खोई हुई दिशाएँ कहानी की तात्विक समीक्षा | कमलेश्वर

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खोई हुई दिशाएँ कहानी की तात्विक समीक्षा कमलेश्वर कमलेश्वर की कहानी खोई हुई दिशाएं एक ऐसी कहानी है जो पाठकों को जीवन के अस्तित्ववादी सवालों पर गहराई

खोई हुई दिशाएँ कहानी की तात्विक समीक्षा | कमलेश्वर


मलेश्वर की कहानी खोई हुई दिशाएं एक ऐसी कहानी है जो पाठकों को जीवन के अस्तित्ववादी सवालों पर गहराई से सोचने पर मजबूर करती है। यह कहानी एक युवा व्यक्ति के संघर्षों, उम्मीदों और निराशाओं को बड़ी बारीकी से चित्रित करती है जो एक ऐसे समाज में जी रहा है जहां मूल्य और मानदंड लगातार बदल रहे हैं।

कहानी कला के मान्य 6 तत्वों के आधार पर 'खोयी हुई दिशाएँ' कहानी का कहानी कला का मूल्यांकन करते हुए विवेचन प्रस्तुत है - 

कथावस्तु विश्लेषण

खोयी हुई दिशाएँ कहानी का कथा-सार इस प्रकार है- चन्दर कनाट प्लेस में सड़क के मोड़ पर लगी रेलिंग के सहारे खड़ा था। वह वहाँ खड़े-खड़े उकता गया था। उसने सुबह एक प्याली कॉफी ही पी थी, फिर उसे भूख नहीं लग रही थी। उसके समीप से हर आदमी या औरत लापरवाही से गुजर जाता है। अपने शहर में गंगा के किनारे कोई अपरिचित मिल जाता था तो उसकी दृष्टि में पहचान की एक झलक तैर जाती थी, परन्तु यहाँ कितना अजनबीपन है। चन्दर की पत्नी निर्मला घर पर प्रतीक्षा कर रही होगी। वह अपने ही घर में अपरिचित व्यक्ति की तरह घुसेगा। वह अपनी पत्नी से खाने के लिए कहेगा। वह रेलिंग के पास खड़ा हुआ डायरी से अगले दिन की मुलाकातों के बारे में जान लेना चाहता है।
 
चन्दर का कनाट प्लेस के खुले लान पर कुछ क्षण बैठने को मन हुआ, परन्तु उसे लगा कि वहाँ भी कोई ठिकाना नहीं है। वह कुछ देर के बाद टी-हाउस में घुस जाता है और एक मेज पर बैठ जाता है। चन्दर टी-हाउस से बाहर निकलकर बस-स्टॉप की ओर बढ़ता है। वह इन्द्रा के विषय में सोचने लगता है। चन्द्रा चन्दर से बहुत प्रेम करती थी। चन्दर ने इन्द्रा से कहा था कि मेरे पास कुछ भी नहीं है, इसलिए मैं यह नहीं चाहता कि तुम अपना जीवन मेरे लिए नष्ट करो। तुम अच्छा जीवन व्यतीत कर सकती हो। इन्द्रा का विवाह हो गया है और वह दिल्ली में ही रहती है। चन्दर इन्द्रा से मिलने उसके घर जाता है। इन्द्रा अपने पति की प्रतीक्षा कर रही थी । चन्दर के लिए इन्द्रा की नौकरानी चाय लेकर आती है । इन्द्रा के व्यवहार में अब परिवर्तन आ गया है। यह देखकर चन्दर को आश्चर्य होता है। वह थका-हारा घर पहुँचता है। निर्मला जब उससे भोजन के लिए पूछती है तो वह कहता है कि अभी खाने का मन नहीं है। वे दोनों सो जाते हैं। दो बजे चन्दर की नींद उचट जाती है। वह निर्मला को झकझोरकर उठाता है। वह उससे पूछता है- "मुझे पहचानती हो, निर्मला!" निर्मला आश्चर्यमिश्रित स्वर में उससे पूछती है कि उसे क्या हुआ है, चन्दर निर्मला को ताकता रह जाता है।
 

