जन्माष्टमी पर्व पर भाषण Speech On Krishna Janmashtami in Hindi जन्माष्टमी के उत्सव को मनाने के लिए एकत्रित हुए हैं। यह पर्व मात्र एक त्योहार नहीं, बल्
जन्माष्टमी पर्व पर भाषण
आदरणीय महानुभाव, गुरुजनों और मेरे प्यारे मित्रों,
आज हम सब यहाँ एक अत्यंत पावन और आनंदमय पर्व, जन्माष्टमी के उत्सव को मनाने के लिए एकत्रित हुए हैं। यह पर्व मात्र एक त्योहार नहीं, बल्कि एक दिव्य संदेश है, एक ऐसी प्रेरणा है जो युगों-युगों से हमें धर्म, प्रेम और कर्तव्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती रही है। जन्माष्टमी, भगवान श्री कृष्ण के अवतरण का दिन है, उस परम चेतना के पृथ्वी पर आगमन का उत्सव है, जिसने मानव जीवन को एक नई दिशा और एक गहरा अर्थ प्रदान किया।
भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, जब चारों ओर घना अंधकार छाया हुआ था, जब अधर्म और अत्याचार का बोलबाला था, तब मथुरा के कारागार में देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान के रूप में भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया। उनका जन्म एक विषम परिस्थिति में हुआ, जहाँ जन्म लेते ही उन्हें अपने माता-पिता से अलग होना पड़ा। यह हमें सिखाता है कि जीवन में परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हों, हमें धैर्य और साहस से उनका सामना करना चाहिए। यमुना के उफनते प्रवाह के बीच वासुदेव का अपने पुत्र को टोकरी में लेकर गोकुल तक पहुँचना, यह केवल एक कथा नहीं, बल्कि इस बात का प्रतीक है कि जब हम धर्म के मार्ग पर चलते हैं, तो स्वयं प्रकृति भी हमारी सहायक बन जाती है।
भगवान कृष्ण का बाल्यकाल गोकुल और वृन्दावन की गलियों में बीता। उनकी बाल लीलाएँ हमें जीवन के हर पल को आनंद और उल्लास के साथ जीने की प्रेरणा देती हैं। माखन चुराने की उनकी नटखट अदाएँ, गोपियों के साथ उनकी रासलीला, और ग्वाल-बालों के साथ उनके खेल, यह सब उनके जीवन के सहज और प्रेमपूर्ण पक्ष को दर्शाते हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए भी जीवन के छोटे-छोटे सुखों का आनंद लेना नहीं भूलना चाहिए। दही-हांडी का उत्सव केवल एक खेल नहीं, बल्कि यह संगठन, एकता और लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मिलकर प्रयास करने का प्रतीक है।
जब हम श्री कृष्ण के जीवन को देखते हैं, तो पाते हैं कि उनका हर रूप निराला है। वे एक आदर्श पुत्र हैं, एक सच्चे मित्र हैं, एक कुशल रणनीतिकार हैं और एक महान गुरु भी हैं। कुरुक्षेत्र के मैदान में जब अर्जुन मोह और विषाद से ग्रस्त होकर अपने कर्तव्यों से विमुख हो रहे थे, तब श्री कृष्ण ने उन्हें गीता का दिव्य ज्ञान दिया। उन्होंने अर्जुन को कर्मयोग का महत्व समझाया, आत्मा की अमरता का रहस्य बताया और धर्म की स्थापना के लिए युद्ध करने की प्रेरणा दी। भगवद्गीता के माध्यम से उन्होंने जो संदेश दिया, वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है। यह हमें सिखाता है कि हमें फल की चिंता किए बिना अपने कर्तव्यों का पालन निःस्वार्थ भाव से करना चाहिए।
जन्माष्टमी का पर्व हमें भगवान कृष्ण के जीवन और उनके उपदेशों का स्मरण कराता है। यह हमें अधर्म पर धर्म की, असत्य पर सत्य की और अंधकार पर प्रकाश की विजय का विश्वास दिलाता है। आज जब हमारा समाज विभिन्न प्रकार की चुनौतियों और समस्याओं से घिरा है, तब भगवान कृष्ण के जीवन से हमें प्रेरणा लेने की आवश्यकता है। हमें उनके द्वारा दिखाए गए प्रेम, करुणा, न्याय और समरसता के मार्ग पर चलना होगा।
आइए, इस पावन अवसर पर हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि हम भगवान श्री कृष्ण के आदर्शों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करेंगे। हम अपने समाज में प्रेम और सद्भाव का वातावरण बनाएँगे और धर्म के मार्ग पर चलकर एक बेहतर राष्ट्र और विश्व के निर्माण में अपना योगदान देंगे।
इसी मंगल कामना के साथ, मैं आप सभी को जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ।
जय श्री कृष्ण!
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