दो सवाल | हिंदी कहानी

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दो सवाल आज सुबह से ही आसमान में बादल छाँए हुए थे और थोड़ी बहुत बूंदाबांदी भी हो रही थी | ठंडी हवाओं से मौसम में हल्की-सी ठंड बैठ गयी थी | मुझे ऐसा मौ

दो सवाल

 
ज सुबह से ही आसमान में बादल छाँए हुए थे और थोड़ी बहुत बूंदाबांदी भी हो रही थी | ठंडी हवाओं से मौसम में हल्की-सी ठंड बैठ गयी थी | मुझे ऐसा मौसम बहुत पसंद है | एक अलग-सा सुकून मिलता है ऐसे मौसम में | मैं खिड़की से बादलों को निहार ही रहा था की अचानक लैपटॉप की स्क्रीन पर बैटरी लो का मेसेज आया | मैं सोच रहा था की आज ऑफिस खत्म करके थोड़ी देर बाहर घूम आऊँगा क्योंकि पूरे दिन बैठे-बैठे कमर में दर्द होने लगा था लेकिन इस सोच विचार में मैं लैपटॉप को चार्जिंग पर लगाना ही भूल गया | दरअसल मेरे लैपटॉप की बैटरी ख़राब हो गयी थी और वो बिना चार्जिंग बहुत देर तक नहीं टिक पता था | एक तो ये लैपटॉप बहुत पुराना हो गया था, दूसरा मैं कभी इसे चार्ज करना भूल जाता था, तो कभी चार्जिंग पर लगा कर भूल जाता था | दरअसल ये लैपटॉप मुझे कंपनी ने काम करने के लिए दिया था और मैं इस लैपटॉप का उतना ही ख्याल रखता था, जितना कंपनी मेरा | बैटरी लो का मेसेज देखते ही मैं पागलों की तरह चार्जर लेकर स्विच बोर्ड की तरफ भागा और लैपटॉप को बंद होने से बचाने की कोशिश करने लगा |

खैर लैपटॉप बंद नहीं हुआ और हर रोज की तरह दिन की आखिरी मीटिंग में मैनेजर ने सबसे सवाल जवाब किये | मैंने भी जो काम हो गया उसे बढ़ा चढ़ाकर बताया और जो नहीं हुआ था, उसे कल पर टालकर आज का ऑफिस खत्म किया | इस वर्क फ्रॉम होम के जितने फायदे है, उतने ही नुकसान भी है | कई बार तो रात को नौ बजे तक काम करना पड़ता है लेकिन फिर लगता है की जैसा भी है, कम से कम अपने घर का आराम तो है | घर के ऊपर वाले कमरे में मैंने अपना ऑफिस बना रखा था और दिन का ज्यादातर समय मेरा इसी कमरे में गुजरता था |

मैंने लैपटॉप को बंद करके मेज पर रखा और पास के पलंग पर लेटकर मोबाइल चलाने लगा | मोबाइल में देखा तो अनुज की एक मिस्ड कॉल आई थी और कल्पना के 7 मेसेज |
 
दो सवाल
ऐसा बहुत कम होता था की कल्पना का रात से पहले कोई मेसेज आये क्योंकि दिन में वो किसी न किसी काम में लगी रहती थी और रात को ही थोडा फ्री हो पाती थी | उसने लिखा था, हे कैसे हो ? यार बहुत दिन हो गए, हम लोग मिले नहीं ... चलो कल जिंदल पार्क में मिलते है | मुझे कुछ बात भी करनी है तुमसे .... 5 बजे तक पार्क में पहुँच जाना | ओके बाय .... डोन्ट रिप्लाई | मेसेज पढ़कर मुझे तो लिखे हुए शब्दों पर यकीन ही नहीं हुआ और मैंने मेसेज को कई बार पढ़ा की कही मैं गलत तो नहीं पढ़ रहा | लेकिन इस बात की संतुष्टि करने के बाद मेरी ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा | मैंने कल्पना की प्रोफाइल से उसकी फोटो खोली और ये सोचने लगा की कल इतने दिन बाद इस चेहरे को सामने हँसता-बोलता देख कितना आनंद आएगा | लेकिन जल्दी ही मेरा रोमांच, डर में बदलने लगा क्योंकि जिससे फ़ोन पर बात करने के लिए उसे घंटो मनाना पड़ता था, आज वो खुद मिलने के लिए जो बुला रही थी | और इस बात का अलग तनाव होने लगा की उसे ऐसी कौन सी बात करनी है, जो मिलकर ही हो सकती है | रात तक इस बात को लेकर अलग-अलग विचार दिमाग में आये और लगने लगा की शायद ये हमारी आखिरी मुलाकात ना हो | कल्पना के इन मेसेज की वजह से मैं बाहर जाना भी भूल गया और ये भी भूल गया की मुझे किसी का कॉल भी आया था |
   