पात्र योजना अथवा चरित्र चित्रण

खोयी हुई दिशाएँ कहानी में कमलेश्वरजी ने पात्रों का चरित्र-चित्रण करते हुए कथावस्तु का विकास किया है। प्रस्तुत कहानी में चन्दर, निर्मला और इन्द्र मुख्य पात्र हैं। इन पात्रों के अतिरिक्त आनन्द, इन्द्रा का पति और मिसेज गुप्ता गौण पात्र हैं। इन गौण पात्रों के माध्यम से कहानीकार ने कहानी के प्रमुख पात्र - चन्दर की मानसिक स्थिति का अत्यन्त सूक्ष्मता से चित्रण किया है। चन्दर एक सुशिक्षित नवयुवक है, जो लेखक है और लेखन से ही अपनी जीविका चलाता है। वह पहले इलाहाबाद के समीप किसी छोटे शहर में रहा करता था। उसे दिल्ली आए हुए लगभग तीन वर्ष हो गये है। उसे दिल्ली महानगर का जीवन विचित्र-सा प्रतीत होता है, जहाँ पर व्यक्ति अजनबीपन का गहनता से अनुभव करने लगता है। आलोच्य कहानी के नारी पात्रों में निर्मला तथा इन्द्रा का लेखक ने विशेष रूप से चरित्र-चित्रण किया है ।

संवाद योजना

खोई हुई दिशाएँ कहानी की तात्विक समीक्षा | कमलेश्वर
कमलेश्वरजी ने संवादों के माध्यम से एक ओर जहाँ पात्रों की मनःस्थिति एवं मानसिकता का चित्रण किया है, वहीं दूसरी ओर उन्होंने अपनी विचारधारा को भी व्यक्त किया है। वास्तव में 'खोयी हुई दिशाएँ' कहानी के संवाद पात्रों के व्यक्तित्व के अनुकूल ही हैं। इस सन्दर्भ में निम्न उदाहरण द्रष्टव्य है-
 
"तुम ऐसा क्यों सोचते हो, चन्दर ! मुझ पर भरोसा नहीं है ?” 
तब चन्दर ने कहा था-- “भरोसा तो बहुत है, इन्द्रा, पर मैं खानाबदोशों की तरह जिन्दगी- भर भटकता रहूँगा- उन परेशानियों में तुम्हें खींचने की बात सोचता हूँ तो बरदाश्त नहीं कर पाता। तुम बहुत अच्छी और सुविधाओं से भरी जिन्दगी जी सकती हो। मैंने तो सिर पर कफन बाँधा है-मेरा क्या ठिकाना !' 
“तुम चाहे जो कुछ बनो चन्दर, अच्छे या बुरे, मेरे लिए एक से रहोगे। कितना इन्तजार करती हूँ तुम्हारा, पर तुम्हें कभी वक्त ही नहीं मिलता।” 
फिर कुछ देर मौन रहकर उसने पूछा था-"इधर कुछ लिखा ?”
 

देशकाल तथा वातावरण

खोयी हुई दिशाएँ कहानी में कमलेश्वरजी ने दिल्ली महानगर के वातावरण का विभिन्न दृष्टिकोण से चित्रण किया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने एक स्थान पर गंगा का भी उल्लेख किया है। उन्होंने मुख्य रूप से दिल्ली के जन-जीवन को रूपायित करना ही कहानी के केन्द्र में रखा है। दिल्ली के अस्त-व्यस्त वातावरण में व्यक्ति को किस प्रकार विषम एवं जटिल परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, इसका प्रर्याप्त संकेत लेखक द्वारा किए गए वातावरण के चित्रण से मिल जाता है ।

भाषा शैली

खोयी हुई दिशाएँ कहानी में कमलेश्वरजी ने प्रभावशाली, सार्थक, सहज, स्वाभाविक एवं रोचक भाषा का प्रयोग किया है, जो पाठक को एकाग्रचित्त होकर पढ़ने के लिए विवश करती है। उन्होंने विचारों को अभिव्यक्ति प्रदान करने के लिए दुरूह भाषा का प्रयोग नहीं किया है। कथानक के अनुकूल ही उन्होंने ऐसी भाषा का प्रयोग किया है, जो पाठकों की समझ में आ सके। वस्तुतः उन्होंने उर्दू भाषा के शब्दों का भी अधिक प्रयोग किया है, परन्तु उनके ये शब्द कहीं भी आरोपित-से प्रतीत नहीं होते हैं। इस सन्दर्भ में एक उदाहरण द्रष्टव्य है-
 
“और अब आज उसे लगता है कि वह सारा वक्त बड़ी बेरहमी से बरबाद किया गया है। उसने उन खण्डहरों में समय बरबाद किया है. जिनकी कथाएँ अधपढे गाइडों की जबान पर रहती हैं, जो हर बार उन मरी हुई कहानियों को हर दर्शक के सामने दोहराते जाते हैं—'यह दीवाने-खास है, जरा नक्काशी देखिए—यहाँ हीरे-जवाहरातों से जड़ा सिंहासन था, यह जनाना हमाम है और यह वह जगह है, जहाँ से बादशाह अपनी रिआया को दर्शन देते थे—यह महल सर्दियों का है, यह बरसात का और यह हवादार महल गर्मियों का—और उधर आइए, सँभलकर—यह वह जगह है जहाँ फाँसी दी जाती थी।”
 

नामकरण एवं उद्देश्य

'खोयी हुई दिशाएँ' कहानी का नामकरण कमलेश्वरजी ने उद्देश्य की दृष्टि से ही किया है, क्योंकि वह जो कुछ आलोच्य कहानी में अभिव्यक्त करना चाहते हैं, वह इस कहानी के नाम से पूर्णतया स्पष्ट हो जाता है। कहानी का प्रमुख पात्र चन्दर एक छोटे से शहर को छोड़कर अपनी पत्नी के साथ. दिल्ली में आया है। इस महानगर में रहते हुए उसे तीन वर्ष हो गए हैं, परन्तु फिर भी वह अजनबीपन एवं एकाकीपन से ग्रस्त है । उसे ऐसा प्रतीत होता है कि न जाने वह कहाँ और किस शहर में आ गया है, जिसकी दिशाएँ खोयी हुई हैं। महानगर के व्यस्त जीवन में लोगों के बीच आत्मीयता का नितान्त अभाव परिलक्षित होता है। श्री राजेन्द्र यादव ने 'खोयी हुई दिशाएँ' कहानी के विषय में लिखा है-"यह कहानी टूटे हुए पुरुष की है ! इस वर्ग में दुनिया की भाग-दौड़ में खोये हुए से लेकर अपने प्रारब्ध के प्रति समर्पित आदमी भी था। वस्तुतः कमलेश्वरजी ने 'खोयी हुई दिशाएँ कहानी का उपयुक्त नामकरण किया है, जो कहानी के उद्देश्य को प्रकट करने में पूर्णतया समर्थ है।” 

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि कहानी कला की दृष्टि से 'खोयी हुई दिशाएँ' कमलेश्वर जी की प्रभावशाली, सशक्त एवं अर्थपूर्ण कहानी है ।"खोई हुई दिशाएं" एक ऐसी कहानी है जो आज के युवाओं के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक है। यह कहानी युवाओं को उनके अंदर चल रहे संघर्षों को समझने में मदद करती है और उन्हें अपने जीवन में एक दिशा खोजने के लिए प्रेरित करती है। यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि जीवन में हर कोई एक बार किसी न किसी तरह की उलझन का सामना करता है और इससे बाहर निकलने का रास्ता ढूंढना होता है।

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