ना रिश्वत लेंगे ना रिश्वत देंगे ओपीडी में बैठा था, तभी नज़र एक निमंत्रण पत्र पर पड़ी। एक नवोदित भ्रष्टाचार विरोधी संस्था का उद्घाटन था, जिसका नारा था
ना रिश्वत लेंगे ना रिश्वत देंगे
ओपीडी में बैठा था, तभी नज़र एक निमंत्रण पत्र पर पड़ी। एक नवोदित भ्रष्टाचार विरोधी संस्था का उद्घाटन था, जिसका नारा था — "ना रिश्वत लेंगे, ना रिश्वत देंगे।" चमकता हुआ यह नारा मुझे भी इस कार्यक्रम में आमंत्रित कर रहा था। आज ही का कार्यक्रम था और कार्ड चार दिन पहले दिया गया था। कार्ड देने वाला इस संस्था का नया अध्यक्ष बना था, जिसने पहले भी कई संगठनों में अपनी नेतागिरी की सड़ांध स्थापित की थी।
कार्ड देते ही उसने मेरी ओर आशाभरी नज़रों से देखा — शायद विशेष अतिथि के रूप में मेरे आने की उम्मीद के साथ कुछ अनुदान की भी अपेक्षा रखता था। मैंने असहमति जताई तो उसने तुरंत बात पलट दी — "अरे नहीं, आप तो आइए, आपसे कुछ नहीं लेंगे।" फिर एक घुटने को आगे करके बैठ गया — "डॉक्टर साहब, काफ़ी दिनों से दर्द है, कई डॉक्टरों को दिखाया, फ़ायदा नहीं हुआ।"
मन में आया कि कह दूँ — एक पर्ची बाहर से बनवा लें। लेकिन यह सोचकर कि ये आमंत्रित करने आया है, दुनियादारी निभानी पड़ेगी। अगर इससे फीस ले ली तो शहर में मुझे चारों कोनों में कोसता फिरेगा। मन मसोसकर दवाइयाँ लिख दीं। अपनी परामर्श फीस न लेकर उसके निमंत्रण के एहसान को चुकाया।
मन ही मन सोचा — यह संस्था, जो रिश्वत न लेने–देने का प्रण लिए हुए लोगों का आह्वान कर रही है, कहीं न कहीं इसमें भी रिश्वत की बू आ रही है। मुझे विशेष अतिथि के लिए अनुदान की माँग, और निमंत्रण के साथ ही उपकार के बदले मेरा निःशुल्क परामर्श लेना — सब मिलाकर संदेह पैदा कर रहा था।
कार्ड देने वाला मेरा परिचित था और मुझे विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया था। मन नहीं था जाने का, लेकिन चूँकि अब ओपीडी भी लगभग ख़त्म हो गई थी और उसका फ़ोन आ गया था, तो जाना पड़ा।
कार्यक्रम ठीक एक सरकारी महकमे के सामने ही था। सड़क के दूसरी ओर एक चाँदनी तान दी गई थी। बीस कुर्सियाँ पड़ी हुई थीं, कुछ ब्रोशर बाँटे जा रहे थे। आने–जाने वाले राहगीर किसी "सेल ऑफ़र" या "फ्री में कुछ मिलने" की झाँकी के भ्रम में वहाँ रुकते, कुछ माता रानी के प्रशाद का लंगर समझकर तो कुछ भविष्यफल,दाद, खाज ,खुजली के शर्तिया इलाज के पर्चे बँटने की उम्मीद में भीड़ लगाये हुए थे। चाँदनी जिस दीवार पर टिकी थी, उस दीवार का सहारा लेकर एक सफेद-सा बोर्ड टाँग दिया गया था।
पंपलेट में छपा गया और बोर्ड पर मार्कर पेन से लिख दिया गया "हम रिश्वत न लेंगे, न देंगे" . पम्पलेट वाले डायलॉग को केवल पढ़ना था, और बोर्ड के नीचे सभी को यह प्रमाण देना था कि उन्होंने उसे पढ़ लिया है — अर्थात् इस प्रतिज्ञा के नीचे सभी अपने हस्ताक्षर कर रहे थे।
कार्यक्रम के लिए यही स्थल क्यों चुना गया... शायद लक्षित श्रोताओं को ध्यान में रखकर यह योजना बनी हो... या यह भी हो सकता है कि दूसरे महकमे ने इसकी अनुमति न दी हो — कि उनके सामने ही उनके धंधे पर लात मारी जाए।
कार्यक्रम स्थल के सामने ही स्थित महकमे के एक आला अधिकारी मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित थे — वही महकमा, जो रिश्वत लेने–देने की श्रेणी में शीर्ष पर आता है। शायद संस्था के पदाधिकारियों ने सबसे पहले तो प्रयास किया होगा कोई ऐसा महकमा खोजने का, जो रिश्वत की इस लेन–देन प्रक्रिया से अछूता हो, लेकिन जब ऐसा कोई नहीं मिला, तो उन्होंने सोचा — सामने वाले महकमे से ही बुला लेते हैं, ताकि जल्दी से कार्यक्रम का निपटारा हो जाए।
मुख्य अतिथि बार–बार अपनी घड़ी देख रहे थे। उनका निजी सहायक (पी.ए.) उनके कान में कुछ कह रहा था — शायद कोई ठेकेदार अपना बिल पास करवाने के लिए उनके कार्यालय में प्रतीक्षा कर रहा था। सभी आमंत्रित अतिथि अपनी ओजस्वी भाषा में रिश्वतखोरी पर व्याख्यान दे रहे थे। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच, मुख्य अतिथि ताव में आ गए — कहने लगे, "यार, आप कहकर लाए थे कि दस मिनट लगेगा, और यहाँ आधा घंटा जो लगा दिया!"
उन्हें बोलने के लिए माइक नहीं दिया जा रहा था और वे रिश्वत के विरोध में पहली बार बिना रिश्वत लिए कुछ कहना चाहते थे। वैसे भी ऐसे कार्यक्रमों में इन अधिकारियों की कोई खास दिलचस्पी नहीं रहती, क्योंकि यहाँ रिश्वत का कोई लेन–देन नहीं होता। इसलिए अपने निरर्थक ही व्यतीत हो रहे समय रूपी धन के गंवाने से चिंतित थे, और बिना भाषण दिए ही चले गए।
ख़ैर, बोर्ड हस्ताक्षरों से भर गया... संस्था के पदाधिकारियों ने अपने संकल्प को दोहराया — "ना रिश्वत लेंगे, ना रिश्वत देंगे।" श्रोतागण तालियाँ भी नहीं बजा पा रहे थे..क्योंकि तब तक उनके हाथों में समोसे और कोल्ड ड्रिंक आ चुके थे।
- डॉ मुकेश असीमित
मेल ID thefocusunlimited@gmail.com
Whatsapp Number-8619811757


रिश्वत नगर पालिकाओं के नलों जैसा रिसाव है, जो कभी जहां तहां निरंतर बहता ही रहता है, कोई माई का लाल पूरी तरह बन्द नहीं करा पाता,,
जवाब देंहटाएंरिश्वत देना और लेना दोनों के बिना काम नहीं होता, समाज में यह दीमक बहुत गहरे तक लग गया है
जवाब देंहटाएं