महात्मा विदुर का धृतराष्ट्र को उपदेश महर्षि मैत्रॆय से आत्मज्ञान प्राप्त करके आए तीर्थ यात्रा से लौटे हस्तिनापुर में विदुर छाए। उन्होंने जिज्ञासा बस
महात्मा विदुर का धृतराष्ट्र को उपदेश
महर्षि मैत्रॆय से आत्मज्ञान प्राप्त करके आए
तीर्थ यात्रा से लौटे हस्तिनापुर में विदुर छाए।
उन्होंने जिज्ञासा बस ऋषियों से प्रश्न किया
उत्तर सुनाने से पहले ही कृष्ण में विदुर हुआ।
तीर्थ यात्रा से वापस आना जानकर नगर वासी
हस्तिनापुर निवासी हर्षित होते हुए सभी दिखाये।
लगा कि मानो मृत शरीर में उनके जान आ गया
संस्कार युक्त लोगों का प्रणाम आदि होने लगा।
उनकी अगवानी में पुष्प बर्षाया की जाने लगा।
महात्मा विदुर को देखकर नगरी की आंखों में
प्रेम के आंसू छलक कर लोगों के बहने लगा।
महाराज युधिष्ठिरअपने चाचा को आसान दिया
उनके भोजन और विश्राम का उचित प्रबंध किया
महाराज विदुर पुरानी यादों को उनसे शेयर किया
निजकर कमल से हम सबको आपने पाला पोसा।
हमारी माता को भी अपने विपत्ति से बचाया था
हम सबको भी अपने ही लाक्षागृह से बचाया था।
आपने यात्रा के दौरान हम लोगों को याद किया
पृथ्वी पर किन-किन तीर्थ का अपने सेवन किया।
आप लोग तीर्थों को महा तीर्थ बदलते रहते हो
भगवान के प्यारे भक्त स्वयं तीर्थ स्वरूप होते हैं।
धर्मराज यादवों और उनकी नगरी का हाल पूछा
कहां यदि आपने देखा नहीं होगा तो सुनो होगा।
धर्मराज को सुन विदुर यदुवंश विनाश नहीं सुनाया
बाकी सारे दृष्टिगत और अनुभव उन्हें बताया।
अप्रिय और असह्य घटना पांडवों को नहीं बताया
स्वयं प्रकट होने वाली घटना को भी नहीं सुनाया।
पांडव देवताओं की तरह विदुर का सत्कार करते रहे
धृतराष्ट्र की कल्याण कामना से हस्तिनापुर में बसे।
पांडव लोग गृहस्थ के काम में रमते हुए चलते रहे
अनजाने में जीवन मृत्यु की ओर बढ़ता जा रहा था।
विदुर ने काल की गति को जानकर बड़े भाई से कहा
महाराज धृतराष्ट्र अब बड़ा भयंकर समय आ गया है।
हम सबके ऊपर सर्व समर्थ काल मडराने लगा है
इस काल को टालने का अब कोई उपाय नहीं बचा है।
वशीभूत काल से जीव का प्राण वियोग कर लेता है
अब महाराज आप पराया घर में पड़े हुए रह रहे हैं।
दुख की बात है कि जीवित रहने की इच्छा प्रबल है
भीम का खाना खाकर कुत्ते की भांति जीवन- रहे हैं!
जिसको आपने आग में जलान की चेष्टा की थी
उसकी विवाहिता पत्नी को अपमानित किया था।
जिसकी आप भूमि और धन छीन लिया गया था।
उनका खाकर प्राणों को रखने में गौरव मानते हैं।
क्या अब भी आप अज्ञानता बस जीना चाहते हैं
पुरानी वस्रों की भांति यह शरीर क्षीण होने वाला है।
इस शरीर से आपका कोई स्वार्थ सबने वाला नहीं है
ममता बंधन काट अंजान स्थान पर शरीर त्यागें।
जो मनुष्य संसार के को छोड़कर शरीर छोड़ते हैं
ईश्वर को धारण संन्यास के लिए निकल जाते हैं।
वही इस श्लोक में मनुष्य उत्तम मनुष्य कहलाता है
आप अपने कुटुंबियों से छिपकर उत्तराखंड चले जाएं।
राजा धृतराष्ट्र के छोटे भाई विदुर ने जब समझाया
तब महाराज धृतराष्ट्र के प्रज्ञा के नेत्र यू खुल गए!
और वह भाई बंधु का स्नेह त्याग कर निकल पड़े
पति को जाता देखकर गांधारी ने भी साथ होली ।
सबल नंदिनी गांधारी हिमालय की यात्रा का सुख
संन्यासियों को मिलने वाले सुख के समान बताया।
जो सुख बीर पुरुषों को लड़ाई के मैदान में मिलता है
शत्रुओं के प्रहार से मिलने वाली न्यायोचित होता है।
-सुख मंगल सिंह
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