बॉम्बे हैंगओवर्स हर्ष का विषय है, कि कविता का एक सशक्त स्वर होने के साथ-साथ रोशेल पोतकर कहानी विधा को भी अपनी सृजनशीलता और सुचिंतित योगदान से समृद्ध ब
बॉम्बे हैंगओवर्स
हर्ष का विषय है, कि कविता का एक सशक्त स्वर होने के साथ-साथ रोशेल पोतकर कहानी विधा को भी अपनी सृजनशीलता और सुचिंतित योगदान से समृद्ध बना रही हैं। मायानगरी मुंबई में पनपते,बसते जन-जीवन की दिलचस्प और भावोत्तेजक कहानियाँ उनके सद्य प्रकाशित और हिंदी में अनूदित प्रथम संग्रह-बॉम्बे हैंगओवर्स की आधार भूमि हैं। कथा संग्रह का औचित्य एवं सार्थकता इस बात से पता चलती है कि यह हमारे भोगे हुए और जिए जाते हुए यथार्थ को विचारणीय तरीक़े से हमारे समक्ष उपस्थित करता है। हमारे समय के सामूहिक सामाजिक संघर्ष को केंद्र में रखकर लिखी गईं ये कहानियाँ हमारी होकर भी हमारी नहीं हैं-एक अद्भुत शैली और कलात्मक विसामान्यीकरण की तकनीक को अपनाकर रोशेल हमारे समक्ष एक ऐसा यथार्थ प्रस्तुत करती हैं जो हमें जीवन के प्रति एक नई दृष्टि देता है। मानवीय संवेदनाओं से लबरेज़ कहानियों का यह संग्रह समर्पित है “उन सभी संघर्षशील लोगों और सपने बुनने वालों को, जिनकी उड़ानें सीमाओं से नहीं हौसलों से तय होती हैं”(आमुख)।
एक शहर किस हद तक अपने साथ जीने वालों की ज़िंदगियों में रचा बसा होता है यह इस कहानी संग्रह में गहराई से झलकता है। महानगरीय जीवन से जुड़े संघर्ष, प्रेम, लालसा अस्तित्व के संकट और जीवट को समझने के लिए इस संग्रह की कहानियाँ बहुत महत्वपूर्ण ज़रिया बनती हैं। माया नगरी मुम्बई के जादुई यथार्थ और उसके विपरीत अंतरंग जीवन की अस्त व्यस्तता की कुछ झलकियाँ देता यह संग्रह गद्य में रचनात्मक प्रयोग का सुखद उदाहरण प्रस्तुत करता है ।शहर के पुरातन और अर्वाचीन रूपों के बीच उसकी आत्मा को खोजती हुई ये कहानियाँ मूर्त/अमूर्त,लौकिक/अलौकिक,तार्किक/भावनात्मक,परंपरा बोध/आधुनिकता आदि भिन्नताओं के चिरपरिचित खाँचों को तोड़ती हुई एक गहन कविता बन जाती हैं जिसके सभी पहलुओं को पकड़ पाना आवश्यक भी है और दुःसाध्य भी।संकलन विषयगत वैविध्य व भाषा की नई शैलियों से अलंकृत है जिसका प्रमाण हरेक कहानी में मिलता है।
वैचारिकता और संवेदनशीलता का तारतम्य बिठाते हुए इस संग्रह की प्रत्येक कहानी महानगरीय जीवन के पेंचों में उलझे मनुष्यों के जीवन की जटिलता को गहराई से चित्रित करती है । संवेदनात्मकता के स्तर पर भी ये कहानियाँ बेजोड़ हैं। साथ ही शिल्प, विषय वस्तु, विचार के स्तर पर रोशेल की संबद्धता अप्रतिम है।मुम्बई जैसी माया नगरी में हाशिये पर जीवन बिताते कहानियों के पात्र कभी न हार मानने के जुझारूपन और जीवटता से दिलोदिमाग़ पर गहरी चोट करते हैं।बेकेट, एनुविल, ऑसबोर्न जैसे नाट्यकारों के नाटकों की तरह रोशैल की कहानियों के घटनाक्रम भी पाठकों को झकझोरते हैं । पूरे संग्रह की कहानियों का बीज भाव डर को जीतने का जज़्बा या साहस है, जो घोर निराशा के क्षणों में भी फिर से उठने और सपने देखने की प्रेरणा बनता है ।जीवन मूलतः उम्मीद करने, टूट कर बिखरने और एक बार फिर से आशान्वित होकर आगे बढ़ने का ही तो नाम है और अधिकतर कहानियाँ इस क्रम को अक्षरशः दर्शाती हैं । इन कहानियों को पढ़ने से एक “उदात्त वृत्ति”विकसित होती है जिसे सार्त्र जैसे सौंदर्यशास्त्री ने भी ज़रूरी प्रयोजन माना है।