रात में कल्पना के ऑनलाइन आने तक मैं लगभग हर वो बुरा द्रश्य सोच चुका था, जो कल पार्क में वो मुझे बता सकती थी | हो सकता है की उसके घर वालो को हमारे बात करने का पता चल गया होगा या तो उसका ही मन भर गया हो | फिर लगा की शायद उसकी शादी की बात चल रही होगी क्योंकि कुछ महीनों पहले उसने जिक्र किया था की उसके घर में शादी को लेकर बातें शुरू हो गयी है, लेकिन तब उसने नौकरी का बहाना करके ये सब कुछ दिनों के लिए टाल दिया था |
 
जब कल्पना ऑनलाइन आई तो मेरा सबसे पहला सवाल ये ही था की तुम किस बारे में बात करने के लिए कह रही थी ? उसने कहा की वो तो मैं मिल कर ही बताऊंगी लेकिन इतना बता सकती हुँ की तुमसे किसी बारे में राय लेनी है | ये पढ़ने के बाद मेरे दिमाग में सबसे पहला विचार आया की कल कही ये किसी लड़के की फोटो दिखाकर ये न पूछ ले की क्या मुझे इस लड़के से शादी कर लेनी चाहिए ? इस विचार ने मुझे मजबूर कर दिया और मैंने उससे पूछ ही लिया की तुम्हारी शादी तो तय नहीं हो गयी ? उसका मेसेज आया, अरे नहीं अभी तो घर पर माहौल ठीक ही है | चलो ठीक है ... फ़ालतू टेंशन मत लो ... कल मिलते है ...  बाय डोन्ट रिप्लाई | उसका डोन्ट-रिप्लाई मेसेज उस लक्ष्मण-रेखा जैसा था, जिसे मैं कभी पार नहीं कर सकता था, इसीलिए मेरी यही कोशिश रहती थी की जरूरी बात पहले ही कह दूँ, क्योंकि पता नहीं कब डोन्ट-रिप्लाई का बम फूट जाए | कल्पना को भी ऐसे बात करना खलता था लेकिन वो भी मजबूर थी | दरअसल उसके परिवार वाले रूडिवादी सोच के वारिस थे और उसका बड़ा भाई रवि, अपनी ये जिम्मेदारी पूरी तरह से निबाहता था | वो कभी भी उसका फ़ोन चेक करने लगता की कही वो किसी लड़के से तो बात नहीं करती | कल्पना के बचपन में ही उसके पिता का देहांत हो गया था और घर की सारी जिम्मेदारी उसकी माँ और रवि पर आ गयी थी | कल्पना के प्रति रवि का रवैया शुरू से ही कठोर था | उसके विचार में लड़कियों को अपने माँ बाप की पसंद के लड़के से ही शादी करनी चाहिए, क्योंकि उसका मानना था की फूल सिर्फ बिरादरी में ही खिलता है | लेकिन ये बात सिर्फ उसकी बहन पर लागू होती थी क्योंकि उसने खुद गैर बिरादरी की लड़की से प्रेम विवाह किया था | कल्पना रवि से बहुत डरती थी इसीलिए मुझे ये कड़े निर्देश थे की हर बार कल्पना के हेय मेसेज करने के बाद ही मैं कोई मेसेज करू, और डोन्ट रिप्लाई के बाद कोई मेसेज न करू, क्योंकि उसका फ़ोन घर में कोई भी चला लेता था और अगर किसी को पता चल जाता की वो मुझ से बात करती है, तो घर में भूचाल आ जाता |
 
आज सुबह ही मैंने मेनेजर को मेसेज भेज दिया की मुझे आज की छुट्टी चाहिए | मेनेजर ने भी कुछ ज्यादा विरोध किये बिना ही हाँ कर दी | मैंने कल का बचा हुआ काम खत्म किया और लैपटॉप को चार्जिंग पर लगा कर नीचे खाना खाने चला गया | खाना खाने के बाद, मैं थोड़ी देर आराम करने के लिए लेटा ही था की मम्मी बाजार से राशन का सामान लाने के लिए कहने लगी | बाज़ार हमारे घर से काफी दूर था और इतनी गर्मी में वहाँ जाने का मेरा बिलकुल भी मन नहीं था लेकिन आज ये काम शाम पर भी नहीं टाल सकता था क्योंकि शाम को कल्पना से मिलने जो जाना था इसीलिए सोचा की अभी बाज़ार हो आता हूँ, वहाँ से कल्पना के लिए कोई गिफ्ट भी खरीद लूँगा और वहाँ से आते-आते चार भी बज जायेंगे तो फिर तैयार होकर पार्क चला जाऊंगा | मैं बाज़ार जाने के लिए उठा तो मम्मी के चेहरे पर आश्चर्यपूर्ण भाव थे क्योंकि ऐसा कम ही होता था की मैं काम को बिना टाले, एक ही बार में काम करने के लिए हामी भर दुँ और मेरे इसी आलस्य स्वभाव की वजह से उन्हें जो काम आज करवाना होता था, उसके लिए वे मुझे दो दिन पहले से कहना शुरू कर देती थी |

गर्मी की वजह से किराना की दूकान पर भी ज्यादा भीड़ नहीं थी तो मैं टाइम पर घर आ गया | थोड़ी देर कूलर में बैठकर पसीना सुखाया और वो फिर मुँह हाथ धोने चला गया | मुहँ हाथ धोकर मैं शर्ट पर स्त्री कर रहा था की मम्मी पूछने लगी, “कहा जाने की तैयारी हो रही है “? मैंने इस सवाल का जवाब तो सोचा ही नहीं था | कल्पना मुझसे क्या-क्या पूछ सकती है, मुझे उससे क्या क्या बात करनी है ... इन् सवालो का जवाब ढूंढते ढूंढते मैं भूल ही गया था की मम्मी के सवालो का जवाब भी तो देना है | मैं चाहता था की उन्हें सच बता दू लेकिन ये डर था की उसके बाद सवालो की झड़ी लग जाएगी और ऐसे वक़्त पर मेरा दिमाग भी मेरा साथ देना छोड़ देता है, तो जल्दबाजी में मेरे मुंह से निकल गया की अनुज से मिलने जा रहा हुँ | वो कल ही दिल्ली से आया है, तो बोलने लगा की मिलने आ जाना | मम्मी के चेहरे के भाव से लग रहा था की उन्हें मेरे झूठ का पता चल गया क्योंकि मुझे खुद याद नहीं मैंने आखिरी बार अपने कपड़ो पर स्त्री कब कि थी और मैं पहले भी अनुज से मिलने गया था लेकिन ऐसे सजधज कर पहली बार जा रहा था | मेरे उत्साह को देखकर मम्मी ने कोई सवाल नहीं किया, बस हल्की सी मुस्कराहट के साथ जाने की अनुमति दे दी |
  
जैसे ही मैं पार्क में पँहुचा तो देखा कल्पना वहाँ पहले ही पहुँच चुकी थी | कॉलेज के वक़्त हम सारे दोस्त जिस पेड़ के नीचे मिलते थे, उसी पेड़ के पास वाली बेंच पर बैठी, वो एकटक अपने मोबाइल में नज़रे गड़ाएं कुछ ढूंढ रही थी | कुछ पलो के लिए, मैं उसे दूर से ही निहारने लगा | आज वो पहले से थोड़ी पतली मालूम हो रही थी | उसने अपने बालो को बड़े ही अनसुलझे तरीके से बांधकर, जूडा बना रखा था | कानो में छोटी छोटी बालियाँ और हाथ में एक ब्रेसलेट, उसके हल्के हरे सूट के साथ मेल खा रहे थे | उसके गाल पर दानों के कुछ निशान थे, जो अब थोड़े फीके मालूम हो रहे थे | उसके माथे की सलवटें, उसके दिमाग में चल रही उलझन को व्यक्त कर रही थी | मोबाइल में व्यस्त होने के कारण, उसको मेरे आने का अभी तक पता नहीं चला था | मैं उसकी और बढ़ा | उसकी नज़र जैसे ही मुझ पर पड़ी की उसके ललाट पर छाई लहरें शांत हो गयी और उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट आ गयी | वो उठी और उसने हाथ मिलाने के लिए हाथ आगे बढाया | मैं आशा गले मिलने की कर रहा था और मुझे लगता है की कल्पना के मन में भी ये ख्वाहिश रही होगी लेकिन हमारा गले मिलना इस छोटे से पार्क में घूम रहे लोगों के आकर्षण का केंद्र न बन जाए इसीलिए उसने हाथ मिलाना ही सही समझा होगा | हो सकता है उसने ऐसा कुछ भी न सोचा हो लेकिन ऐसा मानकर मैंने अपने मन को समझाया और उसके अभिवादन को स्वीकार किया |
 
तुम तो काफी पतले से हो गए हो, फोटो में तो सही लगते थे, वो बोली | 
मैंने कहा, मैं तो बस तुम्हारे नक़्शे कदम पर चल रहा हुँ | 
क्या मैं भी पहले से पतली हो गयी हुँ ? उसने सवाल किया | 
हाँ तो, कॉलेज में तो बिलकुल गोल मटोल थी, शायद अब घर वाले तुम्हारे खाने पीने का कुछ ज्यादा ही ध्यान रख रहे है | 
वो बोली, छोड़ो यार ये सब, तुम ये बताओ, कैसे हो ? 
मैं तो अच्छा हुँ और सच बताऊँ तो मुझे अब भी यकीन नहीं हो रहा की मैं तुमसे आमने-सामने बात कर रहा हुँ, मुझे ऐसा लग रहा है की मैं कोई सपना देख रहा हुँ और तुम अभी डोन्ट रिप्लाई बोलकर गायब हो जाओगी | 
उसने कहा, टेंशन मत लो, आज डोन्ट रिप्लाई नहीं बोलूंगी |
 
हम दोनों हँसने लगे | उसको ऐसे हँसता देख मैं ये पल यही रोक देना चाहता था | फिर मुझे तोहफे का याद आया | मैंने थेले से किताब निकाल कर उसके हाथ में थमा दी | वो बोली, अरे इसकी क्या जरूरत थी, और फिर हँसकर कहने लगी की जब ले आये हो तो रख ही लेती हुँ | और फिर बच्चों की तरह उसके पन्ने पलट-पलट कर देखने लगी |
मैंने पूछा, अब तो बता दो क्या बात थी ?
 
उसने कहा, दरअसल कुछ दिनों पहले मुझे एक विचार आया और पिछले एक हफ्ते से मैं उसको शब्दों में बाँधने की कोशिश कर रही हुँ | थोडा-सा लिखा है लेकिन इतना पढ़कर ही तुम समझ जाओगे की मैं क्या कहना चाहती हूँ और मैं चाहती थी की उसको पढ़ने के बाद जो भाव तुम्हारे चेहरे पर आयेंगे, उन्हें मैं सामने से देख सकूँ इसीलिए ये मिलने का प्रोग्राम बनाया |
 
अच्छा तो ये बात थी, मैं पता नहीं क्या क्या सोच रहा था | क्या नाम है कहानी का ? .. 
उसने कहा, कहानी नहीं है, एक छोटा सा लेख है मोहिनी नाम का और मोबाइल मेरी तरफ करके बोली पहले पूरी पढ़ना, फिर बताना | मैंने मोबाइल हाथ में लिया और पढ़ना शुरू किया .. 

मोहिनी
मोहिनी नगर की सबसे सुन्दर नर्तकी थी | उसकी सुन्दरता और नृत्य कला के दूर-दूर तक चर्चे थे | ऐसा कहा जाता है की नगर के राजकुमार भी उसके मनमोहक रूप के मुरीद थे | ऐसा आकर्षण था उसके रूप में | बड़ी बड़ी झील-सी आँखें जो किसी अनुभवी तैराक को भी गच्चा देने का मद्दा रखती थी | उसके होंठ जो हमेशा मुस्कराहट का आवरण ओढ़े रखते थे, किसी कमल की पंखुड़ी जान पड़ते थे | उसके कानों की बालियाँ जब-जब हिलती थी तो ऐसा प्रतीत होता था की मानो उसकी बातों पर हामी भर रही हो | उसके अलक पवन के घोड़े पर सवार होकर उसके कोमल कपोल को छूने का हर संभव प्रयास करते थे |
 
आगे क्यों नहीं लिखा ? मैंने पूछा | 
मेरे हाथ से फ़ोन लेते हुए वो बोली, अब मैं तुमसे दो सवाल पूछूंगी तुम्हे उनका सही-सही जवाब देना है | मैंने हामी में सर को हिलाया | 
उसने पहला सवाल किया, क्या लेख पढ़कर तुम्हारे दिमाग में मोहिनी की कोई तस्वीर बनी ? 
मैंने कहा, हाँ | 
उसने दूसरा सवाल किया, उस तस्वीर में मोहिनी के चेहरे का क्या रंग था ? 

पहले तो कुछ पलो के लिए मुझे कुछ समझ ही नहीं आया लेकिन जब मैंने मोहिनी के उस काल्पनिक चेहरे की छवि पर गौर किया तो मैंने पाया की सच में उस चेहरे का एक विशेष रंग था |
 
वो बोली, मैंने लेख में उसके रंग का कोई जिक्र नहीं किया है लेकिन जब बात सुन्दरता की आती है तो हम किसी एक रंग से आगे क्यों नहीं सोच पाते ?
 
अब मुझे समझ में आने लगा था वो इस लेख के माध्यम से क्या कहना चाहती है लेकिन एक सवाल जो मुझे परेशान कर रहा था की ऐसा क्यों हुआ है ?



- आयुष शर्मा
सहारनपुर, उत्तर प्रदेश,
शिक्षा – एम.एस.सी (भौतिक विज्ञानं) |
संप्रति – अध्यापक के रूप में कार्यरत | 
संपर्क – aayushsharma829@gmail.com

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