मैं पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर बनना चाहती हूं

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प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य किशोरियों का आत्मविश्वास बढ़ाना और उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित करना है ताकि वह अपने सपनों को पूरा कर सकें. चरखा द्वारा किये

आत्मनिर्भरता की ओर किशोरियों का पहला कदम


मैं बीए में पढ़ रही हूं. मैं पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर बनना चाहती हूं, लेकिन मुझे ये नहीं पता था कि आगे भविष्य में क्या करना है? मैंने सुना है कि आज के युग में कंप्यूटर के ज्ञान के बिना भविष्य नहीं है. नौकरी मिलना संभव नहीं है. लेकिन मेरे पास इसे सीखने की कोई सुविधा नहीं थी. इस दूर दराज़ गांव में किसी के पास कंप्यूटर भी नहीं है. मुझे ऐसा लग रहा था कि शायद मैं कभी इसे नहीं सीख पाउंगी. लेकिन जब हमारे गांव में चरखा संस्था द्वारा 'दिशा ग्रह' नाम से कंप्यूटर सेंटर खोला गया तो मेरे अंदर एक उम्मीद जगी कि मैं भी इस आधुनिक तकनीक को सीख कर आत्मनिर्भर बनने का सपना पूरा कर सकती हूं. जब मुझे पता चला कि संस्था द्वारा इसे फ्री में गांव की लड़कियों को सिखाया जायेगा तो मुझे बहुत अच्छा लगा. संस्था की मदद से आज मैं कंप्यूटर चलाने में दक्ष हूं. अब मेरे अंदर एक अलग सा आत्मविश्वास जाग चुका है." यह कहना चौरसो गांव की 18 वर्षीय किशोरी श्वेता का. जो गांव में ही रहकर पढ़ाई के साथ साथ कंप्यूटर जैसी तकनीक में भी महारत हासिल कर रही है. श्वेता जैसी चौरसो की कई अन्य किशोरियां भी हैं जिन्होंने दिशा ग्रह से जुड़कर अपने भविष्य को संवार रही हैं.

पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के बागेश्वर जिला से 30 किमी और गरुड़ ब्लॉक से करीब 8 किमी दूर छोटे से गांव चौरसो की किशोरियां इस समय न केवल आत्मनिर्भर बनने का सपना देख रही हैं बल्कि उसे पूरा करने की जद्दोजहद में भी लगी हुई हैं. पंचायत में दर्ज आंकड़ों के अनुसार इस गांव की आबादी लगभग 3000 है और साक्षरता दर 90 प्रतिशत के करीब है. जिसमें महिलाओं की साक्षरता दर करीब 45 प्रतिशत है. इस गांव में शिक्षा का स्तर तो संतोषजनक है लेकिन कंप्यूटर जैसी तकनीक के मामले में यह गांव काफी पीछे था. लेकिन दिशा प्रोजेक्ट शुरू होने के बाद से इस गांव की किशोरियों के लिए कंप्यूटर तक पहुंच आसान बन गई है. 19 वर्षीय पायल कहती है कि 'जब से गांव में कंप्यूटर सेंटर खुला है मैं अपना अधिक से अधिक समय इस सेंटर पर देती हूं ताकि भविष्य में मुझे किसी प्रकार की कोई कठिनाई न हो.' वह कहती है कि आत्मनिर्भर होना बहुत जरूरी है. वर्तमान में कंप्यूटर के ज्ञान के बिना कुछ भी संभव नहीं है. वहीं नेहा बताती है कि 'जब मैंने पहली बार सेंटर पर कंप्यूटर चलाया तो मुझ में यह विश्वास जगा कि मैं भी जीवन में सफल हो सकती हूं. नौकरी कर आत्मनिर्भर बन सकती हूं. अब मैं पढ़ाई के साथ साथ हर सप्ताह कंप्यूटर सीखने दिशा ग्रह सेंटर जाती हूं. हमेशा मुझे वहां कुछ नया सीखने को मिलता है. अब मुझे लगता है मैं भी अपनी ज़िंदगी में कुछ कर सकती हूं.'

वहीं एक अन्य किशोरी लक्ष्मी कहती है कि 'संस्था द्वारा किशोरियों को केवल कंप्यूटर ही नहीं सिखाया जाता है बल्कि प्रत्येक रविवार को दिशा सभा के माध्यम से किशोरियों के साथ सामाजिक मुद्दों पर चर्चा भी की जाती है. मैं क्या सोचती हूं? मुझे समाज के बारे में क्या लगता है? किशोरियों के अधिकार क्या है? शोषण के खिलाफ किस तरह आवाज़ उठानी चाहिए? अपने भविष्य के लिए मुझे क्या करना चाहिए? आदि सब बातें, जो मैंने इससे पहले कभी किसी के साथ चर्चा नहीं की थी, लेकिन मन में ऐसे प्रश्न उठते रहते थे, इन सभी मुद्दों पर दिशा सभा में खुलकर चर्चा होती है. वह कहती है कि 'कुछ बातें ऐसी होती हैं जो हम घर वालों से नहीं कह सकते, वह हम दिशा सभा में बोल सकते हैं. उन पर हमें सुझाव भी दिए जाते हैं. मुझे संडे को दिशा सभा करना बहुत अच्छा लगता है. जहां खेल-खेल में हम अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकते हैं. समाज में जो कुछ घटित हो रहा है और जो हमें पसंद नहीं है, उन चीजों पर भी हम बात करते हैं. लक्ष्मी कहती है कि 'आज के समय में लड़कियों का जहां पढ़ना लिखना आवश्यक है, वहीं समाज में घटित होने वाले मुद्दों पर भी बात करना ज़रूरी है.

आत्मनिर्भरता की ओर किशोरियों का पहला कदम
चौरसो में कंप्यूटर सेंटर खुलने से केवल किशोरियां ही नहीं बल्कि उनके माता पिता भी काफी खुश हैं क्योंकि अब गांव में ही रहकर उनकी लड़कियां कंप्यूटर सीख रही हैं. इस संबंध में गांव की एक महिला भागा देवी कहती हैं कि 'हमारे गांव में जब से दिशा ग्रह खुला है मैं बहुत खुश हूं. मेरी पांच बेटियां हैं और मैं चाहती हूं कि लड़कों की तरह वह भी आगे बढ़े. उन्हें भी समान अवसर मिले. लेकिन गांव में इससे पहले ऐसी कोई सुविधा नहीं थी. लड़कियों को कंप्यूटर सीखने 30 किमी दूर बागेश्वर शहर जाना पड़ता, जो मुमकिन नहीं था. एक मां के रूप में मुझे लगता था कि कमज़ोर आर्थिक स्थिति के कारण मेरी बेटियों को भी सुविधाओं के अभाव में शिक्षा प्राप्त करनी होगी. वह कंप्यूटर जैसे महत्वपूर्ण विषय को सीखने से वंचित रह जाएंगी, लेकिन चरखा की पहल से अब वह दिशा ग्रह में जाकर कंप्यूटर सीखती हैं. मुझे बहुत खुशी होती है कि जो हम नहीं कर पाए आज मेरी बेटियां कर रही हैं. मैं उन्हें अपने पैरों पर खड़ा देखना चाहती हूं. वह आत्मनिर्भर बनें और इतनी सक्षम बनें कि अपने फैसले खुद ले सके. चरखा ने दिशा ग्रह सेंटर खोल कर गांव की किशोरियों के लिए कंप्यूटर सीखना आसान कर दिया है. इस संबंध में पंचायत सदस्य बबीता देवी कहती हैं कि इस दूर दराज़ गांव में कंप्यूटर का आना ही कल्पना से परे था. ऐसे में लड़कियों के लिए यह आसानी से उपलब्ध हो जाए यह तो कोई सोच भी नहीं सकता था. लेकिन चरखा संस्था द्वारा दिशा ग्रह के माध्यम से चौरसो जैसे सुदूर गांव की किशोरियों के लिए कंप्यूटर उपलब्ध कराना बहुत महत्वपूर्ण है. इससे उन्हें आगे बढ़ने और आत्मनिर्भर बनने में सहायता मिलेगी. 

ज्ञात हो कि अज़ीम प्रेमजी फॉउंडेशन के सहयोग से चरखा संस्था द्वारा उत्तराखंड के बागेश्वर जिला स्थित गरुड़ और कपकोट ब्लॉक के विभिन्न गांवों में प्रोजेक्ट दिशा संचालित किया जा रहा है. जिसके माध्यम से किशोरियों को विभिन्न माध्यमों से सशक्त किया जाता है. जिसमें उन्हें लेखन और सामाजिक मुद्दों पर चर्चा के लिए वातावरण तैयार करने के साथ साथ उन्हें कंप्यूटर की ट्रेनिंग भी दी जाती है. इस संबंध में संस्था की डिस्ट्रिक्ट कोऑर्डिनेटर नीलम ग्रैंडी कहती हैं कि "घर की कमज़ोर आर्थिक स्थिति का सबसे अधिक प्रभाव लड़कियों पर पड़ता है. इसके अतिरिक्त गांव की रूढ़िवादी विचारधारा के कारण भी किशोरियों के आगे बढ़ने में बाधा उत्पन्न होती है. कम उम्र में शादी और अन्य सामाजिक बंधनों के कारण उनका सर्वांगीण विकास प्रभावित होता है. ऐसे में कंप्यूटर सीखना उनके लिए किसी स्वप्न की तरह था. लेकिन दिशा प्रोजेक्ट से जुड़ कर गांव की किशोरियां न केवल कंप्यूटर चलाना सीख रही हैं बल्कि अपने अधिकारों से भी परिचित हो रही हैं. वर्तमान में, दिशा प्रोजेक्ट के माध्यम से गरुड़ और कपकोट के विभिन्न गांवों में करीब 6 'दिशा ग्रह' नाम से कंप्यूटर सेंटर संचालित हो रहे हैं. जबकि चार अन्य भी जल्द खुल जायेंगे ताकि ग्रामीण क्षेत्रों की अधिक से अधिक किशोरियां इस तकनीक में दक्ष हो सके. प्रत्येक दिशा ग्रह सेंटर पर दस से अधिक किशोरियों को कंप्यूटर की ट्रेनिंग दी जा रही है."

नीलम बताती हैं कि 'इस प्रोजेक्ट को एक चेन की तरह चलाया जा रहा है. जहां एक किशोरी कंप्यूटर सीखने के बाद गांव की दस अन्य किशोरियों को सिखाने का काम करती हैं. जिसके बाद वह दस किशोरियां गांव की अन्य दस किशोरियों को प्रशिक्षित करेंगी. इस तरह धीरे धीरे किशोरियों के माध्यम से ही अन्य किशोरियां कंप्यूटर सीखने लगेंगी. वहीं इस प्रोजेक्ट से जुड़ी किशोरियों को लेखन और कविताओं के माध्यम से अपने विचारों को अभिव्यक्त करना भी सिखाया जाता है. वह गांव के विभिन्न सामाजिक मुद्दों और उससे जुड़ी समस्याओं पर आलेख भी लिखती हैं. जिन्हें चरखा के माध्यम से देश की तीन प्रमुख भाषाओं के समाचारपत्रों और वेबसाइट पर प्रकाशित कराया जाता है. साथ ही उन्हें इन मुद्दों पर संबंधित अधिकारियों से मिलकर बात करने के लिए प्रोत्साहित भी किया जाता है. इस प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य किशोरियों का आत्मविश्वास बढ़ाना और उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित करना है ताकि वह अपने सपनों को पूरा कर सकें. चरखा द्वारा किये जा रहे यह प्रयास ग्रामीण क्षेत्र की किशोरियों का आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ता पहला और सार्थक कदम कहा जा सकता है. (चरखा फीचर्स)


- तानिया आर्या
चौरसो, उत्तराखंड

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