विशुद्ध भारतीय तकनीक जुगाड़ तकनीक जब पूरी दुनिया तकनीक के नए-नए अविष्कारों में व्यस्त थी, हमारे देश ने भी सोचा—भई देखो, यह तकनीक-विकनीक विकसित करने म
विशुद्ध भारतीय तकनीक जुगाड़ तकनीक
जब पूरी दुनिया तकनीक के नए-नए अविष्कारों में व्यस्त थी, हमारे देश ने भी सोचा—भई देखो, यह तकनीक-विकनीक विकसित करने में जो बेवजह का श्रम और धन व्यर्थ होता है, वह कोई समझदारी की बात नहीं। क्यों न ऐसा कोई ‘जुगाड़’ लगा लिया जाए कि देश भी तकनीकी तौर पर आगे दिखे, और दिमाग भी ज़्यादा न खपाना पड़े। बस, यहीं से जन्म हुआ उस अनुपम भारतीय तकनीक का, जिसका नाम है—जुगाड़।
यह तकनीक किसी विशेष वर्ग तक सीमित नहीं है। देश का गरीब आदमी हो या बड़ा व्यापारी, मंत्री हो या संतरी—हर कोई जुगाड़ तकनीक के बल पर जीवन की नैया पार कर रहा है। यह देश, जो अब जुगाड़ के मामले में ‘आत्मनिर्भर’ हो गया है, अब चाहे तो जुगाड़ तकनीक का निर्यात भी कर सकता है, पर किया नहीं जाता—क्योंकि जब खुद सरकारें ही जुगाड़ से चल रही हों, तो तकनीक का औपचारिक निर्यात भला कैसे संभव है?
आज इस देश में हर कोई जुगाड़ में व्यस्त है। कोई दो रोटी के जुगाड़ में है, कोई प्रेमिका को भगाने के। नेताजी वोटरों को वादों के जुगाड़ से पकड़ रहे हैं, कर्मचारी बॉस की पत्नी को पटाकर इन्क्रीमेंट बढ़ाने की कोशिश में है। संस्थाएं फंड के लिए जुगाड़ में हैं, कंपनियाँ सरकारी योजनाओं को हथियाने की फिराक में। कर्मचारी बिना कुछ किए तनख्वाह खाने का जुगाड़ कर रहे हैं। कम पढ़े-लिखे लोग ऊँचे पदों पर बैठने की तरकीब भिड़ा रहे हैं। अपराधी ज़मानत के, लेखक प्रकाशन के और प्रकाशक रॉयल्टी हज़म करने के जुगाड़ में लगे हैं। देश का प्रत्येक नागरिक जुगाड़ की किसी न किसी श्रेणी में पंजीकृत दिखता है।
पूरा शहर जैसे ‘जुगाड़ मोड’ में तब्दील हो चुका है। बिजली जुगाड़ से आ रही है, पानी भी जुगाड़ से बह रहा है, और सड़कें जुगाड़ से रेंगने लायक बनाई जा रही हैं। कहीं व्यक्तिगत संपर्क का जुगाड़ है, तो कहीं कॉलोनी की वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने का। कई कॉलोनियों ने विधायक कोटे से सड़कें चमका ली हैं, और कई अभागी गलियाँ अब भी गड्ढों में डूबी, खून के आँसू रो रही हैं।
जुगाड़ अब महज एक शब्द नहीं रहा, बल्कि यह देश के जड़-चेतन की आत्मा में रचा-बसा ब्रह्म है। हर व्यक्ति, हर परिस्थिति, हर कालखंड में इसका अर्थ अलग है। यह एक सार्वभौमिक भावना है—कुछ भी हो सकता है, और कुछ भी मतलब वाकई कुछ भी!
अब देखिए, मैंने जुगाड़ से एक लघु प्रेमकथा भी रची है। यदि आप में से किसी का किसी जुगाडी संपादक से जुगाड़ हो, तो कृपया इसे छपवा दीजिए। और अगर इस पर कोई पुरस्कार-वुरस्कार भी जुगाड़ से मिल जाए, तो कहना ही क्या! लघु कथा यह है—"बड़ी मुश्किल से अपनी जुगाड़ से मिलने के लिए जुगाड़ से एक मोटरसाइकिल जुटाई। चला ही था कि ट्रैफिक पुलिस ने पकड़ लिया। थोड़ी ‘चाय-पानी’ का जुगाड़ माँगा। बंदे का तो ऊपर तक जुगाड़ था। फोन कराया, तब जाकर छोड़ा गया, और फिर जाकर अपनी जुगाड़ से मिल पाया।"
जुगाड़ का एक मूर्त रूप भी है—वह जो किसानों ने गढ़ा है। गाँवों में ट्रैक्टरों की जगह जुगाड़ गाड़ियाँ दौड़ रही हैं—न कोई लाइसेंस, न कोई पूछताछ। यह अब गाँववालों की आजीविका और ट्रांसपोर्ट दोनों का साधन बन चुकी है। ये वही जुगाड़ हैं जिनकी वजह से अस्पतालों में कभी-कभी मरीज नहीं, बल्कि खुद जुगाड़ ही पलट जाते हैं और भीड़ बढ़ा देते हैं। और हाँ, मुझे यूँ मत देखिए, मैं गल्ले पर बैठा हूँ, और मेरी कोई कमीशन डील इन जुगाड़ वालों से तय नहीं है।
हम भारतीय इतने दक्ष हैं कि किसी भी बस या ट्रेन में भीड़ के बावजूद सीट पर रुमाल रखकर बैठने का जुगाड़ कर लेते हैं। जनरल टिकट या सिर्फ प्लेटफॉर्म टिकट लेकर टीटी से सेटिंग करके एसी कोच में सफर करने का जुगाड़ चलता है। और अगर वहाँ भी न चला, तो कम से कम पैंट्री कार में तो घुस ही जाते हैं—बिना टिकट, बिना संकोच।
इस जुगाड़ तकनीक को विधिवत पढ़ाया जाना चाहिए। बच्चों के पाठ्यक्रम में इसे शामिल किया जाना चाहिए ताकि उनमें बचपन से ही नवाचार की भावना विकसित हो। सरकार को चाहिए कि इस पर राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित करे, जहाँ जुगाड़ विशेषज्ञ अपने अनुभवों के आख्यान प्रस्तुत करें। हैंड्स-ऑन वर्कशॉप हों, प्रमाणपत्र वितरित किए जाएँ, और यदि संभव हो तो इसे संविधान में जोड़ दिया जाए—जैसे एक नई "जुगाड़ सूची", जो संसद में ध्वनिमत से पारित की जाए। तब जाकर हमारा लोकतंत्र सचमुच भारतीय लोकतंत्र कहलाने का अधिकारी होगा।
सच तो यह है कि जितनी शक्ति एक परमाणु बम नहीं दे सकता, उतनी ताकत यह भारतीय जुगाड़ तकनीक दे सकती है। और इसी सनातन परंपरा के उत्सव में मैंने एक गीत भी लिखा है, जिसे शायद कोई निर्माता अपनी अगली फ़िल्म में ले ले और मैं भी अपने लेखन के बदले कुछ रुपये पाने का जुगाड़ कर लूं -
"जब तक रहेगा समोसे में आलू,
जुगाड़ की तकनीक रहेगी चालू!"
- डॉ. मुकेश असीमित
✉ drmukeshaseemit@gmail.com


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