सात फेरों वाला आदमी | हिन्दी कहानी

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दो साल बाद मेरी शादी ध्रुव से हो गई और 4 साल गुजर गए। लेकिन मैं हर पल ध्रुव में विशाल को तलाशती रही। जब मैं शिमला से लौटी तो ध्रुव ने बहुत सारे प्रश्न

सात फेरों वाला आदमी


मेरा बॉस के साथ जाने का टूर बन गया तो मैंने ध्रुव को बताया कि मैं पंकज कपूर के साथ सात देने के लिए शिमला जा रही हूं।
सुनकर वह चौके और बोले- "वह बहुत बदनाम आदमी है, ना जाने कब से इस मौके की तलाश में होगा?"
-"फिर बताओ मैं क्या करूं? सात दिन रात मुझे उसके साथ रहना होगा, तुम यह कैसे बर्दाश्त करोगे.."
-"मैं भी साथ चलूँ?"
-"तुम्हारा साथ जाना वह बर्दाश्त नहीं करेगा।"
-"फिर कोई और हल सोचो इस समस्या से निपटने का.."
सात फेरों वाला आदमी
-"बस एक ही उपाय सूझता है कि मैं रिजाइन कर दूं तुम्हारा इतना तो वेतन है कि घर आराम से चलता रहे, फिर जब मैं घर पर रहूंगी तो मेरा खर्च भी कम हो जाएगा।"
मेरे इस प्रस्ताव को सुनकर ध्रुव स्तब्ध रह गए, उन्हें सीधे-सीधे 17000/ का नुकसान होता दिखाई दिया। वह चुप रहकर कुछ सोचते रहे फिर बोले
-"यह कोई हल नहीं है सर्विस क्या यूं ही मिल जाती है.. ऐसा करो मनु तुम चली जाओ बस तनिक उस भेड़िए से सावधान रहना।"

मुझे ध्रुव की बात सुनकर लगा कि इसमें तनिक भी खुद्दारी नहीं है वरना यह मुझे कभी नहीं भेजता। मुझे उसके प्रति गहरी वितृष्णा हुई। अगर उसे मुझसे तनिक भी मोह होता, तो वह मेरा कपूर के साथ जाना कतई पसंद नहीं करता, पर उसे तो मेरे वेतन से ज्यादा मोह था। पैसा सारे नैतिक मूल्यों को ताक पर रख देता है। अगर ध्रुव पैसे की परवाह न करके मुझे जाने से रोक लेता, तो मैं ध्रुव को पाकर स्वयं को धन्य समझ लेती, पर उसे तो पैसा चाहिए था मैं नहीं, जबकि पुरुषों का कहना है स्त्री को पैसे की भूख ज्यादा होती है पर मैं तो ध्रुव की कमाई से संतुष्ट थी।

पंकज कपूर न जाने कब से इस मौके की तलाश में था, यह में भली प्रकार जानती थी अकेले कपूर साहब ही सौ का निपटा सकते थे। मेरी कोई खास जरूरत नहीं थी। जैसे-जैसे मेरा शिमला जाने के दिन नजदीक आ रहे थे.. ध्रुव परेशान हो रहे थे। वह नित्य ही मुझे कुछ ना कुछ समझाते रहते थे- होटल में अलग कमरे का प्रबंध करना, रात देर तक पार्टी में मत रहना, उसके साथ देर रात घूमते मत रहना, सोने से पहले कमरे का दरवाजा अच्छी तरह बंद कर लेना आदि आदि। उसकी सीखें सुन सुन कर मुझे उसके भीरूपन पर हंसी आती.. मुझे लगता जैसे उसे अपनी पौरुषता पर भरोसा नहीं रहा या मेरे चरित्र पर संदेह है। मैं ध्रुव को ऊहापोह में ही दिल्ली में छोड़कर शिमला चली गई। उधर पंकज कपूर जो मेरे बॉस थे.. रास्ते में मेरा ऐसा ध्यान रख रहे थे जैसे मैं उनके बॉस हूँ। मुझे पंकज में कुछ अलग प्रभावी नजर नहीं आया। ना आंखों में निर्भयता, ना ही चेहरे पर साहस की चमक। बस आम पुरुषों की तरह धूप लावण्य के सामने दुम हिलाने वाला सा सामर्थ्यहीन पुरुष था। उसने अपने निडर भावों को प्रदर्शित नहीं किया। वह बॉस होकर भी मेरे आगे पीछे घूमता रहा। शिमला पहुंचने पर उसने स्वयं ही दो कमरे बुक कराए और मैं आराम से रही। पंकज की हिम्मत नहीं होती थी कि वह मेरे कमरे में दाखिल हो जाए। सात दिन सात रातें आराम से गुजर गई, एक बार भी पंकज साहब ने हिम्मत नहीं जुटाई जबकि पंकज के बारे में सुन रखा था कि वह उसी को टूर पर ले जाता है जो उसे पसंद हो, पर उसने तो मुझे छुआ तक नहीं कायर कहीं का। एक विशाल था.. "निडर शेर की तरह अनोखे व्यक्तित्व वाला आत्मविश्वास से भरा चेहरा, सुडौल आकर्षक छवि का धनी, तूफान की तरह मेरी जिंदगी में कोहराम मचा कर चला गया। ना आने का संकेत, न जाने के बाद कुछ सोचने की गुंजाइश.. बस जहां गए, छा जाने वाली प्रवृत्ति।"

मैं सर्विस करती थी। मेरी साथी माला की शादी थी। सभी संगीत का आनंद ले रहे थे। विशाल मेरे सामने आया और आदेश भरे स्वर में बोला- आप मेरे साथ डांस करिए।

मुझे लगा आज पहली बार मुझे किसी ने सचेत किया है वरना मेरे ही इशारों पर नाचने वाले मुझे मिले थे।मैं उसकी बाहों में समा गई और बेसुध सी थिरकती रही। वह न जाने कब मोहिनी यंत्र सा मुझे ऊपर ले गया और मुझ में पूर्ण रूप से समा गया। जब होश आया तो ना कोई गम ना कोई खेद। ना विशाल के पति गुस्सा था। शेर को देखकर मैं बहक रही थी। बाद में हम कभी नहीं मिले। माला से पता चला, वह उसका चचेरा भाई था और शादीशुदा है। कहां रहता है, क्या करता है.. मैंने कभी जानने की कोशिश नहीं की। उसके दिए कुछ पल ही अनूठे थे।

दो साल बाद मेरी शादी ध्रुव से हो गई और 4 साल गुजर गए। लेकिन मैं हर पल ध्रुव में विशाल को तलाशती रही। जब मैं शिमला से लौटी तो ध्रुव ने बहुत सारे प्रश्न किए और करते ही रहे.. मैं चुप रही, वह धैर्य खो बैठे और चीखने लगे। मैं उन्हें बेचैन, परेशान देखकर प्रसन्न थी। जब तुमने भेज ही दिया तो अब जलते क्यों हो..? जरा अपने बारे में सोचो अगर ऐसा मौका तुम्हें मिलता तो तुम क्या करते..

मैंने उसकी बेचैनी का फायदा उठाते हुए कहा- "ध्रुव मैं तो कहीं की नहीं रही.. जिसका डर था वही सब हुआ। उसने मुझे लूट लिया। वह जिस उद्देश्य से मुझे ले गया था उसने वह पूरा कर लिया। रात को 1:00 बजे धोखे से मेरे कमरे में आ गया तो मैं अपनी इज्जत की खातिर शोर भी नहीं मचा सकी। जब तुम सब जान ही गए हो तो देखो उससे तुम्हारी खुद्दारी को ललकारा है। तुम जाओ और उसे यमलोक भेज दो। तभी मेरे तन मन को शांति मिलेगी।"

ध्रुव चुपचाप सब सुनते रहे, फिर गंभीर सधे शब्दों में बोले-
-"देखो मनु, किसी को मारना आसान काम नहीं है फिर अगर मैं किसी तरह ऐसा करवा भी दूं तो तुम्हें अब क्या हासिल होगा जो होना था हो गया। अब तुम उसे एक दुर्घटना समझ कर भूल जाओ।"
"मुझे ध्रुव में से आधे अधूरे पुरुष की बू आने लगी जो मुझे संभालने में असमर्थ लगा। मैं सिर्फ पैसा कमाने की मशीन मात्र हूं, जिसे वह किसी रूप में गंवाना नहीं चाहता है। कैसा कायर पुरुष है..!"

मुझे ध्रुव पर तीखी हंसी आई। अगले दिन में ऑफिस से सीधी माला के घर विशाल का पता जान चली गई।



- लेखिका बृज  गोयल
C-27, राधा गार्डन, मवाना रोड, मेरठ
मोबाइल नंबर -9412708345

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