वक्फ संशोधन विधेयक सुधार की राह या धार्मिक स्वायत्तता पर सवाल ?

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वक्फ संशोधन विधेयक सुधार की राह या धार्मिक स्वायत्तता पर सवाल ? वक्फ संशोधन बिल, जिसे आधिकारिक रूप से वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 के नाम से जाना जाता ह

वक्फ संशोधन विधेयक सुधार की राह या धार्मिक स्वायत्तता पर सवाल ?


क्फ संशोधन बिल, जिसे आधिकारिक रूप से वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 के नाम से जाना जाता है, भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित एक महत्वपूर्ण कानूनी बदलाव है जो वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और प्रशासन को बेहतर करने के उद्देश्य से लाया गया है। यह विधेयक वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन करने के लिए तैयार किया गया है, जिसका मकसद वक्फ बोर्डों के कामकाज में पारदर्शिता लाना, उनकी शक्तियों को संतुलित करना और इनसे जुड़े विवादों को कम करना है। इसे लेकर देश भर में व्यापक चर्चा और बहस छिड़ी हुई है, क्योंकि यह न केवल धार्मिक और सामाजिक पहलुओं को प्रभावित करता है, बल्कि राजनीतिक दलों के बीच भी तीखी प्रतिक्रिया का कारण बना है।

इस विधेयक की शुरुआत 8 अगस्त, 2024 को लोकसभा में हुई थी, जब केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने इसे पेश किया। इसके बाद इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा गया, जिसने अपनी रिपोर्ट में कई सुझाव दिए। इन सुझावों को शामिल करते हुए सरकार ने 2 अप्रैल, 2025 को इसे लोकसभा में दोबारा पेश किया और लंबी चर्चा के बाद इसे पारित कर दिया गया। अब यह राज्यसभा में विचाराधीन है। इस विधेयक का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सुधार करना, उनके दुरुपयोग को रोकना और समाज के व्यापक वर्गों को इसमें शामिल करना है। सरकार का कहना है कि यह कदम मुस्लिम समुदाय के भीतर से उठ रही मांगों को ध्यान में रखकर उठाया गया है, खासकर उन लोगों की, जो वक्फ बोर्डों के कामकाज से असंतुष्ट हैं।

वक्फ का अर्थ होता है किसी मुस्लिम व्यक्ति द्वारा अपनी संपत्ति को धार्मिक, शैक्षिक या परोपकारी उद्देश्यों के लिए समर्पित करना। भारत में वक्फ बोर्ड इस तरह की संपत्तियों का प्रबंधन करते हैं और इनके पास करीब 9.4 लाख एकड़ जमीन है, जो इसे देश का तीसरा सबसे बड़ा जमींदार बनाती है। लेकिन लंबे समय से वक्फ बोर्डों पर भ्रष्टाचार, अतिक्रमण, कुप्रबंधन और अनियमितताओं के आरोप लगते रहे हैं। सरकार का दावा है कि मौजूदा कानून में कई खामियां हैं, जैसे कि बोर्ड को किसी भी संपत्ति को बिना पुख्ता सबूत के वक्फ संपत्ति घोषित करने की असीमित शक्ति। इसने कई विवादों को जन्म दिया है, जिसमें आम लोगों की जमीन पर दावा करने के मामले भी शामिल हैं। इसी को ठीक करने के लिए यह संशोधन लाया गया है।

वक्फ संशोधन विधेयक सुधार की राह या धार्मिक स्वायत्तता पर सवाल ?
संशोधन के तहत कई बड़े बदलाव प्रस्तावित हैं। अब वक्फ बोर्डों को अपनी संपत्तियों का केंद्रीकृत पंजीकरण करना होगा, ताकि पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके। पहले बोर्ड के पास यह अधिकार था कि वह किसी भी जमीन को बिना ज्यादा जांच-पड़ताल के वक्फ संपत्ति घोषित कर दे, लेकिन अब इसके लिए अनिवार्य सत्यापन की व्यवस्था होगी। साथ ही, संपत्ति सर्वेक्षण का जिम्मा जिला कलेक्टर या डिप्टी कलेक्टर जैसे सरकारी अधिकारियों को दिया जाएगा, जो पहले वक्फ बोर्ड के सर्वे कमिश्नर के पास था। इससे यह सुनिश्चित करने की कोशिश की गई है कि कोई भी संपत्ति गलत तरीके से वक्फ के नाम न हो जाए। इसके अलावा, वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान भी किया गया है, जिससे इनकी संरचना में विविधता आएगी। महिलाओं को भी इन निकायों में प्रतिनिधित्व देने की बात कही गई है, ताकि लैंगिक समानता को बढ़ावा मिले।

एक और महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि अब वक्फ संपत्ति बनाने के लिए यह शर्त होगी कि उसे बनाने वाला व्यक्ति कम से कम पांच साल से इस्लाम का पालन कर रहा हो। पहले 2013 के संशोधन में गैर-मुस्लिम भी वक्फ संपत्ति बना सकते थे, लेकिन अब इस नियम को फिर से बदला जा रहा है। इसके साथ ही, 'वक्फ बाय यूजर' की अवधारणा को खत्म कर दिया गया है, जिसके तहत लंबे समय तक इस्तेमाल के आधार पर कोई संपत्ति वक्फ की हो सकती थी। सरकार का कहना है कि इससे संपत्ति के मालिकाना हक को लेकर होने वाले विवाद कम होंगे। साथ ही, वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसलों को हाई कोर्ट में चुनौती देने का रास्ता भी खोला गया है, जो पहले संभव नहीं था।

हालांकि, इस विधेयक का विरोध भी कम नहीं है। विपक्षी दलों और कुछ मुस्लिम संगठनों का कहना है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप है और संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक मामलों में स्वायत्तता की गारंटी देते हैं। उनका आरोप है कि सरकार वक्फ संपत्तियों पर अपना नियंत्रण बढ़ाना चाहती है और इसे गैर-मुस्लिमों के हाथ में सौंपकर इसके मूल उद्देश्य को कमजोर कर रही है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे संगठनों ने इसे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ बताया और देश भर में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किए, जिसमें लोगों ने काली पट्टियां बांधकर नमाज अदा की। विपक्षी नेता, जैसे असदुद्दीन ओवैसी, ने इसे मुस्लिमों के साथ अन्याय करार दिया और कहा कि यह उनकी धार्मिक पहचान पर हमला है।

दूसरी ओर, सरकार और समर्थकों का तर्क है कि यह विधेयक किसी के खिलाफ नहीं है, बल्कि वक्फ व्यवस्था को मजबूत करने के लिए है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और किरेन रिजिजू ने बार-बार कहा कि यह संविधान के दायरे में है और इसका मकसद सिर्फ प्रशासनिक सुधार करना है। उनका कहना है कि वक्फ बोर्डों में माफियाओं का कब्जा हो गया है और इससे गरीब मुस्लिम महिलाओं और बच्चों को नुकसान हो रहा है। इस संशोधन से उनकी मदद होगी और संपत्तियों का सही इस्तेमाल सुनिश्चित होगा। कुछ मुस्लिम महिलाओं ने भी इसका समर्थन किया और इसे लेकर आतिशबाजी तक की।

यह विधेयक अब राज्यसभा में है, जहां इस पर और बहस होगी। एनडीए के पास लोकसभा में बहुमत है, लेकिन राज्यसभा में स्थिति थोड़ी अलग है। फिर भी, सरकार को भरोसा है कि वह इसे पारित करा लेगी। इस बीच, यह मुद्दा न केवल कानूनी, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी संवेदनशील बना हुआ है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह विधेयक किस तरह लागू होता है और इसका समाज पर क्या असर पड़ता है।

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