तर्क के बदले हिंसा क्यों?

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आमिर खान और राजकुमार हिरानी की फिल्म 'पीके' के विरोध में गुजरात के अहमदाबाद में बजरंग दल के कथित कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया और तोड़ फोड़ भी की। शहर के सिटी गोल्ड और शिव मल्टीप्लेक्स में जहां पीके की स्क्रीनिंग हो रही थी वहां ये लोग पहुंच गए और फिल्म के निर्देशक और अभिनेता आमिर खान के खिलाफ नारेबाजी की। विरोध कर रहे लोगों का आरोप था कि फिल्म में हिंदू धर्म की भावनाओं को 'ठेस' पहुंचाई गई है। इसी तरह भोपाल औरर जम्मुकश्मीर में भी जमकर प्रदर्शन हुआ और उत्तरप्रदेश में तो फिल्म पर पाबंदी लगाने की मांग की जा रही है।

 तर्क के बदले हिंसा क्यों?
साभार - financialexpress.com
आमिर खान और राजकुमार हिरानी की फिल्म 'पीके' के विरोध में गुजरात के अहमदाबाद में बजरंग दल के कथित कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया और तोड़ फोड़ भी कीशहर के सिटी गोल्ड और शिव मल्टीप्लेक्स में जहां पीके की स्क्रीनिंग हो रही थी वहां ये लोग पहुंच गए और फिल्म के निर्देशक और अभिनेता आमिर खान के खिलाफ नारेबाजी कीविरोध कर रहे लोगों का आरोप था कि फिल्म में हिंदू धर्म की भावनाओं को 'ठेस' पहुंचाई गई हैइसी तरह भोपाल औरर जम्मुकश्मीर में भी जमकर प्रदर्शन हुआ और उत्तरप्रदेश में तो फिल्म पर पाबंदी लगाने की मांग की जा रही है                            
                              क्यों विवादों में पीके
क्योंकि यह फिल्म ऐसे देश में लोगों की सामाजिक चेतना पर सवाल उठाती है जहां धर्म की जड़ें बेहद गहरी हैंइसमें आमिर खान एक एलियन (दूसरे ग्रह का प्राणी) बने हैं जो धरती पर आता है और यहां उसका, 'रिमोट कंट्रोल'- एक ऐसा उपकरण जिसके बिना वह अपने ग्रह पर वापस नहीं जा जाता है सकता- चोरी हो। काफी मेहनत के बाद उसे पता चलता है कि लोगों का मानना है कि भगवान ही रिमोट ढूंढने में उसकी मदद कर सकते हैं
वह दूर-दराज के मंदिरों, मस्जिदों और चर्चों में जाता हैलेकिन उसे पता चलता है कि स्वयं गुरु या 'बाबा' लोगों को धोखा देने के लिए अंधविश्वास और 'ढोंग' का सहारा लेते हैं उनके पास पीके ती रिमोट है'पीके' ऐसी पहली फिल्म नहीं है जो भारत की धार्मिक आस्थाओं को आलोचना की दृष्टि से देखती है लेकिन फिर इसका इतना विरोध इसीलिए हो रहा है कि इसकी कहानी सीधी-सादी है। यह धर्म के अस्तित्व को लेकर कोई निष्कर्ष नहीं देती बल्कि सीधे अंधविश्वासों पर सवाल उठाती है

हिन्दू संगठनों ने फिल्म पर कथित रूप से धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए प्रतिबंध लगाने की मांग कीहैइस फिल्म पर बाबा रामदेव ने भी आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा कि हर बार हिन्दू धर्म ही निशाने पर होता हैकिसी की हिम्मत नहीं होती कि वे मुस्लिम धर्म के बारे में कुछ कहेंउन्होंने कहा कि जब बात ईसाई धर्म या इस्लाम की हो तो लोग कुछ भी कहने से पहले सौ बार सोचते हैं लेकिन जब बात हिन्दू धर्म की आती है तो लोग बिना कुछ सोचे समझे कुछ भी कहते हैं या बोलते हैंहिन्दू महासभा के स्वामी चक्रपाणि ने आरोप लगाया कि फिल्म में गौ माता और भगवान शिव जैसे देवी-देवताओं को जिस तरह दिखाया गया है वह सनातन धर्म का आपमान है। फिल्म ऐसे समय में रिलीज हुई है जब धर्मपरिवर्तन जैसे मुद्दों पर संसद में बहस हो रही है और कई धमर्गुरु दुष्कर्म और हत्या के आरोप में गिरफ़्तार हुए हैं लेकिन यहां सवाल यह है कि महज एक फिल्म पर इतना विवाद, आगजनी और तोड़फोड़ क्यों? मैंने भी फिल्म पीके देखी हैभले ही इस फिल्म में ऐसी कुछ बातें हैं जिन्हें देखते ही धर्म के रक्षकों को चोट लग सकती है और लगी भीमेरी मंशा फिल्म की वकालत करना नहीं लेकिन विरोध करने वालों ने फिल्म का अंतिम दृश्य नहीं देखा जिसमें पीके कहता है कि 'वह भगवान के अस्तित्व से इंकार नहीं कर रहा है। वह भी जानता है कि भगवान ने उसे बनाया है लेकिन धर्म की आड़ में 'बनाये गए धर्माडंबरों से उसे
इतिश्री सिंह
ऐतराज है। ऐसा क्यों अक्सर होता कि जब हम समाज के ठेकेदारों द्वारा थोपे गए नियमों का पालन न कर अपनी कुछ अनोखी खोज करने निकलते हैं, अलग सोचते हैं तो हमारा विरोध किया जाता हैक्यों यह समाज विवादों पर चर्चा के बदले आगजनी पर उतारू हैक्यों ऐसा होता है कि यहां तर्क के बदले तोड़फोड़ को प्राथमिकता दी जाती हैयह सिर्फ फिल्मों के क्षेत्र में नहीं होता बल्कि लेखक भी इसके शिकार होते आ रहे हैंक्यों अगर ऐसा विषय लिखा जाता है या दिखाया जाता है जो लीक से हटकर है तो लिखने या दिखाने का साहस करने वालों को सजा सुना दी जाती हैइसका मतलब यह है कि विवादित चीजों में कुछ न कुछ तो सच्चाई होती है जो समाज के ठेकेदारों को अखरती हैअगर जन समूह को ऐसा लगता है कि कोई चीज विवादित है तो उस पर तर्क करने की वजाय हिंसा फैलाना क्यों पसंद करते हैं हम?


 यह लेख इतिश्री सिंह राठौर जी द्वारा लिखी गयी है . वर्तमान में आप हिंदी दैनिक नवभारत के साथ जुड़ी हुई हैं. दैनिक हिंदी देशबंधु के लिए कईं लेख लिखे , इसके अलावा इतिश्री जी ने 50 भारतीय प्रख्यात व्यंग्य चित्रकर के तहत 50 कार्टूनिस्टों जीवनी पर लिखे लेखों का अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद किया. इतिश्री अमीर खुसरों तथा मंटों की रचनाओं के काफी प्रभावित हैं.

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