वन्यजीव संरक्षण भारत में उठाए गए कदम और उनकी सफलता

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वन्यजीव संरक्षण भारत में उठाए गए कदम और उनकी सफलता भारत, जो अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिए विश्व भर में जाना जाता है, ने वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र म

वन्यजीव संरक्षण भारत में उठाए गए कदम और उनकी सफलता


भारत, जो अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिए विश्व भर में जाना जाता है, ने वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। यह देश बाघों, हाथियों, गैंडों, शेरों और असंख्य अन्य प्रजातियों का घर है, जो इसे एक अनूठा पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करते हैं। हालांकि, बढ़ती जनसंख्या, औद्योगीकरण, शहरीकरण और अवैध शिकार जैसे दबावों ने वन्यजीवों और उनके आवासों को खतरे में डाल दिया है। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत सरकार, गैर-सरकारी संगठनों और स्थानीय समुदायों ने मिलकर कई संरक्षण पहल शुरू की हैं, जिनमें से कई ने उल्लेखनीय सफलता हासिल की है, जबकि कुछ अभी भी प्रगति की राह पर हैं।

भारत में वन्यजीव संरक्षण की शुरुआत

भारत में वन्यजीव संरक्षण की शुरुआत औपनिवेशिक काल में ही हो गई थी, लेकिन स्वतंत्रता के बाद इसे और अधिक व्यवस्थित और वैज्ञानिक दृष्टिकोण मिला। 1972 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम पारित होना एक ऐतिहासिक कदम था। इस कानून ने विभिन्न लुप्तप्राय प्रजातियों को संरक्षण प्रदान करने के लिए एक मजबूत कानूनी ढांचा तैयार किया। इसके तहत, वन्यजीवों को उनकी संकटग्रस्तता के आधार पर विभिन्न अनुसूचियों में वर्गीकृत किया गया और उनके शिकार, व्यापार और तस्करी पर सख्त प्रतिबंध लगाए गए। इस अधिनियम ने राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजीव अभयारण्यों और बायोस्फीयर रिजर्व जैसे संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना को भी बढ़ावा दिया, जो वन्यजीवों के लिए सुरक्षित आवास प्रदान करते हैं।

वन्यजीव संरक्षण भारत में उठाए गए कदम और उनकी सफलता
भारत में वन्यजीव संरक्षण की सबसे चर्चित और सफल पहलों में से एक है प्रोजेक्ट टाइगर। 1973 में शुरू किया गया यह कार्यक्रम बाघों की घटती आबादी को बचाने के लिए लाया गया था। उस समय भारत में बाघों की संख्या खतरनाक रूप से कम हो गई थी, लेकिन प्रोजेक्ट टाइगर के तहत बाघ अभयारण्यों की स्थापना, अवैध शिकार पर नियंत्रण और स्थानीय समुदायों को संरक्षण में शामिल करने जैसे प्रयासों ने बाघों की आबादी को स्थिर करने में मदद की। आज भारत में बाघों की संख्या बढ़कर लगभग 3,000 से अधिक हो गई है, जो विश्व की कुल बाघ आबादी का लगभग 70% है। कॉर्बेट, रणथंभौर, सुंदरबन और बांधवगढ़ जैसे टाइगर रिजर्व न केवल बाघों के लिए सुरक्षित आश्रय स्थल बन गए हैं, बल्कि जैव विविधता के संरक्षण और पर्यावरणीय जागरूकता के केंद्र भी बन गए हैं।

इसी तरह, प्रोजेक्ट एलिफेंट और एक सींग वाले गैंडों के संरक्षण के लिए उठाए गए कदमों ने भी महत्वपूर्ण परिणाम दिए हैं। प्रोजेक्ट एलिफेंट ने हाथियों के आवास को संरक्षित करने और मानव-हाथी संघर्ष को कम करने पर ध्यान केंद्रित किया है। असम, कर्नाटक और केरल जैसे राज्यों में हाथी कॉरिडोर की स्थापना और उनके प्राकृतिक आवासों को पुनर्जनन ने इस प्रजाति को कुछ हद तक सुरक्षित किया है। वहीं, असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में एक सींग वाले गैंडों की आबादी को बढ़ाने के लिए किए गए प्रयास विश्व स्तर पर सराहे गए हैं। कड़े संरक्षण उपायों, स्थानीय समुदायों के सहयोग और अवैध शिकार पर प्रभावी नियंत्रण के कारण काजीरंगा में गैंडों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

