खतरे में है साख वह सच में बहुत सुंदर दिख रहा था। चमकता गोरा रंग,गुलाबी टीशर्ट, नीली जींस,सुडौल चेहरा, चमकती आँखें, संवरे केश। आते ही उसने झुककर मेरे
खतरे में है साख
वह हतप्रभ मेरा मुँह देखने लगा.....आप ऐसा क्यों कह रही हैं मैम।
मैं स्वयं हतप्रभ.....जाने क्यों मेरे मुँह से ऐसा निकल गया।
हुआ यह कि मेरी स्वर्गीय माताजी ने मेरे नाम एक छोटा सा जमीन का टुकड़ा कर रखा था। सन दो हजार पंद्रह में मैंने उसे बेचा। मिले इकतीस लाख रुपये। रुपये जमा करने मैं शहर के स्टेटबैंक की शाखा में गई। बैंक अधिकारी श्रीवास्तवजी से हमारे पुराने पारिवारिक संबंध थे। कहने लगे... थोड़ा पैसा किसी दूसरे बैंक में भी डाल दो। पूछा, किस बैंक में डालूं। उन्होंने एक बड़े निजी बैंक का नाम बताया। बताया कि उस बैंक में ब्याजदर ज्यादा है। सेवायें भी बहुत अच्छी, और सुविधायें भी। एक युवक उमेश तो बहुत ही सेवाभावी है। मेैंने भी कुछ पैसा उस बैंक में डाल रखा है। मुझे बैंक जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। उमेश मेरे घर आकर सब काम कर जाता हेै। मैं उसे तुम्हारे घर भेज दूंगा।और उमेश मेरे घर आया। परिचय दिया। पैर छूकर प्रणाम किया। अति विनम्रता से बैंक से संबंधित सारे काम किया। बीसलाख रुपये मैंने स्टेट बैंक में जमा कराये थे, ”सावधि खाते“ में। ग्यारह लाख रुपये उमेश के बैंक में जमा करा दिये। ”दस लाख सावधि जमा खाते में, एक लाख चालू खाते में।“ उसकी विनम्रता, उसकी सेवा, उसकी सुंदरता, मैं बैठी देखती रही थी। मेरे मुँह से निकल गया था...तू जरूर कोई फ्रॉड करेगा रे।
मुझे बचपन से ही साहित्य में रुचि थी। मैं राष्ट्रीय स्तर की कई कहानी प्रतियोगितायें जीत चुकी थी। पर रोजी रोटी के लिये मैं ट्यूशन पढ़ा कर गुजारा करती थी। ”सावधि जमा खाते“ से ब्याज में जो पैसा मिलने लगा, उससे मुझ मितव्ययी का काम चलने लगा। सो मैंने ट्यूशन पढ़ाना छोड़ दिया और पूरी तरह से साहित्य साधना में लग गई।कुछ पैसों की जरूरत पड़ी तो मैं उमेश के बैंक गई अपने चालू खाते से पैसा निकलवाने। दरवाजे पर मुझे देखते ही उमेश अपनी सीट छोड़कर आया। पैर छुये। बोला......मैम आपने क्यों कष्ट किया....मुझे फोन कर देतीं।
उस दिन के बाद जब भी मुझे पैसों की जरूरत पड़ती, मैं उमेश को फोन कर देती...उमेश मुझे दस हजार की जरूरत है, या पाँच हजार की जरूरत है। उमेश सुबह अपने बैंक जाते हुये मुझे पैसे लाकर दे जाता। कहता....घर में पैसे थे, आपको जरूरत होगी सो लेता आया हूँ। आप मुझे इतने पैसों का चेक दे दीजिये। मैं दे देती।
आता था तो थोड़ी बहुत बातचीत भी हो जाती थी। उसने बताया था कि उसके पिता अवकाशप्राप्त प्राचार्य हैं। माँ गृहणी रही हैं। वह आपको जानती हैं। नाम है नागेश्वरी देवी।
