ऊर्जा की बढ़ती मांग समस्या और समाधान पर निबंध

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ऊर्जा की बढ़ती मांग समस्या और समाधान पर निबंध ऊर्जा मानव की सबसे अनिवार्य आवश्यकताओं में से एक है. विकासशील राष्ट्रों में जीवन स्तर में सुधार आने से

ऊर्जा की बढ़ती मांग समस्या और समाधान पर निबंध

 
र्जा मानव की सबसे अनिवार्य आवश्यकताओं में से एक है. विकासशील राष्ट्रों में जीवन स्तर में सुधार आने से ऊर्जा की जरूरतों में तेजी से वृद्धि हुई है. भारत जैसे विकासशील देश के लिए ऊर्जा में आत्मनिर्भरता आवश्यक है, लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह बिलकुल दुरूह-सा लगता है.
 
इस समय हम ज्यादातर ऊर्जा परम्परा-गत स्रोतों से प्राप्त करते हैं. कुल उत्पादित ऊर्जा का 56 प्रतिशत ताप बिजली से 36 प्रतिशत जल विद्युत् ऊर्जा द्वारा एवं 6 प्रतिशत डीजल और गैस पर आधारित ऊर्जा से प्राप्त करते हैं. इन ऊर्जा स्रोतों में जलावन के रूप में प्रयोग किए जाने वाली लकड़ी को आँकड़ाबद्ध नहीं किया गया है. भारत में एक आँकड़े के अनुसार यह ज्ञात होता है कि अभी भारत को जितनी ऊर्जा प्राप्त हो रही है उससे लगभग 4 गुनी अधिक ऊर्जा की आवश्यकता है. साथ ही इस सीमा में प्रत्येक दस वर्ष में बढ़ती आवश्यकता के कारण पर्याप्त बढ़ोत्तरी हो जाती है. इसमें सरकार के योजनाकारों के लिए भी कठिनाई आती है, सरकार जब तक पिछली माँग की आपूर्ति की योजना को कार्यान्वित करती है तब तक माँग में नवीनतम वृद्धि हो जाती है, जिससे संकट ज्यों का त्यों बना रहता है और ऊर्जा की आपूर्ति की समुचित व्यवस्था नहीं हो पाती है ।

प्रथम बार दुनिया के विकसित और विकासशील राष्ट्र 1973 में एक मंच पर एकत्र होकर इस समस्या की गम्भीरता पर विचार करने आए. योजनाकारों ने यह महसूस किया कि विश्व की बढ़ती ऊर्जा माँग को परम्परागत स्रोत कोयला, तेल और बिजली से पूरा नहीं किया जा सकता है. इन संसाधनों का प्राकृतिक दोहन केवल कुछ सीमाओं तक ही किया जा सकता है. कुछ समय के पश्चात् ये समाप्त हो जाएंगे. एक सर्वेक्षण के अनुसार ये स्रोत 30 वर्ष से ज्यादा नहीं चल पाएंगे.
 
ऊर्जा संकट का एक सबसे बड़ा कारण है बढ़ती आबादी. प्रत्येक वर्ष विश्व की आबादी में 10 करोड़ की वृद्धि हो जाती हैं. इस बढ़ती आबादी से दुनिया को सर्वाधिक खतरा ऊर्जा के पारम्परिक स्रोतों का समाप्त होता हुआ भण्डार है. साथ ही पर्यावरण में ओजोन परत को नुकसान पहुँचाने और कार्बनिक रासायनिक गैसों से पर्यावरण संतुलन के पूर्णतः बिगड़ जाने का खतरा है. मानव सभ्यता के इतिहास में विश्व के समक्ष कभी इतनी विकट समस्या पैदा नहीं हुई, जितनी आज ऊर्जा संकट से उपस्थित हुई है ।

ऊर्जा की बढ़ती मांग समस्या और समाधान पर निबंध
आज ज्यों-ज्यों मानव समाज का विकास होता जा रहा है त्यो-त्यों ऊर्जा की खपत बढ़ती जा रही है. हम सभी कार्यों के लिए ऊर्जा पर निर्भर रहने लगे हैं. यातायात के साधनों को चलाने के लिए कोयले का इस्तेमाल किया जाता था. कोयला का दोहन जब कर लिया गया तब डीजल का और फिर विद्युत् से उसका संचालन होने लगा. फैक्ट्रियों के लिए विद्युत्, कोयला, पेट्रोलियम पदार्थ सभी की आवश्यकता है. स्पेस पर उपग्रह आदि पहुँचाने के लिए ऊर्जा की बड़ी मात्रा की आवश्यकता होती है. बसों, ट्रकों, छोटे वाहन. कार, स्कूटरों, मोपेड सबको चलाने के लिए पेट्रोलियम, डीजल, सी. एन. जी. की आवश्यकता है. खदानों में विद्युत् के अधिकांश भाग का उपयोग किया जाता है. भोजन बनाने में वन सम्पदा का एक अधिकांश भाग जलावन के रूप में उपयोग किया जाता था जिससे पर्यावरण संतुलन बिगड़ गया था. अब उसके लिए विद्युत् गैस एवं कैरोसिन की अधिकांश मात्रा का उपयोग किया जाता है. घरों में अंधेरे से बचने के लिए विद्युत् और तेल की आवश्यकता पड़ती है. पुनः युद्ध में मानव उपयोग की अधिकांश ऊर्जा का भण्डार खपत कर लिया जाता है. विश्व में दो विश्व युद्धों में जितनी ऊर्जा की खपत की गई एवं छिटपुट जितने युद्ध लड़े गए उस ऊर्जा से विश्व के समस्त हिस्से को 5 वर्षों तक प्रकाशित रखा जा सकता था, लेकिन हमने उस ऊर्जा का उपयोग संसार के विध्वंस के लिए किया. नागासाकी और हिरोशिमा में जो परमाणु विस्फोट किया गया वह भी ऊर्जा का अपव्यय ही था. इसे 20वीं शताब्दी की सबसे बड़ी गलती माना गया है.
 
कार्बन वाले ऊर्जा स्रोतों पर अत्यधिक निर्भरता मनुष्य की दूसरी बड़ी भूल मानी जा सकती है. ताकत, दौलत और संसार पर अधिपत्य जमाने की होड़ में बीते वर्षों में फिर से काम में लाए जा सकने वाले प्रदूषण मुक्त साधनों की पूरी तरह उपेक्षा की गई है. यह विदित है कि जीवन में काम आ सकने वाली ऊर्जा के अधिकांश हिस्सों को फिर से काम में आने वाली ऊर्जा का उपयोग करके पूरा किया जा सकता है. 'वर्ल्डवाच इन्स्टीट्यूट' के अनुसंधानकर्ताओं का विचार है कि आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण सम्बन्धी खतरों की वजह से समाज परमाणु शक्ति को स्वीकार नहीं कर सकता, जबकि फिर से उपयोग में ला सकने वाले साधनों को वह आसानी से अपना सकता है. ये स्रोत कभी समाप्त नहीं होते और सौर ऊर्जा से इसकी क्षतिपूर्ति होती रहती है. फिर से काम में आने वाली ऊर्जा के स्रोत पर लागत भी कम लगती है.
 
ऊर्जा की बढ़ती माँग की पूर्ति के लिए अनेक साधनों का सहयोग लिया जा सकता है. इसमें कुछ तो पूर्व में उपयोग में लाए जा रहे हैं. कुछ साधनों पर पूर्णतः अमल नहीं किया जा सकता है. जिनमें कुछ इस प्रकार हैं- पनबिजली ऊर्जा, पृथ्वी के गर्भ की ऊर्जा, बायोमास ऊर्जा, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, समुद्री ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा, सी. एन. जी. एवं मीठी पेट्रोलियम से प्राप्त ऊर्जा ।

पनबिजली और परमाणु ऊर्जा

भारत में अभी तक अधिकांश इसी विधि से ऊर्जा प्राप्त की जा रही है घरों और फैक्ट्रियों में प्राप्त की जाने वाली लगभग 60 प्रतिशत विद्युत् का स्रोत इसी विधि से प्राप्त किया जा रहा है. पनबिजली में पानी की शक्ति को नियंत्रित कर विद्युत् में परिवर्तित कर प्रसारित कर दिया जाता है एवं परमाणु ऊर्जा में परमाणु शक्ति का उपयोग विद्युत् बनाकर प्रसारित कर दिया जाता है. इसका 20 प्रतिशत सहयोग विद्युत् में किया जा रहा है.
 

पृथ्वी के गर्भ की ऊर्जा

पृथ्वी के गर्भ में ऊर्जा का अजस्त्र स्रोत छिपा हुआ है. यह पृथ्वी के द्वारा लाखों वर्षों से गर्भ में छिपाकर रखा गया था. इसमें अधिकांशतः कोयला, पेट्रोलियम, गैस, डीजल और कैरोसिन तेल है. कोयला के द्वारा आज भी भारत में विद्युत् का अधिकांश हिस्सा निर्मित किया जा रहा है. विद्युत् का लगभग 25 प्रतिशत हिस्सा कोयला द्वारा ही आज भी अपने देश में प्राप्त किया जा रहा है. इससे कोयला के भण्डार का निरन्तर दोहन हो रहा है. पेट्रोलियम का उपयोग यातायात में अधिकांशतः किया जाता है. डीजल भी यातायात का सस्ता साधन माना जाता है, लेकिन इसका भी सीमित भण्डार ही है. गैस और कैरोसिन का उपयोग खाना बनाने एवं अंधकार को मिटाने के लिए किया जाता है.
 

बायोमास ऊर्जा

बायोमास ऊर्जा सड़ने वाली किसी भी जैव पदार्थ से प्राप्त की जा सकती है, मानव मल से भी बायोगैस प्राप्त की जा सकती है. शहरों के कूड़े-कचरों, रसोईघर में बचे बेकार पदार्थों, जलकुम्भी तथा पानी में उगने वाले घास-फूस से भी प्राप्त की जा सकती है. भारत में मानव मल, जलकुम्भी आदि से चलने वाले कई बायोगैस संयन्त्र लगाए जा चुके हैं.
 
सौर ऊर्जा-खाना पकाने, पानी गर्म करने, पानी का खारापन दूर करने, हवा को गर्म रखने और अनाज, सब्जियों और इमारती लकड़ी को सुखाने जैसे कम ताप की आवश्यकता वाले कार्यों में सौर ताप पर आधारित उपकरणों का उपयोग आज संसार भर के देशों में किया जाने लगा है, यह ऊर्जा प्रदूषण मुक्त भी होती है. इस ऊर्जा से बिजली भी पैदा की जा सकती है, फोटो वोल्टेक प्रणाली के जरिए और ऊर्जा को सीधे बिजली में बदला जा सकता है. अब सौर सेल भी बाजार में उपलब्ध हैं. इनका उपयोग बिजली से चलने वाले किसी भी उपकरण में किया जा सकता है. यहाँ तक कि फोटो वोल्टेक सेल पर आधारित कई सौ मेगावाट क्षमता के बिजलीघर स्थापित किए जा सकते हैं ।

पवन ऊर्जा

पवन ऊर्जा पवन की शक्ति को बिजली में परिवर्तित कर पवन ऊर्जा निर्मित की जाती है. भारत में महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और उड़ीसा में 100 से अधिक मेगावाट क्षमता के पवन ऊर्जा जनरेटर काम कर रहे हैं. हमारे देश में पवन ऊर्जा से 20,000 मेगावाट से अधिक बिजली तैयार की जा सकती है ।

समुद्री ऊर्जा

समुद्र की लहरों से विशेषकर ज्वार से बिजली प्राप्त करने के लिए भी टेक्नोलोजी विकसित की जा चुकी है. समुद्र से दो तरह से ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है. प्रथम लहरों के जरिए और पानी के ताप से ये दोनों तरीके बिजली प्राप्त करने के लिए काफी उपयागी हैं. भारत में इस प्रणाली का समुचित विकास अभी होना शेष है.
 

अन्य वैकल्पिक ऊर्जा का विकास

परिवहन के क्षेत्र में तेल के जिन विकल्पों पर अनुसंधान कार्य चल रहा है वे हैं अल्कोहल (एथेनाल और मैथोनाल) हाइड्रोकार्बन गैसें जैसे- सी.एन.जी., एल.एन. जी और एल. पी. जी. प्रोड्यूसर गैस हाइड्रोजन अमोनिया और सिन्थेटिक हाइड्रोकार्बन. यही नहीं वैज्ञानिकों का ध्यान हाइड्रोकार्बन रसायन उत्पन्न करने वाले अनेक पौधों की ओर भी गया है. ऐसे पौधों को भी सूचीबद्ध किया जा रहा है जिनसे वैकल्पिक पेट्रोलियम पदार्थ का निर्माण किया जा सके. अनुसंधान अभी जारी है. वर्तमान में सी. एन. जी. एवं अल्कोहल निर्मित मीठी पेट्रोलियम आदर्श विकल्प के रूप में उभर कर सामने आए हैं ।

निष्कर्ष रूपेण यह कहा जा सकता है कि भारत ही नहीं, विश्व समुदाय के सामने अभी सबसे बड़ी समस्या के रूप में ऊर्जा संकट है. मानव का विकास जिस गति से हो रहा है उसी गति से ऊर्जा की माँग भी बढ़ रही है. हम आवश्यकता के अनुरूप आवश्यकता की पूर्ति करने में स्वयं को अक्षम पा रहे हैं. विश्व समुदाय के पास दोनों प्रकार के साधन हैं. एक क्षरणशील साधन, दूसरा अक्षय साधन. हम क्षरणशील प्राकृतिक साधनों का ही अधिकांशतः उपयोग कर रहे हैं. जिससे उन साधनों के शीघ्र समाप्त होने का खतरा बढ़ गया है. हम अक्षय साधनों का उपभोग जितना अधिक कर पाएंगे उतना ही मानव विकास के इतिहास में कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेंगे ।

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