बाल मजदूरी एक अभिशाप

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हमारे देश में अक्सर बाल मजदूरी के खिलाफ आवाज उठाया जाता है । ' अभी करनी है हमको पढ़ाई , मत करवाओ हमसे कमाई ' जैसे नारे लगाए जाते...

हमारे देश में अक्सर बाल मजदूरी के खिलाफ आवाज उठाया जाता है'अभी करनी है हमको पढ़ाई, मत करवाओ हमसे कमाई' जैसे नारे लगाए जाते हैंसरकार भी इसे रोकने के लिए नए-नए कदम उठा रही है। बावजूद इसके देश में बाल मजदूरों की संख्या बढ़ती जा रही हैलोग विकासशील देशों में हजारों बच्चे बहुत छोटी अवस्था से ही काम करना आरंभ कर देते हैंकभी-कभी उन्हें उनके मौलिक अधिकारों से वंचित कर जबरन भी कार्य में लगा दिया जाता है। आंकड़े बताते हैं कि दुनिया में सबसे अधिक बाल श्रमिक भारत में ही हैंसंभवत: देश में कोई भी ऐसा व्यवसाय नहीं है जिसमें बाल श्रमिकों को न लगाया जाता होपरिणामस्वरूप बच्चे अपने स्वतंत्रा एवं अधिकार से वंचित रह जाते हैं खुशहाल बचपन केकई बच्चे अपने माता-पिता के साथ बिना मजदूरी के भी कार्य करते हैं, जिनका आंकड़ा भी उपलब्ध नहीं हैकुटीर उद्योगों में बच्चों की एक बड़ी संख्या कार्य कर रही है, जैसे- कालीन उद्योग, माचिस बनाना, बीड़ी, पीतल, हीरा, कांच, जरी और सिल्क उत्पादन, हथकरघा, कढ़ाई का कार्य, चमड़ा उद्योग, प्लास्टिक उत्पादन, चूड़ी बनाना, खेल के सामान बनाना तथा पटाखा फैक्ट्री या ईंट के भट्टों जैसे खतरनाक स्थानों परइस प्रकार शिक्षा, भोजन, पानी और घर के अभाव के साथ-साथ कार्यस्थल पर उनका भावनात्मक एवं यौन उत्पीड़न भी होता है, जिसके कारण उनका बचपन पूरी तरह बर्बाद हो जाता है और वयस्क होने पर इन बच्चों को खराब स्वास्थ्य और हीन भावना विरासत में मिलती हैइनमें से अधिकतर कार्य उनके स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं जिससे वे किसी न किसी रोग की चपेट में आ जाते हैं तथा आजीवन इसका परिणाम भुगतने जाते हैं पर विवश हो
बालश्रम का व्यापक विस्तार भारत के अनियमित क्षेत्रों की पहचान बन चुका हैभारत में काम करने वाले अंतरराष्ट्रीय श्रम संघटन के एक आकलन के अनुसार यहां कम से कम 9 करोड़ बाल श्रमिक हैं, हालांकि कुछ गैर-सरकारी संस्थाएं बाल श्रमिकों की संख्या इससे अधिक बता रही हैं। इनके अनुसार बच्चे कृषि, पशुपालन, बागवानी और घरेलू कामों घरों में छिप कर कार्य करना में लगे हुए हैंउल्लेखनीय है कि ये सभी कार्य सरकारी श्रम निरीक्षकों और मीडिया की जांच की पहुंच से दूर होते हैं तथा इन सभी कार्यों के लिए बच्चों को न्यूनतम वेतन दिया जाता हैबालश्रम की परिभाषा बालश्रम का अर्थ उस कार्य से है, जिसमें कार्य करने वाला व्यक्ति कानून द्वारा निर्धारित आयु सीमा से कम होता हैइस प्रथा को कई देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने शोषित करने वाला माना हैयूनिसेफ बालश्रम को अलग तरह से परिभाषित करता है, उसके अनुसार एक बच्चा जो बालश्रम गतिविधियों में लिप्त है, यदि उसकी आयु 5 वर्ष से 11 वर्ष के बीच है तथा वह एक घंटा आर्थिक गतिविधियों या एक सप्ताह में 28 घंटे घरेलू कार्य करता है, अथवा 12 से 14 