लोंजाइनस का उदात्त सिद्धांत की समीक्षा

SHARE:

लोंजाइनस का उदात्त सिद्धांत की समीक्षा लोंजाइनस एक प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक और आलोचक थे, जिन्होंने पहली शताब्दी ईस्वी में "ऑन द सबलाइम" ("पेरि ह्यूप्

लोंजाइनस का उदात्त सिद्धांत की समीक्षा


लोंजाइनस एक प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक और आलोचक थे, जिन्होंने पहली शताब्दी ईस्वी में "ऑन द सबलाइम" ("पेरि ह्यूप्सोस") नामक एक ग्रंथ लिखा था। यह ग्रंथ उदात्त (sublime) की अवधारणा का एक व्यापक और प्रभावशाली विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जो कला और साहित्य में महानता और प्रभाव की भावना पैदा करता है।

यूनानी काव्यशास्त्र में अरस्तू की प्रसिद्ध रचना 'पेरि पोइतिकेस' के उपरान्त 'पेरि इप्सुस' (लांजाइनस की रचना कृति) का दूसरा स्थान है। 'पेरि इप्सुस' का अर्थ है- औदात्य या ऊँचाई। इसी निबन्ध को अंग्रेजी में" औन द सब लाइम" नाम से अनुवाद हुआ है। पाश्चात्य काव्यशास्त्र में उदात्त के स्वरूप का निर्धारण का प्रयास लांजाइनस के बहुत पहले से चला आ रहा है। ईसा पूर्व द्वितीय एवं प्रथम शताब्दी में रोम के विद्वानों ने औदात्य के सम्बन्ध में ग्रन्थ और निबन्ध लिखे। दुर्भाग्य से पूर्ववर्ती विचारकों के नाम ही उपलब्ध हैं। उनकी कृतियाँ सुलभ नहीं हैं। लांजाइनस के निबन्ध से भी इसी बात की पुष्टि होती है। उसने पूर्ववर्ती और समकालीन विचारकों के भ्रम-निवारण के लिए अपने ग्रन्थ की रचना की है। उसने अपने ग्रन्थ के आरम्भ से ही 'कैसिलियस' नामक लेखक की चर्चा की है और कहा है कि कैसिलियस ने उदात्त के स्रोतों, अवयवों और तीव्रता के विषय में कुछ नहीं बताया है। लांजाइनस ने कैसिलियस के भ्रम का निवारण किया है।
 

लांजाइनस के उदात्त तत्त्व पर आलोचनात्मक विचार 

लांजाइनस ने काव्य का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व 'उदात्त तत्त्व' माना है। उदात्त तत्त्व की परिभाषा करते हुए उन्होंने अभिव्यंजना की श्रेष्ठता और विशिष्टता को 'उदात्त तत्त्व' कहा है। उनके अनुसार वह उदात्त तत्त्व रचना की कसौटी हो सकता है। संसार में अनेक महान् रचनाकार अभिव्यक्ति या भाषा के गुण के कारण ही अमर हो गये हैं, लांजाइनस के अनुसार सुन्दर भावों के प्रकाश हैं।
 
लांजाइनस के अनुसार श्रेष्ठ साहित्य वह है जो सबके लिए आनन्ददायक हो। उसके अनुसार भाषा के मात्र गुणात्मक होने से ही पाठक को साहित्य से आनन्द की अनुभूति होती है। वे भाषा की शक्ति को अपरिमेय मानते थे और उनके अनुसार कृति का प्रभाव शक्ति भाषा की गरिमा में ही होती है। उदात्त तत्त्व का महत्त्व बताते हुए उन्होंने लिखा है कि, "उचित समय में प्रयुक्त उदात्त तत्त्व की झलक विद्युत की चमक की भाँति प्रत्येक वस्तु को अपने सम्मुख छितरा देती है और एक ही बार में वक्ता की समस्त शक्ति को खोलकर रख देती है।"
 

उदात्त की व्याख्या 

लांजाइनस के मत में उत्कृष्टता काव्य की आत्मा है। इसी के कारण काव्य हमें आनन्द देता है। काव्य की इस आत्मा के लिए लांजाइनस ने जिस यूनानी शब्द का प्रयोग किया है (और जिसका अंग्रेजी में 'सबलाइम' अनवाद किया गया है।) उसका अर्थ है 'ऊँचाई पर ले जाना' या ऊपर उठाना (उत्कर्षण)। इसी अर्थ में लांजाइनस ने लिखा है कि, "साहित्य पाठकों (या श्रोताओं) को आवेगपूर्ण अनुभूति की नवीन ऊँचाइयों तक जिन गुणों के कारण ले जाता है, वे ही उनका जीवन हैं। साहित्य का यही 'उत्कृष्टता' गुण उसके गुणों में महान है। यह वह गुण है, जो अन्य क्षुद्र त्रुटियों के बावजूद साहित्य को वास्तविक रूप से प्रभावपूर्ण बनाता है।" वास्तव में लांजाइनस ने उदात्त शब्द की कोई स्पष्ट व्याख्या नहीं की है। इसका एक मात्र कारण यही प्रतीत होता है कि उसने इसे स्वतः स्पष्ट तथ्य मानकर छोड़ दिया है। 

लोंजाइनस का उदात्त सिद्धांत की समीक्षा
वैसे इसमें कोई संदेह नहीं है कि काव्य की उदात्तता एक प्रकार से उसकी अतिरिक्त गरिमा और विशिष्टता के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। यह विशिष्टतया कैसे लायी जाये ? यह महत्त्वपूर्ण प्रश्न लांजाइनस में या उसके समक्ष अवश्य रहा था। यही कारण है कि उसने उदात्त के तत्त्वों की विवेचना की है और उसी के आधार पर उदात्त को परिभाषित किया है। इस सम्बन्ध में डॉ. रामअवतार द्विवेदी ने लिखा है कि, "जब किसी विचारशील और साहित्यिक अनुभव सम्पन्न व्यक्ति द्वारा कोई बात बार-बार सुनी जाती है, किन्तु उसके मन में न तो उच्च विचारों को उत्पन्न करती है और न ही नवीन चिन्तन के लिए सामग्री प्रस्तुत करती है तथा उसका ग्रहण सुनने के क्षण में ही प्रकट होकर विनष्ट हो जाया करती है तब निश्चय ही औदात्य का अभाव सिद्ध होता है। वही वास्तव में महान् है जो नवीन विचारों को उत्तेजित करता है, जिसका बाधित होना कठिन नहीं, अपितु असम्भव होता है, जिसकी स्मृति सबल तथा अविनाशशील होती है। आप यह मान सकते हैं कि वे औदात्य और यथार्थ लक्षण हैं जो सदैव और सभी जनों को प्रसन्न करतें 'हैं, क्योंकि जब विभिन्न व्यवहार, जीवन क्रम उद्देश्यों और आकांक्षाओं के व्यक्ति किसी लेख के बारे में एक ही प्रकार का मत प्रकट करते हैं, तब निश्चय ही इन विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों का निर्णय उस लेख के बारे में जिनकी वे प्रशंसा करते हैं, स्वीकार करने योग्य होती है।"
 
लांजाइनस की मान्यता थी कि कला के लिए प्रतिभा आवश्यक है, लेकिन अभ्यास भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। उसके अनुसार श्रेष्ठ और सुन्दर कविता वह है जो आनन्दातिरेक के कारण हमें इतना डुबा दे कि हम अपने आप को भूल जायँ और ऐसी उच्च भावभूमि पर पहुँच जायें कि जहाँ भौतिकता एवं तर्क की पहुँच नहीं हो। इतना ही नहीं काव्य की उत्कृष्टता के लिए लांजाइनस ने यह भी आवश्यक बताया है कि काव्य का कर्त्ता भी स्वयं महान् व्यक्तित्व वाला होना चाहिए, क्योंकि उक्ति की महानता कवि के व्यक्तित्व में ही छिपी रहती है। काव्य कवि की आत्मा का, मनुष्य की सम्पूर्ण प्रवृत्ति का परिणाम होता है और इसलिए उसके लिए कल्पना विलास और वास्तविक भाव दोनों की ही सर्वाधिक आवश्यकता होती है। इसके सन्दर्भ में लांजाइनस ने यह भी कहा है कि किसी कृति की उत्कृष्टता के लिए कवि के व्यक्तित्व का महान् होना ही आवश्यक नहीं है, यह भी आवश्यक है कि रचना में प्रभावित करने की क्षमता होनी चाहिए। जब तक रचना में ग्राहिका शक्ति नहीं होगी तब तक वह निश्चय ही व्यर्थ प्रमाणित होगी। काव्य उसी को आनन्द प्रदान कर सकता है और उसी के हृदय को स्पर्श कर सकता है जिसमें ग्राह्यता शक्ति विद्यमान हो।
 

उदात्त के तत्त्व

काव्य में उदात्त तत्त्व की महिमा स्थापित करने के बाद लांजाइनस ने उदात्त तत्त्व के पाँच स्रोतों का विवेचन किया है। ये पाँच स्रोत हैं- विचारों की भव्यता, अनुप्राणित भावों की उत्कृष्टता, अलंकारों की योजना, उदात्त शब्द-शिल्प का गरिमामय वाक्य-विन्यास। यहाँ यह ध्यान में रखने योग्य है कि लांजाइनस ने काव्य के भावपक्ष और कलापक्ष दोनों को ही उदात्त एवं स्रोत माना है।
 
इनके मतानुसार विचारों की भव्यता एक प्राकृतिक गुण है। उन्नत तथा विस्मयकारक विचारों की स्वाभाविक अभिव्यक्ति उत्कृष्ट शैली में ही सम्भव है अर्थात् शैली का विकास करते हैं। लांजाइनस ने यह भी कहा है कि महान् उक्ति महान् आत्मा की प्रतिध्वनि होती है। विचारों की उत्कृष्टता तुच्छ और हेय विचारों के द्वारा प्राप्त नहीं हो सकती है। भावों की उत्कृष्टता का आधार उसने विचारों की भव्यता को ही माना है। भावों की उत्कृष्टता के बारे में वे अलग से एक पुस्तक लिखना चाहते थे, किन्तु उसकी ऐसी कोई पुस्तक अभी तक नहीं मिली हैं।
 
लांजाइनस के इन विचारों से स्पष्ट है कि वे काव्य के भावपक्ष के महत्त्व को भली प्रकार से समझते थे। कलापक्ष की उत्कृष्टता के आधार के रूप में उन्होंने विचार तथा भाव की श्रेष्ठता को स्वीकार किया है। उदात्त तत्त्व के पहले दो स्रोत भाव और विचार की श्रेष्ठता का विवेचन कर उन्होंने काव्य में भाव पक्ष के महत्त्व को भली प्रकार प्रकट किया है। 

अलंकार योजना के विषय में उन्होंने लिखा है कि अलंकारों का उचित प्रयोग काव्य में औदात्य की प्रतिष्ठा में सहायक होता है। उनके मतानुसार अलंकार का अनियन्त्रित प्रयोग काव्य की विश्वसनीयता के प्रति सन्देह उत्पन्न करता है, किन्तु स्वाभाविक रूप से प्रयुक्त होने पर वे काव्य में चमत्कारिता उत्पन्न करने में सफल होते हैं। अलंकार और उदात्त तत्त्व दोनों ही एक दूसरे को पुष्ट करते हैं और उचित प्रयोग होने पर अलंकार उदात्त तत्त्व में ही विलीन हो जाते हैं। उनके अनुसार अलंकार कवि के वास्तविक भावों में निहित होते हैं और वे मानव के कलात्मक बोध के प्रतीक हैं। उन्होंने इस पर भी जोर दिया है कि अलंकार प्रयोग के समय रीति, परिस्थिति और अभिप्राय का ध्यान रखना चाहिए। लांजाइनस के अनुसार काव्य के उदात्त तत्त्व के पोषक अलंकार हैं- विस्तारण, प्रश्नालंकार, विपर्यय, व्युत्क्रम, पुनरावृत्ति, प्रत्यक्षीकरण, संचयन, चरम सीमा, रूप परिवर्तन और पर्यायोक्ति।
 
उक्ति और उत्कृष्ट शब्द प्रयोग पाठक के मन को मुग्ध कर लेता है। उचित शब्द प्रयोग से शैली में गौरव, सौन्दर्य, रसास्वादन सामर्थ्य और शक्ति की वृद्धि होती है। लौंजाइनस के अनुसार सौन्दर्यपूर्ण शब्द विचारों की वास्तविक आभा होते हैं। उन्होंने शानदार शब्दों के अन्धाधुन्ध प्रयोग का विरोध किया है। वे इसे किसी बच्चे के मुख पर भयंकर मुखौटा लगाये जैसा समझते थे। 

गरिमामय वाक्य विन्यास का अर्थ है- सामञ्जस्यपूर्ण शब्द-विन्यास। उनके अनुसार ऐसा विन्यास काव्य में सुख और आनन्द के साथ औदात्य और भावावेश उत्पन्न करने का भी साधन है। सामञ्जस्यपूर्ण विन्यास पाठक को अति मन्त्रमुग्ध कर देता है और विचारों की भव्यता तथा उदात्तता की ओर उन्मुख करता है। शब्दों के अशक्त और खण्डित प्रयोग से काव्य की गरिमा घट जाती है, किन्तु आवश्यकता से अधिक सामञ्जस्य भी हानिकारक होता है। उससे काव्य में बनावटीपन झलकने लगता है।
 

साहित्य की श्रेष्ठता की कसौटी

लांजाइनस के अनुसार साहित्य का उद्देश्य आनन्द 'की अनुभूति कराना है। वे साहित्य के आनन्द को सामान्य सुख से भिन्न मानते हैं। उनके अनुसार उदात्त गुण के अनुसरण का फल यह होता है कि व्यक्ति अपनी साधारण स्थिति से ऊपर उठ जाता है। साहित्य की उदात्तता पाठक को वास्तविकता से ऊपर उठाकर एक ऐसे संसार में पहुँचा देती है जहाँ सिर्फ आनन्द की उदात्तता होती है।
 
इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उसके अनुसार साहित्य में कल्पना और भावावेश उत्पन्न हो जिससे पाठक की आत्मा फड़क उठे और उसे ऐसा अनुभव होने लगे कि ऊँचाइयों तक मन में तरंगें उत्पन्न हो रही हों। भारतीय काव्यशास्त्र में भी पाठक के मन की उदात्तता का वर्णन आता है। वहाँ इसे साधारणीकरण की स्थिति कहा गया है। लांजाइस ने उदात्तता का महत्त्व बताते हुए कहा है कि साहित्य उदात्तता व्यक्ति को इतना ऊपर उठा देती है कि वह उसे ईश्वर की महानता के निकट ले जाती है।
 

उदात्त विरोधी तत्त्व

उदात्त तत्त्व के स्रोतों का विवेचन करने के उपरान्त लांजाइनस ने उदात्त तत्त्व के विरोधी तत्त्वों की विवेचना भी की है। उनके अनुसार वागाडम्बर, भावाडम्बर, अनावश्यक नवीनता की खोज, अस्त-व्यस्त भाषा, उक्ति, अत्यन्त संक्षिप्तता और अभिव्यक्ति की क्षुद्रता काव्य में उदात्त के विरोधी हैं। भाव की गरिमा के लिए अनावश्यक शब्दों का अपव्यय वागाडम्बर है। अवसर के अनुपयुक्त भावों का अतिरिक्त वर्णन भावाडम्बर है। शब्दाडम्बर से अभिप्राय है अत्युक्तिपूर्ण शब्दावली। लांजाइनस ने उन लोगों की भी आलोचना की है जो नवीनता के पीछे पागल हो रहे हैं। काव्य में मौलिकता अपेक्षित है किन्तु अनावश्यक नवीनता नहीं। भाषा की अस्त-व्यस्तता से उनका अभिप्राय संगीत और लय की अधिकता से है। अत्यधिक लक्षणापूर्ण शैली शब्दों के भाव का महत्त्व कम कर देती है। उक्ति की अत्यन्त संक्षिप्तता से भावों की गरिमा नष्ट हो जाती है। अभिव्यक्ति की क्षुद्रता से उसका मतलब अभिव्यक्ति की ग्राम्यता से है। उनके अनुसार जब तक किसी प्रबल कारण से अनिवार्य न हो जाये तब तक उदात्त प्रसंगों में निकृष्ट और कुत्सित भाषा का प्रयोग नहीं होना चाहिए।
 

लांजाइनस के मत की समीक्षा

सामान्य रूप से यह समझा जाता है कि लांजाइनस ने उदात्त तत्त्व के रूप में कलापक्ष पर अधिक जोर दिया है। यह माना जाता है कि वे काव्य में शैलीगत चमत्कार के अधिक पक्षपाती थे। उदात्त तत्त्व की जो परिभाषा उन्होंने दी है उससे भी ऐसा लगता है कि उनका दृष्टिकोण एकान्तिक नहीं था। उदात्त तत्त्व के जो पाँच स्रोत उन्होंने बताये हैं उनका सम्बध केवल काव्यशैली से ही नहीं है, काव्य के भाव पक्ष से भी है। वे महान् आत्मा उत्पन्न महान् उक्ति में ही उदात्त तत्त्व की स्थिति मानते हैं। उदात्त तत्त्व का मूल आधार उक्ति की महानता है। अलंकार, शब्द तथा वाक्य विन्यास उसके बाहरी स्वरूप हैं और इनके माध्यम से उदात्त तत्त्व प्रकट होता है।
 
भारतीय काव्यशास्त्र और 'लांजाइनस' के मत में कई जगह समानता और एकरूपता दिखायी देती है। काव्य के उद्देश्य के रूप में उसने आनन्द की अनुभूति पर जोर दिया है, जो रस सिद्धान्त की याद दिला देता है। उसके विवेचन में साधारणीकरण की झलक भी दिखायी देती है। अलंकार और शब्द योजना में उसने उचित और आवश्यक प्रयोग पर जोर दिया है। उसकी तुलना भारतीय काव्यशास्त्र के औचित्य सिद्धान्त से हो सकती है।
 
'लांजाइनस' के काव्य-सम्बन्धी विचारों की एक विशेषता यह है कि उसमें दुराग्रह नहीं है। 'उदात्त तत्त्व' के रूप में उसने श्रेष्ठ साहित्य के मूल्यांकन के लिए एक कसौटी बनाने का प्रयत्न किया था। उदात्त तत्त्व की परिभाषा यद्यपि उसने अभिव्यंजना की श्रेष्ठता के रूप में प्रस्तुत की थी, किन्तु उदात्त के स्रोतों का विवेचन करते समय विचारों की भव्यता और भावों की उत्कृष्टता का भी उसने समावेश किया है और इस प्रकार एक सन्तुलित दृष्टि का विकास किया।. अभिव्यक्ति तथा सौन्दर्य पर जोर देने के कारण स्काटजेम्स नामक पश्चिमी आलोचक ने उसे पहला स्वच्छन्दतावादी समालोचक माना है। हाँ, दूसरी ओर एक दूसरे आलोचक एटकिन्स ने उसे अन्तिम क्लासिक आलोचक भी कहा है. क्योंकि उसके चिन्तन में क्लासिक आलोचना और निर्वैयक्तिकता भी है।
 

काव्य में उदात्त अपरिहार्यता

लांजाइनस ने उदात्त को काव्य के लिए अनिवार्य माना है। इसी अनिवार्यता के आधार पर लांजाइनस ने उदात्त तत्त्व को काव्यात्मा स्वीकार किया है। 'लांजाइनस' ने स्पष्ट कहा है कि, "उदात्त तत्त्व के होने पर ही कोई कृति महान् तथा उसको लेखक महान् बन जाता है। विषय की गरिमा का ठीक निर्वाह करने के लिए उदात्त शैली की महान् आवश्यकता होती है।" काव्य में उदात्त की अपरिहार्यता को प्रमाणित करने के लिए लांजाइनस ने जो कुछ कहा है, उसका निष्कर्ष इस प्रकार है-
  1. औदात्य विषय की गरिमा में वृद्धि करता है।
  2. विषय की गरिमा को रक्षित करते हुए औदात्य कलात्मक-चमत्कार द्वारा पाठकों को आकर्षित करता है तथा उसमें विशिष्ट अर्थ को सम्प्रेषित करता है। अत: काव्य में औदात्य अनिवार्य है।
  3. औदात्य तत्त्व कलाकृति का आत्मतत्त्व है। यह तत्त्व ही उसके गौरव तथा गरिमा का मूल है।
  4. कलों के आधारभूत तत्त्व-अन्तः प्रेरणां, प्रकृति और प्रयोजन आदि की पकड़ ही उदात्त की प्रकृति निश्चित करते हैं। 
  5. विषय के पूर्ण विवरण से भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि विषय को कैसे प्रस्तुतीकरण मिला है।
  6. उदात्त के गुण के कारण उदात्त भाषा का प्रभाव श्रोता के मन पर अमिट छाप छोड़ जाता है।
  7. काव्य में औदात्य की आवश्यकता इसलिए भी होती है कि उसके प्रयोग से काव्य में ऐसा वैशिष्ट्य आ जाता है जो हमारी आत्मा की क्षुद्रताओं को समाप्त करके उन्नयन का कार्य करता है। 
  8. उदात्त के प्रयोग से काव्य में विषय सही ढंग से प्रस्तुत हो जाता है। परिणामस्वरूप उदात्त शिल्प काव्य में अपनी अपरिहार्यता प्रमाणित कर देता है 
  9. उदात्त में रचना संयोजन का विशेष महत्त्व है। औदात्य के तत्त्वों को नष्ट करने वाले तत्त्व शब्दाडम्बर, अतिशय विस्तार, अतिशय संक्षिप्तता आदि हैं। इनसे बचना चाहिए। 

लांजाइनस की देन

लांजाइनस की सबसे बड़ी देन है कि उन्होंने काव्य के शाश्वत प्रतिमान निर्धारित किये हैं। उन्होंने यह विश्वास भी दृढ़ किया है कि कला का उद्देश्य दमित वासनाओं को उभारना नहीं है। कला तो आत्मोन्नयन का समर्थ साधन है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि समर्थ कलाकारों को कला के विशिष्ट प्रतिमानों का आदर करना चाहिए। लांजाइनस ने आवाज बुलन्द किया कि प्राचीन महारथियों के आदर्श का लेखन और भाषण दोनों में ही अनुकरण करना चाहिए। लांजाइनस की एक देन यह भी है कि वे साहित्यिक गरिमा की कसौटी कृति की भावोद्रेक या भाव विह्वल करने की क्षमता मानते हैं। लांजाइनस का दृष्टिकोण कलात्मक अधिक रहा है, वस्तुपरक कम। लांजाइनस अपने विचारों में स्पष्ट तथा अपनी अभिव्यक्ति में वैज्ञानिक पद्धति अपनाकर चले हैं। उनके सिद्धान्त में काव्य में अंतरंग तथा बहिरंग क्षेत्रों का ही ठोस विवेचन मिलता है। यही कारण है कि उनके पास भी आलोचकों ने उनके मत से असहमति व्यक्त करते हुए भी उन्हें नकारने का साहस नहीं किया है। वे निश्चय ही यूनानी प्रतिभा के वरदान थे। 

COMMENTS

Leave a Reply
नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,37,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,4,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,8,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,5,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,6,कविता,1473,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,38,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,139,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,6,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,35,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,76,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,5,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,7,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,3,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,201,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,139,प्रयोजनमूलक हिंदी,37,प्रेमचंद,46,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,88,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,9,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,17,भीष्म साहनी,7,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,10,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,3,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,8,मोहन राकेश,13,यशपाल,14,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,124,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,7,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,1,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,8,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,57,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,4,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,32,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,44,समसामयिक हिंदी लेख,266,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,20,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,86,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,427,हिंदी लेख,529,हिंदी व्यंग्य लेख,14,हिंदी समाचार,180,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aapka-banti-mannu-bhandari,5,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,10,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,19,hindi essay,419,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,677,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,54,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,22,kavyagat-visheshta,25,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,11,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,raag-darbari-shrilal-shukla,5,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,6,sponsored news,10,suraj-ka-satvan-ghoda-dharmveer-bharti,3,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,48,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: लोंजाइनस का उदात्त सिद्धांत की समीक्षा
लोंजाइनस का उदात्त सिद्धांत की समीक्षा
लोंजाइनस का उदात्त सिद्धांत की समीक्षा लोंजाइनस एक प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक और आलोचक थे, जिन्होंने पहली शताब्दी ईस्वी में "ऑन द सबलाइम" ("पेरि ह्यूप्
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgyAzzWYHWSN5Gta8TPrbHWGVBqM-7wNnGYTB7U0Ij9oUlR6Yp6nghkg-Z29FhWteukYSGm57GSC3w0cQx6LfRalZan9Nm-f_X-LSsDCmKWeaQ_QI-ZFZTnRDDMQJCpr5CdP_EuBYd-HgkEZ_CoZh1qJX8vgvBq6YBzi7Uk6aMvirUIdHvb2Omo2iHgSEJL/w320-h261/lonjainas-ka-udat-siddhant-ki-samiksha.jpeg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgyAzzWYHWSN5Gta8TPrbHWGVBqM-7wNnGYTB7U0Ij9oUlR6Yp6nghkg-Z29FhWteukYSGm57GSC3w0cQx6LfRalZan9Nm-f_X-LSsDCmKWeaQ_QI-ZFZTnRDDMQJCpr5CdP_EuBYd-HgkEZ_CoZh1qJX8vgvBq6YBzi7Uk6aMvirUIdHvb2Omo2iHgSEJL/s72-w320-c-h261/lonjainas-ka-udat-siddhant-ki-samiksha.jpeg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2024/07/lonjainas-ka-udat-siddhant-ki-samiksha.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2024/07/lonjainas-ka-udat-siddhant-ki-samiksha.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका