आधुनिक भारत के निर्माता एवं पंचशील सिद्धांत

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आधुनिक भारत के निर्माण और पंचशील सिद्धांत का विषय भारत के इतिहास, स्वतंत्रता के बाद के विकास और वैश्विक कूटनीति में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। आधुनिक भा

आधुनिक भारत के निर्माता एवं पंचशील सिद्धांत


धुनिक भारत के निर्माण और पंचशील सिद्धांत का विषय भारत के इतिहास, स्वतंत्रता के बाद के विकास और वैश्विक कूटनीति में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। आधुनिक भारत का निर्माण एक ऐसी प्रक्रिया रही है, जिसमें विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक तत्वों का समन्वय हुआ। इस प्रक्रिया में पंचशील सिद्धांत ने भारत की विदेश नीति को एक नैतिक और शांतिपूर्ण आधार प्रदान किया, जो आज भी वैश्विक मंच पर भारत की पहचान को मजबूत करता है।

आधुनिक भारत के निर्माण में नेहरु की भूमिका

आधुनिक भारत के निर्माता एवं पंचशील सिद्धांत
आधुनिक भारत का निर्माण स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ शुरू हुआ, जब 15 अगस्त 1947 को भारत ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से मुक्ति पाई। यह केवल राजनीतिक स्वतंत्रता का क्षण नहीं था, बल्कि एक नए राष्ट्र के निर्माण का प्रारंभ था, जिसे आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से आत्मनिर्भर और समावेशी बनाना था। इस दिशा में पंडित जवाहरलाल नेहरू, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री, ने आधुनिक भारत के निर्माता के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके नेतृत्व में भारत ने एक लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और समावेशी राष्ट्र की नींव रखी। नेहरू का दृष्टिकोण वैज्ञानिक प्रगति, औद्योगीकरण और सामाजिक समानता पर आधारित था। उन्होंने भारत को एक मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल दिया, जिसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों का संतुलन बनाए रखा गया। साथ ही, उन्होंने शिक्षा, विज्ञान और तकनीक पर विशेष जोर दिया, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) और भारतीय विज्ञान संस्थान जैसे संस्थानों की स्थापना हुई। ये कदम आधुनिक भारत को वैश्विक मंच पर एक प्रगतिशील राष्ट्र के रूप में स्थापित करने में सहायक हुए।

पंचशील सिद्धांत की उत्पत्ति

नेहरू के नेतृत्व में भारत ने न केवल आंतरिक विकास पर ध्यान दिया, बल्कि वैश्विक स्तर पर एक ऐसी पहचान बनाई, जो शांति, सहयोग और संप्रभुता के सिद्धांतों पर आधारित थी। इसी संदर्भ में पंचशील सिद्धांत का उदय हुआ। पंचशील, जिसे पांच सिद्धांतों के रूप में जाना जाता है, भारत की विदेश नीति का आधार बना और इसने विश्व शांति और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पंचशील सिद्धांत की उत्पत्ति 1954 में भारत और चीन के बीच हुए समझौते से हुई, जिसमें तिब्बत क्षेत्र के व्यापार और संबंधों को लेकर बातचीत हुई। इस समझौते में पांच सिद्धांतों को शामिल किया गया, जो निम्नलिखित हैं: एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान, एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना, समानता और पारस्परिक लाभ का सिद्धांत, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, और आक्रामकता से बचना। ये सिद्धांत न केवल भारत-चीन संबंधों के लिए महत्वपूर्ण थे, बल्कि इन्हें बाद में वैश्विक मंच पर भी अपनाया गया, विशेष रूप से गुट-निरपेक्ष आंदोलन (NAM) के संदर्भ में।

गुटनिरपेक्षता और वैश्विक प्रभाव

पंचशील सिद्धांत नेहरू के उस दृष्टिकोण का प्रतीक था, जिसमें उन्होंने नवस्वतंत्र राष्ट्रों को एकजुट करने और शीत युद्ध के दौर में दो ध्रुवीय विश्व व्यवस्था से बचने की कोशिश की। उस समय विश्व दो गुटों—संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ—के बीच बंटा हुआ था। नेहरू ने भारत को इन दोनों गुटों से अलग रखते हुए गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाई, जिसका आधार पंचशील था। यह सिद्धांत न केवल भारत की विदेश नीति का मार्गदर्शक बना, बल्कि इसने अन्य विकासशील देशों को भी प्रेरित किया कि वे अपनी संप्रभुता और स्वतंत्रता को बनाए रखते हुए वैश्विक मंच पर अपनी आवाज उठाएं। 1955 में इंडोनेशिया के बांडुंग में आयोजित एशिया-अफ्रीका सम्मेलन में पंचशील सिद्धांत को व्यापक समर्थन मिला, जिसने इसे एक वैश्विक मंच प्रदान किया।

गांधीवादी प्रभाव

आधुनिक भारत के निर्माण में पंचशील का योगदान केवल विदेश नीति तक सीमित नहीं था। यह सिद्धांत भारत के आंतरिक मूल्यों—अहिंसा, सह-अस्तित्व और समानता—के साथ भी जुड़ा हुआ था। महात्मा गांधी के अहिंसा और सत्य के सिद्धांतों ने नेहरू को प्रभावित किया था, और पंचशील में इन मूल्यों की झलक दिखाई देती है। भारत ने अपनी विदेश नीति में इन सिद्धांतों को अपनाकर विश्व समुदाय में एक नैतिक नेतृत्व प्रदान करने की कोशिश की।
 

1962 युद्ध और सीमाएँ

हालांकि, 1962 के भारत-चीन युद्ध ने पंचशील की सीमाओं को उजागर किया, जब चीन ने इन सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए भारत पर आक्रमण किया। इस घटना ने भारत की विदेश नीति में यथार्थवाद को शामिल करने की आवश्यकता को रेखांकित किया, लेकिन पंचशील का महत्व कम नहीं हुआ। यह आज भी भारत की शांतिपूर्ण कूटनीति का प्रतीक बना हुआ है।

पंचशील की वर्तमान प्रासंगिकता

आधुनिक भारत के निर्माण में नेहरू के साथ-साथ अन्य नेताओं और विचारकों का भी योगदान रहा। सरदार वल्लभभाई पटेल ने देश की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जबकि डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने संविधान के माध्यम से सामाजिक समानता और न्याय की नींव रखी। इन सभी प्रयासों ने मिलकर आधुनिक भारत को एक मजबूत लोकतंत्र के रूप में स्थापित किया। पंचशील सिद्धांत ने इस प्रक्रिया में भारत को वैश्विक मंच पर एक शांतिप्रिय और जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत किया।

आज भी पंचशील सिद्धांत भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह सिद्धांत न केवल शांति और सहयोग को बढ़ावा देता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारत वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए नैतिकता और सह-अस्तित्व के मूल्यों को महत्व देता है। आधुनिक भारत का निर्माण और पंचशील सिद्धांत एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं, क्योंकि दोनों ही भारत के उस दृष्टिकोण को दर्शाते हैं, जिसमें विकास, शांति और सहयोग को प्राथमिकता दी गई है। यह दृष्टिकोण न केवल भारत के लिए, बल्कि विश्व के लिए भी प्रासंगिक बना हुआ है।

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