स्कूल में मेरा आखिरी दिन पर निबंध | Mere School Ka Aakhri Din Essay In Hindi

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स्कूल में मेरा आखिरी दिन पर निबंध Mere School Ka Aakhri Din Essay In Hindi निबंध मेरे स्कूल के आखिरी दिन के मेरे अनुभवों को दर्शाता है। यह एक भावुक पल

स्कूल में मेरा आखिरी दिन पर निबंध


स्कूल जीवन के सबसे खूबसूरत अध्यायों में से एक होता है। यह वह जगह है जहां हम न केवल ज्ञान प्राप्त करते हैं, बल्कि दोस्ती, अनुशासन और जीवन के मूल्यों को भी सीखते हैं। मेरा स्कूल जीवन भी ऐसा ही रहा है। लेकिन हर सुखद यात्रा का अंत होता है, और मेरे लिए भी वह समय आ गया जब मुझे अपने स्कूल को अलविदा कहना था।

अपने विद्यालय की वरिष्ठ छात्राओं में नाम आ गया था मेरा। मैं बारहवीं कक्षा में गई थी और देखते ही देखते वह दिन भी आ गया, जब हमारे लिए विदाई समारोह आयोजित हुआ। विद्यालय के अंतिम वर्ष में आते ही वरिष्ठ हो जाने से प्रसन्नता थी, वह आज विदाई समारोह के दिन विद्यालय छूटने के दुःख में बदल गई थी। चौदह साल हो गए थे इस विद्यालय में ।विद्यालय की दीवारें, मैदान, झूले, कैंटीन सभी तो अपने ही लगते थे, अब इन्हें छोड़कर जाना पड़ेगा, मन भारी हो रहा था।

स्कूल में मेरा आखिरी दिन पर निबंध
आँखों के आगे चलचित्र की भाँति बीते वर्ष घूम रहे थे। जीवन के कितने खट्टे-मीठे अनुभव इसी विद्यालय से मिले थे। विद्यालय का पहला दिन जब माँ-पिताजी का हाथ पकड़कर विद्यालय में प्रवेश किया था। आया रमा दीदी ने मेरा हाथ अपने हाथों में लिया और माँ-पिताजी से कहा कि आप इससे आगे नहीं जा सकते। कितना रोई थी मैं, उस समय रमा दीदी बहुत क्रूर लग रहीं थीं, ऐसा लगा था कि मुझे मेरे माँ-पिताजी से दूर कर दिया गया है। कक्षा शिक्षिका अल्का मिश्रा ने सारे बच्चों को इतने प्यार से संभाला कि कब घर से अच्छा स्कूल लगने लगा पता ही नहीं चला। जिन रमा दीदी को मैंने क्रूर समझा था, वह आज तक मेरी सबसे पसंदीदा दीदी हैं। पाँचवी कक्षा से छठी कक्षा में पहुँचे, तो विद्यालय का भवन, शिक्षक-शिक्षिकाएँ सब बदल गए। मन में डर और प्रसन्नता के मिले-जुले भाव थे। हमारी खेल-शिक्षिका अनीता मिश्रा, सबसे अधिक डर उनसे ही लगता था। उनकी डाँट सुनकर तो सब पत्ते की तरह काँप जाते थे। हम सारे बच्चों को वह खेलों के साथ-साथ अनुशासन का पाठ भी पढ़ाती थीं। आज अगर हम सब इतने अनुशासित हैं, तो यह उनकी ही देन है।
 
विज्ञान के शिक्षक की नकल उतारते हुए पकड़े जाना, फिर विद्यालय के मंच पर खड़े होकर अभिनय करने की सजा । नृत्य-शिक्षिका के साथ की गई मस्ती, इतिहास पढ़ते समय ऊँघना, गणित के शिक्षक का दिमाग़ चाटना, हिन्दी शिक्षिका को अंग्रेज़ी में अर्थ बताने को कहकर परेशान करना। खाली समय में कागज़ का हवाई जहाज उड़ाना और चाक से मारकर मित्रों को तंग करना । प्रयोगशाला में की गई मस्ती, पुस्तकालय की खुसुर-पुसुर सब आज याद आ रहा है। यह सब याद करके आँखें भर आई हैं।
 
हमें अपना भविष्य सँवारने के लिए, आगे बढ़ने के लिए इस विद्यालय को छोड़ना पड़ेगा। पर हमारे मन में यहाँ बिताए समय की जो यादें हैं, वह हमेशा हमारे स्मृति-पटल पर अंकित रहेंगी। अपने अध्यापक-अध्यापिकाओं से मिलने हम आते रहेंगे, अपनी यादों को ताज़ा करते रहेंगे। यह निबंध मेरे स्कूल के आखिरी दिन के मेरे अनुभवों को दर्शाता है। यह एक भावुक पल था, लेकिन साथ ही यह एक नई शुरुआत का भी संकेत था। मैं अपने भविष्य के लिए उत्साहित हूं, लेकिन साथ ही मैं अपने स्कूल के दिनों को भी बहुत याद करूंगी।

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