तुलसीदास जी अपने समय के दीप स्तंभ थे

SHARE:

तुलसीदास जी अपने समय के दीप स्तंभ थे आदरणीय सभी प्रबुद्धजन, सबसे पहले मैं हिंदी साहित्य भारती अलीगढ़ का आभार प्रकट करूंगा कि तुलसी जयंती कार्यक्रम म

तुलसीदास जी अपने समय के दीप स्तंभ थे


दरणीय सभी प्रबुद्धजन,
सबसे पहले मैं हिंदी साहित्य भारती अलीगढ़ का  आभार प्रकट करूंगा कि तुलसी जयंती कार्यक्रम में मुझे बोलने का अवसर दिया है। हिंदी साहित्य भारती का समाज में प्रचलित सामाजिक कुरीतियों को दूर करना संस्कृति की रक्षा करना ,आदर्श स्थापित करना है।

संक्षेप में , मैं इस तरह कहूंगा की रात के 9:00 बजे केक काटकर बर्थडे मनाना, घर के खाने की बजाय मोमोज तरह-तरह की बाजारू व्यंजनों पर  लार टपकाना, पेट्रोल के खर्चे और रिचार्ज के खर्चे से परिवार को बोझिल करना  समय की दरकार नहीं है। वैसे एल्डस हग्जले ने  अपने उपन्यास ब्रेव न्यू वर्ल्ड में चेताया है बहुत पहले कि इस तरह का युग आने वाला है जबकि मशीन राज करेगी। आदमी का सिर बड़ा होगा पर हाथ पैर कमजोर होंगे।अब तक , स्टीम पावर ने मसल्स पावर को रिप्लेस किया  तो क्रांति आ गई , आज कार्बन और सिलिकॉन संचार क्षेत्र में क्रांति ला रहा है। मानव को रिप्लेस करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हाजिर है रोबोट,  ड्रोन और उन्नत किस्म की मशीनें , इसी का एक उदाहरण मात्र हैं ।

तुलसीदास जी अपने समय के दीप स्तंभ थे
तुलसीदास जी को देखें वह काल संक्रमण काल  था ,जिसमें हम लोग पराधीन थे, उन्होंने एक जगह है लिखा भी है पराधीन सपनेहु सुख नाहीं ।

रामायण कई कवियों ने लिखी है जिनमें वाल्मीकि, बरेली के राधेश्याम शर्मा की रामायण एक मथुरा प्रिंट, साकेत, बंगाली में कृतिवास पंडित की रामायण ,तेलुगु में रामायण ,मलयालम कंबन  रामायण आदि आदि, लेकिन जितनी  रामचरितमानस जो की अवधी में है, लोकप्रिय है, भारत  के अधिकांश भाग में इतनी  लोकप्रिय और कोई नहीं। और कोई रामायण भी ऐसी नहीं है जिसके दिन रात अखंड पाठ अथवा सुंदरकांड पाठ होते हों, और श्री  फुल्लौरी जैसी आरती  रामचरितमानस में भी है और वह  घरों में भी  गाई जाती है वह है : ' जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता '। 

तुलसीदास जी के जीवन में वैसे भी पीड़ा कम नहीं थी इधर पत्नी से दुत्कार खाए हुए व्यक्ति दूसरी तरफ युवावस्था में आते-आते यह  कहना पड़े कि तुलसी सरनाम गुलाम है राम को जाको रुचे सो कहो सब कोऊ , मांग के खइबो  ,मसौत  को  सोइबौ , लेबो को एक न देबे को दोऊ ।। (कवितावली  )

गोस्वामी जी ने  एक संदेश दिया है कि सीधे सच्चे और ईमानदार लोगों को मीठे और मीठे ठगों   से अर्थात सांप और आस्तीन के सांपों से  सचेत और सावधान रहना चाहिए अन्यथा वे आप  का शोषण करते रहेंगे आपके हित को दीमक की तरह  नुकसान पहुंचाते रहेंगे, उन्होंने कहा भी वक्र चंद्रमा ग्रसहिं न  राहू ।

तुलसी जी अपने समय के दीप स्तंभ थे। वह स्वयं क ई कारणों से खिन्न  थे ,लेकिन वे समाज को  सुदृढ़ देखना चाहते थे, सुव्यवस्थित देखना चाहते थे।संत ऋषियों के संग ने  उनको वेद वेदांगों में पारंगत बना दिया और  स्वान्त: सुखाय के लिए  रघुनाथ गाथा नहीं  वरन उन्होंने  संतति के लिए  एक कालजयी  पावन ग्रंथ को रच दिया अंतर में सभी का मार्ग प्रशस्त करने  वाला है । उन्होंने अपने अंतर्मन को छुआ और लोगों के मन को भी छुए याद करिए अपने आचार और  व्यवहार का सिंहावलोकन  उन्होंने वशिष्ठ जी के मुंह से किस तरह किया है, :

महिमा अमिति वेद नहिं जाना, मैं केहिं भांति कहहुं भगवाना, उपरोहित्य कर्म अति मंदा ,(उत्तरकांड ,दोहा 47 चौपाई 3) ।

आज ऐसे महापुरुष की बेहद जरूरत है। शिक्षा ऐसी नहीं होनी चाहिए  कि करीब- करीब आधा जीवन पढ़ने में निकाल दें और फिर जो पढ़ाई पढ़ी है उसका अपव्यय आपस में उच्च नीच करके और आधे जीवन को निकालें, भेद विविधता करते रहें , यह परिस्थिति और प्रवृत्ति समाज और संस्कृति  की पोषक नहीं है । सभी संस्कृतियों की जननी कृषि है, खानाबदोश जिंदगी को व्यवस्थित रूप अंकुरित होने उसको संभालते उसकी रक्षा करने और उसको अन्य बनने तक घर लाने तक की प्रक्रिया में बड़े धीरज साहस और कठिनाइयों का सामना करने की जरूरत होती है भला इससे भी बड़ी कोई संस्कृति हो सकती है, इसीलिए तुलसीदास जी ने कृषि वृत्ति को उत्तम माना। लेकिन उनके समय भी कवितावली में स्पष्ट  उल्लेख है कि  जीविका का काफी संकट  था   और खेती में भी पैदावार उतनी  नहीं थी ।

परहित सरिस धर्म नहिं भाई , उत्तरकांड (40 , 1)इस तरह पाप- पुण्य की परिभाषा  जनता जनार्दन में व्याख्यायित करने वाले संत तुलसीदास जी को अपवाद स्वरूप  में और नारियों  व शंबूक के संबंध में कहे गए  युक्ति के संबंध में जोड़कर नहीं देखना चाहिए। कारण कि आप खुले तौर पर प्रकृति के आधारभूत नियमों की अनदेखी नहीं कर सकते । समय बेहद गतिमान है, विज्ञान तकनीकी अभियांत्रिकी और अन्य अध्यात्म विषय प्रश्न जो अव्याकृत हैं ,हमेशा अनुत्तरित  रहे हैं । जीवन को भी समय और परिस्थिति के अनुसार अनुकूलन हमें करना चाहिए । जहां सुमति तहं संपत्ति नाना, जहां कुमति तहं विपति निदाना , का उद् घोष करने वाले , एसे संत महापुरुष को मैं श्रद्धा के साथ उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को नमन करते हुए उन्हें याद करता हूं , एसे महापुरुष हमारे बीच अवतरित होते रहें ,हमें  मार्ग दिखाते रहें ।


- क्षेत्रपाल शर्मा,
पूर्व संयुक्त निदेशक , ई एस आई सी मुख्यालय ,नयी दिल्ली, हिन्दी विद्वान ,राजभाषा विभाग (भारत सरकार ) ।।    kpsharma05@gmail.com
(सरस्वती इंटर कॉलेज आगरा रोड अलीगढ़ में- तुलसी जयंती के अवसर पर) ।।

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका