महाकाव्य की परिभाषा स्वरूप तत्व लक्षण विशेषताएं

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महाकाव्य की परिभाषा स्वरूप तत्व लक्षण विशेषताएं महाकाव्य शब्द सुनते ही हमारे मन में विशालता, गौरव और ऐतिहासिकता की छवि उभर आती है। यह काव्य की एक ऐसी

महाकाव्य की परिभाषा स्वरूप तत्व लक्षण विशेषताएं


हाकाव्य शब्द सुनते ही हमारे मन में विशालता, गौरव और ऐतिहासिकता की छवि उभर आती है। यह काव्य की एक ऐसी विधा है जो अपनी विशालता, गहनता और अलंकारिकता के लिए जानी जाती है।महाकाव्य मानव सभ्यता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये हमें हमारे इतिहास, संस्कृति और मूल्यों से जोड़ते हैं। महाकाव्य हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में सोचने और समझने का अवसर देते हैं।

महाकाव्य काव्य की महत्त्वपूर्ण विधा है। प्राचीनकाल से ही इसके स्वरूप-निर्धारण का प्रयास होता आ रहा है। भारतीय आचार्यों में सर्वप्रथम 'भामह' ने महाकाव्य के स्वरूप पर विचार किया और ‘काव्यादर्श' में दण्डी ने उस विवेचन को संवारकर प्रस्तुत किया। इसके उपरान्त अग्नि पुराण, काव्यालंकार, राजा भोज के 'सरस्वती कण्ठाभरण' आदि ग्रन्थों में इसका विवेचन किया गया। आचार्य विश्वनाथ ने 'साहित्य दर्पण' में इस समस्त विवेचन को बड़े विशद् रूप में प्रस्तुत किया। भारतीय प्राचीन दृष्टि से 'साहित्य दर्पण' में दिये हुए महाकाव्य के लक्षण ही हिन्दी के साहित्यालोचन सम्बन्धी ग्रन्थों में विवेच्य रहे हैं। 

महाकाव्य की परिभाषा भारतीय दृष्टि से

साहित्य दर्पण के अनुसार महाकाव्य के निम्नलिखित लक्षण है - 
  • महाकाव्य सर्गबद्ध प्रबन्ध काव्य होता है। 
  • उसका नायक देवता या सद्वंशजात तथा धीरोदात्त गुण समन्वित क्षत्रिय या राजा होता है।
  • महाकाव्य की कथा का आधार ऐतिहासिक तथा पौराणिक होता है। 
  • महाकाव्य में श्रृंगार,वीर, करुण और शान्त में से कोई एक रस प्रधान तथा अन्य रस गौण रूप में रहते हैं।महाकाव्य में पुरुषार्थ-चतुष्ट्य- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में से किसी एक फल की प्राप्ति होनी चाहिए ।
  • महाकाव्य सर्गों में विभाजित होता है और सर्गों की संख्या आठ से अधिक होती है। 
  • महाकाव्य में प्रकृति-चित्रण, सूर्योदय, सूर्यास्त, वन, पर्वत, सरोवर, नदी, समुद्र, नगर, पुनर्वासियों आदि बाह्य पदार्थों का सांगोपांग वर्णन रहता है।
 
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय आचार्यों ने महाकाव्य में चार बातों की ओर विशेष ध्यान रखा है। वे ये हैं- (1) वस्तु, (2) नेता या नायक, (3) रस और (4) उद्देश्य या फल प्राप्ति । महाकाव्य की वस्तु या कथा के ऐतिहासिक अथवा पौराणिक होने से वह लोक-प्रचलित तथा सर्वविदित होती है और पाठक का उसके साथ सहज ही साधारणीकरण हो जाता है। ऐसी कथा में आदर्शों की स्थापना भी यथासम्भव हो सकती है, जैसे-राम की कथा लोक प्रचलित है और उसमें कवियों ने अनेक आदर्शों की स्थापना की है। नायक का धीरोदात्त तथा क्षमा, सहनशीलता आदि गुणों से संयुक्त होना आवश्यक है। वह लोकरक्षक, लोकरंजक तथा लोकादर्श के रूप में प्रतिष्ठित होना चाहिए। रस की दृष्टि से उपर्युक्त चार रसों में से एक प्रधान होता है तो अन्य रस उसके अंग बनकर आते हैं। रस तो काव्य की आत्मा ही है। महाकाव्य के उद्देश्य में ऐद्विक और आध्यात्मिक फलों का समन्वय होना चाहिए। इस प्रकार प्राचीन दृष्टि महाकाव्य को महान् एवं पूर्ण आदर्श काव्य के रूप में प्रस्तुत करने की ओर रही है। वाल्मीकि रामायण संस्कृत का आर्ष महाकाव्य है। यह संस्कृत का सर्वश्रेष्ठ एवं आदर्श महाकाव्य है। कालिदास का रघुवंश, माघ का शिशुपाल वध, श्रीहर्ष का नैषधचरित आदि संस्कृत के महाकाव्य इसी परम्परा में लिखे गए हैं।
 

