आज आदमी आदमी की बर्बादी का जिम्मेदार हो रहा है

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आज आदमी आदमी की बर्बादी का जिम्मेदार हो रहा है आज आदमी धार्मिक शिक्षण के कारण खूंखार हो रहा है कलावा देखकर या कलमा पढ़ाकर बात विचार कर रहा है आज आदमी

आज आदमी आदमी की बर्बादी का जिम्मेदार हो रहा है


ज आदमी आदमी की बर्बादी का जिम्मेदार हो रहा है
आज आदमी धार्मिक शिक्षण के कारण खूंखार हो रहा है
कलावा देखकर या कलमा पढ़ाकर बात विचार कर रहा है
आज आदमी धर्म जानकर प्यार या नरसंहार कर रहा है!

आज आदमी आदमी की बर्बादी का जिम्मेदार हो रहा है
आदमी की बहुत सी व्याधियाँ आदमी की बनाई गई होती 
सिवाय आदमी किसी जीव को एड्स डायबीटीज होता नहीं
आदमी के अलावे अन्य जन्तु को प्रेशर डिजीज होता नहीं
आदमी छोड़कर किसी जीव में कत्लेआम की बीमारी नहीं? 

आदमी अजीब होता है, आदमी में खुराफात का बीज होता 
आदमी दुख बांटता, मगर अपने सुख हेतु तावीज पहनता 
आदमी के अंदर आदमियत नहीं,आदमी में नेकनीयत नहीं 
आदमी से बेहतर है जानवर,आदमी है सबसे बदतर प्राणी!

आदमी ने कभी चाहा नहीं है आदमी खातिर आदमी बनना 
आदमी ने सदा से चाहा, आदमी को छलना और मसलना
आदमी कभी बना हिन्दू, कभी बना मसीही और मुसलमान 
आदमी पढ़ते वेद बाइबल कुरान पर बनते नहीं नेक इंसान! 

आदमी ने पाला हमेशा गुमान, आदमी होता मन से बेईमान 
आदमी चाहे दुआ सलाम,आदमी को पसंद चरणस्पर्श प्रणाम 
आदमी जो खुद के लिए चाहता वो दूसरे को देना ना चाहता 
आदमी काल्पनिक ईश्वर के बहाने आदमी को आहत करता!

जिसने माता-पिता बड़े भाई-बहन का चरण नहीं कभी छुआ  
वो बिना चरणस्पर्श कराए भतीजे भांजे को देता नहीं है दुआ  
आदमी साँप सा फुँकारता,बंदर सा हू हा,गीदड़ सा हुआ हुआ 
आदमी धर्म के नाम आदमी को मारने का पालता है मंसूबा!

जितने धर्म सत्कर्म करोगे मारे जाओगे जान बचा ना पाओगे 
जितने जाति धर्म विचारोगे उतने कुकर्मी के गिरोह से हारोगे 
जितना आओ माओ चिल्लाओगे, जितनी समता लाना चाहोगे 
उतने गजनी गोरी बाबर की नाजायज औलाद से मारे जाओगे! 

आदमी गजब जीव, जो पास में उससे घृणा द्वेष और नाखुश 
जो दूर उससे अपनत्व भरपूर, चाहे वो आदमी हो पापी मनहूस  
आदमी चाहते स्वधर्मी नेता, पादरी, मौलवी, चाहे हो दकियानूस 
आदमी ही है जो अच्छाई का स्वांग रचते,बुराई कर होते खुश! 

हर आदमी को पता है कौन सा धर्म मत अच्छा, कौन सा बुरा, 
सबको पता किस धर्मपोथी में सद्विचार है, किसमें दुराग्रह भरा  
सब जानते कौन हमारे पूर्वज,फिर भी कितनों ने सच स्वीकारा?
ये दौर है जुल्मपसंदों का,जिसके जेहन में सद्विवेक नहीं उभरा! 

छोड़ो सदाचार सद्व्यवहार की दुहाई देना, फिर से लौटी बर्बरता, 
कुदरत से करिश्मा का उम्मीद नहीं कर, जहाँ आदमी करे खता, 
देखना वो वक्त आएगा, जो झटके में बदलेगी वैचारिक धर्मांधता 
आदमियत लौटेगी और बख्तियार जलाएगा अज्ञान की पुस्तिका!




- विनय कुमार विनायक

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