रंगा बिल्ला लौट आए | हिन्दी लघु कथा

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रंगा बिल्ला लौट आए हिन्दी लघु कथा सांयकाल के समय मैं अवाहदेवी बाजार में खड़ा लोगों को आते-जाते देख रहा था। तभी कुल्लू - हमीरपुर रूट की बस, बस-अड्डे पर

रंगा बिल्ला लौट आए


सांयकाल के समय मैं अवाहदेवी बाजार में खड़ा लोगों को आते-जाते देख रहा था। तभी कुल्लू - हमीरपुर रूट की बस, बस-अड्डे पर रूकती है। बस से दो व्यक्ति दोनों हाथों में बैग लेकर उतरे। दोनों चेहरे मुझे जाने-पहचाने से लग रहे थे। गौर से देखने पर मैंने दोनों को पहचान लिया। मेरे मुंह से अनायास ही निकला-"रंगा-बिल्ला लौट आए।" तभी मेरा दोस्त अशोक भी वहां आ गया। हम दोनों बाजार में घूमने के लिए निकल पड़े। बाजार में सभी उन्हीं दो व्यक्तियों की चर्चा कर रहे थे कि रंगा-बिल्ला लौट आए। मुझे एक महीने पहले की घटना याद आ गई। हम सम्मी मैडिकल स्टोर की सामने वाली बैंच पर बैठे थे। हमारे साथ चार दोस्त और थे। हम सब गप्पें मार रहे थे। तभी रोडा चाचा वहां आए। वे शराब के नशे में धुत्त थे। शराब के नशे में वे बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं को गालियां दे रहे थे। उनके गुस्से का कारण उनकी पत्नी का बीमार होना था। उन्हें हृदयघात हुआ था और अब वे बिस्तर पर पड़ी थी। 

रंगा बिल्ला लौट आए
रोडा चाचा इलाके के जाने-माने शराबी हैं। वे रात-दिन शराब के नशे में धुत्त रहते हैं। वे सेना की नौकरी करके सेवानिवृत हुए हैं। उनकी शराब पीने की लत से पूरा परिवार परेशान रहता है। पत्नी के बीमार होने के बाद भी वे पत्नी की सेवा करने की बजाए शराब के नशे में धुत्त रहते हैं। इस बात को लेकर उनका उनके बेटे के साथ झगड़ा होता रहता है। उनके बेटे ने उन्हें धमकी दी है अगर उसकी माँ को कुछ हुआ तो वह उन्हें छोड़ेगा नहीं। रोजाना घर पर बाप-बेटे में झगड़ा होता है। इस बात पर रोडा ने फैसला लिया कि वह काम करने कुल्लू चला जाएगा और वहीं रहेगा। वहाँ पर उसे शराब पीने से रोकने - टोकने वाला भी कोई नहीं रहेगा। उसका दोस्त गोपी है। गोपी डाकिए की नौकरी से सेवानिवृत्त हुआ है। गोपी को भी शराब पीने की लत है। वह भी सुबह - शाम शराब के नशे में धुत्त रहता है। तीन महीने पहले हम सम्मी मैडिकल स्टोर के सामने वाले बैंच पर बैठे थे। रात के करीब नौ बज रहे थे। गोपी शराब के नशे में धुत्त था। वह हमारे सामने आकर खड़ा हो गया। गोपी-"मैं तो शराब के नशे में धुत्त हूँ। परंतु तुम अध्यापकों को रात के नौ बजे यहां बाजार में बैठे रहना शोभा नहीं देता। तुम आते-जाते लड़कियों को देखते रहते हो।" आशोक-"चाचा तमीज से बात करो। शराब के नशे में तुम धुत्त हो, हम नहीं। अगर नशा ज्यादा हो गया है तो घर की तरफ जाओ। शराब के नशे में धुत्त होकर ऐसे शरीफ लोगों को परेशान करने की कोशिश मत करो। हम तुम्हारी तरह नशेड़ी नहीं हैं। हमें पता है कि हमें क्या करना है। " अशोक के ऐसे डांटने पर गोपी चुपचाप वहां से चला जाता है। हम दोनों इस बात पर आश्चर्यचकित थे कि नशेड़ी आकर हम दोनों को ताना मार रहे हैं। गोपी घर पर भी ऐसी बेतुकी बातें करता था। उसके घर वाले उससे परेशान थे। 

गांव का कोई भी व्यक्ति न तो रोडा से बातें करना चाहता था और न ही गोपी से। लेकिन दोनों नशेड़ी आपस में पक्के दोस्त थे। घर पर मिलने वाले रोज - रोज के तानों से परेशान होकर दोनों कुल्लू मजदूरी करने चले जाते हैं। जब लोगों को पता चला कि दोनों मजदूरी करने के लिए कुल्लू चले गए हैं तो लोगों की हंसी का ठिकाना न रहा। मजदूरी करना नशेड़ियों के बस की बात नहीं है। लोगों को पता था कि दोनों एक महीने के अंदर ही वापस लौट आएंगे। कुल्लू में सेब की फसल तुड़ान को तैयार थी। दोनों यह सोचकर गए थे कि सेब के बगीचे में सेब इकट्ठा करने का काम मिल जाएगा। उसमें ज्यादा मेहनत नहीं करनी होगी। काम भी कम और मजदूरी भी पूरी। दोनों कुल्लू पहुंच जाते हैं। इस बार खराब मौसम की वजह से सेब की फसल बर्बाद हो गई थी। बागवानों को सेब तुड़वाने के लिए मजदूरों की जरूरत नहीं थी। दोनों को सेब के बगीचों में काम नहीं मिलता। इस तरह बिना मजदूरी मिले पंद्रह दिन बीत जाते हैं। दोनों खेतों में मजदूरी करने की सोचते हैं। खेतों में दोनों को मजदूरी मिल जाती है। दोनों नशेड़ियों के शरीर कमजोर पड़ चुके थे। किसी तरह से शाम के पाँच बजते हैं। लेकिन उनके काम को देखकर खेत का मालिक उन्हें आधी मजदूरी ही देता है। मजदूरी में मिले पैसों की दोनों दोस्त शाम को शराब पी जाते हैं। 

अगली सुबह दोबारा मजदूरी करने जाना होता है। परंतु दोनों की आँख दोपहर को खुलती है। एक सप्ताह तक मजदूरी करने के बाद दोनों का शरीर जबाव दे जाता है। दोनों बीमार पड़ जाते हैं। एक सप्ताह बाद दोनों की सेहत में थोड़ा सुधार होता है। दोनों एक-दूसरे से वादा करते हैं कि शराब पीना छोड़ देंगे। दोनों बस अड्डे पर जाकर अवाहदेवी की तरफ जाने वाली बस में बैठ जाते हैं। शाम के वक्त बस अवाहदेवी पहुंच जाती है। दोनों बस से उतर कर सीधा शराब के ठेके पर पहुंचते हैं और देशी शराब की एक बोतल खरीदते हैं। उन्हें शराब खरीदते देख लोग कहते हैं कि रंगा - बिल्ला लौट आए हैं।


- विनय कुमार, 
सहायक प्रोफेसर हिन्दी
हमीरपुर , हिमाचल प्रदेश

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