चरन कमल बंदौ हरि राई पद की सन्दर्भ सहित व्याख्या | Charan Kamal bando Hari Rai Vyakhya

SHARE:

चरन कमल बंदौ हरि राई पद की सन्दर्भ सहित व्याख्या Charan Kamal bando Hari Rai Vyakhya प्रस्तुत पद हिन्दी साहित्याकाश के सूर्य 'सूरदास' विरचित 'सूरसागर'

चरन कमल बंदौ हरि राई पद की सन्दर्भ सहित व्याख्या


चरन कमल बंदौ हरि राई । 
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघे, अंधे को सब कछु दरसाई ।। 
बहिरौ सुनै गूँग पुनि बोलै, रंक चलै सिर छत्र धराई । 
सूरदास स्वामी करुनामय, बार-बार बंदौ तिहिं पाई ।।

सन्दर्भ एवं प्रसंग- प्रस्तुत पद हिन्दी साहित्याकाश के सूर्य 'सूरदास' विरचित 'सूरसागर' से अवतरित है। महात्मा सूरदास जी ने विनय-सम्बन्धित प्रस्तुत पद में सर्वशक्तिमान भगवान् के चरण-कमलों की वंदना की है।

व्याख्या - प्रस्तुत पद में महात्मा सूरदास जी ने अपने इष्टदेव (श्रीहरि) भगवान् श्रीकृष्ण के चरण-कमल की वंदना करते हुए उनकी कृपाशीलता का वर्णन किया है। कवि कहता है कि जिस करुणामय स्वामी की कृपा से पंगु (पैर से हीन) व्यक्ति भी सहज ही पर्वत को लाँघ जाता है। दृष्टिहीन (अंधा) व्यक्ति दृष्टि सम्पन्न होकर सब कुछ देखने लगता है, वाणी विहीन (गूँगा) व्यक्ति भी संभाषण करने (बोलने में) समर्थवान् हो जाता है। कान से बहरा व्यक्ति भी सब कुछ सुन सकता है (भगवत्कृपा से उसकी श्रवणेन्द्रिय सक्रिय हो जाती है।) भगवत्कृपा से ही परम दरिद्र भी राजा बनकर छत्र धारण करके चलने लगता है। सूरदास जी कहते हैं कि मैं ऐसे करुणामय (दयावान्) स्वामी (भगवान्) के श्री चरणों की बार-बार वन्दना करता हूँ।
 
विशेष- उपरोक्त पद में निम्नलिखित विशेषताएं हैं -
  • यह पद सूर के धवल कीर्ति स्तम्भ 'सूरसागर' का प्रथम पद है। ग्रन्थ के आदि में उसकी निर्विघ्न समाप्ति के निमित्त मंगलाचरण का विधान भारतीय साहित्य में प्राचीनकाल से होता आया है। इस पद में सूरदास जी ने मंगलाचरण से ग्रन्थ प्रारम्भ करने की परिपाटी का पालन किया है। 
  • नवधाभक्ति में विनय भावना का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस दृष्टि से भी प्रस्तुत पद का महत्त्वपूर्ण स्थान है। 
  • अलंकार- (i) 'चरण-कमल' में रूपक अलंकार है । (ii) 'अंधे कौ सब कछु दरसाई'- गूढोक्ति अलंकार है .(iii) दूसरी और तीसरी पंक्ति में - विरोधाभास अलंकार है। 
  • भाव-साम्य की दृष्टि से इस पद में संस्कृत के निम्नलिखित श्लोक का स्पष्ट प्रभाव है- 
'मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम् । 
यत्कृपा तमहं बन्दे परमानन्द माधवम् ।।'

इसके समानान्तर गोस्वामी तुलसीदास की निम्नलिखित पंक्तियाँ ध्यान देने योग्य हैं - मूक होइ वाचाल, पंगु चढ़े गिरिवर गहन । जासु कृपा सुदयालु, द्रवौं सकल कलिमल दहन ।। ' 

COMMENTS

Leave a Reply: 1
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका