हिंदी का बेचारा दिवस | प्रतिष्ठा का प्रतीक हिन्दी

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आपका स्तर, आपका समाज में महत्व, प्रतिष्ठा या आपका अभिजात्य रूप तब दिखाई देगा जब आप कितना कम हिंदी बोलते हो या बोलती हिंदी में कितने शब्द पराई भाषाओं क

हिंदी का बेचारा दिवस


खवाड़ा तय है, पूरे सप्ताह के कार्यक्रम भी तय कर दिए जाते हैं और फिर आता है हिंदी दिवस। एक दिन का विशेष गर्व महसूस करने का दिन, सबको सोशल मीडिया स्टेटस लगाने का मौका देने वाला दिन, ना पसंद होते हुए भी पूरे दिन हिंदी हिंदी करने का दिन । थोड़ा तो ये भी देखने में आता है कि कुछ लोग अपने मन से तय करते हैं कि आज सिर्फ हिंदी ही बोलेंगे। ये भी ठीक वैसा है जैसे घर में माता पिता सुहाते नहीं, लेकिन फादर्स डे और मदर्स डे तो विश करना ही है या अपने गुण दिखाने के लिए उनका चित्र सोशल मीडिया पर लगाना है। उसी तरह हिन्दी को भी हमने बेचारी महसूस करवाने में कोई कमी नहीं छोड़ रखी है । असल में पूरे साल हिंदी पर ग्लानि महसूस करने के बाद, पूरे साल हिंदी का अपमान करने के बाद हम सभी जोर शोर से अपने घरों दफ्तरों में हिंदी दिवस मनाने पहुंच जाते है । शायद इसमें भी कहीं ना कहीं कोई दबाव जरूर होता होगा।

खैर सबसे पहले यही समझे कि हिंदी का महत्व क्या है ...क्योंकि गाय का महत्व तब पता चलता है जब वो दुधारू हो जाए वैसे ही हिन्दी का महत्व भी है लेकिन हमें दिखता नहीं। क्योंकि आज के समय में एक मानसिकता व्याप्त है कि नौकरी तो सिर्फ पराई भाषा दिलवा सकती है, रोजी रोटी का प्रश्न हिन्दी में लिखा हो सकता है लेकिन इसका उत्तर आज के हिन्दी भाषी को हिन्दी में नहीं मिलेगा। हाल ऐसा है कि हिंदी पढ़ने पढ़ाने वाले भी यही बोलते हुए मिल जायेंगे कि...आपको अगर आगे बढ़ना है तो हिन्दी को पीछे छोड़ना पड़ेगा, अच्छा कर्मचारी, अच्छा इंजीनियर, अच्छा डॉक्टर, अच्छा वकील, अच्छा कलेक्टर और जितना भी बना जा सकता है वो हिंदी पढ़कर तो नहीं बना जा सकता उसके लिए तो आपको दूसरी भाषाएँ ही देखनी पड़ेगी और रही बात हिंदी का ही शिक्षक बनने की तो वो तो आप अपने भाग्य से बन जाते है उसमे कोई विशेष मेहनत नहीं। लेकिन उपर्युक्त सब बनने के लिए आपको उतनी ही हिंदी पढ़नी है कि 14 सितंबर क्यों मनाया जा रहा है और इसके विषय में संविधान में क्या लिखा हुआ है। क्योंकि ये बात हमें शायद कुछ अंक दिलवा दे । 

वातावरण तो अब ये भी है कि आपका स्तर, आपका समाज में महत्व, प्रतिष्ठा या आपका अभिजात्य रूप तब दिखाई देगा जब आप कितना कम हिंदी बोलते हो या बोलती हिंदी में कितने शब्द पराई भाषाओं के प्रयोग करते हो। 

हिंदी का बेचारा दिवस
आजकल व्यक्ति को ज्ञानी या पढ़ा लिखा मानना बहुत आसान है, उसे कुछ खास नहीं करना बस जब किसी से बात करे तब अपनी बात चीत में दो चार शब्द पश्चिम की भाषाओं के फेंक दे फिर अपने आप लोग उसकी बातें सुनने लग जाएंगे और उसका महत्व बढ़ जाएगा। वास्तविकता में तो हिन्दी हमारे लिए आधुनिकता में पीछे रह गए लोगों की ही भाषा रह गई है। उसमे भी यदि आप शुद्ध हिंदी बोलते हो तो आप शायद या तो ज्यादा संस्कारी हो या अभी दुनिया में बहुत पीछे हो। ऐसे ही समाज चल रहा है अभी तक तो, आगे इतना अच्छा चलेगा या नहीं, पता नहीं। लेकिन हमें तो एक दिन सबको हिंदी दिवस की बधाई देनी ही है।

फिर इस दिन कार्यक्रम में हम कुछ बड़ी बड़ी बातें भी कर लेंगे। कुछ देशों का उदाहरण दे देंगे कि हमें जापान से सीखना चाहिए जो सिर्फ अपनी मातृभाषा का प्रयोग करता है, हमें चीन, अमेरिका, फ्रांस, लैटिन देशों से सीखना चाहिए जहाँ  सिर्फ वो अपनी मातृभाषा में बोलते और काम करते है । लेकिन सब संस्कृतियों के मेलजोल का ठेका तो अकेले भारत के लोगों ने ले रखा है जो अपनी मातृभाषा को एक बार महत्व ना दे लेकिन पराई भाषा को अकेला महसूस नहीं होने देना चाहते। इसलिए हमारे यहाँ  बच्चों की पढ़ाई का प्रश्न हिन्दी में हो सकता है लेकिन उसका उत्तर हिन्दी में नहीं मिलेगा। वहीं किसी बात को अधिकतम लोगो तक पहुँचाना हो, तो फिर आपको अपनी भाषा का नहीं दूसरे की भाषा का सहारा लेना पड़ेगा ।

 फिल्म जगत भी आजकल कम पीछे नहीं और वो दिन दूर भी नहीं जब हिंदी सिनेमा नाम रह जाएगा। लेकिन फिल्म पूरी अंग्रेजी में होगी क्योंकि हमें तो वैश्विक बाजार समेटना है और अंग्रेजी में बात करने वाला अभिनेता अभिनय भी तो अच्छा करता है । भारत के बॉलीवुड को ये सीख नहीं मिल पा रही की उसी के थोड़ा निकट एक और फिल्म जगत है जिसे दक्षिण भारत का सिनेमा कहा जाता है उससे थोड़ी सी शिक्षा ले ले लेकिन वही बात है पत्रकारों के सामने या टीवी कार्यक्रमों में घूम फिर कर वही प्रश्न करना है की आखिर बॉलीवुड से ज्यादा सफल टॉलीवुड क्यों है ? खैर ऐसे ही प्रश्न शिक्षा जगत, व्यवसाय जगत और भी क्षेत्रकों में किए जा सकते हैं । हम सभी आलोचना या प्रश्न करने में कहाँ कम है।लेकिन प्रश्न करने के साथ उत्तर का या समस्या के साथ समाधान का चिंतन अभी भी हमसे दूर है और व्यर्थ का ज्ञान सबके पास ज्यादा मौजूद है । 

फिर लौटते है हिन्दी दिवस पर क्योंकि अभी तो हिंदी का इस दिन गुणगान करना ही है और उस बेचारी को विशेष अनुभव भी तो करवाना है। उसी का अनुसरण करते हुए जिन्हे हिंदी में कोई भविष्य नहीं दिखता, हिंदी जगत में रोटी कमाने का कोई स्रोत दिखाई नहीं देता, हिंदी दिवस पर ढेर सारा माहौल बनाने के बाद भी बच्चों की उन्नति के लिए हिंदी माध्यम से दूर करना जिन्हे जरूरी लगता है, जो हिंदी का खा रहे और उसी में जी रहे है लेकिन हिंदी से निकलना आधुनिकता का जरूरी अंग समझते है, अपना विकास, सामाजिक महत्व या जिसे आज के समय में अपनी प्रतिष्ठा का प्रतीक हिन्दी में नहीं दिखाई देता ऐसे महान हिंदी प्रेमियों के प्रेम को नमन और हिंदी दिवस की हार्दिक बधाई। आशा है हम ऐसे ही हिंदी दिवस मनाते रहें अगली बार और भव्य रूप से इसका आयोजन करें।


 - रचित वर्मा 
दिल्ली

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