मुर्गाबियों के शिकारी - असगर वजाहत की कहानी

SHARE:

अधेड़ उम्र लोगों को आसानी से किसी बात पर हैरत नहीं होती। जीवन की पैंतालीस बहारें या पतझड़ इतने खट्टे-मीठे अनुभवों से उसका दामन भर देती हैं...


अधेड़ उम्र लोगों को आसानी से किसी बात पर हैरत नहीं होती। जीवन की पैंतालीस बहारें या पतझड़ इतने खट्टे-मीठे अनुभवों से उसका दामन भर देती हैं कि अच्छा और बुरा, सुंदर और कुरूप, त्याग और स्वार्थ वगैरा वगैरा के छोर और अतियां देखने के बाद अधेड़ उम्र आदमी बहुत कुछ पचा लेता है।

डॉ. रामबाबू सक्सेना यानी आर के सक्सेना पचास के होने वाले हैं। दिल्ली कॉलिज से रिटायरमेंट में अभी साल बचे हैं। डॉ. आर.के. सक्सेना को आज हैरत हो रही है। उन्हें लगता है, ऐसा तो उन्होंने सोचा भी न था! यह होगा, इसका अंश बराबर अनुमान भी न था और इस तरह अनजान पकड़े जाने पर अपमान का जो बोध होता है, वह भी डॉ. सक्सेना को हो रहा है। सामने क्लास में बैठे अध्यापक उनकी बातों पर हंस रहे हैं। चलिए छात्र हंस देते तो डॉ. सक्सेना सब्र कर लेते कि चलो नहीं जानते, इसलिए हंस रहे हैं। लेकिन ये स्कूल के अध्यापक, जिन्होंने कम से कम बी.ए. और उसके बाद बी.एड जरूर किया है, हंस रहे हैं तो डूब मरने की बात है।

किस्सा कुछ यों है कि डॉ. सक्सेना के पास सुबह-सुबह डॉ. पी.सी. पाण्डेय का फोन आया कि अगर आज कुछ विशेष न कर रहे हों तो स्कूल के अध्यापकों के ट्रेनिंग प्रोग्राम में आकर दो-ढाई घंटे का भाषण दे दें कि बच्चों को हिंदी कैसे पढ़ाई जानी चाहिए। जिस तरह कहा गया था उससे जाहिर था कि कुछ मिलेगा। डॉ. पांडेय ने अधकि स्पष्ट कर दिया, डॉक्टर साहब आप निश्चिंत रहो जैसा कि आप कहते हो मुर्गाबियों का शिकार है. . .हमने पूरी व्यवस्था करा रखी है। जाल-वाल लगवा दिये हैं। हांक-वाका लगवा दिया है. . .मचान-वचान बनवा दी है, अब आपकी कसर है कि आ जाओ और सोलह बोर की लिबलिबी दवा दो। डॉक्टर पांडेय ने विस्तार से बताया।

उम्र में कम होते हुए भी पांडेय और डॉ. सक्सेना में अंतरंगता है। मुर्गाबियों यानी पानी पर उतरने वाली चिड़ियों का शिकार डॉ. सक्सेना की ईजाद है। बचपन में चालीस-पैंतालीस साल पहले अपनी ननिहाल मिर्जापुर में अपने नाना दीवान रामबाबू राय के साथ मुर्गाबियों के शिकार पर जाया करते थे। मुर्गाबियों के शिकार पर जाने वालों की भीड़ लगी रहती थी, क्योंकि शिकार का मतलब था मुर्गाबियों में मुफ़्त का हिस्सा नौकरी करने के बाद इधर-उधर सेमीनारों, कार्यशालाओं, संगोष्ठियों वगैरा में जो मिल जाता है उसके लिए पता नहीं कैसे डॉ. सक्सेना ने मन में मुर्गाबियों के शिकार का बिंब बना लिया था। यह बात डॉ. सक्सेना के निकटतम लोग जानते हैं कि वे 'उपरी` नहीं 'भीतरी` आमदनी को मुर्गाबियों का शिकार कहते हैं।