पहली ही कहानी परंपरागत पुरुषत्व को नकारते हुए एक ऐसे संवेदनशील पुरुष के उद्भव की संभावना को पुख़्ता करती है जो अपने हक़ और अधिकारों को केन्द्र में न रख कर,अपनी पत्नी को पूरा सम्मान और उसकी ज़रूरत के क्षणों में अपने साथ और सहयोग से पूरक बनता नज़र आता है। नारायण आधुनिक समय में पुरुषों के लिए ख़ासकर युवाओं के लिए एक अनुकरणीय व्यक्ति या कि आदर्श पुरुष के रूप में उभरता है। आत्म-दयनीयता तथा भावनात्मक उतार-चढ़ाव से उदासीनता के भँवर में डूबती जा रही मुनिका को नारायण और उनके बच्चों का सहारा और प्रोत्साहन वापस जीवन की ओर खींच लाता है।यह कहानी एक तरफ तो एक ब्रेस्ट कैंसर सरवाइवर के जीवन की उथल-पुथल को चित्रांकित करती है और दूसरी तरफ़ परंपरागत लिंग आधारित धारणाओं और उनसे उपजी कुरीतियों पर कुठाराघात करती है । शारीरिक अस्वस्थता की दशा में मुनिका की मनःस्थिति का बहुत ही सजीव चित्रण और उसके प्रति परिवार की बदलती भूमिका, उसकी आत्म छवि और आत्मसम्मान में किंचितमात्र भी परिवर्तन नहीं लक्षित होने की भावना समाज में आ रहे बदलाव और एक स्वस्थ मानसिकता की ओर पहल करती है। बॉडी पॉज़िटिविटी पर केंद्रित यह कहानी इस बात का भी उदाहरण है कि एक पढ़ी लिखी विचारशील युवती किस तरह अपने ऊपर आई विपदा से बाहर निकलकर अपने जीवन को कुशल तरीक़े से संभाल सकती है।दूसरी ओर, परंपरागत लिंग आधारित अवधारणाओं से इतर नारायण की छवि ऐसे पुरुष की है जो कोमलता और नज़ाकत से अपनी कैंसर सर्वाइवर पत्नी को अपने स्पर्श से ऊर्जान्वित कर देता है। साथ ही परिवार की ज़िम्मेदारियों को निभाते हुए उसकी विवशता भी उसे अत्यंत मानवीय बनाती हैः “नारायण इसका अंदाज़ा तो नहीं लगा पाया कि वह कितना बदल गया था,हर पल हर क्षण “द कामिंग इफेक्ट” “द रॉक ऑफ़ गिब्राल्तर” “ द पिलर ऑफ़ स्ट्रेंथ बनते बनते।”(29)
मुंबई के भागमभाग से भरे जीवन में जहाँ एक तरफ़ ठहरकर चीज़ों और संबंधों को मानवीय परिप्रेक्ष्य में समझना दुष्कर लगता है वहीं रोशेल न केवल साधारण मनुष्यों के जीवन में घटित होने वाली बातों को मर्मस्पर्शी तरीक़े से पठनीय बनाती हैं, बल्कि उनसे जुड़े मूल्यों और विषमताओं पर भी चिंतन के लिए मजबूर करती हैं। बड़े शहरों का मशीनी जीवन किस तरह आम आदमी को स्व केंद्रित व संवेदना हीन बना देता है, उन्हें भावनात्मक रूप से मृत बनाता है यह “फैब्रिक” कहानी में हमें देखने को मिलता है। यह कहानी एक तरफ़ आम आदमी के अधूरे सपनों और उसके नैराश्य को उजागर करती है और दूसरी तरफ़ कैलास के जीवन में दो महिलाओं की उपस्थिति से उनके जीवन की घुटन, प्रेम और आक्रोश की परिणति अंततः उसके प्रति विरक्तता और एक दूसरे के प्रति बहनापन की भावना और एक अलग ही चेतना की सृष्टि में दिखाती है।
कहानी “सुगंध”जीवन में बहुत सारे अमूर्त भावों विषयों की तरह अनेक तरह की सुगंधों को व्याख्यायित करती हुई रूस्सी की सनक और कुछ ख़ास तरह की फ़्रेग्रेंस की तलाश में उसके जुनून और इस प्रक्रिया में उसके जीवन में आए तनाव, अवसाद, दरारें और उसकी प्रेरणास्रोत बनती स्टेला के प्रति उसके झुकाव को बहुत ही सूक्ष्मता से प्रदर्शित करती है।
संकलन की सभी कहानियों के किरदार अपने आप में विशिष्ट हैं। वे अपनी मानवीय त्रुटियों और तमाम खामियों के बावजूद अविस्मरणीय बन जाते हैं और श्रम के प्रति उनका प्रेम उनकी वर्ग विशेषता के बावजूद उन्हें एक ख़ास पहचान देता है । कहानी “फैब्रिक” में कैलास का श्रम के प्रति आग्रह ध्यान देने योग्य बात है, वह कहता है -“हर छुट्टी के बाद काम पर वापस आने पर उसे महसूस होता कि उसकी साँसों को रूई की धूल की नमी सुहानी लगती थी, जैसे हवा उसके साथ कोई और ख़ूबसूरत पक्का वादा कर रही हो ।(56)
मनुष्य जीवन अनेक प्रकार की जटिलताओं से भरा होता है। मानवीय संबंध भी हमें अनेक तरह की कसौटियों पर कसते हैं।इन कहानियों का संसार अपने भीतर वो तमाम अव्यवस्थाएँ, अंतर्विरोध, विडंबनाओं और विरोधाभासों को समेटता है जिनसे जूझते हुए व्यक्ति विशेष के साहस और नैतिक विवेक की पहचान होती है। एक तौर पर देखें तो अधिकांश कहानियाँ स्त्री जीवन के अनखुले रहस्यों को उनकी अनकही आकांक्षाओं को सहज अभिव्यक्ति देती हैं पर वही कहानियाँ स्त्री- पुरुष संबंधों को लेकर एक नयी अंतर्दृष्टि जगाती भी दिखती हैं और यह उम्मीद भी कि समय सबको माँजते हुए सब का परिष्कार करता है। पितृ सत्तात्मक समाज में महिलाओं पर होने वाले तमाम तरह के अपराधों की बनिस्बत नई पीढ़ी में एक सतर्कता, अधिकार बोध और कामना और सेक्सुआलिटी को लेकर भी एक तरह की निर्भीकता विकसित हुई है जिसका अवलोकन हम “धुंध” और “अंतरात्मा की महक” जैसी कहानियों में करते हैं ।
ये कहानियाँ भारतीय लघु कथा परिदृश्य में संजीवनी की तरह काम करेंगी और उन्हें एकरसता नीरसता की धँसान से बाहर निकालकर वैश्विक बहुलता और शैलीगत रोचकता से भी समृद्ध करेंगी।घिसी-पिटी फ़ॉर्मूला बद्ध कहानियों से हटकर नई विषय वस्तु, सधी हुई भाषा, रूपात्मक अनुशासन और मानवीयता के अद्भुत रंगों से सजा यह संग्रह माया नगरी को लेकर हमारी भ्रांतियों को तोड़ता है और वहाँ के साधारण मनुष्यों के जीवन यथार्थ के अंतरंग किस्सों से हमें मज़बूत बनाता है और सपने देखने के लिए प्रेरित भी करता है। “कोई भी मनुष्य एक द्वीप नहीं है” इस उक्ति को चरितार्थ करते हुए प्रायः ये कहानियाँ इक्कीसवीं सदी की मानवता के एकाकीपन, असामाजिकता, सामाजिक संदर्भों से अलगाव,भावनात्मक संबंधों की अनदेखी इत्यादि मसलों से रूबरू कराती हैं ।
स्थानीयता किसी भी साहित्यिक प्रारूप में विशिष्टता उत्पन्न कर देती है।मुंबई के जीवन में रची बसी रोशेल शहर को उसके इतिहास, वर्तमान और भविष्य की संभावनाओं के साथ जोड़ कर देखती चलती हैं ।एक कथाकार की हैसियत से उनका कैनवास बहुत ही विस्तृत हैः अब चाहे पेद्दार रोड जैसे संभ्रात इलाक़े की बात हो,अलग अलग धर्मों के लोगों से बसा बायकुला का इलाक़ा हो या कमाठीपुरा की रंगीन गलियाँ, या कि उच्च स्तरीय सुविधाओं से संपन्न मनमोहक बांद्रा का क्षेत्र;समुद्र जैसे विशाल शहर में कर्णभेदी कोलाहल के बीच भाँति भाँति के मनुष्यों की चीखों, धड़कनों को वर्ग,जाति,वर्ण,जेंडर आदि श्रेणियों में बाँटे बिना सुनने की कोशिश करती रोशेल गम्भीर प्रतिक्रिया या प्रतिरोध की भाषा इख़्तियार किये बिना अपने समय के यथार्थ को एक नई उम्मीद और अंतर्दृष्टि के साथ व्यवस्थित तरीक़े से विन्यस्त करती हैं । कहानियों का गद्य बहुधा पोयटिक और लेयर्ड होता है। दिव्या जोशी का प्रवाहपूर्ण रचनात्मक अनुवाद इस सुंदर संकलन की रीढ़ है । रोशेल की मुहावरेदार काव्यात्मक भाषा को हिंदी में चमत्कार पूर्ण तरीक़े से अभिव्यक्त करने के लिए दिव्या को अनेकशः बधाई । रोशेल एक सिद्ध कवि के आत्मविश्वास के साथ गद्य की भाषा को भी अपने प्रयोगों से विस्तार देती हैं और ये कहानियाँ एक रिपोर्ट, व्यंग्य अथवा स्त्री मुक्ति आन्दोलन का घोषणापत्र न बनकर अपने स्वत्व के लिए संघर्षरत स्त्री और पुरुषों के प्रयासों को रेखांकित करती एक गहरे साहित्यिक अनुभव का सृजन करने में सफल होती हैं। रोशेल बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं, उनके कथ्य और कथन दोनों ही रोचक होने के साथ ही उनकी बौद्धिक प्रतिबद्धता को सुनिश्चित करते हैं।
सभी स्त्री पात्र बिना किसी संकोच या व्यवधान के सहज रूप से अपनी कामुकता को स्वीकार करते हैं और उन पर प्रतिबंध लगाती या उन्हें शर्म और लज्जा के कटघरे में बाँधती सामाजिक व्यवस्था को अस्वीकृत करते हैं। वैयक्तिक जीवन में आमूलचूल परिवर्तन के लिए संकल्पित महिलाओं के छोटे-बड़े प्रयासों और उनकी योग्यता का भरपूर सम्मान करते हुए यह कहानियाँ “पर्सनल इज़ पोलिटिकल” की तर्ज़ पर व्यावहारिक स्तर पर फ़ेमिनिस्ट संचेतना भी प्रदर्शित करती हैं।शारदा, जेनेट और फ़ातिमा की कहानियों में अधिकारों के प्रति जागरूकता और भीड़ से हटकर,अपनी एक नई पहचान बनाने की ललक दिखती है। यह संग्रह भाषा के स्तर पर “फ़ेमिनिस्ट एस्थेटिक” या स्त्री साहित्य सौंदर्य का एक सशक्त माध्यम बनता है, जो इसे पुरुषों के द्वारा रचित साहित्य से एक अलग विशिष्टता या अनुभव देता है।कई कहानियाँ स्त्रियों के आर्थिक परनिर्भरता और घरेलू जीवन में शारीरिक मानसिक शोषण से जुड़े उनके दमन और उत्पीड़न को उजागर करते हुए नई पीढ़ी में परिवर्तन लाने के लिए जमीन तैयार करती दिखती हैं ।
कहानियों के अंत बहुत ही प्रभावशाली बन पड़े हैं। कुछ कहानियाँ अपने औचित्यपूर्ण वरन् अकल्पनीय समापन से चमत्कृत करती हैं जैसे, “शोर”कहानी में बचपन की एक दर्दनाक घटना का पता चलना, “सम्मान” कहानी में पोयटिक जस्टिस और “ फैब्रिक” कहानी में सुमति और कुसुम की मूक जुगलबंदी, “ सुगंध” में रुस्सी का ख़ामोश अनुभूतियों की गंध को पकड़ना और “स्तनों का अंकगणित” में रोल रिवर्सल और “ पागलपन” - एक कहानियों का कोलाज, जिसमें सभी पात्र जुनून के साथ अपने खोए हुए आत्मविश्वास को पाने में प्रयासरत हैं अपने नैसर्गिक उतार-चढ़ाव और विशिष्ट समापन और दृष्टिकोण के साथ पाठकों के मन मस्तिष्क में अपने लिए एक जगह बना लेती हैं ।
