विवाह कब होगा: ज्योतिषीय दृष्टिकोण

SHARE:

विवाह कब होगा शीघ्र, समय पर या विलंब से भारतीय संस्कृति और हिंदू वैदिक सभ्यता के अंतर्गत षोडश संस्कारों का उल्लेख हमें देखने मिलता है। इन सभी षोडश सं

विवाह कब होगा शीघ्र, समय पर या विलंब से


भारतीय संस्कृति और हिंदू वैदिक सभ्यता के अंतर्गत षोडश संस्कारों का उल्लेख हमें देखने मिलता है। इन सभी षोडश संस्कारों में विवाह संस्कार सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया है। भारतीय संस्कृति में विवाह एक पवित्र बंधन के साथ-साथ समाज की अति महत्वपूर्ण आवश्यकता भी है।  परिवार को आगे बढ़ाने और वंश वृद्धि के लिए विवाह एक महत्वपूर्ण कारक माना गया है। यही वजह है कि हमारे यहां "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" की बात की जाती है। यही बात हमें पश्चिमी जगत से अलग करती है। एक ओर जहां विवाह का प्रयोजन धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति है वहीं दूसरी ओर एहलौकिक, पारलौकिक और आध्यात्मिक उन्नति करना भी है। विवाह संस्कार का एक अन्य महत्वपूर्ण उद्देश्य उत्तम संतान की उत्पत्ति के माध्यम से पितृ ऋण, ऋषि ऋण और देव ऋण से मुक्त होना बताया गया है। इस प्रकार विवाह संस्कार भारतीय समाज और संस्कृति का एक अटूट और अभिन्न हिस्सा है।

विवाह के संबंध में जन्मपत्रिका में बन रहे विवाह के योग की पुष्टि हम नवमांश के माध्यम से करते हैं . वैसे तो नवमांश पत्रिका के माध्यम से बहुत सी विषय वस्तुओं का अध्ययन किया जाता है परंतु जब भी विवाह की संभावना और जन्म पत्रिका में बन रहे योगों की पुष्टीकरण की बात आती है तब नवमांश पत्रिका बहुत महत्व रखती है। नवांश पत्रिका का लग्न जातक की विवाह के प्रति इच्छा को प्रकट करता है अर्थात बताता है कि जातक विवाह करने के लिए इच्छुक है अथवा नहीं। वहीं दूसरी और लग्न का स्वामी लग्नेश यह बताता है कि विवाह किस प्रकार संपन्न होगा। अर्थात लग्नेश उस इच्छा का कर्ता हुआ। इस विवेचना के आधार पर दो महत्वपूर्ण बिंदु निकलकर सामने आते हैं प्रथम में जातक की कार्य के प्रति कार्य की इच्छा और वहीं दूसरी है करता अर्थात उसे भाव के स्वामी के द्वारा कार्य का निष्पादन किया जाना। इस आधार पर किसी जातक की नवमांश पत्रिका का गठन करने पर हम विवाह के संबंध में बहुत सी संभावनाएं  सटीकता के साथ प्रकट कर सकते हैं। किसी भी भाव अथवा भावेश पर पड़ने वाले प्रभावों को हम तीन वर्गों में बांट सकते हैं प्रथम शुभ प्रभाव द्वितीय अशुभ प्रभाव और तृतीय मिला जुला  प्रभाव या सम प्रभाव। नवमांश वर्ग पत्रिका में लग्न जातक के विवाह करने की इच्छा को प्रकट करता है और लग्नेश कर्ता है अर्थात  विवाह करवाने का कार्य करता है। लग्न और लग्नेश पर पड़ने वाले प्रभाव को संयोजित करते हुए हम विवाह का संभावित कालखंड निकालने का प्रयास करते हैं।  जिस प्रकार लग्न पर तीन प्रकार का प्रभाव बताया गया है उसी प्रकार लग्नेश भी शुभ, अशुभ अथवा सम तीन प्रकार के प्रभाव लिए हुए रहता है।

लग्न और लग्नेश के  प्रभावों के संयोजन के आधार पर विवाह को आयु के अनुसार तीन वर्गों में बांटा जा सकता है। पहला... कम आयु में विवाह अर्थात शीघ्र विवाह, दूसरा... सामान्य आयु में विवाह और तीसरा...अधिक आयु में विवाह।

अब प्रश्न यह उठता है किस आयु वर्ग को शीघ्र विवाह, किसको सामान्य विवाह, किसको विलंब अथवा अत्यधिक विलंब की  श्रेणी में स्थापित करेंगे। मुख्य रूप से हम देखें तो इस समय का निर्धारण देश, काल और पात्र के अनुसार किया जाता है। देशकाल पत्र के साथ-साथ समाज की स्थिति सामाजिक परंपराएं और रीति रिवाज और समाज में प्रचलित मान्यताएं और धारणाएं का भी ध्यान रखना आवश्यक रहता है। स्थूल रूप में हम 21 वर्ष की आयु से पूर्व होने वाली विवाह को शीघ्र विवाह की श्रेणी में रख सकते हैं उसके बाद 25 वर्ष तक होने वाला विवाह सामान्य विवाह माना जा सकता है और 25 से 30 वर्ष की आयु सीमा में होने वाले विवाह विलंब विवाह किस श्रेणी में माना जा सकता है। या उस में भी ग्रामीण और शहरी शहरी और मेट्रोपॉलिटन शहर इत्यादि के हिसाब से परिवर्तित होती रहती है। देश, काल और पात्र साथ ही सामाजिक पृष्ठभूमि यहां एक महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है।

आइए अब लग्न पर पड़ने वाले प्रत्येक प्रकार के स्वभाव के सापेक्ष लग्नेश के प्रभाव को संयोजित कर विवाह की आयु सीमा का निर्धारण करने का प्रयास करते हैं। हमारी विवेचना नवांश पत्रिका पर आधारित है। यहां हमने पाया की लग्न के प्रत्येक प्रभाव के सापेक्ष लग्नेश के तीन प्रभाव दृष्टिगोचर होते हैं जो निम्न अनुसार हैं…

लग्न भाव......  लग्नेश
शुभ प्रभाव       शुभ /अशुभ/ सम
अशुभ प्रभाव    शुभ /अशुभ/ सम
सम प्रभाव       शुभ/ अशुभ /सम

विवाह कब होगा शीघ्र, समय पर या विलंब से
इसे विस्तार से कुछ इस प्रकार समझा जा सकता है कि यदि लग्न भाव पर शुभ प्रभाव पड़ रहा है और लग्नेश भी शुभ प्रभाव में है तब बिना किसी विलंब के जातक के विवाह की  संभावना बनती है। यहां लग्न पर शुभ प्रभाव जातक के विवाह करने की इच्छा को प्रकट करता है वहीं दूसरी ओर लग्नेश का शुभ प्रभाव में होना यह बताता है कि वह जातक की इच्छा की पूर्ति करेगा। इस प्रकार यह संयोजन जातक के विवाह के प्रबल संभावना प्रकट करता है।

अब यदि लग्न शुभ प्रभाव में होता है और लग्नेश पीड़ित हो जाता है अर्थात पाप प्रभाव में आ जाता है तब जातक के विवाह की इच्छा तो होती है परंतु लग्नेश जातक की इच्छा पूर्ण करने में सक्षम नहीं होता। इस प्रकार के संयोजन में विवाह तो होता है परंतु बहुत अधिक विलंब करवाता है। इस परिस्थिति में लग्न पर शुभ प्रभाव दशाएं प्राप्त होने पर विवाह  की संभावना बनाता है।  लग्न पर शुभ प्रभाव और लग्नेश सम प्रभाव ( मिला जुला प्रभाव) में होने की स्थिति यदि लग्नेश पर शुभ और  पाप दोनों ही प्रकार का प्रभाव पड़ रहा है तब विवाह की संभावना  का निर्धारण इस आधार पर किया जाता है कि लग्नेश पर पड़ने वाला शुभ प्रभाव अधिक है अथवा अथवा पाप प्रभाव। यदि शुभ प्रभाव ज्यादा है अर्थात लग्नेश स्वराशि अथवा उच्च राशि में है तब वह बली होगा इस आधार पर शुभ प्रभाव पाप प्रभाव की तुलना में अधिक होने से विलंब तो होगा विवाह में परंतु बहुत अधिक नहीं होगा। उसके विपरीत यदि लग्नेश पर शुभ प्रभाव की तुलना में पाप प्रभाव अधिक मिलता है तब विवाह में अधिक विलंब देखने को मिलेगा। यह तो हुई विवेचना जब लग्न पर केवल और केवल शुभ प्रभाव है तथा लग्नेश पर  क्रमशः शुभ प्रभाव, अशुभ प्रभाव अथवा सम प्रभाव रहता है।

हम दूसरी स्थिति की विवेचना करते हैं जिसमें लग्न पर सदैव ही अशुभ प्रभाव रहता है। लग्न का अशुभ सम्बन्ध में रहना यह बताता है कि जातक को विवाह की इच्छा नहीं है। लग्न के अशुभ प्रभाव के सापेक्ष यदि लग्नेश पर केवल शुभ प्रभाव है तब कर्ता होने के कारण लग्नेश लग्न की इच्छा की पूर्ति करने का प्रयास करेगा और यहां लग्न की इच्छा विवाह न करने की है। अतः  लग्नेश विवाह नहीं होने देगा अथवा विवाह में अत्यधिक विलंब कराएगा। अब यदि नवांश पत्रिका में लग्न और लग्नेश दोनों ही पाप संबंध के साथ हैं तब एक और जहां जातक की विवाह की इच्छा नहीं है और दूसरी ओर लग्नेश भी पाप प्रभाव में होने के कारण लग्नेश की इच्छा की पूर्ति नहीं होने देगा। अब चूंकि यहां पर लग्न की इच्छा विवाह न करने के प्रति है, अतः लग्नेश पीड़ित होने से जातक की इच्छा पूर्ति नहीं होने देगा और  विवाह होने देगा और शीघ्र विवाह करवाएगा। यह बात समझने में थोड़ा अजीब सी लग सकती है।  यहां जातक विवाह नहीं करना चाहता है लेकिन लग्नेश पाप संबंध में होने के कारण जातक की इच्छा के विपरीत जाकर जातक का विवाह शीघ्र करवाने को आतुर रहेगा।

अब यहां तीसरी स्थिति के अंतर्गत उस प्रभाव का अध्ययन करेंगे जिसमें लग्न और लग्नेश दोनों ही मिले-जुले अर्थात सम प्रभाव में रहते हैं। यहां लग्न पर पाप संबंध होने से जातक के विवाह की इच्छा नहीं है और लग्नेश पर मिला-जुला प्रभाव अर्थात शुभ और अशुभ दोनों प्रकार का होने से लग्नेश जातक का विवाह तो कराएगा परंतु विलंब के साथ। लग्नेश पर जिस प्रकार का प्रभाव अधिक होगा संभावना उस आधार पर निकलकर सामने आएगी। अब यदि लग्न पाप संबंध में है और लग्नेश पर  मिलाजुला प्रभाव है तब सूक्ष्मता के साथ अध्ययन करते हुए लग्न ओर लग्नेश पर जो बली हो उसके अनुसार विवाह की आयु सीमा का निर्धारण किया जाना चाहिए।

अब अंतिम स्थिति वह बनती है जिसमें लग्न पर भी मिला-जुला प्रभाव होता है और  लग्नेश पर भी मिला जुला प्रभाव होता है। अर्थात लग्न और लग्नेश दोनों ही मिले जुले प्रभाव अर्थात सम प्रभाव में हैं।  इस स्थिति में विवेचना अत्यधिक सावधानीपूर्वक करने की आवश्यकता होती है। लग्न और लग्नेश पर  शुभता और अशुभता के परिमाण के आधार पर इसकी विवेचना की जानी चाहिए। अर्थात लग्न और लग्नेश में किस प्रकार का प्रभाव बली है। यदि लग्न पर पाप प्रभाव मिलता है और लग्नेश पर शुभ  प्रभाव अधिक हैै तब लग्नेश जातक की इच्छा की पूर्ति करने का प्रयत्न करेगा। परंतु लग्न पर पाप प्रभाव अधिक होने पर जातक को  विवाह की इच्छा कम ही है या नहीं है तब  विलंब अथवा अत्यधिक विलंब से विवाह की संभावना व्यक्त की जा सकती है। इस परिस्थिति में हमारा फल कथन इस बात पर निर्भर करता है कि हमारे द्वारा लग्न और लग्नेश की प्रभाव का कितनी सूक्ष्मता के साथ अध्ययन किया गया है।

बेहद ही खूबसूरती के साथ हमारे ऋषि मुनियों द्वारा जन्म पत्रिका के माध्यम से इसे निरूपित किया है। हम जानते हैं कि जन्मकुंडली में सप्तम भाव से विवाह का विचार किया जाता है। सप्तम भाव, नवम भाव का एकादश है अर्थात धर्म के लिए उपचय या वृद्धि का स्थान है। हमारी संस्कृति में बेटे को विष्णु स्वरूप माना गया है और जन्म कुंडली का दशम भाव विष्णु स्थान अर्थात विष्णु है जो नवम भाव से द्वितीय होने से विवाह जैसे धार्मिक कार्य से कुटुंब के उद्धव को इंगित करता है और धर्म की वृद्धि करता है। इस प्रकार हम पाते  हैं कि विवाह एक धार्मिक कार्य होते हुए धर्म की मात्रा बढ़ाने का एक साधन है। गृहस्थ से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह  हमारे जीवन का आधार है।  अतः गृहस्थ जीवन का समय पर प्रारंभ होना और सुखमय होना देश, समाज,  धर्म तथा संस्कृति को सुरक्षित रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है। इस प्रकार हमने देखा कि किस प्रकार से  इस विवेचना ने हमें मोटे तौर पर एक समय सीमा निर्धारित कर देने के प्रयास किया है। जिसके अंतर्गत हम जातक के विवाह की संभावना प्रकट कर सकते हैं। अर्थात हम यह जान सकते हैं कि जातक का विवाह शीघ्र होगा, समय पर होगा, विलंब से होगा अथवा अत्यधिक विलंब से होगा।



- इंजी. संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश 9425822488

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका