Essay on Dhanteras धनतेरस पर हिन्दी निबंध

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Essay on Dhanteras धनतेरस पर हिन्दी निबंध धनतेरस समृद्धि और स्वास्थ्य का पावन पर्वधनतेरस, दीपावली के पावन पर्व का प्रारंभिक द्वार, भारतीय संस्कृति मे

Essay on Dhanteras धनतेरस पर हिन्दी निबंध


नतेरस समृद्धि और स्वास्थ्य का पावन पर्वधनतेरस, दीपावली के पावन पर्व का प्रारंभिक द्वार, भारतीय संस्कृति में समृद्धि, स्वास्थ्य और सौभाग्य का प्रतीक है। यह त्योहार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अक्टूबर या नवंबर के मध्य में आता है। धनतेरस का नाम स्वयं इसकी महत्ता को उजागर करता है—'धन' अर्थात् धन-धान्य और 'तेरस' अर्थात् त्रयोदशी। यह दिन न केवल आर्थिक उन्नति का प्रतीक है, बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की कामना का भी। प्राचीन काल से चली आ रही इस परंपरा में लोग नई वस्तुओं की खरीदारी करते हैं, मंगल कार्यों की शुरुआत करते हैं और भगवान धन्वंतरि की आराधना में लीन हो जाते हैं। धनतेरस का उत्सव न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, अपितु परिवारिक एकजुटता और सामाजिक उत्साह का भी माध्यम बन जाता है, जो भारतीय जीवनशैली की गहराई को प्रतिबिंबित करता है।

धनतेरस की पृष्ठभूमि

Essay on Dhanteras धनतेरस पर हिन्दी निबंध
धनतेरस की पृष्ठभूमि पौराणिक कथाओं से बुनी गई है, जो इस पर्व को एक रोचक और प्रेरणादायक आख्यान प्रदान करती है। हिंदू पुराणों के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश को हाथ में धारण करते हुए धन्वंतरि के रूप में अवतार लिया था। धन्वंतरि को आयुर्वेद का देवता माना जाता है, जो चिकित्सा विज्ञान के जनक के रूप में पूजे जाते हैं। एक अन्य कथा राजा हल्दी के इकलौते पुत्र की है, जिसकी कुंडली में मृत्यु का भयंकर योग था। ज्योतिषियों ने बताया कि उसके पिता की मृत्यु एक ही दिन में सर्प के काटने से होगी। राजा ने अपने पुत्र को एकांतवास में भेज दिया और स्वयं उसकी रक्षा के लिए उपाय करने लगे। लेकिन भाग्य का विधान कुछ और था। उस रात्रि में भगवान विष्णु ने राजा को धन्वंतरि के रूप में दर्शन दिए और उन्हें अमरत्व का वरदान प्रदान किया। इससे प्रेरित होकर राजा ने धन्वंतरि की पूजा की और धन-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त किया। इसी कथा से धनतेरस पर सर्प पूजा और धन्वंतरि पूजा की परंपरा चली आ रही है। ये कथाएं न केवल आस्था जगाती हैं, बल्कि जीवन में संकटों से जूझने की प्रेरणा भी देती हैं, जो हमें सिखाती हैं कि भक्ति और कर्म से कोई भी विपत्ति टाली जा सकती है।

धनतेरस का महत्व

धनतेरस का महत्व भारतीय समाज में बहुआयामी है। यह पर्व स्वास्थ्य और धन दोनों की कामना करता है, जो आधुनिक जीवन की भागदौड़ में अत्यंत प्रासंगिक है। प्राचीन काल में जब चिकित्सा सीमित थी, तब धन्वंतरि की पूजा स्वास्थ्य रक्षा का प्रतीक बनी। आज भी लोग इस दिन औषधीय जड़ी-बूटियों का सम्मान करते हैं और आयुर्वेदिक उपचारों को अपनाने का संकल्प लेते हैं। वहीं, धन की कामना इस पर्व को आर्थिक उन्नति का प्रतीक बनाती है। मान्यता है कि त्रयोदशी तिथि पर की गई खरीदारी शुभ फलदायी होती है, क्योंकि यह दिन लक्ष्मी-नारायण की कृपा का विशेष क्षण होता है। इसीलिए बाजारों में सोना, चांदी, बर्तन, वाहन और अन्य धातु की वस्तुओं की खरीदारी का दौर चल पड़ता है। ये खरीदारी न केवल व्यक्तिगत समृद्धि का प्रतीक है, बल्कि आर्थिक चक्र को गति प्रदान करने का सामाजिक माध्यम भी। धनतेरस हमें सिखाता है कि धन का संचय मात्र भौतिक सुख के लिए नहीं, अपितु परिवार और समाज की भलाई के लिए होना चाहिए। यह पर्व पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें प्राकृतिक जड़ी-बूटियों और शुद्ध धातुओं का उपयोग किया जाता है, जो आधुनिक उपभोक्तावाद के बीच संतुलन की याद दिलाता है।

उत्सव की धूम

धनतेरस के उत्सव की धूम भारतीय घर-आंगनों को रोशन कर देती है। सूर्योदय से ही घरों में सफाई का कार्य प्रारंभ हो जाता है, क्योंकि स्वच्छता को लक्ष्मी का प्रिय निवास माना जाता है। महिलाएं घर सजाती हैं, जबकि पुरुष बाजार की ओर रुख करते हैं। बाजारों में चमचमाती दुकानें, सोने-चांदी के आभूषणों की चमक और बर्तनों की विविधता एक अलग ही उत्साह भर देती है। शाम ढलते ही धन्वंतरि मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। पूजा का विधान अत्यंत सरल लेकिन भावपूर्ण होता है। लोग स्वर्ण या चांदी के सिक्के, बर्तन या नई वस्तु को जल में स्थापित कर आरती उतारते हैं। यज्ञ और हवन के माध्यम से वातावरण को पवित्र किया जाता है। विशेष रूप से, तांबे के बर्तनों में जल भरकर रखने की परंपरा है, जो स्वास्थ्य लाभ के लिए शुभ मानी जाती है। रात्रि में दीप प्रज्वलित कर घर के मुख्य द्वार पर रखे जाते हैं, ताकि सर्प या अन्य विपत्तियां घर में प्रवेश न कर सकें। परिवार के सदस्य एकत्र होकर पारंपरिक व्यंजनों का सेवन करते हैं, जैसे खीर, पूड़ी और मिठाइयां, जो उत्सव की मधुरता को बढ़ाती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में यह पर्व कृषि समृद्धि से जुड़ा होता है, जहां किसान नई हल या बीजों की खरीदारी करते हैं। शहरी जीवन में भी यह त्योहार कॉर्पोरेट जगत को प्रभावित करता है, जहां कंपनियां कर्मचारियों को बोनस या उपहार देकर उत्सव की शुभकामनाएं प्रेषित करती हैं। धनतेरस का यह स्वरूप न केवल धार्मिक है, बल्कि सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक बन जाता है, जहां विभिन्न समुदाय एक साथ मिलकर आनंद मनाते हैं।

निष्कर्ष

निष्कर्षतः, धनतेरस एक ऐसा पर्व है जो हमें जीवन के द्वंद्व—धन और स्वास्थ्य—के बीच संतुलन सिखाता है। यह न केवल दीपावली के द्वारपाल की भूमिका निभाता है, अपितु वर्ष भर की समृद्धि का आधार भी बनाता है। आधुनिक युग में जब तनाव और आर्थिक अनिश्चितताएं बढ़ रही हैं, तब धनतेरस की यह परंपरा हमें आस्था, कर्मठता और पारिवारिक बंधनों की याद दिलाती है। यदि हम इस पर्व के संदेश को अपनाएं—स्वास्थ्य की रक्षा करें, धन का सदुपयोग करें और पर्यावरण का सम्मान करें—तो निश्चित ही हमारा जीवन और भी समृद्ध हो जाएगा। धनतेरस की यह ज्योति न केवल घरों को रोशन करती है, बल्कि हृदयों में भी आशा का दीप प्रज्वलित कर देती है, जो हमें सदा प्रेरित करती रहेगी।

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