अन्य प्रजातियों का संरक्षण

हालांकि, संरक्षण के ये प्रयास केवल बड़े और लोकप्रिय प्रजातियों तक सीमित नहीं हैं। भारत ने छोटे और कम चर्चित प्रजातियों, जैसे ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, गंगा डॉल्फिन और हिम तेंदुए, के संरक्षण के लिए भी कई योजनाएं शुरू की हैं। उदाहरण के लिए, गंगा नदी में पाई जाने वाली गंगा डॉल्फिन को बचाने के लिए नमामि गंगे जैसे कार्यक्रमों के तहत नदियों की स्वच्छता और उनके प्राकृतिक आवास को संरक्षित करने पर जोर दिया गया है। इसी तरह, राजस्थान में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के लिए विशेष अभयारण्य स्थापित किए गए हैं, हालांकि इस प्रजाति को बचाने में अभी भी कई चुनौतियां बाकी हैं।

सामुदायिक भागीदारी

वन्यजीव संरक्षण में स्थानीय समुदायों की भागीदारी को बढ़ावा देना भारत की एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि रही है। संरक्षण के शुरुआती दिनों में स्थानीय लोगों को अक्सर वन्यजीव अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों से दूर रखा जाता था, जिससे उनके और संरक्षणवादियों के बीच तनाव पैदा होता था। लेकिन अब सामुदायिक संरक्षण मॉडल ने इस दूरी को कम किया है। उदाहरण के लिए, सुंदरबन में स्थानीय मछुआरों को बाघ संरक्षण में शामिल किया गया है, जिससे अवैध शिकार में कमी आई है। इसी तरह, वन समुदायों को इको-टूरिज्म और संरक्षण से संबंधित रोजगार के अवसर प्रदान किए गए हैं, जिससे उनकी आजीविका और वन्यजीवों के प्रति उनकी जिम्मेदारी दोनों बढ़ी हैं।

तकनीक का उपयोग भी भारत में वन्यजीव संरक्षण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। ड्रोन, सैटेलाइट इमेजरी और जीपीएस ट्रैकिंग जैसे उपकरणों ने वन्यजीवों की निगरानी और अवैध गतिविधियों पर नजर रखने में मदद की है। इसके अलावा, जागरूकता अभियानों और शिक्षा के माध्यम से लोगों को वन्यजीवों के महत्व के बारे में समझाया जा रहा है। सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म ने युवाओं को संरक्षण से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

जागरूकता अभियान

हालांकि, इन सभी सफलताओं के बावजूद, भारत में वन्यजीव संरक्षण के सामने कई चुनौतियां अभी भी बरकरार हैं। मानव-पशु संघर्ष, अवैध शिकार, जलवायु परिवर्तन और आवासों का क्षरण कुछ ऐसी समस्याएं हैं, जो संरक्षण के प्रयासों को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए, मानव-पशु संघर्ष के कारण हर साल सैकड़ों लोग और वन्यजीव अपनी जान गंवाते हैं। इसके अलावा, कुछ संरक्षित क्षेत्रों में संसाधनों की कमी और प्रबंधन की कमियों ने संरक्षण कार्यों को प्रभावित किया है।

फिर भी, भारत ने वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में जो प्रगति की है, वह न केवल राष्ट्रीय गौरव का विषय है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी एक उदाहरण है। प्रोजेक्ट टाइगर, प्रोजेक्ट एलिफेंट और गैंडों के संरक्षण जैसे कार्यक्रमों ने न केवल भारत की जैव विविधता को बचाने में मदद की है, बल्कि यह भी दिखाया है कि दृढ़ इच्छाशक्ति, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और सामुदायिक सहयोग से प्रकृति को संरक्षित करना संभव है। भविष्य में इन प्रयासों को और सशक्त करने के लिए, सरकार, संगठनों और नागरिकों को मिलकर काम करना होगा ताकि भारत की प्राकृतिक धरोहर को अगली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखा जा सके।

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