महाकाव्य की परिभाषा पाश्चात्य दृष्टि से

महाकाव्य की परिभाषा स्वरूप तत्व लक्षण विशेषताएं
डॉ. जॉनसन के अनुसार काव्य वह छन्दोबद्ध रचना है जो कल्पना तथा तर्क सहयोग से आनन्द और सत्य का समन्वय करती है। अरस्तू ने महाकाव्य का वर्गीकरण किया है— सरल, जटिल, नैतिक और करुण। कुछ अन्य पाश्चात्य विद्वानों ने रस और उद्देश्य के आधार पर महाकाव्यों का वर्गीकरण किया, किन्तु ये वर्गीकरण मान्य नहीं हुए। महाकाव्यों का रचना समय के अनुसार दो भागों में वर्गीकरण किया गया -
  • विकसनशील महाकाव्य और 
  • साहित्यिक महाकाव्य । 
विकसन- शील महाकाव्य अनेक व्यक्तियों की विभिन्न समयों में रचना होती है, जैसे-इलियड और ओडेसी । इनमें कवि अपने युग की वीर भावनाओं को किसी इतिहास प्रसिद्ध वीर-पात्र के माध्यम से प्रस्तुत करता है। साहित्यिक महाकाव्य एक व्यक्ति द्वारा एक निश्चित समय की रचना है। इसमें काव्य के भाव एवं कलापक्ष पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
 
अरस्तू ने सर्वप्रथम महाकाव्य की परिभाषा करते हुए कहा कि नाटक की भाँति महाकाव्य में कथा की एकता अनिवार्य है। कथा स्पष्ट होनी चाहिए। उसका आदि और अन्त रोचक हो तथा घटनाओं का क्रमिक विकास हो । एवरक्रम्बी ने कहा कि महाकाव्य की कथा प्रचलित लोक कथा होनी चाहिए और उसकी मुख्य कथा यथार्थ और सजीव हो ।

महाकाव्य के लक्षण

पाश्चात्य महाकाव्य के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं- 
(1) महाकाव्य विशालकाय होना चाहिए। 
(2) उसका विषय लोक विदित, प्रतिष्ठित तथा सर्वप्रिय हो । 
(3) उसमें असाधारण गुणों की चर्चा हो । 
(4) उसमें जातीय भावनाएँ और राष्ट्रीय आदर्श हो । 
(5) उसकी वर्णन शैली महान् और अपूर्व हो । 

मिल्टन का 'पैराडाइज लोस्ट' धार्मिक दृष्टिकोण पर आधारित पौराणिक महाकाव्य है। इसमें मानव-जीवन के रहस्यों का अत्यन्त सुन्दर विवेचन है। गेटे का 'फाउस्ट' शैली और विषय की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। 

