चाँदनीपुर के रहस्य और काव्या का खजाना | बच्चों की कहानियां

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चाँदनीपुर के रहस्य और काव्या का खजाना एक बार की बात है, एक छोटे से गाँव में, जो पहाड़ों की गोद में बसा था, एक लड़का रहता था, जिसका नाम था काव्या। गाँ

चाँदनीपुर के रहस्य और काव्या का खजाना


क बार की बात है, एक छोटे से गाँव में, जो पहाड़ों की गोद में बसा था, एक लड़का रहता था, जिसका नाम था काव्या। गाँव का नाम था चाँदनीपुर, क्योंकि रात को चाँद की रोशनी वहाँ की गलियों में ऐसी चमकती थी मानो कोई जादू बिखेर रहा हो। काव्या एक साधारण सा लड़का था, लेकिन उसकी आँखों में कुछ अलग ही चमक थी। वह हमेशा कुछ नया खोजने की फिराक में रहता, जैसे कोई खजाना छिपा हो गाँव की उन पथरीली पगडंडियों में या जंगल के उस पार, जहाँ कोई नहीं जाता था।

काव्या का सबसे अच्छा दोस्त था एक बूढ़ा कछुआ, जिसे वह प्यार से दादाजी कहता था। दादाजी का घर एक पुराने बरगद के पेड़ के नीचे था, जहाँ वह अपनी धीमी चाल और गहरी बातों से काव्या को मंत्रमुग्ध कर देता। दादाजी हमेशा कहानियाँ सुनाते, लेकिन उनकी कहानियों में एक खास बात थी—वे कभी पूरी नहीं होती थीं। "बाकी का हिस्सा," दादाजी कहते, "तुझे खुद ढूँढना होगा, काव्या। दुनिया में हर कहानी का अंत तू खुद लिखता है।"

चाँदनीपुर के रहस्य और काव्या का खजाना
एक सुबह, जब सूरज की किरणें अभी-अभी गाँव की झोपड़ियों पर पड़ रही थीं, काव्या ने देखा कि गाँव के बाहर, जंगल की ओर जाने वाली पगडंडी पर एक अजीब सी चमक दिख रही थी। यह चमक ऐसी थी, जैसे कोई तारा जमीन पर गिर गया हो। उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसने अपनी झोली में दो रोटियाँ, एक पानी की बोतल और दादाजी का दिया हुआ एक पुराना लकड़ी का तावीज़ डाला, और निकल पड़ा उस चमक की ओर।

जंगल में घुसते ही काव्या को एहसास हुआ कि यह कोई साधारण जंगल नहीं था। पेड़ों की टहनियाँ हवा के बिना हिल रही थीं, और पत्तियों से ऐसी आवाज़ आ रही थी जैसे कोई फुसफुसा रहा हो। उसने अपने डर को पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ना जारी रखा। थोड़ी दूर चलने पर उसे एक छोटा सा तालाब मिला, जिसके बीच में एक पत्थर पर वही चमक थी। पास जाकर देखा तो वह एक छोटा सा क्रिस्टल था, जो सूरज की रोशनी में इंद्रधनुष के सातों रंग बिखेर रहा था।

जैसे ही काव्या ने क्रिस्टल को छुआ, एक तेज़ रोशनी फैली, और सामने एक छोटी सी लड़की प्रकट हुई। उसकी आँखें नीली थीं, और उसके कपड़े हवा में लहरा रहे थे, जैसे बादलों से बने हों। "मैं नीलम हूँ," उसने कहा, "इस जंगल की रक्षक। यह क्रिस्टल जंगल का दिल है, और इसे चुराने की कोशिश करने वालों से मैं इसे बचाती हूँ। लेकिन तू, काव्या, तू यहाँ क्यों आया?"

काव्या ने अपनी पूरी कहानी सुना दी—कैसे वह चमक देखकर आया, कैसे वह हमेशा कुछ नया ढूँढना चाहता है। नीलम मुस्कुराई और बोली, "ठीक है, मैं तुझे एक मौका दूँगी। अगर तू इस जंगल के तीन रहस्य खोज ले, तो यह क्रिस्टल तेरा हो सकता है। लेकिन याद रख, हर रहस्य एक चुनौती है, और हर चुनौती तुझे कुछ सिखाएगी।"

पहला रहस्य था "हवा का गीत"। नीलम ने बताया कि जंगल में एक ऐसी जगह है जहाँ हवा गाती है, लेकिन उसे सुनने के लिए मन को पूरी तरह शांत करना पड़ता है। काव्या कई घंटों तक जंगल में भटकता रहा, लेकिन हर बार उसका मन बेचैन हो जाता। आखिरकार, उसने दादाजी की बात याद की—"सच्चाई वही सुन सकता है जो अपने भीतर की आवाज़ को चुप कर दे।" काव्या एक चट्टान पर बैठ गया, अपनी साँसों पर ध्यान दिया, और धीरे-धीरे उसे हवा में एक मधुर धुन सुनाई दी। यह इतनी सुंदर थी कि उसकी आँखों में आँसू आ गए।

दूसरा रहस्य था "पेड़ों की स्मृति"। नीलम ने कहा कि जंगल का सबसे पुराना पेड़ हर उस इंसान की कहानी याद रखता है जो यहाँ आया। काव्या को उस पेड़ को ढूँढना था और उससे बात करनी थी। कई पेड़ों के पास जाने के बाद, उसे एक विशाल पेड़ मिला, जिसकी जड़ें ज़मीन को गले लगाए हुए थीं। काव्या ने उससे बात करने की कोशिश की, लेकिन पेड़ चुप रहा। फिर उसने अपने दिल से बात की, अपनी सारी खुशियाँ, डर, और सपने सुना दिए। अचानक, पेड़ की पत्तियों से एक गर्माहट सी उठी, और काव्या को अपने गाँव की पुरानी कहानियाँ, अपने दादाजी की जवानी, और यहाँ तक कि अपनी माँ की बचपन की यादें दिखने लगीं।

तीसरा और आखिरी रहस्य था "अंधेरे का सच"। नीलम ने काव्या को एक गुफा में भेजा, जहाँ कोई रोशनी नहीं थी। "अंधेरे से डरने की ज़रूरत नहीं," नीलम ने कहा, "क्योंकि अंधेरा सिर्फ़ रोशनी का इंतज़ार है।" काव्या गुफा में घुसा, और चारों तरफ सन्नाटा था। उसका दिल डर से काँप रहा था, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। उसने अपने तावीज़ को छुआ और आगे बढ़ता गया। गुफा के अंत में उसे एक छोटा सा दीपक मिला, जो अपने आप जल उठा। उसकी रोशनी में काव्या ने देखा कि गुफा की दीवारों पर उसकी अपनी ज़िंदगी की कहानी उकेरी हुई थी—उसके सपने, उसकी गलतियाँ, और उसका हौसला।

जब काव्या गुफा से बाहर निकला, नीलम वहाँ उसका इंतज़ार कर रही थी। "तूने तीनों रहस्य खोज लिए," उसने कहा। "अब यह क्रिस्टल तेरा है। लेकिन बताना, तू इसे लेना चाहता है?" काव्या ने क्रिस्टल की ओर देखा, फिर मुस्कुराया और बोला, "नहीं, नीलम। यह क्रिस्टल यहाँ का है, जंगल का है। मैंने जो सीखा, वही मेरा खजाना है।"

नीलम ने हँसते हुए कहा, "तूने असली रहस्य खोज लिया, काव्या। खजाना कभी बाहर नहीं, हमेशा भीतर होता है।" और इसके साथ ही वह गायब हो गई। काव्या वापस गाँव लौटा, और उस रात जब वह दादाजी को अपनी कहानी सुना रहा था, चाँद की रोशनी चाँदनीपुर की गलियों में पहले से कहीं ज़्यादा चमक रही थी।

उस दिन से काव्या ने कभी खजाने की तलाश में बाहर नहीं देखा। वह जान गया था कि असली जादू उसके दिल में है, और हर नई सुबह एक नई कहानी लेकर आती है।

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