महिला खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर सफलता पाई है

SHARE:

महिला खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर सफलता पाई है, वैसा ही इसे लेकर लोगों का नजरिया भी बदलने लगा है. अब कई परिवार अपनी बेटियों को खेलों में करियर

खेलों में भी किशोरियों की समुचित भागीदारी होनी चाहिए


खेल समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा है, इससे शारीरिक और मानसिक विकास के साथ अनुशासन और टीम भावना का विकास होता है. लेकिन इसमें लड़कियों की भागीदारी और उन्हें मिलने वाले अवसरों की बात करें तो यह एक जटिल विषय है. हालांकि पिछले कुछ दशकों में खेल प्रतियोगिताओं में लड़कियों के भाग लेने की संख्या में वृद्धि अवश्य हुई है, इसके बावजूद उनके सामने अभी भी कई बाधाएं हैं जो उन्हें इस क्षेत्र में पूरी तरह से शामिल होने से रोकती है. पारंपरिक रूप से पितृसत्तात्मक समाज ने खेल को पुरुष-प्रधान गतिविधियों तक सीमित कर रखा है. लड़कियों को शारीरिक रूप से कमजोर मानकर उन्हें इससे दूर रखने का प्रयास किया जाता है. आज भी न केवल ग्रामीण क्षेत्रों बल्कि शहरी इलाकों के स्लम बस्तियों में रहने वाली किशोरियों को भी खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने से वंचित रखा जाता है. उन्हें प्रोत्साहित करने की जगह उनका मनोबल तोड़ा जाता है.

ऐसी ही एक स्लम बस्ती बिहार की राजधानी पटना स्थित गर्दनीबाग इलाके में आबाद बघेरा मोहल्ला है. जहां रहने वाली अधिकतर किशोरियों को खेलने के अवसर नहीं मिलते हैं. यहां रहने वाली 15 वर्षीय किशोरी शिवानी, जो गर्दनीबाग स्थित एक सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में कक्षा 9वीं में पढ़ती है, बताती है कि "उसके स्कूल में बहुत सारी लड़कियां खेलों में भाग लेना चाहती हैं, लेकिन उन्हें मौका नहीं दिया जाता है. खुद स्कूल के ही प्रधानाध्यापक और अन्य शिक्षक लड़कियों को खेलने की अनुमति नहीं देते हैं." वह कहती है कि 'मेरी जैसी कई किशोरियां हैं जो खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेना और इस क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करना चाहती हैं, लेकिन हमें अवसर नहीं दिया जाता है. हालांकि लड़कों को स्कूल ओर से खेलों में भाग लेने दिया जाता है, परंतु हम लड़कियों को इससे वंचित रखा जाता है.' इसी स्कूल में पढ़ने वाली 16 वर्षीय रूपा कहती है कि खेल के मामले में लड़कों और लड़कियों के बीच बहुत अधिक भेदभाव किया जाता है. लड़कों को खेलों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जबकि हम लड़कियां इसमें भाग लेना चाहती हैं तो हमें यह कह कर हतोत्साहित किया जाता है कि तुम्हारे बस का यह खेल नहीं है. रूपा की बातों को आगे बढ़ाते हुए उसकी क्लासमेट सपना कहती है कि 'कौन सा ऐसा खेल है, जो हम लड़कियां खेल नहीं सकती हैं? हमें एक बार अवसर देकर तो देखें, हमारी क्षमता का उन्हें पता चल जायेगा.'

खेलों में भी किशोरियों की समुचित भागीदारी होनी चाहिए
पटना हवाई अड्डे से महज 2 किमी दूर और बिहार हज भवन के ठीक पीछे स्थित इस मोहल्ला की आबादी लगभग 700 के करीब है. यहां अधिकतर अनुसूचित जाति समुदाय के लोग रहते हैं, जबकि कुछ ओबीसी परिवार के भी घर हैं. यहां रहने वाले अधिकतर परिवार के पुरुष दैनिक मज़दूरी या ऑटो चलाने का काम करते हैं. यहां तक पहुंचने के लिए एक खुला नाला के ऊपर बने लकड़ी के एक कमजोर, अस्थाई और चरमराते हुए पुल से होकर गुजरना होता है. बारिश के दिनों में यह नाला उफनता हुआ स्लम बस्ती में प्रवेश कर जाता है. राजधानी में रहने के कारण यहां की किशोरियों को शिक्षा के अवसर तो मिल जाते हैं लेकिन खेल गतिविधियों में भाग लेने के लिए उन्हें अभी भी पितृसत्तात्मक समाज द्वारा बनाई गई कई बाधाओं का सामना करना होता है. इनमें सबसे बड़ी बाधा लड़कियों के प्रति समाज की नकारात्मक और पारंपरिक सोच है. इस संबंध में बस्ती की रहने वाली 17 वर्षीय काजल कहती है कि केवल स्कूल ही नहीं, बल्कि घर से भी खेल गतिविधियों में भाग लेने से रोका जाता है. यदि हम चाहते भी हैं तो यह कह कर मना कर दिया जाता है कि यदि खेल में किसी प्रकार की चोट लग गई तो भविष्य में शादी में बाधा आएगी. माता-पिता उत्साह बढ़ाने की जगह खेल गतिविधियों से दूर रहने के लिए कहते हैं.

यहां रहने वाली दसवीं की छात्रा प्रीति कहती है कि 'मैं स्कूल में कबड्डी की बहुत अच्छी खिलाड़ी रही हूं. स्कूल के अंदर होने वाली खेल प्रतियोगिता में भाग लेती रही हूं. लेकिन जब भी स्कूल से बाहर जाकर या जिला स्तर की खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने की बात आई, मुझे हर बार घर से इसकी इजाज़त नहीं मिली. पिता ने यह कह कर मना कर दिया कि इसमें चोट लगने की संभावना रहती है. यदि तुम चोटिल हो गई या कुछ अन्य शारीरिक नुकसान हुआ तो शादी में अड़चन आएगी. जबकि ऐसा होने की संभावना बहुत कम रहती है. मैंने कई बार उन्हें समझाने का प्रयास किया लेकिन हर बार यह कहकर मुझे मना कर दिया गया कि खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेना लड़कों का काम होता है. लड़कियां घर का कामकाज सीखें यही उनके लिए बहुत अच्छा रहेगा. जबकि यह सोच पूरी तरह से गलत है. कुश्ती हो या फुटबॉल, क्रिकेट हो या हॉकी, कोई ऐसा खेल नहीं है जिसमें लड़कियों ने अपनी कामयाबी के झंडे गाड़े न हो. यदि हमें भी अवसर मिले तो हम भी अपने राज्य और जिला का नाम रौशन करने की क्षमता रखते हैं.

हमारे देश में अक्सर परिवार और समाज ने लड़कियों को पढ़ाई और घरेलू कार्यों तक सीमित रखा है. उन्हें खेल गतिविधियों में भाग लेने के लिए बहुत अधिक प्रोत्साहित नहीं किया जाता है. पहले की तुलना में अब लड़कियों का खेलों में भागीदारी के अवसर बढ़ने लगे हैं. कई अंतरराष्ट्रीय खेल संगठनों और राष्ट्रीय स्तर पर सरकार ने खेल में लड़कियों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं. खेलों इंडिया के माध्यम से इस क्षेत्र में कई किशोरियों ने अपनी पहचान बनाई है. जिसकी वजह से ओलंपिक और राष्ट्रमंडल जैसे अंतरराष्ट्रीय खेलों में भारतीय महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है. इसके अतिरिक्त विभिन्न खेलों में महिला लीग की शुरुआत कर किशोरियों को खेल के मंच उपलब्ध कराये जा रहे हैं. पीटी ऊषा, सायना नेहवाल, मिताली राज, मैरी कॉम और निकहत ज़रीन जैसी खिलाड़ियों ने इस धारणा को मज़बूत किया है कि यदि लड़कियों को भी अवसर उपलब्ध कराये जाएं तो वह भी देश के नाम गोल्ड मैडल जीत सकती हैं.

भारत में जैसे-जैसे महिला खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर सफलता पाई है, वैसा ही इसे लेकर लोगों का नजरिया भी बदलने लगा है. अब कई परिवार अपनी बेटियों को खेलों में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं. लेकिन यह अभी भी काफी हद तक शहरी क्षेत्रों और उच्च शिक्षा संस्थानों तक ही सीमित है. आज भी ग्रामीण और बघेरा मोहल्ला जैसी शहरी स्लम बस्तियों की किशोरियों को खेलों में भाग लेने के लिए बहुत अधिक संघर्ष करना पड़ रहा है. जहां संसाधनों के अभाव के साथ साथ सामाजिक दबाव और परंपरागत सोच भी एक बड़ी बाधा है. इसके अतिरिक्त खेलों में लैंगिक असमानता बहुत बड़ी चुनौती है. जिसे समाप्त करके ही किशोरियों के लिए खेलों में अवसर उपलब्ध कराये जा सकते हैं. इस बात में कोई दो राय नहीं कि खेलों में लड़कियों को अवसर उपलब्ध कराने की दिशा में कई सकारात्मक परिवर्तन हुए हैं, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. यह लड़कों के लिए जितना महत्वपूर्ण है उतना ही लड़कियों के लिए भी ज़रूरी है. समानता और समर्थन के बिना खेलों में किशोरियों की भागीदारी पूरी तरह से विकसित नहीं हो सकती है. इसके लिए सरकार और खेल संगठनों के साथ साथ समाज को भी आगे बढ़कर उनके लिए समुचित अवसर और वातावरण उपलब्ध कराने होंगे. (चरखा फीचर्स)



- अमृता कुमारी
पटना, बिहार

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका