महिलाओं का योगदान: रोजगार के हर क्षेत्र में नई ऊंचाइयां

SHARE:

रोजगार के हर क्षेत्र में महिलाएं मजबूती से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं. चाहे वह छोटी-सी चाय की दुकान हो, कपड़े प्रेस करने का काम हो, साप्ताहिक बाजा

रोजगार के हर क्षेत्र में महिलाएं सशक्त है


ब हम रोजगार की बात करते हैं, तो सबसे पहले हमारे मन में संगठित क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों की छवि उभरती है. लेकिन समाज के असली नायक वे लोग होते हैं जो असंगठित क्षेत्र में रहकर भी अपने हौसले से रोजगार के नए आयाम गढ़ते हैं. खासकर महिलाओं की भूमिका इस क्षेत्र में कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि वे न केवल अपने परिवार की ज़िम्मेदारी उठा रही हैं, बल्कि आत्मनिर्भरता की मिसाल भी कायम कर रही हैं. राजस्थान की राजधानी जयपुर की गलियों, बाज़ारों और सरकारी इमारतों के बाहर ऐसी कई महिलाएं अपने छोटे-छोटे व्यवसायों के माध्यम से रोज़गार करती नज़र आ जाएंगी. उनके संघर्ष में सिर्फ आजीविका का सवाल नहीं, बल्कि एक बेहतर भविष्य की उम्मीद भी छुपी हुई है.

48 वर्षीय केसरी देवी की दिनचर्या सुबह जल्दी शुरू होती है. जयपुर के झालाना इंस्टीट्यूशनल एरिया की मुख्य सड़क पर उनका छोटा-सा चाय का ठेला है, जहां वे ग्राहकों के लिए चाय, बिस्कुट, सिगरेट, तंबाकू और रोजमर्रा के काम आने वाले छोटे-छोटे सामान बेचती हैं. उनके पति पहले दैनिक मजदूरी करते थे, लेकिन लगातार खराब होते स्वास्थ्य के कारण अब घर पर ही रहते हैं. ऐसे में केसरी देवी ने हिम्मत दिखाई और अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए खुद कमाने का निर्णय लिया. वह बताती हैं, "शुरुआत में डर लग रहा था कि मैं यह काम कर भी पाऊंगी या नहीं, लेकिन अब मैं इस काम को पूरी मेहनत से करती हूं." उनका स्टॉल दिनभर चलता है, लेकिन शाम होते ही यहां ग्राहकों की भीड़ बढ़ जाती है, जब दफ्तर से लौटते लोग चाय की चुस्कियों के साथ अपनी थकान मिटाने आते हैं. हालांकि उन्हें हर दिन इस बात की चिंता सताती है कि कहीं उनकी दुकान हटा न दी जाए, क्योंकि यह सरकारी जमीन पर बनी है. वे कहती हैं, "अगर मेरी दुकान यहां से हटा दी गई, तो मेरे परिवार का क्या होगा?" लेकिन इन मुश्किलों के बावजूद वह हर सुबह नई उम्मीद के साथ अपना काम शुरू करती हैं.

रोजगार के हर क्षेत्र में महिलाएं सशक्त है
गीता देवी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. 55 वर्षीय गीता देवी आठ साल पहले अपने परिवार के साथ बेहतर रोजगार की तलाश में जयपुर आई थीं. उनका परिवार मूल रूप से राजस्थान के टोंक जिले से ताल्लुक रखता है. पति और बड़ा बेटा दैनिक मजदूरी करते हैं, लेकिन उनकी आमदनी इतनी नहीं थी कि पूरे परिवार का भरण-पोषण हो सके. ऐसे में गीता देवी ने खुद कुछ करने की ठानी और कपड़े धोने और प्रेस करने की दुकान खोल ली. उनकी दुकान स्थायी नहीं है, लेकिन फिर भी वे हर दिन मेहनत करके अपना और अपने परिवार का गुजारा कर रही हैं. वे कहती हैं, "यहां रोज़गार के कई अवसर हैं, बस हमें मेहनत से काम करना आना चाहिए." हालांकि, उनकी दुकान भी सरकारी ज़मीन पर बनी है, और कभी भी हटाई जा सकती है. बावजूद इसके वह हर सुबह मुस्कुराते हुए काम पर बैठती हैं और अपने ग्राहकों के कपड़ों को सलीके से प्रेस करती हैं.

जयपुर में हर हफ्ते कई इलाकों में साप्ताहिक हाट बाजार लगते हैं, जहां कई महिलाएं अस्थायी रूप से दुकानें लगाकर अपने उत्पाद बेचती हैं. झालाना में भी ऐसा ही बाजार लगता है, जिसमें महिलाएं कपड़े, बर्तन, खिलौने, घरेलू सामान और अन्य आवश्यक वस्तुएं बेचने आती हैं. 37 वर्षीय कविता और 57 वर्षीय अनुपमा देवी इसी बाज़ार में अपनी कपड़ों की दुकान लगाती हैं. कविता हर सप्ताह इंदिरा बाज़ार से कपड़े खरीदकर लाती है और यहां बेचती हैं. वे बताती हैं, "हमारा ग्राहक वर्ग बहुत बड़ा नहीं है, लेकिन खासतौर पर युवा लड़के और लड़कियां हमारे कपड़ों को खरीदने में दिलचस्पी लेते हैं." वहीं अनुपमा देवी कभी इंदिरा मार्केट तो कभी सकलौटी जैसे होलसेल मार्केट से कपड़े खरीद कर जयपुर के विभिन्न साप्ताहिक बाजारों में बेचने जाती हैं. इसी बाज़ार में संध्या भी अपनी दुकान लगाती हैं, जिसमें वह किचन में इस्तेमाल होने वाले छोटे-छोटे प्लास्टिक के सामान बेचती हैं. उनकी दुकान की खासियत यह है कि उनका कोई भी उत्पाद 20 रुपये से अधिक का नहीं होता, जिससे ग्राहक अधिक संख्या में आते हैं. संध्या कहती हैं, "मेरा सपना है कि कभी मेरी भी अपनी स्थायी दुकान हो, लेकिन फिलहाल यह भी काफी है."

रोजगार की दुनिया सिर्फ दुकानदारी तक सीमित नहीं, बल्कि कई महिलाएं मेहनत करके भी अपनी आजीविका चला रही हैं. झालाना के सरकारी भवनों में बागवानी का काम करने वाली धापू देवी और सोनी देवी इसी संघर्ष का उदाहरण हैं. ये दोनों महिलाएं सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक काम करती हैं, जिसमें वे पौधों की देखभाल, सफाई, खाद डालने और पानी देने जैसे कार्य करती हैं. महीने में उन्हें लगभग 4,000-5,000 रुपये की आमदनी होती है, जो उनके लिए पर्याप्त नहीं है, लेकिन इससे वे अपने परिवार का पेट पाल रही हैं. धापू देवी बताती हैं, "यह काम कठिन ज़रूर है, लेकिन हमें इससे रोज़गार मिला है. जब तक हमें कोई और अच्छा अवसर नहीं मिलता, हम यही काम करेंगे."

इन सभी महिलाओं की कहानियां एक बात साफ कर देती हैं - रोजगार के हर क्षेत्र में महिलाएं मजबूती से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं. चाहे वह छोटी-सी चाय की दुकान हो, कपड़े प्रेस करने का काम हो, साप्ताहिक बाजार में कपड़े और घरेलू सामान बेचना हो या फिर बागवानी करना - हर जगह महिलाएं न केवल काम कर रही हैं, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी पैदा कर रही हैं. लेकिन उनका यह सफर आसान नहीं है. कई चुनौतियां इन महिलाओं के सामने हर रोज़ खड़ी हो जाती हैं - स्थायी दुकान का न होना, सरकारी जमीन पर व्यवसाय करने का खतरा, कम आमदनी, और कभी-कभी समाज की बेवजह की बंदिशें, इसके बावजूद, ये महिलाएं अपने हौसले से इन मुश्किलों को पार कर रही हैं और अपनी मेहनत से यह साबित कर रही हैं कि वे किसी से कम नहीं हैं. (लेखक जयपुर स्थित दूसरा दशक से जुड़े हैं.)



- नरेंद्र कुमार शर्मा
जयपुर, राजस्थान

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका