जीवन जीने का आधार हैं : श्रीकृष्ण

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भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षाएँ जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने और जीने के लिए एक अमूल्य आधार प्रदान करती हैं। उनके उपदेश कर्म, भक्ति, और ज्ञान के माध्यम

जीवन जीने का आधार हैं : श्रीकृष्ण


भारतीय संस्कृति की गहराई और विविधता में भगवान श्रीकृष्ण का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। जिसको कभी भी नकारा नहीं जा सकता, वे केवल एक दिव्य अवतार नहीं बल्कि जीवन के सार को समझाने वाले महान शिक्षक भी रहे हैं। उनके जीवन और उपदेश हमारे जीवन के मार्ग को स्पष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस लेख में, हम श्रीकृष्ण की शिक्षाओं को विभिन्न दृष्टिकोणों से समझने का प्रयास करेंगे, यह देखने के लिए कि वे जीवन जीने के लिए किस प्रकार एक आधार प्रदान करते हैं और उनके विचार कैसे हमें जीवन की जटिलताओं से निपटने में मदद कर सकते हैं। भारतीय संस्कृति और धर्म के गहरे ताने-बाने में भगवान श्रीकृष्ण की उपस्थिति एक अमूल्य रत्न की तरह है। वे जीवन के हर पहलू को समझने और जीने के लिए एक आदर्श मार्गदर्शक की तरह हैं। श्रीकृष्ण न केवल एक दिव्य अवतार हैं बल्कि मानवता के लिए एक अमूल्य शिक्षाप्रदाता एवं मानव गुरु रहे हैं। उनके जीवन और शिक्षाएँ हमें जीवन जीने का आधार और उद्देश्य समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस लेख में हम श्रीकृष्ण के जीवन और उनके शिक्षाओं के माध्यम से यह जानने का प्रयास करेंगे कि जीवन जीने के लिए वे कितने महत्वपूर्ण हैं और उनके विचार हमारे जीवन को किस प्रकार मार्गदर्शित कर सकते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण का जीवन कई दृष्टिकोणों से प्रेरणादायक है। उनका जन्म मथुरा में हुआ था, और उनकी जीवन की घटनाएँ जैसे कंस का वध, रासलीला, गोवर्धन पर्वत उठाना, धार्मिक और दार्शनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। इन घटनाओं के माध्यम से श्रीकृष्ण ने अपने भक्तों को सिखाया कि जीवन की चुनौतियों का सामना कैसे किया जाए और आदर्श मार्ग पर कैसे चला जा सकता है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग में हुआ था, जिस युग में हम रहते हैं उसका नाम कलियुग है  अत: हम कह सकते हैं कि उनका जन्म कलियुग से पहले हुआ था।  भगवान कृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ था श्रीकृष्ण का जीवन केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि इसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने की गहराई भी है। उनकी शिक्षाएँ हमें यह सिखाती हैं कि जीवन में सच्ची सफलता केवल बाहरी विजय से नहीं बल्कि आंतरिक शांति और संतोष से प्राप्त की जा सकती है।

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म महाभारत और श्रीमद्भगवद्गीता जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में उल्लिखित घटनाओं से भी होता है। वे यादव वंश के राजा वसुर्धवज के पुत्र के रूप में जन्मे और उनके जीवन की घटनाएँ जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती हैं। हकीकत की बात करें तो भगवान् श्रीकृष्ण ने बाल्य जीवन , युवा जीवन , गृहस्थ जीवन एवं पार्थ के लिए गुरु की भूमिका भी निभाई है। श्रीकृष्ण का जीवन प्रेम, भक्ति, और ज्ञान का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करता है। उनके बचपन की लीलाएँ, जैसे कि कंस के अत्याचारों से मुक्ति, गोवर्धन पर्वत उठाना, और राधा के साथ रासलीला, आज भी भक्तों के दिलों में गहरी छाप छोड़ने के साथ उनकी तरह जीवन जीने के लिए प्रेरित करता हैं। वे न केवल एक सशक्त योद्धा थे बल्कि एक महान जीवन दार्शनिक और शिक्षक भी थे।

जीवन जीने का आधार हैं : श्रीकृष्ण
भगवान श्रीकृष्ण का सबसे महत्वपूर्ण उपदेश श्रीमद्भगवद्गीता में समाहित है। यह ग्रंथ महाभारत के भीष्म पर्व का हिस्सा है। गीता की शिक्षाएँ न केवल एक युद्ध की रणनीति तक सीमितन रहकर, हमारे जीवन युद्ध की रणनीति के लिए भी एक मजबूत पृष्ठभूमि तैयार करती है बल्कि जीवन के मूलभूत उठते प्रश्नों का भी समाधान प्रस्तुत करती है। जीवन की गहराई को समझने एवं समझाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस ग्रंथ में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के मैदान में जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में बताया था। गीता की शिक्षाएँ हमारे जीवन के हर क्षेत्र में लागू होतीं हैं और हमारे जीवन को ऊपर उठाने , उसमे महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने, ज़िंदगी में कुछ नया करने का जज्बा भरने एवं एक नए दृष्टिकोण की तरफ ले जाने में सहायक है और जीवन की दिशा एवं दशा  दौनों को प्रभावित कर हमें सम्मान के साथ जीने के लिए प्रेरित करती है।

कर्म योग का सिद्धांत हमें बताता है कि हमें अपने कर्तव्यों को बिना किसी परिणाम की चिंता किए पूरा करना ही चाहिए। जैसे एक किसान अपने खेत में कड़ी मेहनत करता है बिना यह सोचे कि फसल कैसी होगी, वैसे ही हमें अपने कार्यों में पूरी लगन और ईमानदारी से जुटे रहना चाहिए। इस दृष्टिकोण से, हम कार्यों को बेहतर तरीके से पूरा भी कर सकते हैं और मानसिक तनाव से बच भी सकते हैं। कर्म योग जीवन में सच्चे सुख और संतोष की प्राप्ति के मार्ग की तरफ ले जाता है।

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्म योग की शिक्षाएं दीं, जो जीवन के हर पहलू में कर्म करने की ही प्रेरणा देतीं हैं। कर्म योग का मुख्य सिद्धांत है कि हमें अपने कर्तव्यों को निष्कलंक एवं निर्भीक तरीके से करना चाहिए, बिना किसी फल की इच्छा किए। यह सिद्धांत हमें सिखाता है कि सफलता और असफलता केवल परिणाम हैं, और हमें केवल अपने कर्म पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इस प्रकार, कर्म योग हमें न केवल कार्य करने की प्रेरणा देता है बल्कि मानसिक शांति और संतोष प्राप्त करने का मार्ग भी दिखाता है।

भक्ति योग का संदेश हमें यह सिखाता है कि ईश्वर के प्रति निस्वार्थ प्रेम और समर्पण से आत्मिक शांति प्राप्त होती है जिससे जीवन की उथल-पुथल में हम अपने आप को सही रास्तों की तरफ ले जाते हैं। उदाहरण के लिए, जैसे एक कलाकार अपनी कला के प्रति प्रेम और समर्पण रखता है। दूसरे उदाहरण की बात करें तो जब एक व्यापारी व्यापार करता है तो उसे विश्वाश होता है कि उसे इस व्यापार लाभ प्राप्त होगा और वो सारे कदम उसी तरह के उठता है तो अंत में उसे लाभ ही प्राप्त होता है दूसरे शब्दों में कहा जाए कि कर्म ही भक्ति का स्वरुप है। कर्म को पूरे मन से किया जाए तो वह भी भक्ति है  वैसे ही भक्ति योग हमें भगवान के प्रति अपनी भावनाओं को गहराई से समझने और व्यक्त करने की प्रेरणा देता है। यह हमें सिखाता है कि भक्ति और प्रेम से हम जीवन की कठिनाइयों को पार कर सकते हैं और आंतरिक शांति भी प्राप्त कर सकते हैं। भक्ति योग की शिक्षाएँ भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति और प्रेम की ओर इशारा करती हैं। भक्ति योग का मुख्य उद्देश्य ईश्वर के प्रति समर्पण और प्रेम है। श्रीकृष्ण ने कहा है कि भक्ति और प्रेम से ईश्वर को प्रसन्न किया जा सकता है। यह सिद्धांत हमें यह सिखाता है कि भक्ति और समर्पण के माध्यम से जीवन में उच्चतम आनंद और शांति की प्राप्ति की जा सकती है। भक्ति योग जीवन को एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण प्रदान करता है और ईश्वर से जुड़ने का मार्ग प्रशस्त करता है और किसी समस्या से बाहर निकलने का मार्ग भी प्रसस्त करता है। 

ज्ञान योग आत्मा की अमरता और शरीर की अस्थिरता को समझने की दिशा में अहम मार्गदर्शन करता है। जैसे एक वैज्ञानिक अपने अनुसंधान के माध्यम से अपनी योजना के सिद्धांत की सत्यता की तरफ ले जाता है, वैसे ही ज्ञान योग हमें आत्मा के वास्तविक स्वरूप को समझने और जीवन की अस्थिरता को स्वीकार करने की प्रेरणा देता है। यह दृष्टिकोण आत्मज्ञान और आंतरिक शांति की ओर ले जाता है। ज्ञान योग ज्ञान और विवेक के माध्यम से आत्मा की पहचान को स्पष्ट करता है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि आत्मा अमर और शाश्वत है, और शरीर केवल एक अस्थायी वस्त्र की तरह है शरीर जब बूढा हो जाता है तो आत्मा समय आने पर दूसरे नए शरीर को धारण कर लेती है  इस प्रकार, ज्ञान योग हमें आत्मा के वास्तविक स्वरूप को समझने और शरीर की अस्थिरता को स्वीकार करने का अवसर प्रदान करता है। यह सिद्धांत आत्मज्ञान और आंतरिक शांति के मार्ग पर चलने में सहायक होता है।

श्रीकृष्ण की शिक्षाएँ जीवन के विभिन्न पहलुओं को नया दृष्टिकोण प्रदान करती हैं। उनके उपदेश हमें यह सिखाते हैं कि हम जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में संतुलन और समर्पण के साथ कैसे आगे बढ़ सकते हैं। हमें एक संतुलित और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने की दिशा प्रदान करता है। उनके उपदेश हमें सिखाते हैं कि कैसे हम अपने कर्म, भक्ति, और ज्ञान के माध्यम से जीवन की कठिनाइयों का सामना कर सकते हैं और उन कठिनाइयों से बाहर आ कर जीवन की व्यवस्था, अर्थव्यवस्था एवं बीमारियों से लड़ाई कर सकते हैं। कर्म, भक्ति, और ज्ञान का मार्ग हमें नए अनुसन्धान करने में सहायक सिद्ध होता है। जिससे हमारे जीवन में सुधार लाने में भी सहायक होता है और एक नए मार्ग को खोलता है। 

श्रीकृष्ण की शिक्षाओं के अनुसार, तनाव और चिंता का मुख्य कारण हमारे परिणाम असफलता और सफलता के प्रति हमारी अस्वस्थ लगाव है। जैसे एक संगीतकार अपने संगीत पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित करता है बिना यह सोचे कि दर्शकों की प्रतिक्रिया कैसी होगी, वैसे ही हमें अपने कार्यों में पूर्ण समर्पण रखना चाहिए और परिणामों की चिंता को छोड़ देना चाहिए। इस दृष्टिकोण से, हम मानसिक शांति और संतोष प्राप्त कर सकते हैं, जो जीवन को सुखमय बनाता है। कर्म योग हमें सिखाता है कि हमें केवल अपने कर्म पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और परिणामों की चिंता को छोड़ देना चाहिए जिससे परिणाम भी आपके अनुसार हो जाते हैं। अगर हमारे मन में कोई दुविधा घर कर जाति है तो परिणाम हमारे अनुसार नहीं हो पाते। इस दृष्टिकोण से, हम मानसिक शांति और संतोष भी प्राप्त कर सकते हैं, जो जीवन को आसान और सुखमय बनाता है।

भक्ति योग की शिक्षाएँ हमें यह भी सिखाती हैं कि प्रेम और सम्मान से हम अपने संबंधों में सामंजस्य बना सकते हैं। उदाहरण के लिए, जैसे एक अच्छे शिक्षक अपने छात्रों को समझाने और मार्गदर्शन करने के लिए अपनी पूरी कोशिश करता है, और अच्छे से उद्धारण प्रस्तुत करता है  जिससे उसके विद्धार्थी उस विषय को अच्छी तरह से समझ सकें वैसे ही हमें अपने संबंधों में समझ, सहयोग, और समर्थन प्रदान करना चाहिए। यह दृष्टिकोण व्यक्तिगत और सामाजिक संबंधों को मजबूत बनाने में मदद करता है। भक्ति योग हमें यह सिखाता है कि सभी जीवों के प्रति प्रेम और सम्मान रखकर हम अपने संबंधों में सामंजस्य बना सकते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की प्रेमपूर्ण और दयालु प्रकृति हमें यह समझाने में मदद करती है कि सच्चे संबंध प्रेम, समझ, और सहयोग पर आधारित होते हैं। इस प्रकार, भक्ति और प्रेम से हम अपने व्यक्तिगत और सामाजिक संबंधों को सुधार सकते हैं।

आत्म-ज्ञान और आत्म-संयम, भारतीय दर्शन और योग की मूलभूत अवधारणाएँ हैं। ये दोनों तत्व व्यक्तिगत विकास, मानसिक शांति, और आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण हैं। आत्म-ज्ञान और आत्म-संयम के अभ्यास से व्यक्ति अपने आंतरिक स्वभाव को समझ सकता है और जीवन को संतुलित और शांतिपूर्ण तरीके से जी सकता है। इस लेख में, हम आत्म-ज्ञान और आत्म-संयम के महत्व, साधना के मार्ग, और इसे जीवन में लागू करने के तरीकों पर विचार करेंगे। ज्ञान योग आत्म-ज्ञान और आत्म-संयम को प्रोत्साहित करता है। जैसे एक योगी ध्यान और साधना के माध्यम से अपने आंतरिक स्वभाव को समझता है, वैसे ही हमें भी आत्मा के वास्तविक स्वरूप को समझने और अपनी इच्छाओं और भावनाओं पर नियंत्रण प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। यह दृष्टिकोण जीवन को संतुलित और शांत बनाता है। जैसे-जैस  हम आत्मा को समझने किस कोशिश करते हैं  तो हम जीवन की अस्थिरता को बेहतर तरीके से स्वीकार कर सकते हैं। आत्म-ज्ञान और आत्म-संयम की साधना एक समग्र दृष्टिकोण है जो मानसिक, भावनात्मक, और आध्यात्मिक उन्नति के लिए आवश्यक है। आत्म-ज्ञान से व्यक्ति अपनी आत्मा की गहराई को समझ सकता है, और आत्म-संयम से वह अपनी इच्छाओं और भावनाओं पर नियंत्रण रख सकता है। इन दोनों के संयोजन से जीवन में संतुलन, शांति, और पूर्णता प्राप्त की जा सकती है। एक नियमित साधना, मानसिक अभ्यास, और सही मार्गदर्शन के माध्यम से आत्म-ज्ञान और आत्म-संयम को अपनी जीवनशैली में शामिल किया जा सकता है, जो एक अधिक सार्थक और संतोषजनक जीवन की ओर ले जाता है।
 
उदाहरण: एक व्यक्ति जो नियमित ध्यान और आत्म-विश्लेषण करता है, वह आत्म-ज्ञान प्राप्त करता है। इसके साथ ही, यदि वह अपने विचारों और भावनाओं पर नियंत्रण रखता है और अपने आहार और जीवनशैली में संयम बनाए रखता है, तो उसे आत्म-संयम में भी सफलता मिलती है। यह संयोजन उसे जीवन के हर पहलू में अधिक संतुलित और शांतिपूर्ण जीवन जीने की क्षमता प्रदान करता है।

भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षाएँ जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने और जीने के लिए एक अमूल्य आधार प्रदान करती हैं। उनके उपदेश कर्म, भक्ति, और ज्ञान के माध्यम से हमें जीवन की कठिनाइयों का सामना करने और आंतरिक शांति प्राप्त करने की दिशा में मार्ग प्रदर्शित करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षाएँ हमें सिखाती हैं कि सच्चे सुख और संतोष की प्राप्ति केवल बाहरी सफलताओं से नहीं बल्कि आंतरिक संतुलन और शांति से होती है। उनके सिद्धांतों को अपनाकर हम जीवन को एक नई दृष्टि और उद्देश्य के साथ जी सकते हैं, भगवान श्रीकृष्ण उपदेश हमें सिखाते हैं कि कैसे हम अपने कर्मों में पूर्णता प्राप्त कर सकते हैं, भक्ति और प्रेम से अपने संबंधों को मजबूत बना सकते हैं, और आत्मज्ञान के माध्यम से जीवन के गहरे रहस्यों को समझ सकते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षाएँ न केवल एक आदर्श जीवन जीने की दिशा प्रदान करती हैं बल्कि हमें मानसिक शांति, भावनात्मक संतुलन, और आध्यात्मिक उन्नति की ओर भी मार्गदर्शित करती हैं। उनके सिद्धांतों को अपना कर हम जीवन को एक नई दृष्टि और उद्देश्य के साथ जी सकते हैं, जो हमें एक संतुलित और पूर्ण जीवन की ओर ले जाता है यही शिक्षाएँ भगवान् श्रीकृष्ण के द्वारा डी गईं और हम सबके जीवन जीने का आधार हैं। 


डॉ.(प्रोफ़ेसर) कमलेश संजीदा गाज़ियाबाद  , उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर. 8218739862
Email. kavikamleshsanjida@gmail.com

COMMENTS

Leave a Reply: 3
  1. बहुत सुन्दर सर!

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  2. कर्म भक्ति और ज्ञान योग को इतनी सरलता से समझने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद

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