संतो भाई आई ज्ञान की आंधी रे व्याख्या

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संतो भाई आई ज्ञान की आंधी रे व्याख्या Santo bhai aai gyan ki aandhi re vyakhya ज्ञान प्राप्ति होते ही समस्त मोहजन्य विकार नष्ट हो जाते हैं और साधक को

संतो भाई आई ज्ञान की आंधी रे व्याख्या


न्तों भाई आई ग्यान की आंधी रे। 
भ्रम की टाटी सबै उडांणीं, माया रहै न बांधी।। 
हित चित की द्वै थूनीं गिरांनीं, मोह बलींडा तूटा। 
त्रिस्नां छांनि परी घर ऊपरि, कुबुधि का भांडा फूटा ।। 
जोग जुगति करि संतौं बांधी, निरचू चुवै न पांणी। 
कूड़कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जांणी ।। 
आंधी पीछें जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भींना । 
कहै कबीर भांन के प्रगटें, उदित भया तम षींनां । ।
 
प्रसंग- ज्ञान प्राप्ति होते ही समस्त मोहजन्य विकार नष्ट हो जाते हैं और साधक को शुद्ध-बुद्ध आत्मा अथवा परमात्मा का साक्षात्कार हो जाता है। इसी तथ्य को कबीरदास झोंपड़ी और आँधी के रूपक द्वारा स्पष्ट करते हैं ।

व्याख्या - हे भाई साधुओं! ज्ञान की आँधी आ गयी है। आँधी आने पर आड़ के लिए लगायी गयी टटियाएँ अथवा परदे उड़ जाते हैं। इसी प्रकार ज्ञान उत्पन्न होने पर मेरे समस्त भ्रम-नष्ट हो गये हैं और मैं वास्तविक अवास्तविक का भेद समझने लगा हूँ। अब माया की रस्सी भी टूट गयी है। जैसे प्रबल आँधी के वेग से छप्पर को सहारा देने वाले खम्भे टूट गये उसी प्रकार ज्ञान प्राप्ति के साथ प्रेम और आसक्ति के स्तम्भ भी ढह गये। इतना ही नहीं जो मोह रूपी दृढ़ बिल्ली या बाँस तृष्णा रूपी छप्पर को सम्भाले हुए थे, इसके टूटते ही छप्पर गिर पड़ा अर्थात् तृष्णा जन्य आसक्ति ही समाप्त हो गयी। छप्पर के गिरने पर उसके अन्दर रखे हुए बर्तन टूट जाते हैं, इसी प्रकार तृष्णा समाप्त होते ही मेरी वासनाएँ समाप्त हो गयीं। जब ज्ञान की उपलब्धि हुई तब सन्तों के समझ में वस्तु-स्थिति आ गयी वे समझ गये कि ये बाहरी छप्पर व्यर्थ हैं। उन्होंने योग की युक्तियों एवं सदृवृत्तियों की सहायता से अपने शरीर रूपी छप्पर का निर्माण किया। इसका कूड़ा-करकट तुरन्त बाहर निकल आया और इस छप्पर में अब विषय विकार रूपी जल की एक बूँद भी जाने की सम्भावना नहीं रह गयी। ज्ञान की इस आँधी के बाद प्रभु की भक्ति रूपी जल की वर्षा हुई। उसमें समस्त भक्तजन भींग गये अर्थात् भक्ति में अभिभूत हो गये। कबीरदास कहते हैं कि जल वर्षा के पश्चात् ज्ञान रूपी सूर्य उदय हुआ और समस्त अज्ञानान्धकार सदा के लिए समाप्त हो गया।
 
विशेष - उपरोक्त पद में निम्नलिखित विशेषताएँ हैं -
1. यहाँ पर कबीर ने माया की निन्दा करते हुए उसे रस्सी बताया है। 
2. दुचिते- इसका अभिप्राय है द्वैत भावना से युक्त चित वाला व्यक्ति । 
3. भूमि - छप्पर को रोकने के लिए लगायी जाने वाली टेक को भूँनि कहते हैं। 
4. कवि के पद में श्रम, मोह, तृष्णा आदि का वर्णन है। यह कवि की अपूर्वकालीन प्रतिभा का सबल प्रमाण है। 
5. जल बरसै- ब्रह्म की भक्ति का रस । 
6. भानु- ब्रह्म का प्रतीक 
7. मुहावरा - भाँड़ा फूटना, भेद खुल जाना। 
8. भाषा- संस्कृत, पंजाबी, खड़ी बोली आदि भाषाओं के शब्दों से युक्त पंचमेल खिचड़ी। 
9. अलंकार- साँगरूपक और रूपकातिशयोक्ति । रस- भक्ति, गुण- ओज । 
10. छन्द - गेयपद । शब्द-शक्ति- लक्षणा, व्यंजना । रीति- गौड़ी। वृत्ति- परुषावृत्ति । 

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