नई पीढ़ी में कृषि के प्रति उत्साह बढ़ाए

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आर्थिक रूप से कमज़ोर और छोटे स्तर के किसानों तक विभाग को पहुँचने की ज़रूरत है ताकि उन्हें समय पर मुआवज़े और अन्य ज़रूरी सहायता मिल सके. जिससे कि नई पीढ़ी

कृषि संकट से जूझते बीकानेर के किसान


राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्र में स्थित बीकानेर अपनी विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितियों के कारण कृषि के लिए सदैव एक चुनौती रहा है. यहां के किसान जो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी अपनी मेहनत और साहस से अपनी आजीविका चलाते हैं, आज आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं. उनकी सबसे बड़ी समस्या खेतों में सिंचाई के लिए पानी की कमी है. रेगिस्तानी क्षेत्र होने के कारण पहले से ही पानी की सीमित मात्रा का सामना कर रहे इन किसानों के सामने अप्रत्याशित बारिश समस्या बनती जा रही है. लगातार बदलते पर्यावरण के कारण मानसून की बारिश असमय होने लगी है, जिसका सीधा असर खेती पर पड़ रहा है. सिंचाई की जरूरत के समय वर्षा के न होने से सूखे की स्थिति बनती जा रही है. जिससे न केवल फसल की पैदावार कम हो रही है बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी प्रभावित हुई है. इसके कारण बीकानेर के अन्य ग्रामीण क्षेत्रों की तरह लूणकरणसर स्थित राजपुरिया गांव के किसान भी लगातार आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं. उन्हें लागत से कम पैदावार होने की वजह से खेती किसानी में घाटा हो रहा है.

इस संबंध में 37 वर्षीय किसान संतोष कहते हैं कि "उर्वरक, बीज और अन्य कृषि सामानों की आसमान छूती कीमतें किसानों के लिए एक और चुनौती बन गई हैं. हम जैसे छोटे स्तर के किसान, जिनके पास पहले से ही सीमित संसाधन हैं, लगातार कर्ज के बोझ से दबे हुए हैं. सब्सिडी की कमी और बाजार में कम कीमत पर उपज ने हमारी बिक्री को प्रभावित किया है. वहीं बीकानेर में रेतीले तूफान और अप्रत्याशित गर्मी की लहरों ने समस्या को और भी अधिक जटिल बना दिया है. इसकी वजह से फसलों को नुकसान तो हो ही रहा है, साथ ही पशुओं के लिए भी चारे की कमी एक गंभीर समस्या के रूप में सामने आ रही है, जिसका किसानों की आर्थिक स्थिति पर लगातार नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है." एक अन्य किसान 58 वर्षीय भंवर सिंह कहते हैं कि 'अब खेती किसानी में कोई लाभ नहीं मिल रहा है. इसमें पूरा श्रम लगाने के बावजूद घाटा हो रहा है. उदाहरण के तौर पर कभी तूफान तो कभी ओलावृष्टि से फसलें खराब हो जाती हैं. कई बार पानी की कमी के कारण भी किसानों की फसल खराब हो रही है. जिन किसानों के खेत इंदिरा नहर के आस-पास हैं उन्हें सिंचाई के लिए कोई समस्या नहीं है और उनकी फसल भी अच्छी हो रही है, लेकिन जिन किसानों के खेत नहर से काफी दूर हैं उन्हें सिंचाई के लिए कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. उन्हें सिंचाई के लिए पंप की व्यवस्था करनी होती है, जिससे एक दिन का किराया और डीजल मिलाकर लागत काफी बढ़ जाती है.

वहीं 53 वर्षीय सुनीता कहती हैं कि ‘रेगीस्तानी क्षेत्र में खेती करना बहुत चुनौतीपूर्ण होता है. समय से पानी नहीं मिलने से सब्जियां और अनाज नहीं उगाया जा सकता है. इसलिए हमारे यहां के अधिकांश लोग वर्षा आधारित रेगिस्तानी खेती करते हैं, वे अन्य किसानों की तरह सभी प्रकार की फसलें उगाने में असमर्थ हैं. इन किसानों के लिए पानी, यूरिया और अन्य उर्वरक खाद को आसानी से प्राप्त करने में बहुत समस्या आती है. जो उन्हें उचित मूल्य एवं समय पर उपलब्ध नहीं हो पाता है. सुनीता के अनुसार यहां की आबादी हजार के आसपास होगी. लेकिन गांव के बहुत कम लोग सरकारी नौकरियों में हैं, अधिकांश खेती किसानी करते हैं और उनकी आर्थिक स्थिति भी काफी कमजोर है. वह कहती हैं कि कृषि में लगातार होते घाटे के कारण अब यहां के किसान अपने बच्चों को अन्य रोजगार अपनाने की सलाह देते हैं ताकि उन्हें भूख से मरना न पड़े.

