वरदान (अध्याय ५) - प्रेमचंद के उपन्यास

SHARE:

शिष्ट-जीवन के दृश्य दिन जाते देर नहीं लगती। दो वर्ष व्यतीत हो गये। पण्डित मोटेराम नित्य प्रात : काल आत और ...

शिष्ट-जीवन के दृश्य

दिन जाते देर नहीं लगती। दो वर्ष व्यतीत हो गये। पण्डित मोटेराम नित्य प्रात: काल आतऔर सिद्वान्त-कोमुदी पढ़ाते , परन्तु अब उनका आना केवल नियम पालने के हेतु ही था, क्योकि इस पुस्तक के पढ़न में अब विरजन का जी न लगता था। एक दिन मुंशी जी इंजीनियर के दफतर से आये। कमरे में बैठे थे। नौकर जूते का फीता खोल रहा था कि रधिया महर मुस्कराती हुई घर में से निकली और उनके हाथ में मुह छाप लगा हुआ लिफाफा रख, मुंह फेर हंसने लगी। सिरना पर लिखा हुआ था-श्रीमान बाबा साह की सेवा में प्राप्त हो।

मुंशी-अरे, तू किसका लिफाफा ले आयी ? यह मेरा नहीं है।

महरी- सरकार ही का तो है, खोले तो आप।

मुंशी-किसने हुई बोली- आप खालेंगे तो पता चल जायेगा।

मुंशी जी ने विस्मित होकर लिफाफा खोला। उसमें से जो पञ-निकला उसमें यह लिखा हुआ था-

बाबा को विरजन प्रमाण और पालागन पहुंचे। यहां आपकी कृपा से कुशल-मंगल है आपका कुशल श्रीविश्वनाथजी से सदा मनाया करती हूं। मैंने प्रताप से भाषा सीख ली। वे स्कूल से आकर संध्या को मुझे नित्यपढ़ाते हैं। अब आप हमारे लिए अच्छी-अच्छी पुस्तकें लाइए , क्योंकि पढ़ना ही जी का सुख है और विद्या अमूल्य वस्तु है। वेद-पुराण में इसका महात्मय लिखा है। मनुषय को चाहिए कि विद्या-धन तन-मन से एकञ करे। विद्या से सब दुख हो जाते हैं। मैंने कल बैताल-पचीस की कहानी चाची को सुनायी थी। उन्होंने मुझे एक सुन्दर गुड़िया पुरस्कार में दी है। बहुत अच्छी है। मैं उसका विवाह करुंगी, तब आपसे रुपये लूंगी। मैं अब पण्डितजी से न पढूंगी। मां नहीं जानती कि मैं भाषा पढ़ती हूं।

आपकी प्यारी
विरजन

प्रशस्ति देखते ही मुंशी जी के अन्त: करण में गुदगुद होने लगी।फिर तो उन्होंने एक ही सांस में भारी चिट्रठी पढ़ डाली। मारे आनन्द के हंसते हुए नंगे-पांव भीतर दौड़े। प्रताप को गोद में उठा लिया और फिर दोनों बच्चों का हाथ पकड़े हुए सुशीला के पास गये। उसे चिट्रठी दिखाकर कहा-बूझो किसी चिट्ठी है?

सुशीला-लाओ, हाथ में दो, देखूं।

मुंशी जी-नहीं, वहीं से बैठी-बैठी बताओ जल्दी।

सुशीला-बूझ् जाऊं तो क्या दोगे?

मुंशी जी-पचास रुपये, दूध के धोये हुए।

सुशीला- पहिले रुपये निकालकर रख दो, नहीं तो मुकर जाओगे।

मुंशी जी- मुकरने वाले को कुछ कहता हूं, अभी रुपये लो। ऐसा कोई टुटपुँजिया समझ लिया है?

यह कहकर दस रुपये का एक नोट जेसे निकालकर दिखाया।

सुशीला- कितने का नोट है?

मुंशीजी- पचास रुपये का, हाथ से लेकर देख लो।

सुशीला- ले लूंगी, कहे देती हूं।

मुंशीजी- हां-हां, ले लेना, पहले बता तो सही।

सुशीला- लल्लू का है लाइये नोट, अब मैं न मानूंगी। यह कहकर उठी और मुंशीजी का हाथ थाम लिया।

मुंशीजी- ऐसा क्या डकैती है? नोट छीने लेती हो।

सुशीला- वचन नहीं दिया था? अभी से विचलने लगे।

मुंशीजी- तुमने बूझा भी, सर्वथा भ्रम में पड़ गयीं।

सुशीला- चलो-चलो, बहाना करते हो, नोट हड़पने की इच्छा है। क्यों लल्लू, तुम्हारी ही चिट्ठी है न?

प्रताप नीची दृष्टि से मुंशीजी की ओर देखकर धीरे-से बोला-मैंने कहां लिखी?

मुंशीजी- लजाओ, लजाओ।

सुशीला- वह झूठ बोलता है। उसी की चिट्ठी है, तुम लोग गँठकर आये हो।

प्रताप-मेरी चिट्ठी नहीं है, सच। विरजन ने लिखी है।

सुशीला चकित होकर बोली- विजरन की? फिर उसने दौड़कर पति के हाथ से चिट्ठी छीन ली और भौंचक्की होकर उसे देखने लगी, परन्तु अब भी विश्वास आया।विरजन से पूछा- क्यें बेटी, यह तुम्हारी लिखी है?