हां वो तो है. . .अच्छा है लेकिन डॉ. पांडेय, ये बताओ कि आयोजन क्या है? हरियाणा के रहने वाले डॉ. शर्मा विस्तार से बात करते हैं, 'अजी डॉ. साहेब क्या बतावें. . .ये वर्ल्ड बैंक का प्रोजेक्ट है जी. . .एक महीने का ट्रेनिंग प्रोग्राम, इससे पहले 'टेक्स्ट बुक` बनवाने की 'वर्कशाप` करायी थी। आजकल ये चल रहा है। दिल्ली में दस सेंटर बनाये हैं. . .हमारे जी 'होयल` एक हजार से ज्यादा टीचर लैं. . .कुछ बड़े स्कूलों में तो हालात अच्छी है और कुछ में तो कूलर भी नहीं है डाक साब. . .अब तुम्मी बताओ जी. . .बिना कूलर विशेषज्ञ को बुलावे तो शरम नई आयेगी?. . .तो फिर इसी सकूल चुने हैं. . .कम से कम कूलर तो होवें न डाक साहब. . .विशेषज्ञ. . .`

विशेषज्ञ और 'कूलर` यानी गर्मी में ठंडा तापमान और सर्दियों में गर्म बहुत जरूरी है वर्ल्ड बैंक में रिपोर्ट हो जाए तो डॉ. पांडेय जैसे निदेशकों की नौकरी पर बन आयेगी। वैसे डॉ. पांडेय से उनका परिचय पुराना है। उन्हें पीएच.डी. में एडमीशन लेना था इन्होंने प्रपोजल बनवाया, जमा कराया, पास करवाया, थीसिस लिखवाई, टाइप करायी, जमा करायी, परीक्षकों को भिजवायी, रिपोर्ट मंगवाई, वायवा कराया. . .पांडेय जी को पीएचडी एवार्ड करायी और डिग्री घर भिजवायी थी। डॉ. सक्सेना ने यह सब किसी उंचे आदर्श या विचार के तहत नहीं किया था। एक मामला यह था कि फरीदाबाद की सरकारी कालोनी से मिले गांव में पांडेय जी की जमीन थी जिस पर प्लाटिंग की हुई थी। 'डील` यह थी कि इधर पीएचडी होगी, उधर जमीन का बैनामा होगा। यह आदान-प्रदान कार्यक्रम सुचारु रूप से चला।

डॉ. सक्सेना का 'सेशन` दस बजे से शुरू होना था। इस वक्त सवा दस हो रहा है। ट्रेनिंग सेंटर यानी स्कूल में प्रिंसिपल के कमरे में डॉ. पांडेय का व्याख्यान जारी है, 'डॉक्टर साहेब! गर्मियों में विशेषज्ञ मिलने मुश्किल हो जाते हैं. . .अरे शिमला या नैनीताल हो तो कहिए मैं सैकड़ों विशेषज्ञ जमा कर दूं लेकिन गर्मियों में दिल्ली. . .अरे भाईजी, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति वगैरा की बात तो छोड़ दो, छुटभइये नेता तक गर्मियों में राजधानी छोड़ देते हैं. . .अब जब पानी नहीं बरसेगा, यही समस्या रहेगी. . .अब देखोजी, हमें तो यही ओदश हैं कि विशेषज्ञों की मानो. . .तो हम पालन करते हैं. . .विश्व बैंक से हम लोगों ने दस करोड़ मांगा था नये स्कूल खोलने के लिए। उन्होंने कहा दस करोड़ से पहले 'ये` और 'ये` और 'ये` करायेंगे। इसके लिए पांच करोड़ देंगे. . .फिर पाठ्यक्रम बदलने को इतना, फिर इतना. . .होते-होते सौ करोड़ हो गया. . .चलो ठीक है, शिक्षा पर पैसा लग रहा है. . .पर समझ में कम ही आता है। अब देखोगे, इन्हीं विशेषज्ञों ने बच्चों के बस्तों का वजन बढ़ाया फिर येई बोले, बच्चों की तो कमर टूटी जा रही है. . अब सुनो जी विशेषज्ञ कये हैं हमारी शिक्षा चौहद्दी में कैद हो गयी है। देखो जी, पहले स्कूल की चारदीवारें. ..फिर कहवें है। क्लास रूप की चार दीवारों. . .पाठ्यक्रम की चार दीवारें, अध्यापक की चार दीवारें. . .परीक्षा की चार दीवारी. . .अब बोलो. . .आदेश हो जाए तो तोड़ दी जावे सब दीवालें. . .`

'साढे दस बज रहा है।` डॉ. सक्सेना बोले। 'अरे डाक साहेब क्यों जल्दिया रहे हो. . .अभी न आये होंगे।`

पैंतालीस अध्यापक, जिनमें आधी के करीब महिलाएं और लड़कियां। कुछ अध्यापक गंवार जैसे लग रहे थे और कुछ अध्यापिकाएं अच्छा-खासा फैशन किये हुए थीं। इन सबके चेहरों पर एक असहज भाव था। ऐसा लगता था कि वे इस सबसे सहमत नहीं हैं जो हो रहा है या होने जा रहा है। डॉ. सक्सेना ने सोचा, ऐसा तो अक्सर ही होता है। जब बातचीत शुरू होगी तो विश्वास का रिश्ता बनता चला जाएगा और असहजता दूर हो जाएगी। डॉ. सक्सेना ने बहुत प्रभावशाली ढंग से अपनी बात शुरू की और मुद्दे के विभिन्न पक्षों को रेखांकित किया ताकि उन पर विस्तार से चर्चा हो सके। इन सब प्रयासों के बाद भी डॉ. सक्सेना को लगा कि सामने बैठे अध्यापकों-अध्यापिकाओं के चेहरे पर मजाक उड़ाने, उपहास करने, बोलने वालों को जोकर समझने के भाव आ गये हैं। कुछ जेरे-लब मुस्कुराने भी लगे। तीस साल पढ़ाने और दुष्ट से दुष्ट छात्र को सीधा कर देने का दावा करने वाले डॉ. सक्सेना अपना चेहरा, कितना कठोर बन सकते थे, बना लिया। आवाज जितनी भारी कर सकते थे कर ली और बॉडी लैंग्वेज को जितना आक्रामक बना सकते थे बना लिया। लेकिन हैरत की बात यह कि सामने बैठे लोगों के चेहरों पर उपहास उड़ाने वाला भाव दिखाई देता रहा। एक अध्यापिका के चेहरे पर ऐसे भाव आये जैसे वह कुछ कहना चाहती हैं।

'सर आप जो कुछ बता रहे हैं बहुत अच्छा है। पर हमारे काम का नहीं है।` अध्यापिका बोली।

इस प्रतिक्रिया पर डॉ. सक्सेना को गुस्सा तो बहुत आया लेकिन पी गये और बोले, 'क्या समझ नहीं आ रहा?` 'नो सर. . .समझ में तो सब आ रहा है।`

'तब यह उपयोगी क्यों नहीं लग रहा है?` डॉ. सक्सेना ने पूछा और अध्यापकों की पूरी क्लास खुल कर मुस्कुराने लगी। डॉ. सक्सेना ने सोचा, क्या वे 'थर्ड डिग्री` में चले जाएं? पर यह भी लगा कि ये लड़के नहीं हैं, अध्यापक हैं, कहीं गड़बड़ न हो जाए।

'सर, जहां बच्चे पढ़ना ही न चाहते हों वहां टीचर क्या कर सकता है?` एक प्रौढ़ अध्यापक ने गंभीरता से कहा और कुछ नौजवान अध्यापक हंस दिये। डॉ. सक्सेना का खून खौल गया। वे तुरंत समझ गये कि ये साले मुझे. . .यानी मुझे यानी डॉ. आर.बी. सक्सेना प्रोफेसर अध्यक्ष और पता नहीं कितनी राष्ट्रीय समितियों और दलों के सदस्य को उखाड़ना चाहते हैं, इनको शायद मालूम नहीं कि इनका सबसे बड़ा बॉस मुझे सर कहता है और पूरी बातचीत में सिर्फ 'सर` ही 'सर` करता रहता है।