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों में यदि वह कम से कम 14 घंटे आर्थिक गतिविधियों में या एक सप्ताह में कम से कम 42 घंटे आर्थिक गतिविधियों में लिप्त रहता है तो उसे बाल मजदूर कहा जाएगाचैंकाने वाला तथ्य यह है कि भारत के कुल कार्यबल का 11 प्रतिशत बच्चे हैं, तथा प्रत्येक 10 श्रमिकों पर एक बच्चा हैमें भारत सरकार ने गुरुपाद्स्वामी कमेटी गठित की थी 1979 वर्ष इस मुद्दे की समीक्षा के लिएकमेटी ने कहा कि समाज में जब तक ग़्ारीबी है, बालश्रम का पूर्ण रूप से उच्छेद कठिन हैइस संदर्भ में कमेटी ने सिफारिश प्रस्तुत की कि खतरनाक कार्यों में बालश्रम पर रोक लगाई जाएयूनिसेफ के अनुसार 14 वर्ष तक सबसे अधिक बाल श्रमिक भारत में हैंआइएलओ की रिपोर्ट के अनुसार 60 प्रतिशत बच्चे कृषि कार्यों में लिप्त हैं
इतिश्री सिंह
भारत समेत लगभग सभी विकासशील देश और यहां तक कि विकसित देशों में भी बाल श्रम व्यापक रूप में देखने को मिल जाएगाचाय वाले की दुकान हो या कोई होटल, छोटे-छोटे कई जोड़ी हाथ काम करते हुए मिल जाएंगे, जिनकी मासूम आंखें यही प्रश्न पूछती नजर आती है कि उनका बचपन कहां खो गया है? उनमें और दूसरे बच्चों में क्या अंतर है, जो समाज उन्हें अलग रूप में परिभाषित करता हैभारत में तो बाल श्रमिकों का एक बड़ा हिस्सा खतरनाक कार्यों में भी लिप्त हैइन बच्चों को कुछ पैसा देकर इनके मालिक इनसे जरूरत से ज्यादा कार्य करवाते हैंकम पैसे में ये बच्चे अधिक कार्य करते हैं तथा अन्याय के खिलाफ आवाज भी नहीं उठाते यही कारण है कि इन कारखानों के मालिक बच्चों के शोषण का कोई भी अवसर नहीं गंवातेइसी कारण बाल श्रम निषेध व विनिमयन कानून जो यह कहता है कि 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को वे कार्य जो उनके जीवन और स्वास्थ्य के लिए अहितकर हों न दिए जाएं, कागज पर ही प्रभावी दिखाई देता हैइस कानून कि सार्थकता तभी पूर्ण होगी जब कारखानों, ईंट केभट्टों पर तथा घरेलू नौकर के रूप में बंधुआ मजदूर बने बच्चों को विषम परिस्थितियों से निकाल कर उन्हें एक सहज व स्वस्थ बचपन लौटाया जा सकेआप किसी होटल खाना जाएं या चाये की दुकान पर चाये पीने जाए, तभी अगर कोई छोटू आपको भोजन परोसे या चाय दे तब विरोध की प्रबल आवाजें उठेगी, उन्हें मुक्त करने का प्रयास होगा, तभी बाल मजदूर मुक्त भारत का सपना तभी साकार हो पाएगा

यह लेख इतिश्री सिंह राठौर जी द्वारा लिखी गयी है . वर्तमान में आप हिंदी दैनिक नवभारत के साथ जुड़ी हुई हैं. दैनिक हिंदी देशबंधु के लिए कईं लेख लिखे , इसके अलावा इतिश्री जी ने 50 भारतीय प्रख्यात व्यंग्य चित्रकर के तहत 50 कार्टूनिस्टों जीवनी पर लिखे लेखों का अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद किया. इतिश्री अमीर खुसरों तथा मंटों की रचनाओं के काफी प्रभावित हैं.

COMMENTS

Leave a Reply: 2
  1. एक ज्वलंत समस्या को प्रभावी तरीके से उठाया गया है

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  2. अपनी टिप्पणी लिखें...it's gud to know more about child labour . you done it well

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