गांव में यातायात की सुविधा बहुत कम है

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टूटी सड़कों पर अटकती गांव की परिवहन व्यवस्था भारत के ग्रामीण और सीमावर्ती क्षेत्रों में परिवहन की समस्या आज भी एक गंभीर चुनौती बनी हुई है. सार्वजनिक

टूटी सड़कों पर अटकती गांव की परिवहन व्यवस्था


भारत के ग्रामीण और सीमावर्ती क्षेत्रों में परिवहन की समस्या आज भी एक गंभीर चुनौती बनी हुई है. सार्वजनिक परिवहन की अनुपलब्धता, सड़कों की बेहतर स्थिति का न होना और सीमित परिवहन सुविधाओं के कारण लाखों लोग प्रभावित हो रहे हैं. खासकर महिलाओं, किसानों और छात्रों को इस समस्या का सबसे अधिक सामना करना पड़ता है. देश के कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं, इसमें परिवहन की समस्या सबसे प्रमुख है. राजस्थान के बीकानेर स्थित करणीसर गांव भी इनमें से एक है जहां के लोगों को यातायात की कमी के कारण अपनी रोजमर्रा की आवश्यकताओं को पूरा करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. यह समस्या केवल उनके दैनिक जीवन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसका व्यापक प्रभाव स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और आर्थिक विकास पर भी पड़ता है.

करणीसर गांव बीकानेर जिला के लूणकरणसर ब्लॉक से करीब 35 किमी दूर है. यहां की निवासी 30 वर्षीय कृष्णा देवी कहती हैं कि "हमारे गांव में यातायात की सुविधा बहुत कम है. अगर कोई आपातकालीन स्थिति होती है, तो शहर तक पहुंचने में काफी मुश्किल आती है. इसके लिए निजी गाड़ी बुक करनी होती है, जो काफी महंगी होती है. वह बताती हैं कि परिवहन की कमी की सबसे बड़ी वजह गांव में सड़क की जर्जर स्थिति है. इनमें बड़े बड़े गढ्ढे बने हुए हैं. जिससे होकर गुज़रना हल्के वाहन के लिए लगभग असंभव है. वहीं बड़ी गाड़ियां चलाने वाले ड्राइवर भी गाड़ी ख़राब होने की आशंका से आने को तैयार नहीं होते हैं." वहीं 50 वर्षीय सीमा देवी बताती हैं कि उनके परिवार के पास केवल एक मोटरसाइकिल है, जिससे पूरे परिवार को यात्रा करनी पड़ती है. वह कहती हैं कि गांव की सड़क इतनी खराब है कि बरसात में दोपहिया वाहन से यात्रा करना असंभव हो जाता है.

टूटी सड़कों पर अटकती गांव की परिवहन व्यवस्था
सेवानिवृत शिक्षक 68 वर्षीय दयाराम बताते हैं कि केवल करणीसर गांव ही नहीं, बल्कि राज्य के चालीस प्रतिशत ग्रामीण सड़कों की हालत खराब है, जिससे हजारों गांवों तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है. अकेले लूणकरणसर तहसील में करीब 250 से अधिक छोटे गांव ऐसे हैं, जहां परिवहन की सुविधा बहुत सीमित है. इसकी प्रमुख वजह इन गांवों की अधिकांश सड़कों का कच्चा या जर्जर होना है. वह कहते कि मानसून के दौरान ये सड़कें इतनी अधिक खराब हो जाती हैं, कि आवागमन लगभग ठप हो जाता है. इससे लोगों की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी प्रभावित होती है. विशेषकर मरीज़ों के लिए ऐसा समय बहुत कष्टकारी होता है. उन्हें समय पर अस्पताल पहुंचाना मुश्किल हो जाता है. वह कहते हैं कि अधिकतर प्रसव के मामले में होने वाली मौत की सबसे बड़ी वजह सड़क की बेहतर स्थिति नहीं होने के कारण परिवहन की अनुपलब्धता है. इसके कारण लूणकरणसर के कई गांवों में एम्बुलेंस सेवाएं समय पर पहुंच नहीं पाती हैं. जिससे राज्य में स्वास्थ्य की बेहतर स्थिति के बावजूद मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में वृद्धि का कारण बन जाती है.

ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों तक पहुंचने में कठिनाइयां भी परिवहन समस्या का प्रमुख कारण बन चुकी हैं. सामाजिक कार्यकर्ता सुखराम मेघवाल कहते हैं कि राजस्थान में हज़ारों ऐसे गांव हैं जहां परिवहन की सुविधा नाममात्र होने के कारण स्कूल तक पहुंचने के लिए छात्र-छात्राओं को प्रतिदिन 5 से 10 किमी पैदल चलना पड़ता है. यह समस्या विशेष रूप से लड़कियों की शिक्षा को प्रभावित करती है, क्योंकि माता-पिता सुरक्षा कारणों से उन्हें दूर के स्कूलों में भेजने के लिए तैयार नहीं होते हैं. जिससे उन लड़कियों की शिक्षा अधूरी रह जाती है. केवल शिक्षा ही नहीं बल्कि परिवहन की कमी से कृषि और रोज़गार भी प्रभावित हो रहा है. परिवहन की कमी से स्थानीय उत्पादों की बाजारों तक पहुंच बाधित होती है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

सुखराम कहते हैं कि लूणकरणसर की 70 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है, लेकिन खराब सड़कों और परिवहन साधनों की कमी के कारण किसान अपने उत्पादों को समय पर बाजार तक नहीं पहुंचा पाते, जिससे उन्हें उचित मूल्य नहीं मिल पाता है. इसके अलावा, परिवहन की समस्या के कारण लोग रोजगार के बेहतर अवसरों से वंचित रह जाते हैं. वह कहते हैं कि राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में 35 प्रतिशत बेरोजगारी का एक बड़ा कारण परिवहन की असुविधा है. गाड़ियों की कमी से प्रतिदिन शहर जाना और आना मुश्किल हो जाता है. हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों की सड़कों की हालत को बेहतर बनाने के लिए राज्य सरकार कई अहम कदम उठा रही है. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 2022 तक राजस्थान में 10,000 किलोमीटर से अधिक सड़कें बनाई गई है. लेकिन अभी भी कई गाँव इससे वंचित हैं.

इस वर्ष के केंद्रीय बजट में गांव के विकास पर ख़ास फोकस किया गया है. बजट में ग्रामीण विकास के लिए 2.66 लाख करोड़ रूपए आवंटित किये गए हैं. जिससे गांवों में बुनियादी ढांचे को मज़बूत करने, छोटे स्तर के किसानों की मदद करने और ग्रामीण युवाओं को सशक्त बनाने पर ज़ोर दिया जायेगा. वहीं प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत गांव की सड़कों को बेहतर बनाने के लिए 19000 करोड़ रूपए आवंटित किये गए हैं. इससे करीब पच्चीस हज़ार गांवों की सड़कों को उन्नत किया जायेगा. जिससे यहां की परिवहन सुविधा और अधिक बेहतर हो सकेगी. दरअसल, परिवहन समस्याएं केवल यात्रा की असुविधा तक ही सीमित नहीं होती है, बल्कि यह शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और आर्थिक विकास को भी प्रभावित करती है. ऐसे में ग्रामीण और सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़क निर्माण और परिवहन सुविधाओं में सुधार के लिए ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता है. यदि इस समस्या को हल कर लिया जाता है तो यह न केवल गांव के विकास में महत्वपूर्ण कड़ी साबित होगा बल्कि इससे आर्थिक विकास पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. (चरखा फीचर्स)


- निधि टाक
लूणकरणसर, राजस्थान

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