उपर्युक्त विवेचन से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि भारतीय तथा प्राचीन दोनों ही दृष्टि के महाकाव्य के लक्षणों में कुछ समानता है। महाकाव्य एक विशालकाय काव्य है। इसकी कथावस्तु गम्भीर और प्रशस्त होती है। उसमें जीवन की विविधता का दिखाना अनिवार्य है। जीवन की कलामयी और सूक्ष्म अभिव्यक्ति ही काव्य का प्राण है और कवि अपनी उदात्त कल्पना, असाधारण वर्णन-शक्ति एवं कलागत सौन्दर्य और विचार गाम्भीर्य से काव्य में अद्भुत सौन्दर्य उत्पन्न कर देता है। भारतीय महाकाव्यों में आदर्श को बहुत महत्त्व दिया गया है, इसलिये नायक का उत्थान और खलनायक का पतन दिखाना पूर्व-निश्चित-सा ही होता है किन्तु पाश्चात्य महाकाव्य यथार्थ की तुला पर तोले जाते हैं। अतः उसका नायक बड़े एवं असाधारण कार्यों के लिए प्रयत्नशील तो रहता है किन्तु समय आने पर लघु कार्य भी करने में नहीं हिचकता, अर्थात् वह भारतीय नायक की भाँति अपना आदर्श बनाये नहीं रखता। प्राचीन दृष्टि नायक को आदर्श पात्र एवं दैवी गुण-सम्पन्न बनाने की ओर रही है, किन्तु आधुनिक दृष्टि मानव की सच्ची आलोचना, मानवीय भावों का रहस्योद्घाटन तथा जीवन की विविधता को महत्त्व देती है, क्योंकि मनुष्य आदर्शों का पुंजमात्र नहीं होता। उसमें गुण और दोषों का सम्मिश्रण होना अनिवार्य होता है। उसमें मानवीय दुर्बलताओं का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करते हुए चरित्र का क्रमशः विकास दिखाया जाता है। 

इस प्रकार आधुनिक महाकाव्यों में नायक का चरित्र-चित्रण यथार्थता और पूर्णता के बिल्कुल निकट आ जाता है। कवि का उद्देश्य मानव के गुण-दोषों का चिन्तन करते हुए उसका उत्सर्ग-विधान तथा मानव-जीवन की उलझनमयी गुत्थियों का उद्घाटन और समाधान है। आधुनिक दृष्टि के अनुसार मानवता के कल्याण के लिए प्रयत्नशील व्यक्ति ही महाकाव्य का नायक बनता है। इस प्रकार आधुनिक महाकाव्यों में मानवीय सत्ता तथा यथार्थता पर बल दिया है। उसे आदर्श पुंज के रूप में देवता स्वरूप नहीं बनाया। उसमें सांसारिक समस्याओं को सुलझाने की क्षमता और मानसिक विकास तथा घात-प्रतिघात दिखाना आवश्यक है।
 

आधुनिक महाकाव्य की विशेषताएं

हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल में श्रीरामचरितमानस जैसे परमागत आदर्श वाले महाकाव्य नहीं बने किन्तु आधुनिक दृष्टि को लेकर प्रियप्रवास, साकेत, जयभारत, कामायनी, उर्वशी, लोकायतन आदि अनेक महाकाव्यों की सर्जना हुई है जिनमें मानव को ही आदर्श रूप में प्रतिष्ठित किया । साकेत में कवि राम को आदर्श मानव के रूप में प्रतिष्ठित करता है, अवतार या ईश्वर के रूप में नहीं । कामायनी आधुनिक युग का, नवीन दृष्टि को लेकर चलने वाला सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है। इसमें मानवमात्र के लिए सन्देश है-
 
शक्ति के विद्युत्कण, जो व्यस्त 
विकल निखरे हैं, हो निरुपाय । 
समन्वय उसका करे समस्त 
विजयिनी मानवता हो जाय ॥

इस महाकाव्य में विषय-वस्तु की व्यापकता ही नहीं है, वरन् शैली की दृष्टि से भी वह असाधारण रचना है। इसमें पद्य की रोचकता और गीति काव्य की संगीतात्मकता तथा नाटक के संवाद और उपन्यास के प्रभविष्णुता का अद्भुत समन्वय मिलता है। 

इस प्रकार महाकाव्य की शास्त्रीय परिभाषा एवं प्राचीन भारतीय दृष्टि और पाश्चात्य नवीन दृष्टि से समन्वित रूप हमें हिन्दी के आधुनिक महाकाव्यों में मिलता है। वस्तु एवं कला—दोनों ही दृष्टियों से से महाकाव्य नवीनता रखते हैं तथा इनके मानदण्ड बदले हुए हैं। 

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