मुझे याद आ गया। पहले मैं शहर में होनेवाले सामाजिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमो में अक्सर जाया करती थी। जहाँ भी गई ,इस महिला नागेश्वरी देवी से अवश्य मुलाकात होती थी। सुंदर, संवरी, वाक्पटु, सबसे मिलने जुलने को विशेष ललायित, वह कुछ अलग ही दिखती। हमारा निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जातियों के लिये आरक्षित है। सो मैंने हँसकर कहा भी था.... इसबार तो चुनाव में आप खड़े हो ही जाईये। उसने हाथ जोड़ दिये थे....बस आपका समर्थन चाहिये।
पिता के संबंध में मुझे मेरी प्राचार्या सहेली ने बताया था। बताया था कि शाला की विभिन्न मदों के लिये सरकार से पैसा हथियाकर डकार जाना तो इसके लिये मामूली बात, परीक्षा अधीक्षक बना परीक्षाकेन्द्रों का ठेका लेता है ये। रेट बंधा हैे इसका.... पास कराने का इतना, प्रथम श्रेणी दिलाने का इतना, द्वितीय का इतना...। हाँ पकडा़ता है। पैसा देकर बनता है। पैसा देकर छूटता है।
एक प्रदूषित समाज में ये बातें मानो तफरीह... कितना पैसा बनाया। कैसे बनाया। कैसे पकड़ाया। कैसे छूटा...हा... हा...हा....
मगर उमेश की विनम्रता और सेवा भाव, ऐसे प्रदूषणों को नकारती। मेरे बैंक के काम तो करता ही, कहता, और भी कोई काम हो तो निसंकोच कहिये मैम। आपको डॉक्टर के पास जाना हो, बाजार जाना हो, बस मुझे फोन कर दिया कीजिये। आपका आशीर्वाद ही मेंरी पूंजी है। पता चला, वह बुजुर्ग ग्राहकों को ऐसी ही सेवायें देता रहता है। सच्चा इतना कि जितना भी पैसा मैं निकलवाती, उसका संदेश मेरे मोबाईल में आ जाता।
इधर कुछ दिनो से संदेशा नहीं आ रहा था। मैने अपने एक पुराने छात्र को बुलाकर कहा...जरा मेरी पास बुक ”अप.टू डेट“ करवा कर ले आ।
छात्र पास बुक गौर से देखता रहा। बोला...मैम आपने इंकावन हजार रुपये निकाले थे क्या?
इंकावन हजार। कभी नहीं निकाले। फौरन छात्र के साथ बैक गई। मुझे देखते ही उमेश दौड़कर आया। मैं सीधे ”शाखा प्रबंधक“ के कक्ष में चली गई। उन्होंने सारी बातें सुनी। देखीं। बोले...घबराईये नही,ं सब ठीक हो जायेगा।
जल्दी ही प्रबंधक स्वयं मेरे घर आये। पास बुक ”अप.टू. डेट“ कराकर। मैंने देखा इंकावन हजार,जो मेरे चालू खाते से निकाल लिये गये थे, मेरे खाते में डाल दिये गये थे। डालनेवाला था, वही उमेश। प्रबंधक ने मुझे जो समझाया, मुझे ठीक से समझ में नहीं आया। पर मैने कहा...आपने उसे निलंबित क्यों नहीं किया। बोले, उसे कड़ी चेतावनी दे दी गई है मैम। अब कभी ऐसा नहीं करेगा।
पर मैंने उमेश से सारे संबंध काट लिये। मगर वह मेरे मित्रों, परिचितों के आगे गिड़गिड़ता रहता....एक बार मैम से बात करा दीजिये। मुझे मैम से माफी माँगनी है।
आखिर मुझे दया आ गई। वह मेरे घर आया। साक्षात् पश्चाताप की मूर्ति सा। पैरों में गिर गया। रोता हुआ कहने लगा....आपने कहा था मैम, तू कोई फ्रॉड करेगा। मुझसे हो भी गया। मैंने कहा..अब तू ”अपनी माँ की कसम“ खा कि आगे कभी ऐसे फॅ्राड नहीं करेगा।
उसने ”माँ की कसम“ खाई।
मैने कहा....अब तू मुझे ”वचन“ दे कि ऐसा शुद्ध आचरण रखेगा कि लोग तेरा उदाहरण दें।
उसने “वचन” दिया।
मैंने उसे दिल से माफ कर दिया।
मगर फिर मैंने अपने सारे पैसे ”सावधि जमावाले और चालू खाते वाले“ सब एक ऐसी योजना में डाल दिये जिसमें पैसे बहुत बढ़ जाते हैं, मगर ”तीन साल तक इन पैसों को छूना नहीं है। अब न उमेश के बैंक से मतलब न उमेश से। पैसे की जरूरत हो तो अपने स्टेट बैंक वाले खाते से निकाल लेती।
समय बीतता गया।
कि एक शाम एक सुंदर युवती मेरे घर आई। बताया कि उसका नाम शुभ्राशर्मा है और वह उमेश वाले बैंक से आई है। मेरा जो पैसा तीन साल के लिये जमा था उसकी अवधि पूर्ण हो गई है और बढ़ा हुआ पैसा आ गया है। बढ़ा हुआ पैसा देखकर मैं खुश हो गई। युवती कहने लगी... अगर मैं यह पैसा ”म्यूचुअल फंड“ में डाल दूं तो पैसा और बढ़ता रहेगा। मैंने मित्रों से सलाह कर उसे अनुमति दे दी। युवती ने भी मेरे घर आकर पूरी विनम्रता से सारे कागज तैयार किये। दस्तखत लिये।
बीच बीच में युवती बताती रहती कि मेरा पैसा कितना बढ़ा है। घर नहीं आ पाती तो मेरे मोबाईल में बढ़े हुये पैसे की फोटो भेज देती।
कि अचानक युवती का आना बंद । मोबाईल में उसका संदेश भी बंद। मैने बैंक में फोन किया तो पता चला, उसका तबादला हो गया है। उसका काम उमेश देख रहा है। उमेश?आशंका उभरी। मगर तभी याद आ गया उसका पश्चाताप से गिड़गिड़ता चेहरा। उसका ”माँ की कसम खाना“। मुझे ”वचन“ देना।
और तभी हो गया करोना का प्रकोप। मौत जबड़े फाड़े हवाओं में तैरने ल्रगी। लोग अपने अपने घरों में कैद। आवागमन बंद। संचार बंद। मौत के भयावह साये में दुबके ”म्यूचुअल फंड“ में क्या हो रहा है कौन खबर ले। शुभ्रा शर्मा जब तक थी। आती रही। खबर करती रही। बैंक की कर्मचारी। बैंक की प्रतिनिधि। यानी साक्षात बैंक। बैंक का हर कर्मचारी बैंक का प्रतिनिधि। हम क्यों परेशान हों कि किसके पास मेरा केस है। यह बैंक की जिम्मेदारी। बैंक खुद खबर करेगा। आज नही तो कल।
करोना भयानक तबाही मचा कर चला गया। जीवन पटरी पर आने लगा। दौड़ने लगा। मेरा मन भी उमंगने लगा.... मेरा पैसा अब तक जाने कितना बढ़ गया होगा। मेरी ढेरों रचनायें प्रकाशित हो चुकी हैं। अब इन्हें संकलित कर पुस्तक रूप में छपवाउंगी। विमोचन के लिये क्या शानदार आयोजन करूंगी।
सूचि बनाने लगी किन साहित्यकारों को अमंत्रित करूंगी...
कि मेरी पड़ोसिन ने गपशप करते हुये बताया.... तुम्हें खबर है.....तुम्हारे उमेश वाले बैंक में भारी घोटाला हुआ है। बहुतों का पैसा डूबा है। पता करो कि तुम्हारे पैसे का क्या हाल है।
मुझे जरा भी नहीं लगा कि मेरे पैसे में कुछ गड़बड़ हुई होगी।
फिर भी पड़ोसिन के जोर देने पर मैं बैंक गई।
बैंक के कर्मचारी मेरे खाते की छानबीन करते रहे। मैं बैठी रही। आखिर उन्होने बताया कि मेरे म्यूचुअल फंड के सारे पैसे, पंद्रह लाख रुपये, उमेश ने निकाल लिये हैं।
मैं आघात से जड़। चेतना आई तब पता चला, अंधकार बहुत गहरा है। बहुत फैला। मैं ही नहीं पचासों ग्राहकों के पैसे उसने उड़ा रखे हैं।
अग्रवाल साहब ने शोरूम खोलने के लिये बैंक में अस्सी लाख रुपये ऋण का आवेदन किया था। आवेदन स्वीकृति के कागजात लेकर यही उमेश, अग्रवाल साहब के घर गया। अग्रवाल साहब बोले...पैसे का जुगाड़ तो हो गया है तुम यह ऋण लौटा दो। उमेश ने उनसे दस्तखत लिये। कागज वापस ले गया। कुछ दिन बीते कि अग्रवाल साहब के पास बैंक से संदेश आने लगे.... आपने अस्सी लाख रुपये ऋण लिया है। ब्याज पटाईये।
सुभाष गोयलजी बच्चों की पढाई के लिये चालीस लाख रुपये निवेश कर डाले थे...
मनोहर ठेले वाले ने बेटी की शादी के लिये दस लाख रुपये जमा कराये थे....
सब्जी बेचने वाली बूढ़ी केंवरिया ने बुढ़ापे के लिये पाँच लाख जमा कराये थे...
दूधवाले यादवजी ने भैंस खरीदने के लिये.....
ऐंथोंनी सर ने सुकन्या योजना में.....
अग्रवाल, गुप्ता, शर्मा, वर्मा, सिह, सहारे,साहू,देवांगन, रमजान, सुजान, बूढ़े जवान, सबको अपनी समर्पित सेवा से ग्राहक बनाना। विभिन्न योजनाओं में लगाना, मौका पाते ही डस लेना। ऐसा डसा कि कई चक्कर खाकर गिर गये। कई रस्सी में झूल गये। कई बिस्तर पकड़ लिये। कई अर्धविक्षिप्त। बाकी बदहवास चक्कर लगा रहे हैं। बैंक के। थाने के।
जेल मे नटवरलाल सपत्नीक हनीमून मना रहे हैं
बैंक, पुलिस,कचहरी सब अपनी अपनी जांच में लगे हुये हैं....।
गली गली में चर्चा... किस ग्राहक का किस तरकीब से पैसा उड़ाया। अभागे ग्राहक बेकार चक्कर लगा रहे हैं। बैंक अपने खजाने से पैसा थोड़े देगी। अपराधी से वसूल करके देगी। अपराधी के पास तो पैसा है ही नहीं। उसने तो अपने माँ बाप, अपने गिरोह के अनेक लोगों के खाते में डाल रखा है। बैंक अब सब लाभार्थियों के खाते तलाश कर रही है। रोज भारी भरकम बैंक अधिकारी आ रहे हैं जांच करने....
बदहवास मैं अधिकारियों के सामने बैठी हूँ। अधिकारियों की आँखें मुझपर गड़ी हैं......आपने एक बार भी जानने की कोशिश नहीं की कि आपके पैसे की क्या स्थिति है?.
महोदय, मैं समझती हूँ यह जानकारी देना, बैंक की जिम्मेदारी है।
और ग्राहक की?
महोदय, देश में जगह जगह शान से चमकते ये बैंक, देश की मजबूत अर्थव्यवस्था के जीवंत प्रतीक हैं। अर्थव्यवस्था के संवहक। संरक्षक भी। नागरिक उनमें पैसे जमाकर बेफिक्र हो जाता है कि अब उसके पैसे सुरक्षित हेैं। लेकिन बैंक के जिम्मेदार अधिकारी ग्राहक को ही घेरने लगें तो बैंकव्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह उठेंगे। महोदय, मैं भी एक जिम्मेदार नागरिक की हैसियत से आपसे कह रही हूँ.....ग्राहक का पैसा नहीं, बैंक की साख खतरे में है। उसे बचाईये।
वे गंभीर हो गये।
- शुभदा मिश्र ,14, पटेलवार्ड, डोंगरगढ़।


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