इस संग्रह में मेरी पसंदीदा कहानियाँ “शोर”, “उत्साह” और “स्तनों का अंक गणित” हैं ।हमारे चेतन-अवचेतन मन को झकझोरती ये कहानियाँ सहजता से हमारे अंतर्मन तक पहुँचकर कुछ बदलती हैं और हमें थोड़ा और मानवीय बना देती हैं । रोशेल की कहानियाँ एक चलचित्र की तरह विषय, पात्र, स्थान का क्लोज़ अप देती हैं और समाज में विस्थापित हो चुके विविधता,समरसता, समानता और सहिष्णुता के मूल्यों को सतर्कता के साथ पुनर्स्थापित करती हुई दिखाई देती हैं । प्रत्येक कहानी अपने पर्याप्त वर्णन, चित्रांकन के साथ विजुअलाइजेशन में भी मदद करती है। एक सफल कहानी की विशेषता है कि वह हमें ख़ुद को समझने में, अपने परिवेश को समझने में कारगर होती है और हमारी बौद्धिक मदद के लिए भी आगे आती है ।सी. एस लुईस का कथन कि “हम इसलिए पढते हैं जिससे हमें यह पता चलता है कि हम अकेले नहीं हैं ”, इन कहानियों के संदर्भ में पूरी तरह चरितार्थ होता है। ये कहानियाँ संवाद, गतिशीलता, दृष्टिकोण, शैलीगत मौलिकता, वस्तुनिष्ठता आदि गुणों से बहुत प्रभावी हैं ।रोशेल के लिए उनकी कहानियाँ एक “निर्णायक प्रयोग”हैं जो उन्हें उनके समय, परिवेश और वृहत्तर मानवता से एक सतत निर्बाध संबंध बनाने में सहायक सिद्ध होती हैं । मंटो की कहानियों की तरह मानवीय स्वभाव का इतना निर्भीक और यथार्थ निरूपण प्रभावित करता है । रोशेल की भाषा पूरी तरह “स्त्री भाषा” है जो आत्मबोध, अभिव्यक्ति,मुक्ति,आत्म मूल्यांकन के लिए तत्पर और समाज में अपनी क़ाबिलियत से अपनी जगह पुख़्ता करती स्त्रियों की सशक्त भाषा है जिसमें स्त्री शरीर, कामुकता सेक्शुअलिटी, आनंद और पूर्णता के भी विषय सुरुचिपूर्ण ढंग से बरते गए हैं । जीवन में साधारण दृश्यों, घटनाओं, परिदृश्यों, पात्रों से होकर गुज़रती रोशेल की कहानियाँ महज़ साक्ष्य नही बनती अपितु हमें बेचैन भी करती हैं,गहरे चिंतन के लिए प्रेरित करती हैं, एक असाधारण साहित्यिक अनुभव का ज़रिया बनती हैं और अन्त में रोशेल के एक पात्र के शब्दों में, “हमें खुद में अपनी कस्तूरी, अपनी प्रबल इच्छाशक्ति और आंतरिक शांत गीत की उपस्थिति” का आभास कराती हैं ।
अपने पात्रों की तरह ही शहर के मोहपाश में गहरी बँधी हुई रोशेल इन सोलह कहानियों के ज़रिए अपनी जड़ों को फैलाते हुए मानवता के हर एक छोर को स्पंदित करने में समर्थ हुई है। रोशेल की सोच और सृजनात्मकता हमारे वाह्य परिदृश्य और अंतरतम परिदृश्य में एक सामंजस्य बनाते हुए हमारे अस्तित्व से जुड़े प्रश्नों को सुलझाने की पुरज़ोर कोशिश में परिलक्षित होती है । वह एक बहुप्रशंसित और पुरस्कृत कवि और लेखिका हैं। हिंदी में उनकी कहानियों के अनुवाद क्षेत्र और भाषागत संकीर्णताओं से ऊपर उठकर सार्वभौमिक मानवीय संवेदनाओं को एक सूत्र में पिरोने की सकारात्मक पहल के रूप में देखे जाने चाहिए।रति प्रकाशन को इस उल्लेखनीय कृति को एक आकर्षक कलेवर में प्रस्तुत करने के लिए साधुवाद। संग्रह को अनामिका,नमिता गोखले, ब्रजरतन जोशी, राजाराम भादू जैसे प्रतिष्ठित लेखकों रचनाकारों से मिली संस्तुति इस बात की आश्वस्ति है कि रोशेल पोतकर जैसे लेखक साहित्य, समाज और समय के बीच अनवरत चल र संवाद को अपनी कहानियों के ज़रिए चिन्हित करते रहेंगे। उम्मीद है आने वाले दिनों में रोशेल और भी कहानियाँ लेकर आयेंगी जिनसे हिन्दी और अंग्रेज़ी के समृद्ध कहानी संसार को और भी विस्तार मिलेगा।
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- शुभा द्विवेदी ,
कवि, अनुवादक, शोधकर्ता ,
एसोसिएट प्रोफेसर,
आत्मा राम सनातन धर्म कॉलेज , दिल्ली विश्वविद्यालय
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