भारतीय संस्कृति सभ्यता की गौरवशाली धरोहर और आज का बदलता स्वरूप

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भारतीय संस्कृति सभ्यता की गौरवशाली धरोहर और आज का बदलता स्वरूप भारतीय सभ्यता और संस्कृति का वर्तमान स्वरूप एक गहन और बहुआयामी विषय है, जिसकी जड़ें हज

भारतीय संस्कृति सभ्यता की गौरवशाली धरोहर और आज का बदलता स्वरूप


भारतीय सभ्यता और संस्कृति का वर्तमान स्वरूप एक गहन और बहुआयामी विषय है, जिसकी जड़ें हज़ारों वर्ष पुराने इतिहास में समाई हुई हैं। यह सभ्यता न केवल अपनी प्राचीनता के लिए जानी जाती है, बल्कि अपने सतत विकास, लचीलेपन और विविधता के कारण भी विश्वभर में सम्मानित है। आज के समय में भारतीय संस्कृति का स्वरूप पारंपरिक मूल्यों और आधुनिक प्रभावों का एक अनूठा संगम है, जो इसे और भी समृद्ध बनाता है।

भारतीय संस्कृति सभ्यता की गौरवशाली धरोहर और आज का बदलता स्वरूप
भारतीय सभ्यता की सबसे बड़ी विशेषता इसकी विविधता और एकता का सह-अस्तित्व है। भारत में अनेक धर्म, भाषाएँ, परंपराएँ और जीवन-शैलियाँ एक साथ देखने को मिलती हैं, फिर भी सभी में एक अदृश्य सूत्र बंधा हुआ है। यह सूत्र भारतीयता की भावना है, जो सदियों से लोगों को जोड़ती आई है। आज भी यह भावना कायम है, हालाँकि आधुनिकता और वैश्वीकरण के प्रभाव से इसके स्वरूप में कुछ परिवर्तन आया है। उदाहरण के लिए, युवा पीढ़ी पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित होकर नए विचारों को अपना रही है, लेकिन साथ ही वह त्योहारों, रीति-रिवाजों और पारिवारिक मूल्यों को भी संजोए हुए है।

धर्म और दर्शन भारतीय संस्कृति के मूल आधार रहे हैं। हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख और अन्य धर्मों ने भारत की आध्यात्मिक और नैतिक विरासत को समृद्ध किया है। वर्तमान समय में भी धर्म लोगों के जीवन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन अब इसके प्रति दृष्टिकोण में उदारता और वैज्ञानिक सोच का समावेश हुआ है। लोग धर्म को अंधविश्वास से अलग करके देखने लगे हैं और इसके दार्शनिक पहलुओं को अधिक महत्त्व देते हैं। योग और ध्यान जैसी प्राचीन पद्धतियाँ आज विश्वभर में लोकप्रिय होकर भारतीय संस्कृति की गहरी पहुँच को दर्शाती हैं।

कला और साहित्य के क्षेत्र में भारतीय संस्कृति ने हमेशा से अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। शास्त्रीय नृत्य, संगीत, चित्रकला और स्थापत्य कला की परंपराएँ आज भी जीवित हैं, लेकिन इनमें नवीन प्रयोग भी हो रहे हैं। समकालीन कला और साहित्य में पारंपरिक और आधुनिक तत्वों का मिश्रण देखने को मिलता है। हिंदी, तमिल, बंगाली, मराठी और अन्य भारतीय भाषाओं का साहित्य अपनी समृद्ध विरासत को आगे बढ़ा रहा है, साथ ही अंग्रेज़ी और अन्य वैश्विक भाषाओं के माध्यम से भारतीय लेखक विश्व पटल पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं।

सामाजिक संरचना के स्तर पर भारतीय संस्कृति में बड़े बदलाव आए हैं। जाति और वर्ग के बंधन अब पहले की तरह कठोर नहीं रहे हैं, लेकिन इनकी जड़ें अभी भी समाज में गहरी हैं। महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है और वे शिक्षा, रोजगार और राजनीति जैसे क्षेत्रों में आगे आ रही हैं, परंतु पारंपरिक पितृसत्तात्मक मानसिकता अभी पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है। शहरीकरण और तकनीकी विकास ने परिवार की संरचना और सामाजिक संबंधों को भी प्रभावित किया है। संयुक्त परिवारों का स्थान एकल परिवारों ने ले लिया है, लेकिन फिर भी भारतीय समाज में रिश्तों की गर्मजोशी और सामुदायिक भावना बरकरार है।



भारतीय संस्कृति का महत्त्व केवल इसकी ऐतिहासिकता या सौंदर्य में नहीं है, बल्कि इसकी सहिष्णुता, गतिशीलता और मानवीय मूल्यों में निहित है। आज के वैश्विक समय में जब संस्कृतियों के बीच टकराव बढ़ रहा है, भारतीय संस्कृति "वसुधैव कुटुम्बकम" के विचार को साकार करती है। यह संस्कृति विज्ञान और आध्यात्मिकता, प्रगति और परंपरा, व्यक्तिगत और सामूहिक हितों के बीच संतुलन बनाने की प्रेरणा देती है। भारत की आर्थिक और राजनीतिक बढ़ती ताकत के साथ-साथ इसकी सांस्कृतिक शक्ति भी विश्व को एक नई दिशा देने में सक्षम है। इसलिए, भारतीय सभ्यता और संस्कृति का वर्तमान स्वरूप न केवल देश के लिए, बल्कि समस्त मानवता के लिए महत्त्वपूर्ण है।

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