रच अलौकिक श्रृंगार : कविता की सामर्थ्यता का उद्घोष

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रच अलौकिक श्रृंगार : कविता की सामर्थ्यता का उद्घोष शोभा रानी के कविता संग्रह “रच अलौकिक श्रृंगार” को पढ़ते हुए सबसे पहले जो विचार आता है वह यह कि यदि

रच अलौकिक श्रृंगार : कविता की सामर्थ्यता का उद्घोष


शोभा रानी के कविता संग्रह “रच अलौकिक श्रृंगार” को पढ़ते हुए सबसे पहले जो विचार आता है वह यह कि यदि किसी कवयित्री ने पहली बार अपने मन के संसार को बाह्यजगत में अभिव्यक्त करने का हौसला करने का अंतिम निर्णय लिया होगा तो वह हौसला भी अनेक संघर्षों के बाद ही निश्चय के रूप में परिणत हुआ होगा। और तब जीवन के एक उच्च आयाम पर कदम रखने के हौसले के आलोक में यह बात गौण हो जाती है कि संग्रह की कविताएं कविताके दृष्टिकोण से भाषा के उपयोग और कविता के मानदंडों पर उतनी परिष्कृत नहीं है जितनी होनी चाहिए। यह बात तब और भी गौण हो जाती है जब कविता पढ़ने के बाद उसके भाव याद रह जाते हैं और उसे एक बार पुनः पढ़ लेने का आग्रह मन पर अनायास उतरता है। हां, भाव की उपस्थिति ही असली रत्न है। पर यहां एक बात है। 

मानव मन के असंख्य भावों में से प्रत्येक ही परम सत्य, परम शिव और परम सुंदर है। वाल्मीकि,कालिदास,भतृहरि, खय्याम,रूमी से लेकर रविंद्रनाथ और महादेवी तक में वही भाव सर्वव्यापक और सर्वकालिक होते हुए भी अपने युग और काल के संदर्भ में तदनुसार अभिव्यक्त होते नूतन और मौलिक लगते हैं। तब तो कविताओंकी अभिव्यक्ति कीसामर्थ्यताअपरिमित हुईना।हाँ, जिन्हें रोटी, कपड़े और मकान की चिंता नहीं उनसे अभिव्यक्त जो भाव जिस अनोखी सुंदरता में लिपटे होंगे कविता में अभिव्यक्ति वही भाव इसके विपरीत परिस्थितियों से जूझते कवि की अभिव्यक्ति में जीवन के भिन्न परिवेश परिस्थितियों में अर्जित अनुभव से ठीक नए और अभिनव सुंदरता में लिपटे होंगे। और भावों की यही अभिनवता इस संग्रह की कवयित्री के अपने विशिष्ट अनुभव से निःसृत अभिव्यक्ति के आलोक में विशिष्ट हो गई है।तब इसकी एक गहरी सामाजिक उपादेयता भी है। कला यदि मनुष्यता के सामान्य भाव जगत से उच्च भाव जगत का धरातल है तो हर व्यक्ति के अंदर कला की ओर उन्मुख होने का सामर्थ्य है। इसलिहाज से यह संग्रह वह दीप है जिसमें दूसरे दीप बाले जाने की प्रेरणा और लौ यथार्थ बनाकर उपस्थित हुई है। यह तो हुई व्यक्ति के सामाजिक मूल्यों के उन्नयन में योगदान की संग्रह की सार्थकता और इस लिहाज से इसकी सामाजिक प्रासंगिकता। लेकिन फिर सवाल उठता है कि कलाकृति के रूप में संग्रह की संभावनाएं क्या है। भाव अगर कविता का बाना पहने हैं तो उसका कलात्मक पक्ष भी तो सबल हो। 

रच अलौकिक श्रृंगार : कविता की सामर्थ्यता का उद्घोष
निश्चय ही किसी भी कलाकार की पहली रचना से कलात्मक उत्कृष्टता का उसके उच्च मानदंडों के अनुरूप अपेक्षा किया जाना न्यायोचित नहीं होगाजो इस संग्रह के लिए भी सही है। पर संग्रह की कविताएं अंत में इस सत्य को सिद्ध करने में सफल हुई है कि भाव की अभिव्यक्ति को टुकड़ों में काटकर देखा नहीं जा सकता। कविता को भाषा, अलंकार,बिंब-विधान, पृष्ठभूमि, अग्रभूमि,रंगों,आकृतियों को प्रत्यक्ष करने की उसकी क्षमता के आकलन करने के परिप्रेक्ष्य में ही देखना उसकी समग्रता को खंडित करना है।तब उपरोक्त मानदंडों की रूढ़िवादिता से मुक्त होकर देखने पर संग्रह की कविताएं मुखर होकर कहने लगती है कि कलामानदंडों के टुकड़ों में बंटी हुई नहीं होती बल्कि उससे निरपेक्ष एक संपूर्ण इकाई होती है। हौसले से भरे मानव हृदयके आह्वान का एक उदाहरण देखें - 

जगदीप
गगन झिलमिल 
स्वर अंकित 
शुभ अमर इंद्र
प्रकाश की अगणित बेला में 
साहस, ओज का परिपूंजप्रताप 
द्वंद्व रहित विषयों में 
परिपूर्ण आकाररहित 
जनवेदना कर अंगीकार 
रच अलौकिक श्रृंगार।

यदि संग्रह की पहली कविता हृदय की असीम संभावनाओं का आह्वान है तो दूसरी कविता असीम के प्रति श्रद्धा है, तीसरी पुनः मानव क्षमताओं की असीमितता का उद्गार है तो चौथी दुनियावी जटिलताओं से जकड़े मनके पास प्रेमी का संग होने की सांत्वना है। तो इस तरह संग्रह की 88 कविताएं 88 भावों की रागिनियां गाती हुई चलती हैं। प्रेम मिलन की भावप्रवणता की गीतिमयताका एक अंदाज देखें-
 
आज पिया ने
भरी रे चुनरिया 
डोले मनवा 
सुन ओ बावरिया
रची मेहंदी
सजा गजरा 
पाँव बाजे रे पैजानिया
आज पिया ने 
भरी रे चुनरिया।
 
संग्रह की कई कई कविताओं में मां की ममता का संग जीवन की सबसे मूल्यवान निधि के रूप मेंअनुभूत हुआ है। प्रेमी यहां कई प्रसंगों में अनाम है तो कई में स्वयं गिरिधर कृष्ण हैं । पन्नों को पलटते हुए जननी, प्रेमी और रचयिता का बार-बार मिलन रुचिकर परिवेश का सृजन करती चलती है जिससे कविताओं का स्पर्श एकांगी और बोझिल न होकर रसवैचित्र्य से भिगोते चलता है। आश्चर्य यह लगता है कि जैसे संग्रह एक गीत है और जननी, प्रेमी और रचयिता उस गीत के मुखड़े, जो अन्य भावों की कविताओं के अंतरों से गुंथकरबार बार गाए जा रहे हैं। यह तय है कि कविताओं का यह क्रम सायास है और इसी मायने में यह कवयित्री की सृजनात्मक प्रयोगधर्मिताऔर उसी संदर्भ में  उपलब्धि कहीं जा सकती है।
 
तब संग्रह की कविताओं के कलात्मक पक्ष की एक जो सामान्य कमी खलती है वह यह है कि भाव सरल होते हुए भी भाषा भाव रहस्य की जटिलता में लिपटी हुई है। पर इसका एक सबल पक्ष भी है। वह यह कि सरल भाव जटिल रहस्य में लिपटे होने के बावजूद कविता के अंत में अपनी परिपूर्ण अर्थवत्ताके साथ मुखरित हो उठ रहे हैं। संग्रह की कविताओं का यह अनोखापन इस मायने में विशिष्ट हैं।
 
विशिष्टताओंऔर कर्मियों की इस आलोचना के बावजूद बात फिर वही आकर रूकती है। कला यदि मनुष्यता के सामान्य भाव धरा से ऊपर उच्च भाव धरा है तो एक रसायन शास्त्र में स्नातक कवयित्री का कविता के धरातल पर स्वयं को उन्नयितकरने की चेष्टा में हम अपने समाज का वह मूल्याभिमुखीपक्ष देख रहे हैं जो मंद और सूक्ष्म गति से ही सही पर मानवता के उच्च धरातल पर उठने के लक्ष्य की ओर अपनी आंखें खोले हुए हैं।यह निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि हर एक व्यक्ति में कविता के अनंतबीज सुसुप्तपड़े हुए हैं औरइसलिये इस संसार की भावों के उच्च धरातल पर उठने की संभावनाएं भी अनंत अनंत हैं। एक दिन ये संभावनाएं भी फलीभूत होंगी और तब वह संसार सचमुच प्रबुद्ध मानवीयता का संसार होगा। शोभा रानी का कविता संग्रह “रच अलौकिकश्रृंगार” की प्रासंगिकताइसी अर्थ में है।


“रच अलौकिक श्रृंगार”  कविता संग्रह
प्रकाशक: नवारंभ,पटना 
कवयित्री: शोभा रानी

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