विरजन ने सिर झुकाकर कहा-हां।

यह सुनते ही माता ने उसे कंठ से लगा लिया।

अब आज से विरजन की यह दशा हो गयी कि जब देखिए लेखनी लिए हुए पन्ने काले कर रही है। घर के धन्धों सेतो उस पहले ही कुछ प्रयोज था , लिखने का आना सोने में सोहागा हो गया। माता उसकी तल्लीनता देख-देखकर प्रमुदित होती पिता हर्ष से फूला न समाता, नित्य नवीन पुस्तकें लाता कि विरजन सयानी होगी, तो पढ़ेगी। यदि कभी वह अपने पांव धो लेती, या भोजन करके अपने ही हाथ धोने लगती तो माता महरियों पर बहुत कुद्र होती-आंखें फूट गयी है। चर्बी छा गई है। वह अपने हाथ से पानी उंड़ेल रही है और तुम खड़ी मुंह ताकती हो।

इसी प्रकार काल बीतता चला गया, विरजन का बारहवां वर्ष पूर्ण हुआ, परन्तु अभी तक उसे चावल उबालना तक न आता था। चूल्हे के सामने बैठन का कभी अवसर ही न आया। सुवामा ने एक दिन उसकी माता ने कहा- बहिन विरजन सयानी हुई, क्या कुछ गुन-ढंग सिखाओगी।

सुशीला-क्या कहूं, जी तो चाहता है कि लग्गा लगाऊं परन्तु कुछ सोचकर रुक जाती हूं।

सुवामा-क्या सोचकर रुक जाती हो ?

सुशीला-कुछ नहीं आलस आ जाता है।

सुवामा-तो यह काम मुझे सौंप दो। भोजन बनाना स्त्रियों के लिए सबसे आवश्यक बात है।

सुशीला-अभी चूल्हे के सामन उससे बैठा न जायेगा।

सुवामा-काम करने से ही आता है।

सुशीला-(झेंपते हुए) फूल-से गाल कुम्हला जायेंगे।

सुवामा- (हंसकर) बिना फूल के मुरझाये कहीं फल लगते हैं?

दूसरे दिन से विरजन भोजन बनाने लगी। पहले दस-पांच दिन उसे चूल्हे के सामने बैठने में बड़ा कष्ट हुआ। आग जलती , फूंकने लगती तो नेञों से जल बहता। वे बूटी की भांति लाल हो जाते। चिनगारियों से कई रेशमी साड़ियां सत्यानाथ हो गयीं। हाथों में छाले पड़ गये। परन्तु क्रमश: सारे क्लेश दूर हो गये। सुवामा ऐसी सुशीला स्ञी थी कि कभी रुष्ट न होती, प्रतिदिन उसे पुचकारकर काम में लगाय रहती।

अभी विरजन को भोजन बनाते दो मास से अधिक हुए होंगे कि एक दिन उसने प्रताप से कहा- लल्लू,मुझे भोजन बनाना आ गया।

प्रताप-सच।

विरजन-कल चाची ने मेरा बनाया भोजन किया था। बहुत प्रसन्न हुए।

प्रताप-तो भई, एक दिन मुझे भी नेवता दो।

विरजन ने प्रसन्न होकर कहा-अच्छा,कल।

दूसरे दिन नौ बजे विरजन ने प्रताप को भोजन करने के लिए बुलाया। उसने जाकर देखा तो चौका लगा हुआ है।नवीन मिट्टी की मीटी-मीठी सुगन्ध आ रही है। आसन स्वच्छता से बिछा हुआ है। एक थाली में चावल और चपातियाँ हैं। दाल और तरकारियॉँ अलग-अलग कटोरियों में रखी हुई हैं। लोटा और गिलास पानी से भरे हुए रखे हैं। यह स्वच्छता और ढंग देखकर प्रताप सीधा मुंशी संजीवनलाल के पास गया और उन्हें लाकर चौके के सामने खड़ा कर दिया। मुंशीजी खुशी से उछल पड़े। चट कपड़े उतार, हाथ-पैर धो प्रताप के साथ चौके में जा बैठे। बेचारी विरजन क्या जानती थी कि महाशय भी बिना बुलाये पाहुने हो जायेंगे। उसने केवल प्रताप के लिए भोजन बनाया था। वह उस दिन बहुत लजायी और दबी ऑंखों से माता की ओर देखने लगी। सुशीला ताड़ गयी। मुस्कराकर मुंशीजी से बोली-तुम्हारे लिए अलग भोजन बना है। लड़कों के बीच में क्या जाके कूद पड़े?

वृजरानी ने लजाते हुए दो थालियों में थोड़ा-थोड़ा भोजन परोसा।

मुंशीजी-विरजन ने चपातियाँ अच्छी बनायी हैं। नर्म, श्वेत और मीठी।

प्रताप-मैंने ऐसी चपातियॉँ कभी नहीं खायीं। सालन बहुत स्वादिष्ट है।

विरजन ! चाचा को शोरवेदार आलू दो,’ यह कहकर प्रताप हँसने लगा। विरजन ने लजाकर सिर नीचे कर लिया। पतीली शुष्क हो रही थी।

सुशीली-(पति से) अब उठोगे भी, सारी रसोई चट कर गये, तो भी अड़े बैठे हो!

मुंशीजी-क्या तुम्हारी राल टपक रही है?

निदान दोनों रसोई की इतिश्री करके उठे। मुंशीजी ने उसी समय एक मोहर निकालकर विरजन को पुरस्कार में दी।

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका