महेन्द्रभटनागर कवि महेन्द्रभटनागर ने तीन पीढि़यों से प्रभावित होकर काव्य - रचनाएँ की हैं ; स्वच्छन्दतावादी प्रवृत्तियों ...
महेन्द्रभटनागर |
कवि महेन्द्रभटनागर ने तीन पीढि़यों से प्रभावित होकर काव्य-रचनाएँ की हैं; स्वच्छन्दतावादी प्रवृत्तियों से लेकर प्रगतिवादी और प्रयोगवादी स्तर तक की कविताएँ हमें उनके काव्य में उपलब्ध होती हैं। डा. महेन्द्रभटनागर युग और समय की प्रवृत्तियों से प्रभावित होकर भी अपनी रचना-सामथ्र्य की छाप अलग से छोड़ते हैं। महेन्द्रभटनागर सही माने में भावना और संवेदना के कवि कहे जा सकते हैं। वे आस्था, आशा और भविष्य-प्रतीक्षा के कवि हैं। उनकी कविता में आस्था का सशक्त स्वर इसलिए मुखर हुआ है कि वे हिम्मत और साहस के सम्बल को सदैव साथ लेकर चलने वाले रचनाकार हैं। वे आत्म-विश्वास और चुनौती के कवि के रूप में हमारे सामने आते हैं। भविष्याग्रह, आगत के प्रति अगाध विश्वास महेन्द्रभटनागर के काव्य में उपलब्ध होता है। हम इसे मानववादी प्रवृत्ति कह सकते हैं। महेन्द्रभटनागर को मानव के श्रम पर पूर्ण विश्वास है। वे 'सूखे बिरवे को पानी देने वाले कवि' हैं। वे सच्चे अर्थ में जिजीविषा के कवि हैं। विघटन और विध्वंस की अपेक्षा कवि की दृष्टि निर्माणोन्मुखी अधिक है। महेन्द्रभटनागर भविष्य-यथार्थ के कवि कहे जा सकते हैं। इस अर्थ में हम महेन्द्रभटनागर को एक 'विज़नरी पोयट' कह सकते हैं। महेन्द्रभटनागर का मानववाद निषेधात्मक मनोवृत्ति पर आधृत न होकर विधेयात्मक है। उनकी कविता में 'अहं' का स्वर प्रबल नहीं है। वरन् वे तो सामूहिक संचेतना के, समवाय के दायित्वों के कवि हैं। अपने साथ सामूहिक शक्ति का अहसास ही उन्हें आस्थावादी और आशावादी बना देता है। महेन्द्रभटनागर के काव्य की दूसरी विशेषता है रोमानी मनस्थितियों का चित्रण। इस प्रकार की कविताओं में कहीं तो कवि अपनी प्रेयसी से नेह-कण माँगता हुआ सुनाई पड़ता है, कहीं रूप-यौवन की प्यास को प्रकाशित करता है और कहीं-कहीं जीवन की क्षण-भंगुरता का तर्क देकर भोगवाद और वासना-संतृप्ति का हिमायती बन जाता है। महेन्द्रभटनागर ने जीवन में सौन्दर्य और आनन्द-क्षणों को क्षणभंगुर माना है और इसी आधार पर उन्होंने वासनाओं की संतृप्ति की हिमायत की है। महेन्द्रभटनागर 'ट्रेजडी ऑफ़ लाइफ़' के कवि हैं। शायद इसलिए उनकी कविताओं में वेदनानुभूति इतने सशक्त रूप में अभिव्यक्ति पा सकी है। वे वेदना की स्वीकृति के कवि भी कहे जा सकते हैं। उनकी कविताओं में वेदना के प्रकाशन का आधार निराशा है। वे वेदना को एक उपलब्धि के रूप में स्वीकार करते हैं। उन्होंने वर्ग-वैषम्य, आर्थिक वैषम्य और सामाजिक वैषम्य से पीडि़त होकर भी कविताएँ लिखी हैं। उनकी दृष्टि हमेशा स्वस्थ और नव आदर्शमय अनागत की तरफ़ रही है। महेन्द्रभटनागर शान्ति के प्रसारक कवि हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में युद्ध-विराधी स्वर मुखरित किया है। वे भारत को सबसे बड़ा मानवतावादी देश समझते हैं। वे शान्ति के झण्डे को झुकाना पसंद नहीं करते। न वे मानवता का रक्त व्यर्थ ही बहाने के समर्थक तथाकथित क्रान्तिकारी कवि हैं। महेन्द्रभटनागर जानते हैं कि आज के युग में संस्कृति और मानवता को विघटित होने से, विध्वस्त होने से बचाया जा सकता है तो केवल युद्ध-विरोध के आधार पर ही। महेन्द्रभटनागर शान्ति के प्रसारक और युद्ध-विरोधी कवि है। देशीय और अंतर्देशीय दायित्वों के प्रति महेन्द्रभटनागर का कवि सदैव जागरूक रहता है। न तो रीतिकालीन कवियों की भाँति महेन्द्रभटनागर ने नारी को सिर्फ़ भोग्या माना है, न द्विवेदीयुगीन रचनाकारों की भाँति उसे सिर्फ़ आदर्श के धरातल पर ही प्रतिष्ठित किया है और न ही साठोत्तरी कविता के प्रतिनिधि रचनाकारों की तरह नारी के शारीरिक अवयवों को ही कविता का वर्ण्य-विषय माना है। महेन्द्रभटनागर नारी को पुरुष की पूरक शक्ति मानते हैं। कला के प्रति महेन्द्रभटनागर का बहुत ही स्वस्थ दृष्टिकोण है। महेन्द्रभटनागर खण्डित बिम्बों के नहीं, बल्कि जीवन्त बिम्बों के कवि हैं। बिम्बों के अतिरिक्त महेन्द्रभटनागर रूपक के सफल कवि हैं। महेन्द्रभटनागर की काव्य-भाषा सिर्फ़ उनकी न होकर हमारी है, सब पाठकों की है, जनता की है। महेन्द्रभटनागर सच्चे माने में जनवादी कवि हैं। जन-भावनाओं का इज़हार उन्होंने जन-भाषा में किया है।
-- डॉ॰ शम्भूनाथ चतुर्वेदी
[हिन्दी-विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय]
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