कृषि संकट से जूझते बीकानेर के किसान
राजपुरिया की 40 वर्षीय राजलक्ष्मी बताती हैं कि उनके पति दिन-रात मेहनत करके खेती कर परिवार का पालन-पोषण करते हैं, लेकिन पानी की समस्या के कारण उनकी सारी मेहनत बेकार हो जाती है. समय पर सिंचाई नहीं होने के कारण फसल सूख जाती है. पहले समय पर मानसून आने के कारण इसकी समस्या नहीं आती थी लेकिन अब बेमौसम बारिश या जरूरत के वक्त सूखा पड़ जाने से फसल खराब हो जा रही है. अगर इस समस्या का समाधान हो जाए तो उनकी सारी मेहनत सफल हो जाएगी. वहीं 43 वर्षीय किसान संतोष राजपुरिया कहते हैं कि उनकी सारी खेती वर्षा के पानी पर निर्भर करता है. जिसे स्थानीय भाषा में बिरानी कहा जाता है. लेकिन अब यह बहुत कम हो गया है क्योंकि या तो कभी समय पर वर्षा नहीं होती है तो कभी ओलावृष्टि से तैयार फसल तबाह हो जाती है.

एक अन्य किसान राजाराम कहते हैं कि "बहुत सी ऐसी फसलें है जिसके लिए पानी की बहुत अधिक मात्रा की जरूरत नहीं होती है. ऐसी फसलें आर्थिक रूप से कमजोर किसानों के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकता है. लेकिन इसके लिए उन्हें उचित प्रशिक्षण की जरूरत होती है. इसके अतिरिक्त समय समय पर मिट्टी की जांच भी करने की आवश्यकता है ताकि उसकी उर्वरा क्षमता को बरकरार रखा जा सके. इसके लिए गांव गांव में मिट्टी जांच केंद्र प्रयोगशाला का होना बहुत जरूरी है ताकि किसानों की वहां तक पहुंच आसान हो सके. राजाराम कहते हैं कि यदि किसानों को खेती से संबंधित सभी सुविधाएं समय पर उपलब्ध हो जाएं तो न केवल मानसूनी बारिश पर निर्भरता कम हो सकती है बल्कि बदलते पर्यावरण से होने वाले आर्थिक नुकसानों से भी उन्हें बचाया जा सकता है. इसके लिए सरकार के साथ साथ कृषि के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं को भी आगे आने की आवश्यकता है.

उपरोक्त समस्याओं के समाधान के लिए जल संचित कुशल उपयोग तकनीक जैसे संभावित कदम उठाए जा सकते हैं. इनमें ड्रिप सिंचाई और वर्षा जल संचयन जैसी योजनाओं को बढ़ावा देकर किसानों के बोझ को कम किया जा सकता है. उनकी उपज का उचित मुआवजा देने के लिए बाजारों तक बेहतर पहुंच प्रदान की जानी चाहिए. अकाल एवं प्राकृतिक आपदाओं के दौरान उन्हें तत्काल आर्थिक सहायता प्रदान की जानी चाहिए. देश की खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बीकानेर के किसानों की समस्याओं को गंभीरता से समझने और इसके लिए तात्कालिक योजनाओं को अमल में लाने की जरूरत है ताकि न केवल कृषि बल्कि मानव विकास को भी नुकसान से बचाया जा सके. इसके लिए कृषि विभाग को ब्लॉक स्तर पर जागरूकता अभियान चलाने की ज़रूरत है. आर्थिक रूप से कमज़ोर और छोटे स्तर के किसानों तक विभाग को पहुँचने की ज़रूरत है ताकि उन्हें समय पर मुआवज़े और अन्य ज़रूरी सहायता मिल सके. जिससे कि नई पीढ़ी में कृषि के प्रति उत्साह बढ़े. (चरखा फीचर्स)


- रक्षा शर्मा
लूणकरणसर,राजस्थान

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