'बच्चे पढ़ना नहीं चाहते या आप लोग पढ़ाना नहीं चाहते।` डॉ. सक्सेना ने पलटकर वार किया।

'सर, हम बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं. . .ईमानदारी से पढ़ाना चाहते हैं. . .पर वे नहीं पढ़ते।` एक लेडी टीचर बोली। उसका बोलने का ढंग और चेहरे के भाव बता रहे थे कि वह सच बोल रही है और मजाक नहीं उड़ा रही है। 'सर, आप ऐसे नहीं समझोगे. . .` एक ग्रामीण क्षेत्र का सा लगने वाला अध्यापक बोला, 'ऐसे है जी कि हमारे स्कूलों में सबसे कमजोर बरग के बच्चे आवे हैं।`

'बरग नहीं वर्ग. . .` किसी ने चुपके से कहा कि पूरी क्लास हंसने लगी। 'वही समझ लो जी. . .अपनी तो भाषा ऐसी है. . .तो जी. . .`

'ठीक है, ठीक है, बैठिए मैं समझ गया।` डॉ. सक्सेना ने अध्यापक को चुप करा दिया। एक फेशनेबुल अध्यापिका बोलने लगी, 'सर, हमारे स्कूलों में मजदूरों, रेड़ी वालों, ठेले वालों, कामगारों, सफाई करने वालों, माली-धोबी परिवारों के बच्चे आते हैं। सर, हम उन्हें वह सब सिखाते हैं जो आमतौर पर बच्चों को मां-बाप सिखा देते हैं। उन्हें बैठना तक नहीं आता। खाना नहीं आता। इन्हें हम सिखाते हैं कि देखो सबके सामने नाक में उंगली डालकर. . .।` पूरी क्लास हंसने लगी।

'तो फिर बताइये सर. . .?` 'तो पढ़ाने में क्या प्राब्लम है?` 'बच्चे रेगुलर स्कूल नहीं आते. . .लंच टाइम में आते हैं। स्कूल की तरफ से लंच मिलता है, वह खाते हैं और चले जाते हैं. . .कभी उनके परिवार वालों को इलाके में मजदूरी नहीं मिलती तो कहीं ओर चले जाते हैं. . .`

'अरे, ये सब बच्चों के साथ तो न होता होगा?` डॉ. सक्सेना ने उन्हें पकड़ा। 'सर, ये समझ लो. . .बच्चा स्कूल में पाँचवी तक पढ़ता है, पास होकर चला जाता है, पर वह क ख ग न तो पढ़ सकता है न लिख सकता है।` डॉ. सक्सेना को लगा, यह सफेद झूठ है और अगर कहीं ये सच है तो इससे बड़ा कोई सच नहीं हो सकता।

यह कैसे 'पॉसिबल` है, डॉ. सक्सेना की आवाज में विशेषज्ञों वाली ठनक आ गयी। 'सर, इस तरह के बच्चों को हम फेल नहीं कर सकते?` डॉ. सक्सेना को धक्का और लगा। यह कैसे पढ़ाई है और कैसा स्कूल है? 'क्या आपको ऐसा आदेश दिया गया है कि. . .`

'सर, लिखकर तो नहीं. . .मौखिक रूप से दिया ही गया है। तर्क यह है कि फेल होने पर लड़के पढ़ाई छोड़ देते हैं और. . .` 'तो स्कूल में कोई फेल नहीं होता?` 'यस, सर . . .७५ प्रतिशत हाजिरी जिसकी भी होती है उसे पास करना पड़ता है।`

एक कठिनाई डॉ. सक्सेना को यह लग रही थी कि बातचीत स्कूल व्यवस्था पर केंद्रित हो गयी थी जबकि यहां उनका काम अच्छे शिक्षण पर भाषण देना था। 'देखिये, ऐसा है कि आप लोग बच्चों की पढ़ाई में दिलचस्पी पैदा कराने के लिए कुछ तो कर ही सकते हैं।`

'क्यों नहीं. . .जरूर कुछ बच्चे पढ़ते भी हैं पर जब वे जानते हैं कि पढ़ने वाले और न पढ़ने वाले दोनों पास हो जाएंगे तो बस. . .` 'देखिये, मैं यह जोर देकर कहना चाहता हूं कि आप लोग हर हालत में अपनी 'परफार्मेंस` इंप्रूव कर सकते हैं।`

'सर, कृपया मेरी एक छोटी और बुनियादी बात पर विश्वास करें कि अगर. . .उन्होंने दाढ़ी वाले अध्यापक की बात काट दी क्योंकि उन्हें मालूम है कि छोटी बुनियादी बातों का वह जवाब न दे पायेंगे। 'देखिये समस्याएं तो होंगी ही. . . .पर . . .`

उनकी बात काटकर एक अध्यापिका बोली, 'सर, आपने वह किताब देखी है जो हम पहले दर्जे के बच्चे को पढ़ाते है।` उसने किताब बढ़ाते हुए कहा, 'पहला पाठ है रसोईघर. . .पहला वाक्य 'फल खा` जिन बच्चों को हम पढ़ाते हैं वे जानता ही नहीं कि फल क्या होता है?` अध्यापक ने कहा और बाकी सब हंसने लगे।

'देखिये सर, यह रसोईघर का चित्र बना है. . .हमारे बच्चों ने तो गैस सिलेंडर, फ्रिज, बर्तन रखने की अलमारियां देखी तक नहीं होतीं. . .उनकी समझ में यह सब क्या आयेगा. . .? जब तक डॉ. सक्सेना जवाब देते, एक दूसरा सवाल उछला, 'सर, जिस बच्चे को 'क` 'ख` 'ग` न आता हो वह वाक्य कैसे पढ़ेगा या सीखेगा?` 'देखिये, इसे डायरेक्ट मैथेड कहते हैं।`

'वो 'क` 'ख` 'ग` वाले सिस्टम में क्या खराबी थी?` 'अब देखिये, विशेषज्ञों को लगा कि नये मैथड से. . .` 'सर मैथड छोड़िये. . .ये देखिये मां का चित्र सिलाई कर रही है। पिताजी ऑफिस जा रहे हैं। हाथ में छाता और पोर्ट फोलियो है. . हमारे स्कूल के बच्चे झुग्गी-झोपड़ी मजदूर. . .`

डॉ. सक्सेना उनकी बात काट कर बोले, 'क्या नयी किताब बनाते समय विशेषज्ञों ने आप लोगों से या स्कूल के बच्चों से कोई बातचीत की थी।` 'नहीं, चालीस आवाजें एक साथ आयी। 'अब बताइये सर. . .हम क्या करें. . .गाज हमारे ही उपर गिरती है. . .बच्चों को क्या 'इनकरेज` करे?`

'आप, लोग निजी तौर पर तो कुछ कर सकते हैं?` 'सर, हमारे स्कूल में सात सौ लड़के हैं। ग्यारह अध्यापक हैं। एक क्लास रूप में तीन क्लासें बैठती हैं। एक अध्यापक एक साथ तीन कक्षाओं को पढ़ाता है।` डॉ. सक्सेना को लगा जैसे वे आश्चर्य के समुद्र में डूबते चले जा रहे हैं. . .धीरे-धीरे अंधेरे में किसी बहुत बड़े समुद्री जहाज की तरह उनके अंदर पानी भर रहा है और आत्मा धीरे-धीरे निकल रही है. . .यह क्या हो रहा है? अध्यापक यह सिद्ध किये दे रहे हैं कि वह भी एक बड़े भारी षड्यंत्र का हिस्सा है।

'देखिये यह स्थिति हर स्कूल में तो नहीं होगी?` डॉ. सक्सेना ने कहा। 'हां सर, यह बात तो आपकी ठीक है. . .ग्रामीण क्षेत्रों में जो स्कूल हैं. . .वहां यह स्थिति है. . .शहरी क्षेत्रों में. . .` 'शहरी क्षेत्रों में बच्चे गैर-हाजिर बहुत रहते हैं. . .` 'सर, दरअसल इनको पढ़ाना है तो पहले इनके मां-बाप को पढ़ाओ।` किसी चंचल अध्यापिका ने कहा और सब हंस पड़े।

'हां जी, सौ की सीधी बात है।` किसी ने प्रतिक्रिया दी। डॉ. सक्सेना घबरा गये। फिर वही हो रहा है। ये लोग मुझे 'डुबो` रहे हैं उस पानी में जहां मुर्गाबियां नहीं हैं. . .जहां पानी ही पानी है। 'सर, बच्चों के मां-बाप को पढ़ाया जाए तो उन्हें खिलायेगा कौन?` 'सरकार खिलाये?` किसी अध्यापक ने कहा। 'सरकार के पास इतना है?` किसी दूसरे अध्यापक ने कहा। 'क्यों नहीं है?`

'अभी पढ़ा नहीं? उद्योगपतियों का ढाई हजार करोड़ कर्ज माफ कर दिया है सरकार ने. . .क्या कहते हैं अंग्रेजी में बड़ा अच्छा नाम दिया है- नॉन रिकवरिंग. . . .` डॉ. सक्सेना ने घबराकर अध्यापक की बात काट दी, 'ठहरिये. . .ये यहां डिस्कस करने का मुद्दा नहीं है।` वे डर हरे थे कि डायरेक्टर साहब कहेंगे- क्यों जी आप के यहां मुर्गाबियों का शिकार करने के लिए बुलाया गया था और आप तो शिकारियों का शिकार करने वाली बातें करने लगे। 'अरे, ये राजनीति गंदी चीज हैं। छोड़िये इसको, केवल यह बताइए कि बच्चों की पढ़ाई को किस तरह से बेहतर बनाया जा सकता है।`

'सर अब बात निकल आयी है तो कहने दीजिए सर. . .हमारे स्कूलों में हमारे अधिकारियों के बच्चे क्यों नहीं पढ़ते? मंत्रियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं जाते।` डॉ. सक्सेना फिर विवश हो गये, 'ठहरिये. . .ये बातें आप लोग अपने संगठनों में 'डिस्कस करें।` 'सर, हमारे संगठनों में यह कभी 'डिस्कस` नहीं होता।`

'देखिये अब मैं आप लोगों से मनोवैज्ञानिक पक्षों पर बात करना चाहता हूं। बच्चों के पढ़ाने के लिए आवश्यक है कि हम उनके मनोविज्ञान को समझें. . । हर बच्चे का अपन अलग मनोविज्ञान होता है. . .`

अध्यापक आपस में बातें कर रहे थे। महिला अध्यापिका बड़े सहज ढंग से खुसुर-पुसुर कर ही थी। ऐसा लगता था जैसे वे इतवार के दिन जाड़ों की रेशमी धूप में बैठी स्वेटर बुन रही हों और बातें कर रही हों। पुरुष अध्यापकों के भी कई गुट बन गये थे और सब बातों में लीन हो गये थे। एक दो अध्यापक बार-बार घड़ी देख रहे थे। डॉ. सक्सेना लगातार बिना रुके बोले जा रहा है। वह मुर्गाबियों का शिकार खेल रहे थे। वह चाहते भी नहीं थे कि अध्यापक ध्यान से उनके पास थे नहीं या वह दे नहीं सकते थे क्योंकि वह तो मुर्गाबियों के शिकारी हैं।

कुछ देर बात शोर का स्वरूप बदल गया। अब शोर ने छोटे-छोटे समूहों के आकार को तोड़ दिया और वह क्लासव्यापी हो गया और उन्हें लगा कि बोल भी नहीं पायेंगे। 'आप लोग क्या बातें कर रहे हैं?` उन्होंने पूछा। 'सर, हमारी क्लास एक बजे समाप्त होगी।` 'हां, मुझसे आपके डायरेक्टर ने यही कहा है कि एक बजे तक मैं आपको लेक्चर देता रहूं।` 'सर, उसके बाद हमारी हाजरी होगी।` 'ठीक है।`

'नहीं सर. . .ठीक कैसे है. . .एक बजे तो क्लास खत्म हो जाती है। हमें चले जाना है। एक बजे अगर हाजरी होगी तो पंद्रह मिनट तो हाजरी में लग जाएंगे।` एक महिला अध्यापिका बोली। 'तो फिर` 'हमारी हाजरी पौन बजे होना चाहिए ताकि हम ठीक एक बजे छुट्टी पा सकें।` 'दस-पन्द्रह मिनट से क्या फर्क पड़ता है।` डॉ. सक्सेना ने कहा।

'मेरी बस छुट जाएगी. . .फिर एक घंटे बाद बस है. . .घर पहुंचते-पहुंचते तीन बजे जाएंगे। उन्हें खाना देना है। बंटी को स्कूल बस से लेना है। रोटी डालना है. . .उन्हें गरम रोटी ही देती हूं। दाल में छोंक भी नहीं लगायी है. . .'महिला बोलती रही।. . .एक पुरुष अध्यापक ने कहा, 'वैसे भी सिद्धांत की बात है.... यदि एक बजे छुट्टी होनी है तो एक ही बजे होनी चाहिए।` 'मुझे तो नजफगढ़ जाना है. . .देर हो जाती है तो अंधेरा हो जाता है. . .क्रिमनल एरिया पड़ता है. . .कुछ हो गया तो. . .` लड़की चुप हो गयी।

'हाजरी पैन बजे ही होनी चाहिए।` एक दादा किस्म के अध्यापक ने धमकी भरे अंदाज में कहा। 'सर, लेडीज की प्रॉब्लम कोई नहीं समझता. . .मैं तो खैर मैरीड हूं. . .बच्चे बस्ते लिए घर के बाहर 'वेट` कर रहे होंगे. . .चाबी पड़ोस में देने के लिए 'वो` मना करते हैं. . .सर जो लेडी टीचर मैरीड नहीं हैं उनके घरों में भी कुछ तो है ही है सर. . .` 'सर, हम लड़कियां देर से घर पहुंचे तो हजार तरह की बातें होने लगती हैं।`

डॉ. सक्सेना को लगा कि इस समय संसार का सबसे बड़ा और जरूरी काम यही है कि इन लोगों की पंद्रह मिनट पहले हाजरी हो जाए ताकि ये ठीक एक बजे स्कूल से निकल सकें। उन्होंने डायरेक्टर पांडेय जी को बुलाया। वे रजिस्टर लेकर आये। रजिस्टर जैसे ही मेज पर रखा गया, यह लगा गंदे चिपचिपे मैले मिठाई बांधने वाले कपड़े पर मक्खियों ने हमला बोल दिया हो। ऐसी कांय-कांय, भांय-भांय होने लगी कि कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

डॉ. सक्सेना थके हारे और कुछ अपमानित भी डायरेक्टर के कमरे में जहां कूलर चल रहा था, आ गये। डॉ. पांडेय को पता नहीं कैसे मालूम हो गया कि क्लास में मेरे साथ क्या हुआ। 'अब देखो जी, हम तो इन्हें 'बेस्ट ट्रेनर` देते हैं. . .अब इनकी जिम्मेदारी है कि ये कुछ सीखते हैं या नहीं।`

डॉ. सक्सेना डॉ. पांडेय से कहना चाहते थे कि यार पांडेय क्या तुम्हें हकीकत में कुछ नहीं मालूम? या तुम सब जानते हो? डॉ. पांडेय क्या तुम्हें नहीं मालूम कि एक सौ तक सब उलट-पुलट गया है।

वह यह सब सोच रहे थे और डॉ. पांडेय पता नहीं कैसे समझ गये कि उनके पास सीधे और छोटे सवाल हैं। डॉ. पांडेय वही करने लगे जो डॉ. सक्सेना क्लास रूम में कर रहे थे। यानी बिना रुके, लगातार बोलने लगे ताकि सवाल पूछने का मौका न मिले। डॉ. पांडेय लगातार बोल रहे हैं, वे सांस ही नहीं ले रहे, 'अब जी ये तो दूसरा दिन है. . .तीस दिन चलना है वर्कशाप. . .फिर रिपोर्ट बनेगी वर्ल्ड बैंक को जाएगी. . .बाइस सेंटर बनाये गये हैं। हर सेंटर में सौ के करीब टीचर हैं. . .` भाषण देते-देते ही उन्होंने डॉ. सक्सेना बढ़ाया। जाहिर है उसमें मुर्गाबी ही है। उन्होंने लिफाफा जेब में रख लिया। डॉ. पांडेय बोले जा रहे हैं. . .।

डॉ। सक्सेना दरवाजे के बाहर देख रहे हैं, शिक्षक स्कूल के बाहर निकल रहे हैं. . .फिर लगा कि न तो ये शिक्षक हैं, न वह ट्रेनर हैं, न डॉ. पांडेय निदेशक हैं, न ये स्कूल है। डॉ. सक्सेना को हैरत हुई कि वह इतने रहस्यवादी कैसे बने गये। पर अच्छा लगा. . .डॉ. पांडेय बोले जा रहे हैं. . .मुर्गाबियां पानी पर उतर रही है. . .डॉ. सक्सेना खामोश हैं क्योंकि शिकारी चुप रहते हैं, बोलते ही शिकार उड़ जाता है. . .लेकिन उन्हें यह यकीन क्यों है कि वह मुर्गाबियों का शिकारी है...हो सकता है वह या डॉ. त्रिपाठी मुर्गाबी हों और शिकारी. . .।



सौजन्य - विकिपीडिया हिंदी

COMMENTS

Leave a Reply: 3
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,35,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",6,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,3,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,7,आषाढ़ का एक दिन,17,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,2,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,15,कमलेश्वर,6,कविता,1412,कहानी लेखन हिंदी,13,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,5,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,4,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,3,केशवदास,4,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,138,गजानन माधव "मुक्तिबोध",14,गीतांजलि,1,गोदान,6,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,2,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,2,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,30,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,72,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,5,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,25,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,3,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,6,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,23,नाटक,1,निराला,35,निर्मल वर्मा,2,निर्मला,38,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,174,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,133,प्रयोजनमूलक हिंदी,24,प्रेमचंद,40,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,86,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,5,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,7,भक्ति साहित्य,138,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,13,भीष्म साहनी,7,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,5,मलिक मुहम्मद जायसी,4,महादेवी वर्मा,19,महावीरप्रसाद द्विवेदी,2,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,11,मैला आँचल,4,मोहन राकेश,11,यशपाल,14,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,5,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,20,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,2,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,8,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,2,लघु कथा,118,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,33,विद्यापति,6,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,1,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,7,शमशेर बहादुर सिंह,5,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,5,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,53,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,1,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,28,सआदत हसन मंटो,9,सतरंगी बातें,33,सन्देश,39,समसामयिक हिंदी लेख,221,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,17,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,69,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",9,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,20,सूरदास,15,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,10,हजारी प्रसाद द्विवेदी,2,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,347,हिंदी लेख,504,हिंदी व्यंग्य लेख,3,हिंदी समाचार,164,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,85,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,6,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,18,hindi essay,339,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,98,hindi stories,656,hindi-gadya-sahitya,2,hindi-kavita-ki-vyakhya,15,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,13,kavyagat-visheshta,22,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,10,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,Rimjhim Class 3,14,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,sponsored news,10,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,38,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: मुर्गाबियों के शिकारी - असगर वजाहत की कहानी
मुर्गाबियों के शिकारी - असगर वजाहत की कहानी
http://4.bp.blogspot.com/_lxzqs1Yxoss/TChI1oHTnzI/AAAAAAAADBA/6ibpZoOV9j8/s200/asgar_wajahat.jpg
http://4.bp.blogspot.com/_lxzqs1Yxoss/TChI1oHTnzI/AAAAAAAADBA/6ibpZoOV9j8/s72-c/asgar_wajahat.jpg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2010/06/asghar-wajahat_28.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2010/06/asghar-wajahat_28.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका