मिनटों में दुनियाँ के इस छोर से उस छोर तक पहुँच जाते हैंइसलिए असुविधा या असंभव को खोजने की जरूरत पड़ने लगी हैअब तो प्रिंटर खुद ही इशारे पर पृष्ठ पलट कर छाप देता हैंआप इंगित तो कीजिए
इन सब कारणों से भाषा का प्रयोग बढ़ा है और साथ ही हर तरह के विकास की गति बढ़ी हैखास तौर पर वहाँ, जहाँ शीर्ष स्थान पास है किस और केक्योंकि आपके पास तुलना के लिए एक पूर्वनिश्चित मंजिल उपलब्ध हैइसका पूरा फायदा हिंदी भाषा को भी उपलब्ध हैआज हिंदी शीर्ष पर नहीं हैअन्य भारतीय भाषाएं भी हिंदी साहित्य के नाम पर होड़ करती हैं सेविश्व में अंग्रेजी हिंदी से कहीं आगे हैकाम आगे बढ़ते - बढ़ते हो सकता है, मंजिल भी आगे बढ़ती रहेलेकिन तब हम मंजिल से आज की अपेक्षाकृत पास होंगे
हम हिंदी-भाषियों को इसका भरपूर लाभ उटाना चाहिए और अन्य समृद्ध भाषाओं में उपलब्ध ज्ञान को हिंदी में अनुवाद कर लेना चाहिए। हिंदी में उपलब्ध ज्ञान, जो अब तक कंप्यूटरों पर उपलब्ध नहीं है, उसे कम्प्यूटरों में सहज उपलब्धि देनी चाहिएकप्यूटर व संबंधी वस्तुओं के दाम कम करने के प्रयास करने होंगे ताकि अधिक से अधिक लोग कंप्यूटर का प्रयोग कर सके एवं उस ज्ञान से लाभान्वित होंअब लिखने व संशोधन में लगने वाली मेहनत पहले की अपेक्षा नगण्य हैइसलिए लेखन की गति बहुत ही बढ़ जाएगीसरकार को चाहिए कि विज्ञों को इस तरफ दिशा दे और सहायतार्थ उपाय करे
इससे सारी भाषाओं का ज्ञान हिंदी में भी उपलब्ध होगा और विश्व नहीं तो कम से कम देश की जनता ज्ञानार्जन के लिए हिंदी सीखना चाहेगीज्ञानार्जन का ही दूसरा चरण जीविकोपार्जन है
 हिंदी लेखन के लिए भी बहुत सी जनता को नौकरियाँ मिलेंगी - जिसके लिए लोग हिंदी सीखेंगेइस तरह बेरोजगारी की समस्या का भी काफी हद तक निदान होगायह सब तभी संभव है जब हम सब हिंदी को आगे लाने के लिए कार्यरत होंसंविधान की धारा 351 के तहत सरकार को हक है कि हिंदी को बढ़ावा देने के लिए ऐसे कार्य करेयह सही समय है बल्कि हमने कुछ देरी कर ही दी है, पर समय हाथ से निकला नहीं हैअब भी यदि हम कमर कस लें, तो कुछेक सालों में ही हिंदी बहुत ही समृद्ध भाषा हो जाएगीमेडिकल व अभियाँत्रिकी, कानून, वाणिज्य, प्रबंधन अब भी हिंदी में पढ़ाई जाती है लेकिन संपूर्ण ज्ञान हिंदी में दे नहीं पाती और मजबूरन को अंग्रेजी का सहारा लेना पड़ रहा है लोगोंपूर्ण रूपेण हिंदी में उपलब्ध होने पर कई लोग जो अंग्रेजी से वंचित हैं, वे भी प्रबंधन, अभयाँत्रिकी व मेडिसिन के क्षेत्र में प्रवेश पा सकेंगे व ज्ञान के भंडार का सदुपयोग कर पाएंगेनिश्चित ही इससे भाषा को, लोगों को और देश को भी लाभ मिलेगाजैसे आज मैं हिंदी लेखन में लगा हूँ लेकिन भाषा की पकड़ बढ़ाने के लिए महसूस करता हूँ कि हिंदी में उर्दू का टाँका लगाया जाएमुझे उर्दू लिखनी नहीं आती, उसे हिंदी लिपि में लिखना चाहता हूँलेकिन उर्दू शब्दों के सही मायने (अर्थ) जानने का जरिया चाहिए थाकई पोर्टलों पर इनकी कमी दर्शाई गई हैंअंततः खोज-खोजकर कुछ मिला। अब आगे बढ़ने की तैयारी हैऐसी सुविधाओं के लिए लोगों को समय गँवाने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए
 जब तक हमारी जनता को ज्ञान के लिए अंग्रेजी का सहारा लेना पड़ेगा या नौकरियों के लिए विदेश की तरफ देखना पड़ेगा, तब तक हिंदी तो विश्व - शार्ष पर नहीं पहुँच पाएगीइसलिए भाषा की प्रगति या कहें विकास, देश की उन्नति का एक प्रशस्त पथ है जिस पर दृढ़-निश्चय होकर हमें सफर शुरु करना है और सबको एकजुट होकर कार्य संपन्न करना-कराना है। इससे हम सबकी व्यक्तिगत व सामूहिक तरक्की होगीभाषा का विकास होगा तो ज्ञान का भंडार बढ़ेगा तो विश्व भी इस पर ध्यान देगा.
यह तो हुई आज के हालातों में भाषा के विकास की संभावनाएँअब चलिए वैज्ञानिक विकास की भी कुछ बातें कर लेंजिस तरह के भाषा अनुवादक विश्व के महासम्मेलनों में नेताओं के लिए प्रयोग किए जाते हैं, वे अभी तक मौखिक हैविकास के दौर में शायद संभव हो कि कोई भारतीय किसी जर्मन से बात कर रहा हो तो कोई जरूरी नहीं कि वह जर्मन की भाषा सीखे या जर्मन हिंदी या भारतीय भाषा सीखेविज्ञान के सहारे संभव है कि भारतीय अपनी भाषा में बात करे और सुने, जबकि जर्मन अपनी भाषा में बोल - सुन रहा होइलेक्ट्रॉनिक अनुवादक बाकी काम कर लेंगेउसी तरह यह भी सभव है कि एक भारतीय भाषा में लिखा प्रसंग, जब फ्रांस में भेजा जाए तो वह इच्छानुसार भाषा या फ्रेंच भाषा में पढ़ा जा सकेगा भारतीयचाहें तो उसे किसी भी भाषा में छापा जा सकेगाभाषा का अब संवाद से बंधन उठाया जा सकेगाजैसे अभी लीप ऑफिस पेकेज में किसी भी भारतीय भाषा में लिखा प्रसंग किसी अन्य भारतीय भाषा में बदला जा सकता है उसी तरह ऐसी वैश्विक स्तर के भी प्रोग्राम बन सकते हैंवह दिन दूर नहीं कि विश्व की किसी भी भाषा में लिखा गया प्रसंग विश्व की किसी भी दूसरी भाषा में पढ़ा या छापा जा सकेगावैसे ही वक्तव्य किसी भी भाषा के हों, उन्हें विश्व के किसी भी भाषा में सुना जा सकेगा
आज इलेक्ट्रॉननमें ऐसे गेजेट्स आ गए हैं जिसमें नोटपेड में लिखी हस्तलिपि टाईप होकर मिल जाती हैकल शायद टाईप्ड मेटर जानी पहचानी हस्तलिपि में भी मिल जाएया थोड़ा बढ़कर यों
रंगराज अयंगर
कहें कि किसी भी पहचानी हस्तलिपि में मिलने लगे
वैसे ही क्तव्यों का हस्तललपि या टाईप्ड फॉर्म ममभी संभव हो सकेगाथोड़ा फिक्शन की तरफ चलें तो लगेगा कि किसी दिन ऐसा होगा कि आप जो सोच रहे हो उसे लिखे - बोले बही इलल्ट्र्रानिकी द्वारा हस्तलिपि या टाईप्ड पाया जा सकता है
ऐसा होने पर जिस भाषा में सर्वाधिक जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी, सारा विश्व उसकी तरफ झुकेगाआज अंग्रेजी अग्रणी हैयदि हम चाहें तो कल हिंदी उसकी जगह ले सकती हैचाह होनी चाहिए और उसे कार्यान्वित करने का जज्बाबाकी सब संभव है
लेकिन कहीं न कहीं हम भूल रहे हैं कि इस सुविधापरकजिंदगी के कारण हकुछ खो भी रहे हैंजन साधारण को सुविधा का ऐसा रोग लग गया है कि मेहनत करही भूले जा रहे हैंअंजाम यह कि भोजन को पचान के लिए विशेष व्यायाम करने पड़ रहेइससे सेहत का तो सत्यानाश हो ही गया हैकिसी किसान या मजदूर को अपनी सेहत की कभी सोचनन ही नहीं पती थीअपने काम में ही
इतनी मेहनत - कसरत हो जाती थी कि पत्थर खाने पर भी हजम हो जाता था

 यह रचना माड़भूषि रंगराज अयंगर जी द्वारा लिखी गयी है . आप इंडियन ऑइल कार्पोरेशन में कार्यरत है . आप स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य में रत है . आप की विभिन्न रचनाओं का प्रकाशन पत्र -पत्रिकाओं में होता रहता है . संपर्क सूत्र - एम.आर.अयंगर. , इंडियन ऑयल कार्पोरेशन लिमिटेड,जमनीपाली, कोरबा. मों. 08462021340

COMMENTS

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  1. हिन्दी के विकास के लिए आपकी चिन्ता व सुझाव दोनों अपेक्षित हैं साधुवाद|

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  2. विज्ञान की अधिकतर सामग्री हिंदी में उपलब्ध होनी चाहिए।

    जवाब देंहटाएं
  3. मैं आपसे हमेशा ही प्रभावित रही हूं। आप ज्ञान का भंडार हैं। इतना कुछ एक साथ आप करते हैं। इस विधा से हमें भी अवगत कराएं।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेनामीमई 06, 2015 11:59 pm

    आज के समय में भी कई ऐसे शब्द सरलता से मिल जाते हैं, जो नए उपकरण आदि में प्रयोग होते हैं। उदाहरण के लिए वैबसाइट का जालस्थल, ऑपरेटिंग सिस्टम का संचालन प्रणाली, आदि। फिर भी इसका उपयोग इसलिए नहीं हो रहा है। क्योंकि यह दूसरे देशों में ही बन रहा है। इंटरनेट तो पूरी तरह से अमेरिका (मुख्य कार्यालय) में ही है। अन्य उपकरण चीन आदि देशों से ही आता है। कुछ छोटे छोटे उपकरण यहाँ भी बनते हैं, पर जब तक पूरी तरह से यहाँ सभी प्रकार के उपकरण बनाना शुरू नहीं हो पाते तब तक सही रूप से हिंदी का विज्ञान के क्षेत्र में विकास नहीं होगा।

    और बिना इसके होता भी है तो लोग उसके स्थान पर वर्तमान की तरह दूसरे शब्दों का उपयोग ही करेंगे। मुझे लगता है कि चीनी जैसे भाषा का इतना विकास केवल इसी कारण से संभव हो पाया है। क्योंकि वह सभी उपकरण में इसी भाषा का उपयोग करता है। यहाँ तक कि उसके कई जालस्थल में तो केवल चीनी भाषा ही होती है। जबकि कोई भी हिंदी जालस्थल को देखें, आपको कहीं न कहीं कोई अंग्रेज़ी शब्द तो मिल ही जाएगा।

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Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,Rimjhim Class 3,14,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,sponsored news,9,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,32,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
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हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: वैज्ञानिक युग में हिंदी का विकास
वैज्ञानिक युग में हिंदी का विकास
आज का युग विज्ञान व तकनीकी का है। जीवन का कोई क्षेत्र इससे अछूता नहीं रह पाया है। जहाँ देखिए वहाँ विज्ञान व तकनीकी विद्या की होड़ लगी है, हाहाकार मचा है। इंसान अपने जीवन में सुविधा-परक हो गया है। इससे तकनीकी माध्यम और भी मुखरित हो गए हैं। इनकी वजह से लोग छोटी उम्र में बीमार पड़ने लगे हैं। चश्में तो बहुत छोटे बच्चों को भी लगने लगे हैं।
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