स्मृतियों के कैनवास पर सहज नहीं होता जब केवल मधुरता को सहेजना तब बिछा देती हूँ उसे मैं किसी उपवन की नर्म , गदराई दूर्वा पर और ड...
स्मृतियों के कैनवास पर
सहज नहीं होता जब
केवल
मधुरता को सहेजना
तब बिछा देती हूँ उसे मैं
किसी उपवन की
नर्म, गदराई दूर्वा पर
और डूब जाती हूँ
अपने एकांत में
कहीं से
मधुर बातों की तितली
अपने झीने पंखों पर फैले
चटक रंग फैला जाती है
धूप अपने ताप से
भर देती है चमक
गीली मिट्टी की गंध
बना देती है नन्हें तलैया
और भंवरा छेड़ जाता है
इस बीच कोई
मीठा संगीत ...
निकलती हूँ जब
इस निराली अनुगूंज से
बाहर
तब देखती हूँ
नवीन पल्लव से लदे
दरख्तों,
खिलते फूलों,
कजरारे बादलों
और अल्हड़ लहरों को
तब चमकने लगते हैं
अनगिनत तारे
आँखों में
और बन जाता हैं
एक सुंदर चित्र
स्मृतियों में
बिलकुल
मेरी कविता की तरह ....
केवल
मधुरता को सहेजना
तब बिछा देती हूँ उसे मैं
किसी उपवन की
नर्म, गदराई दूर्वा पर
और डूब जाती हूँ
अपने एकांत में
कहीं से
मधुर बातों की तितली
अपने झीने पंखों पर फैले
चटक रंग फैला जाती है
धूप अपने ताप से
भर देती है चमक
गीली मिट्टी की गंध
बना देती है नन्हें तलैया
और भंवरा छेड़ जाता है
इस बीच कोई
मीठा संगीत ...
निकलती हूँ जब
इस निराली अनुगूंज से
बाहर
तब देखती हूँ
![]() |
स्वर्णलता ठन्ना |
दरख्तों,
खिलते फूलों,
कजरारे बादलों
और अल्हड़ लहरों को
तब चमकने लगते हैं
अनगिनत तारे
आँखों में
और बन जाता हैं
एक सुंदर चित्र
स्मृतियों में
बिलकुल
मेरी कविता की तरह ....
यह रचना स्वर्णलता ठन्ना जी द्वारा रचित है.आप‘समकालीन प्रवासी साहित्य और स्नेह ठाकुर’ विषय पर शोध अध्येता,हिंदी अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से है.आपकी प्रथम काव्य संकलन ‘स्वर्ण-सीपियाँ’ प्रकाशित, वेब पत्रिका अनुभूति, स्वर्गविभा, साहित्य कुंज, साहित्य रागिनी, अपनी माटी ,अक्षरवार्ता सहित अनेक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ एवं लेख प्रकाशित हो चुके है . संपर्क - 84, गुलमोहर कालोनी, गीता मंदिर के पीछे, रतलाम म.प्र. 457001 ।ई-मेल - swrnlata@yahoo.in
स्मृति पटल पर तरोताजा अहसास भरने वाली कविता,,,
जवाब देंहटाएंस्मृति पटल पर तरोताजा अहसास भरने वाली कविता,,,
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